Friday, December 31, 2010

आप सब को नए साल २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

साल २०१० कुछ ही घंटों का मेहमान है, कुछ ही घंटों बाद साल २०११ आ  जायेगा| नया  साल २०११ आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल २०११ में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की  करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| कल नए साल की  सुबह  होगी आइए इस मौके पर हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
                                                   ख्याली राम जोशी (पाटली)

Friday, December 24, 2010

" वेद-दर्शन "

                                  माँ के आँचलमें जिस प्रभुने,  सद्य  प्रवाहित की  पय- धारा |
                                   क्षिति, पावक, आकाश, पवन रच पैदा की निर्मल जल धारा||
                                   श्रृष्टि   चलाने  हेतु  प्रभु  से,   प्रगटी    वेद-ज्ञान- श्रुति-धारा|
रूप  ऋचा पाया  ऋषिगणसे,  पुस्तक  रूप  ब्यासके   द्वारा||
पारायण  ऋग्वेद  यदि  करें ,  सृष्टिका  विज्ञान  प्राप्त  हो|
याजुर्वेद्का  मनन  करें  तो, अन्तरिक्षका  मर्म ज्ञात  हो||
छंद  बताते  सामवेदके ,  सरल  उपासन  मार्ग    ब्रह्मका |
ज्ञान अथर्वनका जब पायें, स्वस्थ्य बढे इस सारे जग का||
ब्राह्मन, शास्त्र,  पुराण,  अरण्यक,  पावन  है  सोपान वेदके|
शिरोभाग उपनिषद अवस्थित,मुकुट-मणि-सम वेद-ज्ञानके||
मीमांसा, वेदान्त योग यह,  न्याय, वेशेषिक और सांख्य है|
सुखमय जीवन-दर्शनका यह, छ: शास्त्रों का सुलभ मार्ग है||
ईशावास्य, केन, कंठ, मुण्डक,श्वेताश्र्वतर,माण्डुक्य, प्रश्न है|
ब्रह्दारन्य,छान्दोग्य उपनिषद,तैत्तिरीय ऐतरेय, वेद-सर हैं||
सुरभाषामें   काव्य-रूपमें,  ऋषि-अर्जित  वेदाम्रित  न्यारा|
प्रभु-प्रदत्त इस ज्ञान-राशिसे, वंचित रहे ना यह जग सारा||
माँ की   भाषामें   जन-जनमें, पहुंचे  ज्ञानामृतकी   धारा|
वेद-ज्ञान,  लय-रूप  प्राप्त  हो,  यह  ही  है उद्देश्य हमारा||
                       (कल्याण में से)

Friday, December 17, 2010

"भगवान तो आए थे"

             महर्षि रमण से कुछ भक्तों ने पूछा "क्या हमें भगवान के दर्शन हो सकते हैं?"महर्षिने कहा हाँ क्यों नहीं हो सकते! परन्तु   भगवान को पहचान ने वाली आँखें चाहिए| महर्षि ने उन्हें बताया "एक सप्ताह तक भगवान के मन्दिर में पूरी तन्मयता से भगवान का संकीर्तन करो| सातवें दिन भगवान आएँगे, उन्हें पहचानकर, उनके दर्शन कृतकृत्य हो जाना|
              भक्तों ने मन्दिर को सजाया, सुन्दर ढंग से भगवानका श्रंगार किया तथा संकीर्तन शुरू कर दिया| महर्षि रमण भी समय समय पर संकीर्तनमें बैठ जाते| सातवें दिन भंडारा करने का कार्यक्रम था| भगवान के भोग के लिए तरह तरहके व्यंजन बनाए गए थे| मन्दिर के सामने पेड़ के नीचे मैले कपडे पहने एक कोढ़ी  खड़ा हुआ  था| वह एकटक देख रहा था की सायद मुझे भी कोइ प्रसाद देने आए| एक व्यक्ति दया कर के साग-पुरिसे भरा एक दोना उसके लिए लेजाने लगा कि एक ब्राह्मन ने उसे लताड़ते हुए कहा यह प्रसाद भक्त जनों के लिए है, किसी कंगाल कोढ़ी  के लिए नहीं बनाया गाया है| वह दोना वापस ले आया| महर्षि  रमण यह सब देख रहे थे| भंडारा संपन्न होने पर भक्तों ने महर्षि से पूछा"आज सातवें दिन भगवान तो नहीं आए"|
             महर्षि रमण ने बताया मन्दिर के बाहर जो कोढ़ी खड़ा था वे ही तो भगवान थे| तुम्हारे चर्मचक्षुओं ने उन्हें कहाँ पहिचाना? भगवान के दर्शनों के इच्छुक लोगों का मुंह उतर गाया| 

Friday, December 10, 2010

"कुछ व्यावहारिक सच्चाइयाँ "

            गुणी व्यकियों की संगती से बढ कर कोई लाभ नहीं और मूर्खों के संसर्ग से अधिक कोई दुःख नहीं है| समय की हानि सब से बड़ी हानि है| धर्मानुकूल आचरण में अनुराग ही निपुणता है| शूर वही है जो जितेन्द्रिय है|पत्नी वह अच्छी है जो पति  के अनुकूल आचरण करे| विद्या से बड़ा कोई धन नहीं है| अपने घर में रहने से अधिक  कोई सुख नहीं है| राज्य वही है जहाँ राजा का अनुशासन सफल है| तात्पर्य यह कि साधु स्वभाव वाले गुणी ब्यक्तियों के संग में रहने से अधिक लाभप्रद कोई बात नहीं| ब्यक्ति प्राय: अपनी परिस्थितियों से ही  प्रभावित होकर नहीं रहना चाहता है| सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य कभी अकेला नहीं रहना चाहता और साथी की तलाश उसके जीवन के प्रारम्भ में ही शुरू हो जाती है| यदि साथी अच्छे मिल जाएँ तो वह भी अच्छे मार्ग पर चल पड़ता है| मनुष्य का कौशल इसमें नहीं है कि वह अपनी कुटिल चालों से दूसरों को ठग कर आगे बढे| वरन कौशल  तो यह है किवह सदाचार की मान्यताओं  और महांपुरुशों द्वारा सम्मत विश्वासों का सम्मान करते हुए अपने में सदगुणों की प्रतिष्ठा  करता जाए| धर्मानुकूल चलने में कुछ कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं, किन्तु कठिनाइयों को पार करने की शक्ति भी उसी से मिलती है| धर्म मनुष्य को संयम की शिक्षा देता है, सच्चा संयमी ही शूर वीर होता है| संसार पर वही विजय पाता है जो संयम से अपने पर ही विजय पाए|
कल्याण में से|

Friday, December 3, 2010

दोषी कौन ?

बहुत खोया,                                   
मैं क्यों रोया?
मैंने माना-मेरा  दोष,
मुझ को जिनसे रोष था,
आज उनकी बेबसी पर,
और अपनी बेबसी पर,
मुझ को भान आया,
मेरा साया ही मेरा दोष,
मेरा अपना दोषी,    
मैं ही बेकस-खुद का था,
                            मैं खुद का दोषी|

Thursday, November 25, 2010

"माँ"

पिता पेड़ है                                                                            
हम शाखाएं  हैं उसकी  
माँ छाल की तरह चिपकी हुई है
पूरे पेड़ पर
जब भी चली है पेड़ पर कुल्हाड़ी 
पेड़ या उसकी शाखाओं पर 
माँ गिरी है सब से पहले
टुकड़े होकर|

Sunday, November 21, 2010

" निरोगी" दोहे

१. शीतल  जल में डालकर सौफ  गलाओ  आप |          
   मिश्री  के संग  पान  कर  मिटे  दाह- संताप ||

२.फटे विमाइ  या मुंह फटे , त्वचा खुरदुरी होय |
   नीबू-मिश्रित  आंवला  सेवन  से  सुख होय ||

३. सौंफ  इलाइची गर्मीमें, लौंग सर्दी में खाय |
    त्रिफला सदाबहार है, रोग सदैव  हार जाय ||

४.वात-पित्त जब जब बढे, पहुंचे अति कष्ट |
   सौंठ, आंवला, दाख संग खावे पीड़ा नष्ट ||                                   
                                 
 ५.छल प्रपंचसे दूर हो, जन मंगल की चाह |
    आत्मनिरोगी जन वही गहे सत्यकी राह ||
साभार  कल्याण

Sunday, November 14, 2010

" हंसिकाएं "

इतनी भाउकता घुस आई है मानव जीवन में,
कुछ भी पाता नहीं चलता असली नकली का|
गया था एक दिन मन्दिर में दर्शन करने, तो देखा,
पवन पुत्र पर चल रहा था पंखा बिजली का|
               
जान कर अनजान बने उसे नादान कहो,
हैबानियत की बात करे उसे इंसान कहो|
जो बुलाने से ना आये उसे भगवान कहो,
जो भगाने से न भागे उसे मेहमान कहो|      

Thursday, November 4, 2010

|| ईश वंदना ||


हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हम को दीजिए|
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हम से कीजिए||
लीजिए हमको शरण में हम सदा चारी बनें|
ब्रह्मचारी  धर्मरक्षक वीर ब्रतधारी बनें||
हे प्रभो.......
सत्य बोलें झूठ  त्यागें मेल आपस में करें|
दिब्य जीवन हो हमारा  यश  तेरा गाया करें||
हे प्रभो.......
प्रेमसे हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें|
प्रेमसे हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें||
हे प्रभो....
योगबिद्या ब्रह्मबिद्या हो अधिक प्यारी हमें|
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें||
हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हम को दीजिए|
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हम से कीजिए||
                                                       
ज्योति पर्व दीपावली सभी के लिए ज्योतिर्मय हो|
बहुत सारी शुभकामनाओं सहित|

Wednesday, October 27, 2010

आत्मप्रेरणा

                                   चलना है अगर,
जीवन  के बीहड़ राहों में ,                             
खुद से पहले वादा कर लो|
मंजिल मिले या ना मिले,
चलते रहना क्या कम है,
आज तुम खुद से ये वादा कर लो|
जीना है अगर,
आंसुओं को छुपा लो,
चेहरे पर हँसी,
होंठों पर गीत सजा लो|
बनना है अगर कुछ
                                   मिटाना पड़ेगा जिन्दगी को कुछ,
                                   बाहर अँधेरा ही सही,
                                   अपने अन्दर दीप जला लो|
                                   चलना है अकेले ही,
                                   फिर तलाश  क्यूँ है किसी की,
                                   अपनी  आत्मप्रेरणा को ही साथी बना लो|

Friday, October 22, 2010

'सफलता प्राप्ति के सूत्र '

      

         बचपन से ही हर बच्चे के मन में होता है कि वह बड़ा होके क्या बनेगा| जवानी की दहलीज में कदम रखते रखते उसके


न में यह आकांक्षा मचलने लगती है कि उसे डाक्टर, इंजिनियर, वकील साहित्यकार या कलाकार बनना है| कई दिलों में

      संपन्न    और सम्रद्ध  बनने की ख्वाहिश पालने लगते हैं| हर युवक  अपने अपने सपने साकार करना चाहता है| परइनमें  
से कुछ ही युवक सफल हो पाते हैं| क्यों कि सभी अपने उद्देश्य  के मुताबिक परिश्रम नहीं करते, या यों कहिए कि वो परिश्रम 

करने की ओपचारिकता ही निभाते हैं| ऐसी हालत में सफलता हासिल करना कैसे संभव है? मनुष्य का उद्देश्य  जितना ऊँचा हो 

उसे प्राप्त करने के लिए परिश्रम भी उसी अनुपात में करने की जरुरत है| अगर परिश्रम में थोड़ी सी भी कमी रहगई तो मनुष्य 

उद्देश्य  प्राप्ति से वंचित रह जाता है|

       आप जो बनना चाहते हैं, उसका चित्र हर समय आप की आँखों के सामने और ह्रदय में रहना  चाहिए| लक्ष्य  पाने की चाह 

एक नशे  की तरह होनी चाहिए,जो हर पल चढ़ा रहे| ऐसी स्थिति में आप के कदम स्वत: लक्ष्य  की ओर बढ़ने लगेंगे| इसके 

विपरीत आप अगर चाहें कि परिश्रम किए बिना और समय का सदुपयोग किए बिना सफल हो जाएँ या लक्ष्य प्राप्त कर लें तो यह

संभव नहीं है| आप ने कहीं बाहर जाना है और आप को बता दिया जाए कि यह रास्ता बस अड्डे को जाता है, आप को वहीँ से

बस मिलेगी, आप उस रास्ते पर चलते ही नहीं तो क्या आप बस अड्डे पहुँच सकते हैं? नहीं ना| वैसे ही बिना परिश्रम के

सफलता प्राप्त कर लेना या मंजिल तक पहुंचना  संभव नहीं है| इसलिए परिश्रम करने पर सफलता पाना असंभव नहीं है| दृढ

निश्चय के साथ कदम बढाएं और परिश्रम कीजिए सफलता आप को  विजय का ताज कैसे नहीं पहनाती|

Sunday, October 17, 2010

|| एकश्लोकी रामायण ||

                                        

Tuesday, October 12, 2010

'इश्के हकीकी'

                                               'नूह' साहब ने फरमाया  है:-


इश्के  हकीकीके लिए इश्के मजाज़ी है ज़रूर,            
वे  वसीला  कहीं बन्देको  खुदा  मिलता है|
'नूह'  काबे मे नज़र आया न बुत भी कोई,
लोग  कहते थे कि काबेमें खुदा मिलता है|
हर तलबगारको मेहनत का सिला मिलता है,
बुत है क्या चीज  कि ढूंढेसे  खुदा  मिलता है|
यह नूर का जलवा है,हर बार नहीं होता ;
हर बार हसीनों का दीदार नहीं होता|

Tuesday, October 5, 2010

"घोड़े पर कौन"

किसी गांव में  दो लड़कियां रहती थी| एक का नाम मधु था दूसरी का नाम परु था| दोनों  की  आपस में गहरी दोस्ती थी| दोनों के घर एकदूसरे के नजदीक थे| दोनों सहेलियां एक ही स्कूल में पढती थीं| पर इनका  स्वभाव  अलग अलग था| मधु काफी चंचल और चुलबुली  लड़की थी| पर परु शांत और गंभीर स्वभाव की थी| कोई भी काम होता दोनों मिल कर किया करती थीं| गांव में कोई भी काम होता तो दोनों सहेलियां साथ साथ पहुँच जाती,खास कर  गांव में जब कोई बारात आती थी| जिस घर में भी बारात आती थी दोनों सहेलियां दौड़ पड़ती थी और जाकर छज्जे पर जा के खड़ी हो जाती थी| वहीँ से बारात को देखा करती  थीं| मधु आमतौर पर बारातियों का मजाक उड़ाते हुए कह देती देखो घोड़े पर कौन ? फिर खुद ही कह देती गधा बैठ कर आ  रहा है| आस पास में जो भी सुनता वह हंस देता था| यह सिल सिला  काफी देर तक चलता रहा| कुछ समय बाद मधु की सगाई हो गई| शादी की तारीख भी पक्की हो गई थी| नियत तारीख को बारात बाजे गाजे के साथ मधु के दरवाजे पर आ गई| सब बारात देखने दौड़ पड़े मधु भी उन के साथ दौड़ पड़ी और छज्जे में जाकर खडी हो गई| दुल्हे को देखते ही परु बोल पड़ी कि मधु घोड़े पर कौन,आदत मुताबिक  मधु ने कह दिया "गधा"| वहां खड़े सभी की जोर से हंसी फूट गई| जब मधु को  अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने अपना सर नीचे कर के आखें झुका लीं| पर शर्म के मारे किसी से कुछ कह नहीं पाई| मधु की मजाक करने की आदत उसके ऊपर ही भारी पड़ गई|इस लिए किसी का भी ब्यर्थ में मजाक नहीं उड़ाना चाहिए|
                                                                                               के: आर: जोशी.(पाटली)

Tuesday, September 28, 2010

गुदगुदी

            आज चुटकले  डाल रहा हूँ जो मै ने कहीं पढ़े  थे | शायद  आप लोगों को भी पसंद आएं|


        1    एक बार एक गप्पी गप्पें मार रहा था कि उसने संसार के लगभग सभी शहरों की सैर की हुई है|
            वह  बोला मैंने  लन्दन, पैरिस, न्यूयार्क,जोहान्सबर्ग,दुबई, करांची आदि शहरों को देखा  है |
            एक आदमी  बीच में खड़े होकर बोला "इसका मतलब आप जौग्रफी की अच्छी जानकरी रखते हैं|
           उसने कहा क्या बात करते हो वहां तो मै पूरा एक महीना ठहरा था|बहुत अच्छा शहर है|
                   
      2     एक डाकू पिंटू के घर में घुस आया|
           डाकू:- बताओ सोना कहाँ है, जल्दी बताओ|
          पिंटू:- पूरा घर खाली है, जहाँ अच्छा लगे सो जावो| 

     ३    एक अफ्रीकन  लड़की को परमात्मा ने एकजोड़ी पंख दिए और कहा "यह तुम्हारा इनाम है|"
          लड़की खुश होते हुए बोली "वाह परमात्मा क्या अब मैं परी बन गयी हूँ?
          परमात्मा ने कहा "नहीं रे पगली तू अब चिमगादड बन गई है|

    ४    एक बार एक आदमी अपने पडोसी के यहाँ गया और बोला| भैया जी अपनी इस्त्री तो देना|
          पडोसी:-(जिस की बीवी लड़ के  हटी थी)बीवी की तरफ इशारा करके बोला वो है|
         आदमी:-भैया जी ये नहीं जो करंट मारती है|
         पडोसी:-जरा छू कर के तो देखो पूरे २४० वोल्ट का करंट मारती है|
                                                   
                                                                के: आर:  जोशी (पाटली)

Sunday, September 19, 2010

"जौं हो " "भोव भोव"

            यह एक दन्त कथा है | उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में पुराने ज़माने में आने जाने का कोई साधन नहीं था| लोगों को कहीं भी जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ता था| रास्ते भी उबड़ खाबड़ थे| उस समय एक नई व्याहता लड़की अपने ससुराल में आई| उसका मायका उसके ससुराल से काफी दूर पड़ता था| अकेले और बारबार आना जाना मुश्किल  था| नई व्याहता लड़की को ससुराल आए काफी समय हो गया था| उसे अपने मायके की बहुत याद आने लग गई| उसे सब की नराई लग गयी थी|
          
            एक दिन उसने अपनी सास से कहा कि मुझे मायके की बहुत याद आ रही है, मैं मैत जौं हो (मे मायके चली जाऊं )| सास ने कहा कि दिन खड़े सारा काम निपटा दो तो चली जाना| उसने अपने जेठ से अनुरोध किया कि वह उसको मायके पहुंचा दे| जेठ ने कहा  भोव(कल )चलने को कहा| बेचारी ने सारा काम पूरे लगन से निपटाने की कोशिश की पर दिन खड़े काम ख़तम नहीं हो सका| कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा| बहू पूछती जौं हो (मे मायके चली जाऊं) तो सास फिर से कई काम गिना देती | जेठ को कहती तो वह भोव (कल) चलने को कह देता| आखिर में उसने सूरज देव से प्रार्थना की कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना,खड़े रहना मुझे दिन खड़े मायके जाना है| सूरज ने उसकी प्रार्थना सुन ली ओर अपनी चाल धीरे कर ली| उस दिन लड़की ने अपना काम दिन खड़े ही निपटा लिया| और मायके जाने के लिए तैयार  हो गई| जेठ को भी साथ जाना ही पड़ा| लड़की सारे रास्ते में सूरज को कहती गई कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना|

           सूरज ने भी उसका पूरा साथ दिया जैसे ही वह अपने मायके के आँगन में पहुंची, ख़ुशी के मारे वह सूरज को चला जा कहना  भूल गई| यह देख कर सूरज को गुस्सा आ गया| सूरज ने अपनी गर्मी से दोनों को भस्म कर दिया| अगले जन्म में उन दोनों ने  पंछी के रूप में जन्म लिया| एक को कोयल का रूप मिला जो "जौं हो" "जौं हो" कहने लगी | दूसरे को कठफोड़े का रूप मिला जो "भोव" "भोव" करने लगा| आज भी जब  पहाड़ की वादियों में कोयल जब "जौं हो" "जौं हो" बोलती है तो किसी दूसरे पेड़ से "भोव" "भोव" की आवाज आती है| यह मार्मिक आवाज आज भी मन को विचलित कर देती है|
                                                                                      के: आर: जोशी. (पाटली)

Sunday, September 12, 2010

"बेटी तू पहाड़ की"

बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
मारता है आवाज  तुझे  पेड़ बांज का|
झूला डाल दे तू लेके रस्सा पराल का|
लेके हुलारे तू पींघ चढ़ा जा|
दे जा  संदेशा  कोई पहाड़ प्रेम का|
देर से है इंतजार तेरा जंगल के राज का|
लेके गठ्ठा तू घास  का घर को आजा|
याद करते हैं तुझे पहाड़  के नदी और नौला|
आके बसंत मे चैत के काफल खाजा |
अंगरेजी धुन छोड़ के तू  पहाड़ी  घुन मे आ|
पौप गीत छोड़ के तू झोडा चांचरी गा|
बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
                                  के: आर: जोशी. (पाटली)

Sunday, September 5, 2010

पराधीनता मे सुख कहाँ ?

           एक कुत्ते और बाघ की आपस मे दोस्ती हो गयी| कुत्ता काफी मोटा ताजा था और बाघ दुबला पतला सा था| एक दिन बाघ ने कुत्ते से कहा- भाई एक बात बताओ तुम  कैसे इतने मोटे-तगड़े तथा सबल हुए; तुम प्रति दिन क्या खाते हो और कैसे उसकी प्राप्ति करते हो? मे तो दिन रात भोजन की खोज मे घूम कर भी भरपेट  खा नहीं पाता किसी किसी दिन तो मुझे उपवास भी करना पड़ता है| भोजन के कष्ट के कारन ही मे इतना कमजोर हूँ| कुत्ते ने कहा मे जो करता हूँ तुम भी अगर वैसा ही कर सको तो तुम्हे भी मेरे जैसा ही भोजन मिल जाएगा| बाघ ने पूछा तुम्हें करना क्या पड़ता है जरा बताओ तो सही| कुत्ते ने कहा कुछ नहीं रात को मालिक के मकान की रखवाली करनी पड़ती है| बाघ बोला बस इतना ही| इतना तो मे भी कर सकता हूँ| मे भोजन की तलाश  मे बन बन भटकता हुआ धूप तथा वर्षा से बड़ा कष्ट पाता हूँ| अब और यह क्लेश  सहा नहीं जाता| यदि धूप और वर्षा के समय घर मे रहने को मिले और भूख के समय भर पेट खाने को मिले तब तो मेरे प्राण बच जायंगे | बाघ की दुःख की बातें सुन  कर कुत्तेने कहा ; तो फिर मेरे साथ आओ|मे मालिक से कहकर तुम्हारे लिए सारी ब्यवस्था  करा देता हूँ| बाघ कुत्ते के साथ चल पड़ा| थोड़ी  देर चलने के बाद बाघ को कुत्ते की गर्दन पर एक दाग दिखाई पड़ा| यह देख कर बाघ ने कुत्ते से पूछा भाई तुम्हारी गर्दन पर यह कैसा दाग है?
कुत्ता बोला अरे वह कुछ भी नहीं है| बाघ ने कहा नहीं भाई मुझे बताओ मुझे जान ने की बड़ी इच्छा हो रही है| कुत्ता बोला गर्दन मे कुछ भी नहीं है लगता है कोई पत्ते का दाग लगा होगा| बाघ ने कहा पत्ता क्यों ? कुत्ते ने कहा  पत्ते मे जंजीर फसा कर पूरा दिन मुझे बांध कर रखा जाता है| यह सुन कर बाघ विस्मित हो कर कह उठा-जंजीर से बांध कर रखा  जाता है? तब तो तुम जब जहाँ जाने की इच्छा हो जा नहीं सकते? कुत्ता बोला ऐसी बात नहीं है , दिन के समय भले ही बंधा रहता हूँ, परन्तु रात के समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है तब मी जहाँ चाहे ख़ुशी से जा सकता हूँ| इस के अतिरिक्त मालिक के नौकर मेरी  कितनी देख भाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं| स्नान कराते  हैं  कभी कभी मालिक भी स्नेह पूर्वक मेरे शरीर पर हाथ फेर दिया करते हैं| जरा सोचो तो मे कितने सुख मे रहता हूँ| बाघ ने कहा भाई तुम्हारा सुख तुम्हीं को मुबारक हो, मुझे ऐसी सुख की जरुरत नहीं है| अत्यंत पराधीन हो कर राज सुख भोगने की अपेक्षा स्वाधीन रह कर भूख का कष्ट उठाना हजार गुना अच्छा है| मे अब तुम्हारे साथ नहीं जाउगा यह कह कर बाघ फिर जंगल की तरफ लौट गया|
                             के: आर: जोशी. (पाटली)

Monday, August 30, 2010

माँ की नसीहत

            किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की  लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश  पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी कि तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी  जिस तरह तुम इस घर की  बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की  बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले?
           अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल  कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या  करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया,और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या  नहीं करनी चाहिए| 
                                                                   के: आर: जोशी. (पाटली)                 
              

Thursday, August 19, 2010

|| एक टांग वाला बगुला ||

            क अंग्रेज भारत मे घूमने को आया| उसने भारत के कई राज्यों की सैर की| उसको भारत  पसंद आया और उसने कुछ दिन यहाँ ठहरने  का मन बनाया| अंग्रेज ने शहर मे एक घर किराए पर ले लिया| घर के काम काज निपटाने के लिए एक नौकर भी रख लिया| नौकर घर के सारे काम रोटी बनाने से लेकर कपड़े धोने तक का काम करता था| एक  दिन अंग्रेज कहीं से एक बगुला मार कर लाया और नौकर से कहा की इसको अच्छी तरह से तड़का लगाकर बनाना| नौकर ने पूरे दिल  से बगुले को बनाया पर बगुले  को भूनते समय उसने बगुले की एक टांग खा ली| उसने बगुले  को पलेट मे सजा कर अंग्रेज के आगे रख दिया| अंग्रेज ने देखा की बगुले की एक टांग गायब है|उसने नौकर को बुलाकर पूछा की इस बगुले की एक ही टांग है दूसरी कहाँ गई| नौकर ने जवाब दिया की बगुले की एक ही टांग होती है| अंग्रेज ने कहा की बगुले की दो टाँगें होती हैं| मे तुम्हें कल सुबह ही दिखा दूंगा | नौकर ने कहा ठीक है| अगले दिन दोनों बगुला देखने चले गए| झील के किनारे एक बगुला बैठा हुआ दिखाई दिया|बगुले ने एक पैर ऊपर उठा रख्खा था| नौकर ने कहा वह देखो बगुले का एक ही पैर है| अंग्रेज ने अपने दोनों हाथों से ताली बजायी| बगुले ने अपना दूसरा पैर नीचे किया और उड़ गया| अंग्रेज ने कहा वह देखो उसके दो पैर हैं| नौकर ने कहा आप  रात को प्लेट  मे रख्खे बगुले के सामने अपने हाथों से ताली बजाना ही भूल गए| अगर आप ने रात को भी ताली बजाई होती तो वह बगुला भी अपनी दूसरी टांग नीचे कर देता| अंग्रेज को कोई जवाब नहीं सूझा दोनों घर को वापिस आगये|                                                                के: आर: जोशी. (पाटली)

Friday, August 13, 2010

आप की कहानी, मेरी जुबानी

आप खुबसूरत हैं,
कोई मानता नहीं, अलग बात है|
आप के पास दिमांग है,
चलता नहीं, अलग बात है|
आप निहायत सरीफ है,
लगते नहीं, अलग बात है|
आप के पास मोबाईल है,
उठाते नहीं , अलग बात है|
आप की इज्जत काफी है,
कोई करता नहीं, अलग बात है|
                                    हम याद करते रहते हैं,
                                    आप भुला देते हैं,अलग बात है|
                                   आप की बेइज्जती हो रही है,
                                   आप हँस रहे हैं, अलग बात है|
                                    के: आर: जोशी. (पाटली)

Saturday, August 7, 2010

"गरीब की आह"

            क गांव मे एक बुढ़िया रहती थी| उस का अपना कोई नहीं था| बुढ़िया बेचारी लोगों का कम करके अपना पेट भरती थी| जब कभी समय मिलता तो जंगल से गोबर इकठ्ठा करके उप्पलें(कंडे) बनाकर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थी|एक बार उसे कोई कागज ठाणे से तस्दीक करवाना था| ठाणे के कई चक्कर लगाने के बाद भी उसका कम नहीं बना|थानेदार से बात करने पर थानेदार  ने १००० रूपये की मांग रख दी| बेचारी ने काफी कहा की मे एक गरीब औरत हूँ १००० रुपये कहाँ से लाउंगी | काफी तरले किये पर थानेदार ने उसकी एक नहीं सुनी| जब किसी तरह भी उसकी बात नहीं बनी तो बुडिया बेचारी ने अपना एकमात्र सहारा उप्पलों का ढेर  बेच दिया उस से उसको सारे ही ५०० रुपये मिले| ५०० रुपये लेकर बुढ़िया थानेदार के पास गयी और ५०० रुपये थानेदार को देते हुए कहा की अब मेरा काम कर दे| मे अपना एक मात्र उप्पलों का ढेर बेच कर ये रुपये दे रही हूँ| थानेदार ने ५०० रुपये लेकर उसका काम कर दिया| जब थानेदार शाम को घर पहुंचा तो देखा की उसका बेटा बुखार से तड़प रहा था| उसने उसे डाक्टर को दिखया बहुत इलाज करवाया पर कोई फरक नहीं पड़ा| तीन चार दिनों के बाद कहीं जाकर बच्चा ठीक हुआ|बच्चे के ठीक होने के बाद जब घर गए तो थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा की आप ने किसी गरीब से कोई पैसे तो नहीं लिए जिसकी आह से हमारे बच्चे को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी| थानेदार को बुढ़िया की याद आई| उसने बताया की एक बुढ़िया से ५०० रूपया लिया था|थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा आप अभी उस बेचारी के पैसे वापिस करके आओ और बुदिया  से माफ़ी मांगकर आगे से किसी गरीब से पैसे ना लेने की कसम खाओ| थानेदार उसीवक्त बुडिया के पास गया , बुडिया को पैसे देते हुए कहा की मुझे ये पैसे की जरुरत नहीं है यह पैसे रखलो| उसके बाद थनेदार ने बुडिया को सारी बात बता दी और कसम खाई की वह किसी गरीब से पैसे नहीं लेगा|                  के: आर: जोशी. (पाटली)

Wednesday, August 4, 2010

"सफ़ेद झूठ"

किसी गांव मे दो भाई रहते थे| बड़े भाई का नाम सच था और छोटे भाई का नाम झूठ था| सच गोरे रंग का था और झूठ काले रंग का था| दोनों भाइयों का पहनावा भी अलग अलग था| सच हमेशा सफ़ेद पोशाक मे रहता था और झूठ काली पोशाक मे रहता था| सच इमानदार ,नम्र और परोपकारी था उस से किसी का दुःख देखा नहीं जाता था | दूसरी तरफ झूठ मे फरेब , मक्कारी,बेईमानी आदि भरी हुई थी|
सच की ईमानदारी और परोपकारी की डंके बजते थे उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी झूठ को इस बात से चिढ थी| और वह मौका ढूंढता फिरता था की कैसे सच की बदनामी हो| एक बार झूठ ने बेईमानी से सच के कपड़े चुरा लिए और सच का चोला पहन कर निकाल गया सच की बदनामी करने | उसने दुनियां मे लोगों को आपस मे लड़ा दिया जगह जगह धोखा धडी होने लगी| झूठ ने मनमाने ढंग से अत्याचार करके सच की बदनामी करनी शुरू कर दी लोगों मे हाहाकार मच गया| सच बेचारा बेबसी के कारन कुछ भी नहीं कर सकता था उसके पास सफ़ेद कपडे भी नहीं थे| वह दुबक कर अपने कमरे मे ही बैठा रहा| जब बात समझ से बाहर हो गई तो लोगों ने इस बात की तहकीकात की और पाया कि सच तो बाहर निकला ही नहीं है यह सारा उत्पात तो झूठ मचा रहा है वह भी सफ़ेद कपड़ों मे| झूठ तो अत्याचारों के लिए पहले ही बदनाम था सो लोगों ने उसका नाम सफ़ेद झूठ रख दिया| आज भी लोग जब किसी को झूठ बोलते हुए सुनते है तो कहते हैं की यह तो सफ़ेद झूठ है|
के: आर: जोशी. (पाटली)

Sunday, July 18, 2010

"कमाकर खा"

            किसी शहर मे एक सेठ रहता था| सेठ का नाम दुर्गा दास था| घर मे सेठ दुर्गा दास और उसकी घर वाली रहते थे| सेठ दुर्गा दास की  जुबान से कुछ लफ्ज ठीक से नहीं निकलते थे|जैसे वह "क" को "ट" बोलते थे| एक बार दुर्गा दास की घर वाली किसी  काम से घर से बाहर गई हुई  थी| घर मे दुर्गा दास अकेला ही था| एक भिखारी भीख मांगते हुए उनके दरवाजे पर आ खड़ा हुआ| भिखारी ने आवाज देकर कहा "बाबु जी कुछ खाने को दे दो "| भिखारी के कई बार आवाज देने पर सेठ जी बाहर आये और भिखारी से बोले "टमाटर खा"| भिखारी  ने कहा कि मुझे तो बहुत भूख लगी है टमाटर से पेट  की भूख कैसे शांत होगी| बाबु जी कोई बचा खुचा खाना ही देदो| सेठ जी ने फिर भिखारी  से कहा टमाटर खा टमाटर|यह कह कर सेठ जी अन्दर को चले गए| भिखरी ने कहा ठीक  है टमाटर ही देदो कुछ तो पेट की भूख शांत होगी| वह दरवाजे पर इन्तेजार करने लगा| कुछ  समय के बाद सेठ दुर्गा दास की घरवाली वापिस घर आई तो देखा कि कोई भिखारी दरवाजे पर खड़ा है उसने भिखारी से पूछा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो| भिखारी ने कहा कि सेठ जी टमाटर लेने गए हैं उसी के इन्तेजार मे यहाँ खड़ा हूँ| क्यों कि वे कह कर गए हैं कि टमाटर खा|सेठ दुर्गा दास की घरवाली समझ गई थी| वह अन्दर गई और कुछ बचा खुचा  खाना लाकर भिखारी को देते हुए  कहा कि सेठ जी टमाटर खा नहीं कह रहे थे उन्हों ने तो तुम्हे यह कहा था कि कमाकर खा| सेठानी भी भिखारी को कमाकर खाने का उपदेश  दे कर अन्दर चली गई| रोटी पाकर भिखारी  भी आगे को बढ़ गया|
                                                के: आर: जोशी.  (पाटली)

Saturday, July 17, 2010

"हरेला"

            रेला कुमाऊ  का  एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो सावन के महीने मे कर्क संक्रांति को मनाया जाता है| इस दिन से ठीक दस  दिन पहले सात अनाजों को मिला कर बांस की टोकरी, लकड़ी की  फट्टी  या गत्ते का डिब्बा जो भी मौके पर उपलब्ध हो उस मे रेत  बिछा के बोया  जाता है| रोज सुबह शाम ताजा  जल लाकर उसमे डाला जाता है | इस खेती को घर के अँधेरे कोने मे रख्खा जाता है ताकि इसका रंग पीला रहे| कर्क संक्रांति के दिन घर मे   सामर्थ के मुताबिक तरह तरह के पकवान बनाए जाते है| फिर सुबह को पुरोहित जी आ कर हरेले को प्रतिष्ठित करते हैं|फिर पुरोहित जी हरेले को पहले घर मे भगवान्  जी को चढाते  हैं और इष्ट देब के मन्दिर मे चढाते  हैं| जो भी पकवान बनाए होते  है सब का भगवान को भोग लगता है| पुरोहित जी के  भोग लगाने के बाद घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को एक साथ बैठा कर हरेला लगाते हैं | हरेले को दोनों हाथों मे पकड कर पैरों पर लगाते हुए सर की और लेजाकर सर मे रख देते हैं और मुह से बोलते हैं|
           लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए  जागि रए  बची रए |
( भाव तुम लाख हरेला, लाख बग्वाली, लाख पंचिमी तक जीते रहना)
          स्यावक जसी बुध्धि  हो, सिंह जस त्राण हो|
(भाव लोमड़ी की तरह तेज बुध्धि  हो और शेर की तरह बलवान हो )
          दुब जैस पनपिये, आसमान  बराबर उच्च है जाए, धरती बराबर चाकौव है जाए|
(भाव दुब की तरह फूटना , आसमान  बराबर ऊँचा होजाना, धरती के बराबर चौड़ा हो जाना|)  
         आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए|
(भाव अपने गांव का प्रधान  बनना और इतने बूढ़े  हो जाना की खाना भी पीस कर खाना|)
         जान्ठी  टेकि घुवेंट जाये , जी रए  जागि  रए  बची रए  |
(भाव छड़ी ले कर जंगल पानी जाना, इतनी लम्बी उम्र तक जीते रहना जागते रहना.|)
        सब को हरेला  लगाने के बाद भगवान  को लगाया गया भोग सब बच्चों मे बाँट दिया जाता है| लड़के हरेले को अपने कान मे टांग लेते हैं  और लड़कियां हरेले को अपनी धपेली के साथ गूँथ लिया करती हैं|
        आज मुझे भी अपना बचपन याद आ गया है जब हमारी आमा (दादी) जिन्दा हुआ करती थीं | हम छोटे छोटे बच्चे थे जब खाने पीने की कोई चीज घर मे बनती थी तो पहले हम बच्चों को ही दी जाती थी| पर हरेले के दिन जब तक पुरोहित जी नहीं आते थे किसी को कुछ नही मिलता था|जब हम आमा से खाने को मांगते थे तो आमा कहती थीं '"इजा लुह्न्ज्यु कै ओन दे, हर्याव लगे बेर फिर दयूल| कहने का मतलब था कि पुरोहित जी जोकि लोहनी थे उनको आलेने दे हरेला लगाकर फिर  खाने  को दुगी | काश ! कि वो  बचपन फिर लौट आता?
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
                                               के: आर: जोशी  (पाटली)

Monday, July 12, 2010

"जिस का काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे"

            किसी गांव मे एक गरीब घोबी  रहता था| धोबी के पास एक गधा था और एक कुत्ता था| दोनों धोबी के साथ रोज सुबह  धोबी घाट जाया करते थे| शाम  को घर आया करते थे| धोबी का गधा शांत स्वभाव का था और स्वामी भक्त भी था| लेकिन धोबी का कुत्ता आलसी और क्रित्घन था | गधा अपना काम पूरी लगन के साथ करता था| जब सुबह धोबी धोबीघाट को जाता था तो सारे कपडे गधे पर लाद  के लेजाता था और शाम को गधे पर ही कपडे लाद  कर लाया करता था | कभी कभी तो धोबी जब थका होता था तो खुद भी गधे पर बैठ जाया करता था| दिन भर गधा धोबी घाट के नजदीक हरी हरी घास चारा करता था | धोबी का कुत्ता सारा दिन धोबी घाट मे सोया ही रहता था |एक दिन गधे ने कुत्ते से पूछा की तुम भी मालिक के लिए कोई काम क्यूँ  नहीं करते? कुत्ते ने जवाब दिया की मालिक कौन सा हमें पेट भर के खाना देता है | अपना बचा खुचा खाना हमें डाल देता है| इतना कह कर कुत्ता फिर से सोगया | एक दिन धोबी के घर मे कोई चोर घुस आया| चोर को आते हुए कुत्ते ने देख लिया था पर कुत्ता भौका नहीं | उधर गधे ने भी चोर को देख लिया था \ गधे ने कुत्ते से कहा की इस समय तुम्हारा फर्ज बनाता है की तुम भौक  कर मालिक को जगाओ ताकि मालिक को पता चल सके की चोर आया है| कुत्ते ने कहा मालिक सो रहा है जगाने पर मारेगा | गधे ने कहा की क्यूँ मारेगा हम तो उसका फ़ायदा कर रहे है| कुत्ता इस बात के लिए नहीं माना| गधे से रहा नहीं गया और खुद रैकना शुरू कर दिया| आधी रात को गधे के रेकने पर धोबी को गुस्सा  आ गया | धोबी उठा उसने डंडा उठा कर तीन चार  डंडे गधे को जड़ दिए और सो गया| धोबी के सो जाने के बाद कुत्ते ने गधे से कहा देखा मे कहता था न की मालिक मारेगा | फिर  उसने बताया की "जिस का काम उसी को साजे और करे तो डंडा बाजे  " इस पर  गधे ने कहा भाई  तुम ठीक थे मे ही गलत था |
                                                 के: आर:  जोशी.  (पाटली)

Sunday, July 11, 2010

||तब मे ठेकुवा ठीक ||

            हुत समय पहले कि बात है| एक गांव मे एक गरीब किसान रहता था| खेतो मे जी तोड़ मेहनत कर के अपने और अपने परिवार का पेट पालता था| किसान  का एक बेटा था उस का नाम ठेकुवा (बौना) था| क्यों कि उसकी लम्बाई कम थी या कद का ठिगना  था | ठेकुआ जब बड़ा हुआ तो उसकी भी शादी हो गई | सब ठीक था लेकिन उसकी घर वाली को उसका ठेकुआ नाम ठीक नहीं लगा |शुरू मे तो वह कुछ कह नहीं पाई | जी जान से मेहनत करके उन्होंने  कुछ पैसे जमा किये और अच्छा  खाने  पीने लग गए तो एक दिन ठेकुवा की घरवाली ने ठेकुवा से कह दिया  कि आप का नाम सुनने  मे ठीक नहीं लगता है इस लिए आप कोई अच्छा सा नाम क्यों नहीं रख लेते| ठेकुवा ने कहा कि मे अच्छा  नाम कहाँ से रक्खूं कौन बताएगा अच्छा सा नाम | घर वाली ने बड़े प्यारसे कहा आप एक दिन शहर हो आयें | वहां आप को कोई न कोई अच्छा नाम मिल जाएगा | घरवाली की बात मान कर ठेकुवा एक दिन शहर गया| जाते जाते उसे रास्ते मे एक जमादारनी झाड़ू लगाते हुए मिल गई| ठेकुवा ने उस से उसका नाम पूछा |उसने बताया मेरा नाम लक्ष्मी है| ठेकुवा को नाम कुछ जचा  सा नहीं आगे बड़ गया| आगे उसे एक भिखारी मिल गया उसने भिखारी  से उसका नाम पूछा| भिखारी ने बताया उसका नाम धनपति है| उसने सोचा धनपति भीख कैसे मांग सकता है यह नाम भी ठीक नहीं है|  आगे जाने पर उसे कुछ आदमी एक शव को शमशान  घाट की  तरफ लेजाते हुए मिले | उसने उनसे पुछा कि इसका नाम क्या था| एकने बताया कि इस का नाम अमर सिंह था| ठेकुवा के दिमांग मे बात आई कि जब "अमर सिंह जैसे मर गए, धनपति मांगे भीख| लक्ष्मी जैसे झाड़ू देवे, तब मे ठेकुवा ठीक|| यह सोचते हुए वह घर को आगया कि नाम मे क्या रख्खा है| नाम तो अच्छे कामों से होता है| घर आकर उसने अपनी घरवाली को सारी कहानी बताई कि जब "अमर सिंह जैसे मर  गए, धनपति मांगे भीख|लक्षी जैसे झाड़ू देवे तब मे ठेकुवा ठीक ||" इस प्रकार उसने अपने नाम बदलने कि प्रक्रिया को यहीं बिराम दे दिया|                                 के: आर: जोशी (पाटली)
       

Thursday, July 8, 2010

कोसलराज

(
            पुराने समय की बात है  काशी और कोसल दो पडोसी राज्य थे | काशी   नरेश को कोसल के राजा की चारों तरफ फैली हुई कीर्ति सहन नहीं होसकी| काशी नरेश ने कोसल राज्य पर आक्रमण कर दिया| इस लड़ाई मे काशी  नरेश की जीत हुई| कोसल के राजा की हार हो गई| हार जाने के बाद कोसल राजा जान बचाने जंगल मे चले गए| कोसल राज्य की जनता अपने राजा के बिछुड़ ने पर काफी नाराज थी | काशी  के राजा को अपना राजा मानने को तैयार नहीं थी | उन को कोई सहयोग भी देने को तैयार नहीं थे | प्रजा के इस असहयोग के कारन काशी  नरेश काफी नाराज थे| उन्हों ने कोसल राज को ख़तम करने की घोसना कर दी और कोसल राज  को ढूढने वाले को सौ स्वर्ण मुद्राएँ देने का ऐलान कर दिया|
            काशी  नरेश  की इस घोषणा  का कोई असर नहीं हुआ| धन के लालच में कोई  भी अपने धार्मिक नेता को शत्रु के हवाले करने को तैयार नहीं था | उधर कोसल राज बन मे इधर उधर भटकते फिर रहे थे | बाल बड़ेबड़े हो चुके थे बालों में जटा  बन चुकी थी | शरीर काफी दुबला पतला हो चुका था| वे एक बनवासी  की तरह दिखने लगे थे| एक  दिन कोसलराज बन मे घूम रहे थे | कोई आदमी उन के पास आया और बोला कि यह जंगल कितना बड़ा है? कोसल को जाने वाला मार्ग किधर है और कोसल कितनी दूर है? यह सुन कर कोसल नरेस चौंक गए | उन्हों ने राही  से पूछा कि वह कोसल क्यों जाना चाहता है?
          पथिक ने उत्तर दिया कि मे एक ब्यापारी हूँ | ब्यापार करके जो कुछ कमाया था उसको लेकर अपने घर जा रहा था | सामान से लदी नाव नदी मे डूब चुकी है| मे कंगाल हो गया हूँ | मांगने की नौबत आ चुकी है अब घर घर जाकर कहाँ भिक्षा मांगता फिरुगा| सुना है कि कोसल के राजा बहुत दयालु और उदार हैं| इसलिए सहायता के लिए उन के पास जा रहा हूँ|
           कोसलराज ने पथिक से कहा आप दूर से आये हो और रास्ता बहुत जटिल है चलो मे आप को वहां तक पहुंचा  आता हूँ | दोनों वहां से चल  दिए| कोसल  राज  ब्यापारी को कोसल लेजाने के बजाय काशिराज की सभा मे ले गए| वहां उन को अब पहचानने वाला कोई नहीं था | वहां पहुँचने पर काशिराज ने उनसे पूछा आप कैसे पधारे हैं? कोसलराज ने जवाब दिया कि मे कोसल का राजा हूँ| मुझे पकड़ने के लिए तुमने पुरस्कार घोषित किया है| यह पथिक मुझे पकड़कर यहाँ लाया है इस लिए इनाम की सौ स्वर्ण मुद्राएँ इस पथिक को  दे  दीजिये | सभा मे संनाटा छा गया | कोसल राज की सब बातें सुनकर काशिराज  सिहासन से उठे और बोले महाराज!आप जैसे धर्मात्मा, परोपकारी को पराजित करने की अपेक्षा आप के चरणों पर आश्रित होने का गौरव कहीं अधिक है| मुझे अपना अनुचर स्वीकार करने की कृपा कीजिये | इस प्रकार  ब्यापारी को मुह माँगा धन मिल गया और कोसल और काशी  आपस मे मित्र राज्य बन गए|                                  के: आर: जोशी  (पाटली)  (कल्याण से)


Wednesday, July 7, 2010

"एक चुप, सौ सुख"

            क  जमीदार था एक उसकी घर वाली थी| घर मे दो जने ही थे | जमीदार खेत मे काम करता था और जमिदारनी  घर का काम करती थी | जमीदार और जमिदारनी दोनों ही गरम स्वभाव के थे| थोड़ी थोड़ी बात पर दोनों मे ठन जाती थी| कभी कभी तो जमिदारनी का बना बनाया खाना भी बेकार हो जाता था| एकदिन जमिदारनी अपनी अपनी रिश्ते दारी  मे गई| वहां उसे एक बुजुर्ग औरत मिली | बातों बातों मे जमिदारनी ने बुजुर्ग औरत को बताया की मेरा घर वाले का मिजाज बहुत चिडचिडा है वे जब तब मेरे से लड़ते ही रहते हैं| कभी कभी इससे  हमारी बनी बनाई रसोई बेकार चली जाती है| बुजुर्ग महिला ने कहा यह कोई बड़ी बात नहीं है |ऐसा तो हर घर मे होता रहता है| मेरे पास इस की एक अचूक दवा है| जब भी कभी तेरा घरवाला तेरे साथ लड़े, तब तुम उस दवा  को अपने मुंह मे रख लेना, इस से तुम्हारा घरवाला अपने आप चुप हो जाएगा| बुजुर्ग महिला अपने अन्दर गई, एक शीशी भर कर ले आई और जमिदारनी को देदिया | जमिदारनी ने घर आ कर दवा की परीक्षा करनी शुरू कर दी जब भी जमीदार उस से लड़ता था जमिदारनी दवा मुंह मे रख लेती थी| इस से काफी असर दिखाई दिया | जमीदार का लड़ना काफी काम हो गया था| यह देख कर जमिदारनी काफी खुश हुई| वह ख़ुशी- ख़ुशी बुजुर्ग महिला के पास गई और कहा आप की दवाई तो कारगर सिद्ध  हुई है, आप ने इस मे क्या क्या डाला है जरा बता देना, मे इसे घर मे ही बना लुंगी| बार बार आना जाना मुश्किल हो जाता है| इसपर बुजुर्ग महिला ने जवाब दिया की जो शीशी मैंने तुम्हे दी  थी उस मे शुद्ध जल के सिवाय कुछ भी नहीं था| तुम्हारी समस्या का हल तो तुम्हारे चुप रहने से हुई है | जब तुम दवा यानिकी पानी को मुंह मे भर लेती थी तो तुम बोल नहीं सकती थी और तुम्हारे चुप्पी  को देख कर तुम्हारे घर वाले का भी क्रोध शांत हो जाता था|इसी को "एक चुप सौ सुख" कहते हैं| बुजुर्ग महिला ने जमिदारनी को सीख दी की इस दवा  को कभी भूलना मत और अगर किसी को जरूरत पड़े तो आगे भी देते रहना| जमिदारनी ने बुजुर्ग महिला की बात को गांठ बांध लिया और ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर को आ गई| 
                                                             के: आर: जोशी. (पाटली)

Monday, July 5, 2010

जैसी करनी वैसी भरनी

           क गांव मे एक गरीब किशान  परिवार रहता था| किशान  का नाम जोखू था | हम उन्हे जोखू ताया कह कर बुलाते थे| परिवार मे जोखू ताया, ताई और दो बच्चे थे| बड़े बेटे का नाम संभु था और छोटे बेटे का नाम दयाल था| बड़ा बेटा तायाजी को खेती के कम मे मदद करता था|उम्र मे भी काफी बड़ा था|जोखू तायाजी ने संभु की सदी बड़े धूम धाम से की| कुछ समय बाद एक बीमारी के कारन तायाजी का स्वर्ग वास हो गया | खेती से दो घरों का गुजरा नहीं हो सकता था इस लिए संभु ने दयाल की पढाई चालू रख्खी ताकि कहीं नौकरी कर सके| दयाल ने भी मेहनत कर के खूब पढाई की |मैट्रिक कर ने के बाद दयाल को पास के शहर मे ही नौकरी मिल गई| दयाल नौकरी करता था संभु खेती का काम| एक बार संभु की किसी बात पर ताई से नाराजगी हो गई और उसने ताई जी से बोलना छोड़ दिया| समय बीत ता गया | कुछ समय बाद दयाल की भी शादी हो गई| शादी के कुछ समय बाद ही दयाल अपनी घरवाली को शहर  ले गया और शहर  मे ही घर बना कर रहने लग गया|कभी कभार मिलने गांव आ जाया करता था | एक बार ताई बीमार हो गई| दयाल उसे अपने साथ शहर ले आया|गांव से सभी ताई को मिलने आया करते थे सिवाय संभु के| एक बार जग्गू को शहर मे कोई काम था|वह शहर गया तो उसे याद आया की ताई भी शहर मे ही है | वह दयाल के घर की तरफ हो लिया| वहां जाकर उसने देखा की ताई एक कमरे मे लेटी आसमान  को निहार रही है| जग्गू ने ताई को प्रणाम किया और ताई के पैर छुए| ताई ने लेटे- लेटे ही उसे आशर्वाद दिया| जग्गू ताई के पास ही बैठ गया| बातों बातों मे ताई ने जग्गू से पूछा की कभी संभु से मुलाकात होती है? जग्गू ने बताया की कभी-कभी आते जाते बात हो जाती है| ताई ने जग्गू से कहा की संभु को कभी मेरे को मिलने के लिए कह देना| अगर वह मुझ से बात नहीं करना चाहता है तो भी इस दरवाजे से आ कर मेरे सामने से उस दरवाजे से निकाल जाए|ये बात कहते हुए ताई की आँखें दब दबा गईं और गला भर आया| यह मंज़र देख कर जग्गू का भी मान भर आया| उसने ताई से वडा किया की वह संभु को जरूर से जरूर उसके पास भेजेगा| गांव आने के बाद वह संभु को मिलने गया और कहा की ताई तुम्हें याद करती है आप ताई से मिल लेना | संभु ने बताया की वह कल को ही शहर जा रहा है|सुबह ही संभु और उसका बेटा कुछ सब्जी आदि लेकर शहर की और चले गए| जग्गू खुश था की उसने बहुत बड़ा काम कर दिया है मां बेटे को मिलाने का| साम को जब संभु वापिस लौटा तो जग्गू उसको मिलने को जाही रहा था की किसी ने उसे बताया की संभु शहर जाकर भी अपनी मां से नहीं मिला बेटे के हाथ ही सब्जी आदि भेज दी थी|
             बेटे को मिलने की तमन्ना दिल मे ही लेकर ताई एक दिन चाल बसी| जग्गू ने भी दयाल को मिलना छोड़ दिया था| उसके रास्ते से इधर उधर हो जाता था| काफी महीनों बाद जग्गू ने किसी के मुंह से सुना की संभु को एक अजीब सी बीमारी ने घेर लिया है| कोई उसके पास जाता ही नहीं है ऐसी छूत की बीमारी ने उसे घेर लिया था| बीमारी का सुन कर जग्गू से रहा नहीं गया वह संभु से मिलने उसके घर गया तो देखा की संभु अकेला ही कमरे मे पड़ा है| कोई उसको पूछने वाला भी नहीं है| जग्गू संभु के सामने खड़ा था किसी के मुंह से कोई बात नहीं निकाल रही थी|आखिर मे संभु ने ही ख़ामोशी तोड़ी और कहा की  मैंने तो कभी कोई पाप नहीं किया था जिसकी मुझे यह सजा मिल रही है| जग्गू के सामने ताई का आंसू भरा चेहरा घुमने लगा और उसके मुंह से निकाल पड़ा जैसी करनी वैसी भरनी|                                के: आर: जोशी. (पाटली)

Tuesday, June 29, 2010

शरीर की कमाई

            क गांव मे एक किसान रहता था| वह किसान बहुत मेहनती था| उस के खेत लहलहा रहे थे| खून पसीने की मेहनत के बाद कहीं फसल देखने को मिली थी| फसल इकट्ठी कर के किसान दुबारा फसल बीज ने के लिए किसान खेत मे गया हुआ था|सुबह से ही वह खेत की जुताई पर लगा हुआ था | गर्मी अपने जोरों पर थी | दिन के समय जब किसान थक गया तो थोड़ी देर आराम करने के लिए पास मे एक पेड़ के नीचे पत्थर का सिरहाना बना कर लेट गया| कुछ ही पल मे उसे नीद आ गई| वहां का राजा अपने वजीर के साथ शिकार खेलता हुआ वहां से गुजर रहा था , उसकी नजर उस सोए हुए किसान पर पड़ी , उसने अपने वजीर से पूछा की इस किसान को यह पथर चुभ नहीं रहा होगा? वजीर ने जवाब दिया जहाँपनाह इस किसान ने शरीर की कमाई की है | जिस माहौल मे शरीर रहता है उसी तरह का बन जाता है| राजा ने सवाल किया वह कैसे? वजीर ने कहा जहाँपनाह इस जवाब के उत्तर के लिए किसान को कुछ दिनों के लिए राज महल मे रखना होगा| राजा मान गया और किसान को उठा कर कहा की तुम कुछ दिनों के लिए हमारे साथ राजमहल मे चलो वहां तुम्हें किसी किसम की कोई तकलीफ नहीं होगी |इस बीच जो भी तुम्हारा कोई नुकसान होगा उस की भरपाई कर दी जाएगी| किसान मान गया और उनके साथ जाने को तयार हो गया|
           राजमहल मे जाकर किसान की खातिरदारी  बहुत अच्छी तरह से की गई| किसान के लिए काफी नरम नरम बिस्तरे का बंदोबस्त किया गया और किसान को कहा गया की वह एक महीना यहीं पर आराम करेगा| एक महीने के लिए नौकर चाकरों को आदेस दिया गया की किसान को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो| किसान को पता ही नहीं चला कब महीना ख़तम होगया| पूरे महीने के बाद वजीर ने राजा से कहा जहाँपनाह अब समय आ गया है आप के सवाल के जवाब देने का| वजीर राजा को किसान के पास ले गया| किसान राजा को देख कर खड़ा हो गया और झुक  कर राजाको नमन किया , इतने मे वजीर कहीं से घोड़े की पूंछ के दो बाल ले कर आया था, वजीर ने उन बालों को किसान की नजरें बचा कर किसान  के बिस्तरे मे डाल दिए| राजा ने किसान को बैठने के लिए कहा| जैसे ही किसान बिस्तरे के ऊपर बैठा एकदम उछल कर खड़ा हो गया| वजीर ने पूछा क्या बात हो गई है? किसान ने जवाब दिया की बिस्तरे मे कोई चीज चुभ रही है| इस पर वजीर ने राजा को बताया की जहाँपनाह जब आप ने इस किसान को जमीं पर बगैर बिस्तरे  और बगैर सिरहाने सोया देखा था तो उस समय किसान ने उस के अनुकूल शारीर बनाया था पर अब एक महीने मे ही इस का शारीर इतना कोमल हो गया है की घोड़े के पूंछ के बाल भी इसे चुभने लग गए हैं| इसीको शरीर की कमाई कहते हैं|                                      के:आर: जोशी (पाटली)

Sunday, June 27, 2010

अनुभव

            हुत समय पहले  की बात है एक गांव मे देवदत्त नाम का आदमी रहता था| उसका एक बेटा था जिस  का नाम पान देव था| पान देव को देव दत्त ने बड़े लाड़ प्यार से पाला  पोषा और उसको ऊँची तालीम दिलाई ताकि पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने और बुढ़ापे  मे उस  का सहारा बने| पान देव पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया और उसको शहर मे एक अच्छी सी नौकरी मिल गई अब पान देव नौकरी करने शहर जाया करता था| कुछ समय बाद  पान देव की शादी हो गई| शादी के बाद कुछ ही दिनों मे पानदेव ने शहर मे एक कमरा किराए पर लेलिया और अपनी घर वाली को साथ  लेकर शहर मे ही रहने लगा| कुछ समय बाद उस के घर मे बेटे ने जन्म लिया| समय धीरे धीरे आगे बढता गया| पान देव ने बेटे का नाम शोम देव रख्खा| शोमदेव समय के साथ साथ बड़ा होता गया| स्कूल की पढाई चालू हो गई| उधर पान देव के माँ  बाप भी गांव मे रहते हुए बूढ़े हो गए थे| पान देव ने कभी भी उनके बारे मे नहीं सोचा कि उनको भी साथ रखले| उसने उन्हे बेकार समझ कर  ही गांव मे छोड़ा था|
            शोमदेव अब बड़ा हो गया था |उसके स्कूल मे कुछ यार दोस्त भी बन गए|शिव लाल उसका अच्छा दोस्त था और दोनों एक दूसरे के घर आया जाया करते थे| एक दिन उनका परिक्षा का परिणाम आने वाला था दोनों दोस्त स्कूल गए| परिक्षा परिणाम देखा तो शोमदेव के  अंग्रेजी मे नंबर कम थे उसके दोस्त शिवलाल अच्छे नंबरों मे पास हुआ था| दोनों दोस्त मिल कर शोम देव के घर आ गए| शोम देव के पिता पान देव ने परीक्षा परिणाम के बारे मे पूछा तो शोम देव ने बताया कि मेरी  अंग्रेजी मे कमपार्टमेंट  है  और शिवलाल अच्छे नम्बरों से पास हुआ है| पान देव ने शिव लाल की तरफ देखा तो शिव लाल बोल पड़ा कि ताया जी यह सब मेरे दादाजी, दादीजी के  आशीर्वाद का फल है| मेरे दादाजी मुझे रात दिन पढ़ाते हैं और अच्छी अच्छी बातें बताते हैं| दादाजी ने मुझे कई किसम के खेल भी सिखाए हैं| उन के अनुभव ही मेरे काम आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे | शिव लाल से अपने दादा,दादी की प्रशंसा सुन कर पान देव को भी अपने माँ बाप की याद आ गई| वह सोचने लगा कि मैंने  तो कभी अपने माँबाप के अनुभवों  का लाभ उठाने के बारे मे सोचा ही नहीं था| पुराने लोगों के अनुभव ही आदमी को सफलता की सीडियां पार  करने मे सहायक हो सकती हैं| यह सोचते ही पान देव के मन मे  आया कि वह कल ही जा कर अपने माँ  बाप को शहर अपने पास ले आये| उसने अपने बेटे से कहा  बेटा अब तुम भी अच्छी पोजीसन मे पास हुआ करोगे | मे कल ही जाकर तुम्हारे दादा, दादीजी को यहाँ शहर अपने साथ ले आऊंगा | वे हमारे साथ ही शहर मे रहेंगे| इतना सुनते ही शोम देव के चहरे पर मुस्कराहट आ गई| और सोचने लगा कि अब मे भी शिवलाल की तरह अपने दादाजी दादीजी के अनुभवों का फ़ायदा ले सकूँगा| जिन्दगी मे सफलता की सीड़ियों को आसानी से पार  कर सकूँगा|  अगले ही दिन पान देव गांव गया और अपने माता  पिताजी को साथ लेकर शहर आगया| बुजर्गों के पास अनुभवों का ऐसा अनमोल खजाना होता है,जिस का लाभ उठाकर उनके परिवार के लोग अपने जीवन को सुखी, सुसंस्कृत और संपन्न बना सकते हैं| इस लिए हमेसा बुजर्गों का आदर सत्कार करना चाहिए| और उनका  आशीर्वाद  लेना चाहिए|                                            
                                                                के: आर: जोशी (पाटली)

Wednesday, June 16, 2010

जो तुम ने करी सो हमने जानी

                    बहुत पुराने समय की  बात है एक गांव  मे अमर नाम का एक गरीब ब्राहमण रहता था| इधर उधर से मांग कर अपना और अपने परिवार का गुजारा  बड़ी  मुश्किल  से चलाता  था|वहीँ पास के गांव मे एक नामी  सेठ घनश्याम दास भी रहता था| सेठ घनश्याम दास की  कोई औलाद नहीं थी| सेठ जगह जगह अपनी औलाद के लिए प्रार्थना करता और धरम करम के काम भी करवाता रहता था आखिर भगवान्  ने उस की सुन ली | सेठ घनश्याम दास के घर एक सुन्दर सा बेटा पैदा हुआ| सेठ घनश्याम दास ने पुत्र रतन पाने पर भगवान्  का शुक्रिया  अदा किया और इस ख़ुशी मे एक दावत का आयोजन किया जिस मे आस पास के सभी ब्राहमणों को बुलावा भेजा| यह बात गरीब ब्राहमण अमर के कानों मे भी पड  गयी| दावत मे ३६ प्रकार के भोजन होंगे यह सोचते ही अमर के मुंह मे पानी आ गया| और उस ने भी दावत मे शामिल होने की सोची लेकिन अगले ही पल उदास हो गया क्योँ कि खाना खाने के बाद टीका लगते समय कोई मंत्र या श्लोक बोलना होता था| जो बेचारे गरीब अमर को नहीं आता था| अमर ने फिर भी हिम्मत नहीं हांरी  सोचा कम से कम भर पेट खाना तो मिलेगा ही आगे जो होगा देखा जाएगा भगवान् भली करेंगे? अमर साफ सुथरे कपडे  पहन कर कंधे मै अंगोछा लटकाए सेठ घनश्याम दास के घर की तरफ चल दिया| वहां जा कर क्या कहूँगा यह सोचते सोचते वह एक तालाब के नजदीक से गुजरा| तालाब के नजदीक से गुजरते समय उसने देखा कि कुछ मेढक तालाब के किनारे धूप  सेक रहे थे| अमर के तालाब  के नजदीक जाते ही मेढ़को  ने पानी मे छलाग लगा दी| मेढ़को के पानी मे छलाग लगाते  ही पानी की बूंदें इधर उधर बिखर गयीं और तालाब के पानी मे लहरें हिलने लगीं | इस दृश्य को देख कर अमर के मनमे एक ख्याल आया और उस के मुंह से निकल पढ़ा" छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| अमर का चेहरा खिल उठा उसने सोचा कि टीका लगाते समय के लिए यह श्लोक ही ठीक रहेगा| वह इस श्लोक को याद करता हुआ सेठ घनश्याम दास के घर पहुँच गया| यहाँ उसने देखा कि बहुत बड़े  बड़े  विद्वान पहुंचे हुए हैं और काफी चहल पहल है| अमर भी एक तरफ हो कर बैठ गया| कुछ समय बाद खाने का बुलावा आया सभी लोग खाने को बैठ गए अमर भी बैठ गया| खूब डट कर खाया  आनंद आ गया |
                   खाना खाने के बाद अब बारी  आई टीका लगाने की तो अमर ने देखा की यहाँ तो ब्राहमण एक से बढ़ कर एक श्लोक या मंत्र बोल रहे थे अमर का दिल घबराया, पर अब क्या हो सकता था जब आ ही गया था| अमर ने हिम्मत से काम  लिया और जब उसकी बारी आई तो उसने डरते हुए धीरे से मंत्र बोल दिया जो उसे तालाब के किनारे सुझा था| घबराहट मै उसकी आवाज साफ नहीं सुन रही थी| सेठ घनश्याम दास ने मंत्र दुबारा कहने को कहा तो अमर ने डरते हुए जोर से बोल दिया "छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| सेठ को ये शब्द अच्छे  लगे और उसने इन्हे एक तख्ती मै लिख कर लटका दिया| ब्राहमण अमर को काफी सारा धन दे कर विदा कर दिया| अमर धन पाकर बहुत खुश हो गया और सेठ को आशीर्वाद दे कर ख़ुशी ख़ुशी अपने घर को चला गया| 
                    सेठ घनश्याम दास की अपने पडोसी  सेठ जीवन दास से पुरानी  दुश्मनी थी| घनश्याम दास के ज्यादा पैसे वाला  होने की वजह से जीवन दास उस का कुछ भी बिगाड़  नहीं सकता था| घनश्यामदास और जीवन दास का नाई एक ही था | जीवनदास ने उस नाई को लालच दे कर कहा कि तुम मेरा एक काम  कर सकते हो,अगर तुम मेरा काम कर दो तो मै तुम्हें मुह माँगा इनाम दुगा? इस पर नाई ने पूछा क्या काम  है? मै कर दुगा| जीवनदास ने बताया कि जब तुम घनश्यामदास की शेव करोगे तो वह गले के बाल  काटने के लिए अपनी गर्दन ऊपर करेगा तो उस्तरे से उस का गला चीर  देना| पैसे के लालच मे आ कर नाई ऐसा करने को तैयार  हो गया| अगले दिन जब नाई घनश्यामदास के घर शेव करने गया तो शेव करते समय जब घनश्यामदास ने गला ऊपर किया तो उसकी नजर अमर की लिखी तख्ती पर पढ़ गई और वह  बोल उठा "छिटपित छिटपित ऊपर छटकायो  पानी,जो तुम ने करी सो हमने जानी"| नाई के हाथ से उस्तरा नीचे गिर गया और सेठ घनश्यामदास से मांफी मागने लगा| घनश्याम दास के पूछने पर नाई ने सारी   हकीकत बता दी कि किस तरह जीवनदास उसकी हत्या करवाना चाहता था| उसने नाई को माफ़ कर दिया और आगे से शेव करने घर आने को मना कर दिया| सेठ घनश्यामदास ने भगवान् को धन्यवाद किया और फिर उस गरीब अमर को याद किया जिस की वजह से उस की जान बच गई | सेठ घनश्यामदास ने तुरंत अपना आदमी भेज कर अमर को बुलवाया| अमर बेचारा डर गया पता नहीं सेठ ने क्यों बुलाया है? जब बुलावा आया ही था तो जाना ही था | अमर सेठ घनश्यामदास के घर गया और  हाथ जोड़ कर खड़ा  हो गया | सेठ घनश्यामदास ने उस की अच्छी तरह से खातिरदारी  की और बताया की किस तरह आज अमर के कहे शब्दों  ने घनश्यामदास की जान बचाई| सेठ घनश्यामदास ने अमर को खूब सारा धन दिया और उसका  धन्यवाद किया| अमर ने  सेठ घनश्याम दास को आशीर्वाद दिया और अपने घर आ कर आराम से अपनी जिन्दगी बसर करने लगा|                                  के. आर. जोशी (पाटली)








            


Sunday, June 13, 2010

इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"

   किसी गांव में  एक गरीब ब्राहमण रहता था|वह लोगों के घरों में पूजा पाठ कर के अपनी जीविका चलाता  था| एक दिन एक राजा ने इस ब्राहमण को पूजा के लिए बुलवाया| ब्राहमण ख़ुशी ख़ुशी राजा के यहाँ चला गया | पूजा पाठ करके जब ब्राहमण अपने घर को आने लगा तो राजा ने ब्राहमण से पूछा "इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"? ब्राहमण कुछ सोचने लग गया और फिर राजा से कहा, महाराज मुझे कुछ समय चाहिए इस सवाल का उत्तर देने के लिए| राजा ने कहा ठीक है एक महीने का समय दिया| एक महीने बाद आकर  इस सवाल का उत्तर दे जाना | ब्राहमण इसका उत्तर सोचता रहा और घर की ओर  चलता रहा परन्तु उसके कुछ समझ नहीं आरहा था| समय बीतने के साथ साथ ब्राहमण की चिंता भी बढ़ने लगी और  ब्राहमण उदास रहने लगा| ब्रह्मण का एक बेटा था जो काफी होशियार था उसने अपने पिता से उदासी का कारण  पूछा |ब्राहमण ने बेटे को बताया कि राजा ने उस से एक सवाल का जवाब माँगा है कि इश्वर  कहाँ रहता है;किधर देखता है,ओर क्या करता है ? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है| बेटे ने कहा पिताजी आप मुझे राजा के पास ले चलना  उनके सवालों का जवाब मै दूंगा| ठीक एक महीने बाद ब्राह्मण  अपने बेटे को साथ लेकर राजा के पास गया ओर कहा कि आप के सवालों के जवाब मेरा बेटा देगा| राजा   ने   ब्राहमण के बेटे से पूछा बताओ इश्वर कहाँ रहता है?
            ब्राहमण के बेटे ने कहा राजन ! पहले अतिथि का आदर सत्कार किया जाता है उसे कुछ खिलाया पिलाया जाता है, फिर उस से कुछ पूछा जाता है| आपने तो बिना आतिथ्य  किए ही प्रश्न पूछना  शुरू  कर दिया है| राजा इस बात पर कुछ लज्जित हुए और  अतिथि के लिए दूध लाने  का आदेश दिया| दूध का गिलास प्रस्तुत किया गया|ब्राहमण बेटे ने दूध का गिलास हाथ मै पकड़ा  और  दूध में  अंगुल डाल कर घुमा कर बार बार दूध से बहार निकाल  कर देखने लगा| राजा ने पूछा ये क्या कर रहे हो  ?| ब्राहमण पुत्र बोला सुना है दूध में  मक्खन  होता है| मै वही देख रहा हूँ कि दूध में  मक्खन  कहाँ है? राजा ने कहा दूध मै मक्खन  होता है,परन्तु वह ऐसे  दिखाई नहीं देता| दूध को जमाकर दही बनाया जाता है  फिर उसको मथते है तब मक्खन  प्राप्त होता है|ब्राहमण बेटे ने कहा महाराज यही आपके सवाल का जवाब है|
           परमात्मा प्रत्येक  जीव के अन्दर बिद्यमान  है | उसे पाने के लिए नियमों का अनुष्ठान करना पड़ता  है | मान  से ध्यान द्वारा अभ्यास से आत्मा में  छुपे हुए परम देव पर आत्मा के निवास का आभास होता है| जवाब सुन कर राजा खुश  हुआ ओर कहा अब मेरे दुसरे सवाल का जवाब दो| "इश्वर किधर देखता है"?
          ब्राहमण के बेटे ने तुरंत एक मोमबत्ती मगाई ओर उसे जला कर राजा से बोला महाराज यह मोमबत्ती किधर रोशनी करती है? राजा ने कहा इस कि रोशनी चारो  तरफ है| तो ब्राहमण  के बेटे ने कहा यह ही आप के दुसरे सवाल का जवाब है| परमात्मा सर्वद्रिश्ता  है और  सभी प्राणियों के कर्मों को देखता है| राजा ने खुश होते हुए कहा कि अब मेरे अंतिम सवाल का जवाब दो  कि"परमात्मा क्या करता है"?
          ब्राहमण के बेटे ने पूछा राजन यह बताइए कि आप इन सवालों को गुरु बन कर पूछ रहे हैं या शिष्य बन कर? राजा विनम्र हो कर बोले मै शिष्य बनकर पूछ रहा हूँ| ब्राहमण बेटे ने  कहा वह महाराज!आप बहुत अच्छे शिष्य हैं| गुरु तो नीचे  जमीं पर खड़ा  है और  शिष्य सिहासन पर विराजमान है| धन्य है महाराज आप को ओर आप के शिष्टचार को | यह सुन कर राजा लज्जित हुए वे अपने सिहासन से नीचे उतरे और ब्राहमण बेटे को सिंहासन  पर बैठा कर पूछा अब बताइए  इश्वर क्या करता है? ब्राहमण बेटे ने कहा अब क्या बतलाना रह गया है| इश्वर यही करता है कि राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है| राजा उस के जवाब सुन कर काफी प्रभावित हुआ और ब्राहमण बेटे को  अपने दरबार में  रख लिया|
          इस प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के ह्रदय में  आत्मा रूप से विद्यमान रहता है| परमात्मा  के साथ प्रेम होने पर सभी प्रकार के सुख एश्वर्य की प्राप्ति होती है परमात्मा के बिमुख जाने पर दुर्गति होती है|
                                के. आर. जोशी (पाटली)

Saturday, June 12, 2010

ज्योतिर्लिंग


भारत मै १२ ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही जीवन सफल हो जाता है और हमाजन्मान्तरों के पापों का वीनस हो रे जन्म जाता है | ये ज्योतिर्लिंग  इस प्रकार हैं|
सोमनाथ:-गुजरात के सौरास्त्र में समुन्द्र तट पर प्रभास छेत्र में सोमनाथ महादेव जी का ज्योतिर्लिंग स्थित है इस प्रभास छेत्र से भगवन श्री कृष्ण जी ने बकुंथ धाम का गमन किया था |
मल्लिकार्जुन :- आन्ध्र प्रदेश  के कुर्नुल जिले के श्रीशैलम में भगवन मल्लिकार्जुन का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग है | यहीं पर भगवन शिव ने भक्त अर्जुन कि परीक्षा लेने को उनसे युद्ध लड़ा और अर्जुन को पशु पास्त्र प्रदान किया |
श्री महां काल :- मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवन महां काल का ज्योतिरलिंग स्थित है | एक समय जब इस इलाके के निवासी भगवन को भूल कर स्वार्थ सिध्धी में रमने लगे तब एक ज्ञानी ब्रह्मण के पुत्रों ने जन कल्याण का काम शुरू किया| इनके आवाहन पर ही इस स्थान पर भगवन महाकाल प्रकट हुए|
श्री ओंकारममालेश्वर :- मध्यप्रदेश के नर्वदा नदी के एक द्वीप पर स्थित है | कहा जाता है कि यहाँ वैदिक काल में वेदों के महान अध्यनरत एक ऋषि कुमार ने पाया कि बिंध्य पर्वत का अकार एक जगह पर ओमकार जैसा है | वहां पर ओमकार व ममलेश्वर के दो अलग -अलग लिंग हैं | परन्तु ये एक लिंग के दो स्वरूप हैं |
श्री वैद्यनाथ :- शिव पुराण के अनुसार" वैध्यनाथ चिताभूमो" के अनुसार संथाल के पास जो वैद्यनाथ शिव लिंग है वही वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है| क्यों कि यह ही चिताभूमि है|
श्री भीमाशंकर:- भीमाशंकर का स्थान मुंबई के भीमा नदी के किनारे सहम पर्वत पर है| यहाँ के एक शिखर का नाम डाकिनी है| और कभी यहाँ डाकिनी और भूतों का निवास था|
श्री रामेश्वर:-यह्ज्योतिर्लिंग मद्रास के रामनद जिले मै है| भगवन राम ने लंका विजय के लिए यहाँ पर शिवलिंग कि प्राण प्रतिष्ठा कि थी| 
श्री नागेश्वर:-यह स्थान अल्मोरे जिले के जागेश्वर नाम से जाना जाता है| शिवलिंग को नागेशं दारुकाबन  देवदार के वृक्षों के बीच मै यह ज्योतिर्लिंग स्तिथ है| देव दर के वृक्षों  के मध्य होने पर ही इसे दारुकाबन कहा गया है|
श्री विश्वेश्वर:- उत्तर प्रदेश के वाराणसी  मै स्तिथ है | इसे कशी विश्वनाथ भी कहते हैं|
श्री त्रयम्बकेश्वर:-यह ज्योतिर्लिंग नासिक मै स्तिथ है | यहाँ पर भगवन शिव गौतम ऋषि को मिलने त्रयम्बक भूतल पर आए और लिंग मै समां गए |
श्री केदारनाथ:- यह उत्तराखण्ड के केदार नामक श्रंग पर है| यह मन्दाकिनी के किनारे विराजमान है|
श्री  घुश्मेश्वर:- यह ज्योतिर्लिंग महांराष्ट्र  मै है |यहाँ पर रूठे हुए शिव को पार्वती जी ने मनाया था|
                                        के:आर: जोशी (पाटली)

















   






                                                                                                                                 

Friday, June 11, 2010

कुशिया और खुशिया

किसी गांव मै कुशिया और खुशिया नाम के दो भाई रहते थे| दोनों काफी गरीबी मै अपना गुजरबसर करते थे| दोनों भाइयों मै कुशिया भोला भाला था और खुशिया काफी चालक था| एक दिन कुशिया अपनी गरीबी से तंग आ कर गांव से कहीं बाहर चला गया | चलते चलते वह एक जमीदार के वहां पहुँच गया| जमीदार से उसने नौकरी मांगी तो जमीदार उसको सर्तों पर नौकरी देने को तयार हो गया | और जमीदार ने अपनी सरतें उस के सामने रख दीं| जमीदार की  सर्तों मै था कि एक दिन मै सारा खेत जोतना है और वहीँ से मांस  का इंतजाम भी करना है ,लकड़ी का इंतजाम करना है,पत्तों का इंतजाम करना है आदि |साथ मै जो बुरा मानेगा उस की  नाक काट दी जाएगी| या जो काम पूरा नहीं कर पाएगा उस की  नाक काट दी जाएगी | कुशिया सर्तों को मान गया और काम करने को तयार हो गया| जमीदार ने उस को काम पर रख लिया| अगले दिन कुशिया खेत जोतने  हल और बैलों के साथ खेत मै गया | खेत सूखा था | कुशिया खेत के काम को पूरा नहीं कर सका और नहीं उसे कहीं से कोई शिकार ही मिला | वह रात  को अपना जैसा मुह लेकर जमीदार के पास गया| जमीदार ने उसको सर्त  याद दिलाई और कहा कि तुम सर्त हार  चुके हो इसलिए तुम्हारी नाक काटनी  पढेगी | और जमीदार ने उस की नाक काट ली | कुशिया बेचारा रोता हुआ अपने घर वापिस आ गया उसने जमीदार के वहां जोकुछ भी उस के साथ हुआ उस के बारे मै अपने भाई को बताया| भाई ने उसको दिलासा देते हुए कहा की तुम तो अपनी नाक कटवा ही चुके हो अब मुझे देखो मै क्या करता हूँ?                                                                                           अगले दिन सुबह ही खुशिया जमीदार के वहां को चल दिया और जमीदार के यहाँ पहुँच कर उसने जमीदार से नौकरी मांगी तो जमीदार ने उसके आगे भी वही सरतें रख्खी जो उसके भाई  के आगे रख्खी गयी थी | एक दिन मै सारा खेत जोतना है वहीँ से मीट लाना है ,वहीँ से लकड़ी लानी हैं और वहीँ से पत्तों का इंतजाम करना है| यह काम पूरा न होने पर या नाराज होने पर नाक काट ली जाएगी| खुशिया उसकी सर्तों के मुताबिक काम करने को तयार होगया| जमीदार ने उस को काम पर रख लिया| अगले दिन खुशिया बैलों को लेकर हल के साथ खेत जोतने चला गया |उस ने हल को यहाँ से वहां वहां से यहाँ जोत कर साम को खेत पूरा जोत दिया| जमीदार का कुत्ता खेत मै आया हुआ था उसने कुत्ते को मर कर मीट तयार किया और वापसी पर हल को फाड़  कर लकड़ी बनाई, बैल के कानों को काट कर पत्ते बनाई और जमीदार के पास वापिस आ गया| जमीदार उसके काम को देख कर एक बार तो खुश हो गया| रात को खाना खाने के बाद जब जमीदार ने कुत्ते को रोटी देने के लिए आवाज दी तो कुत्ता नहीं आया| जमीदार ने खुशिया से कहा कि आज कुत्ता नहीं आ रहा है कहाँ गया तो खुशिया ने जवाब दिया कि महाराज आप ने जो मीट खाया है वह उसी कुत्ते का था| जमीदार ने  सोचा पता नहीं और क्या क्या गुल खिला कर आया होगा देखें जब वह बैलों के पास गया तो देखा बैलों के कान नहीं हैं और हल भी अपनी जगह पर नहीं है तो जमीदार ने खुशिया से इस के बारे मै पूछा खुशिया ने बताया कि महाराज जो आपने लकड़ी जलाई थी वो हल की  ही थी और जी पत्तों मै आप ने भोजन किया वो बैलों के कान के ही थे| यह सब कुछ सुन के जमीदार को बहुत गुस्सा आया पर सर्त के मुताबिक नाराज होने पर नाक काटने का डर  था इस लिए सबकुछ चुपचाप  सह लिया| इतने मै खुसिया ने खुद ही जमीदार से पूछ लिया, जमीदार जी जमीदार जी आप को बुरा तो नहीं लगा| जमीदार ने मन मारते  हुए कहा नहीं| अब जमीदार ने खुशिया से पीछे छुड़ाने की तरकीब सोची| उसने सोचा  अगर इसे मै कहीं साथ लेकर जाऊ और रस्ते मै मौका देख कर पहाड़ी से गिरा दूंगा | जमीदार ने अपने ससुराल को एक पत्र लिखा और खुसिया को कहा इसे मेरे ससुराल दे आ| खुशिया पत्र लेकर गया और रस्ते मै पत्र को खोल कर देख लिया उस मै लिखा था कि मै ससुराल आ रहा हूँ मेरे साथ मेरा नौकर भी आ रहा है आप लोग इस से बुरा सलूक करना ताकि यह बुरा मान  जाये| खुशिये  ने वह पत्र फाड़  दिया और नया पत्र लिख दिया जिस मै लिखा था कि मै ससुराल आ रहा हूँ मेरी तबियत ठीक नहीं है इस लिए मरे लिए सिर्फ भट्ट (काले सोयाबीन) भून कर रखना मेरे साथ मारा नौकर आ रहा है उस की  अछ्छी तरह से सेवा करना|और पत्र दे कर खुशिया वापिस आ गया|  अगले दिन जमीदार और खुसिया अपने खाने का सामान बांध कर चलने लगे तो जमीदार ने देखा कि उस के पैर नंगे हैं तो उस ने खुसिया से कहा कि घर से मेरे बूट ले आ | घर मै जमीदार की  दो पत्नियाँ थीं | खुसिया घर मै जा कर जमीदार की  पत्नियों से कहता है कि जमीदार ने आप दोनों कि नाक मागे है| अगर आप को विस्वास नहीं हो रहा है तो मै दुबारा पूछ देता हूँ और उस ने आवाज दी जमीदार जी जमीदार जी एक लाओं या दो|  जमीदार ने कहा दोनों ला एक से क्या करना है| उस ने कहा देखा जमीदार जी कह रहे हैं की दोनों  ले आ  और उसने दोनों की नाक काट कर जेब मे डाल ली| जूते उठाए और चल कर जूते जमीदार को दे दिए| आगे चल कर रस्ते मे खुशिया ने जमीदार को उसकी पत्निओं की कटी नाक जेब से निकाल कर दिखा दीं| जमीदार नाक देख कर परेसान हो गया और घर को वापिस आ गया घर आ कर देखा तो दोनों पत्नियाँ नाक के बगैर थी उस को देखकर जमीदार को बहुत दुःख हुआ| खुशिया ने जमीदार से पूछा बुरा मान गए क्या? जमीदार ने कहा बुरा मान ने की तो बात की है| सर्त के मताबिक खुशिया ने जमीदार की भी नाक काट ली|तीनों नखो को लेकर खुशिया कुशिया  के पास आ गया और कहने लगा देख तू  एक नाक कटवाके आया था मे उस के बदले मे तीन नाक ले आया हूँ| इस तरह खुशिया ने कुशिये की नाक का बदला ले लिया|
                                                     के: आर: जोशी (पाटली )
 

Sunday, June 6, 2010

जागेश्वर (नागेश्वर )

  देव भूमि उत्तराखंड सदियों से ही ऋषियों मुनियों की तपो स्थली रही है, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोरा जिले मे जागेश्वर नाम की एक जगह है,जहाँ जागनाथ  का मन्दिर स्थित  है | जागनाथ  का मन्दिर १२ ज्योतिर्लिंगों  मे से एक है जिसे नागेश्वर (दारुकाबन)के नाम से जाना जाता है|जागेश्वर जिला मुख्यालय अल्मोरा से ३४ की;मी; की दूरी पर स्थित है जो एक संकीर्ण घाटी  मे बसा हुआ है| इस ज्योतिर्लिंग परिसर मे १२४ देवी देवताओं के मन्दिर हैं जिनमें  जागनाथ ,नव दुर्गा ,महामृत्युंजय ,केदारनाथ,कुबेर, दानेश्वर,  वृद्ध  जागेश्वर, कोटेश्वर, झाकर सैंम आदि के मन्दिर शामिल  हैं| ये सारे  मन्दिर ११वी सदी के बने हुए हैं|
जागेश्वर चारो  तरफ से ऊँचे  ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है| जो बांज बुरांश और देवदार के पौधो  से भरे हुए है| जागनाथ  से वृद्ध  जागेश्वर जाने के लिए  ३ की: मी: की चढ़ाई चढ़नी पड़ती  है| वृद्ध जागेश्वर पहाड़ी   पर स्थित है यहाँ से नंदा देवी की पहाडियों   के नज़ारे देखने को मिलते हैं जो दिल को छू जाते हैं|बसंत ऋतु मे तो यहाँ कुदरत के नज़ारे देखने को मिलते हैं  मानो कुदरत आप का स्वागत कर रही है | जगह जगह  फूल आप के ऊपर गिरते हैं और सारा जंगल बुरांश महल आदि के फूलों से लदा रहता है | यहाँ पर कई जीवन दायिनी  जड़ी  बूटियाँ भी मिलती हैं, इसी लिए इसे दारू का बन कहा गया है| जागेश्वर ७००० फुट की ऊंचाई पर है | यहाँ जंगलों मे अनेक प्रकार के जीव देखने को मिलते हैं | बाघ, भालू, लंगूर, बन्दर , जंगली सूकर, चुथराव, घुरढ़, काकढ़  आदि जंगली जीव आम बिचरते नजर आ जाते   हैं |                                                                                  जागेश्वर मे साल मे कई बार मेले लगते हैं | गर्मियों मे तो यहाँ पर सैलानियों का मेला लगा ही रहता है | शिव रात्रि को यहाँ पर बहुत बड़ा  मेला आयोजित  होता है जिस मे लोग दूर दूर से आते हैं| कई लोग यहाँ पर मन्नतें मांगने आते है तो कई लोग मन्नत पूरी होने की ख़ुशी  मे आते हैं और भगवन शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं | जो भी यहाँ सच्चे मन से मुराद मांगता है उस की मुराद भगवन शिव पूरी करते हैं| शिव भक्त सावन के महीने मे हर सोमवार को शिवजी का जल और कच्ची लस्सी से अभिषेक करते हैं, और महादेव  से अपनी अपनी इछ्छा पूरी करने की कामना करते हैं,| भगवन सदाशिव उन की कामना पूरी भी करते हैं| यहाँ के मेले मे कुमाऊ  का सभ्याचार देखने को मिलता है, लोग अपनी अपनी कला का प्रदर्शन  करके अपनी कला को उजागर करते हैं और लोगों का दिल बहलाते हैं| झोढ़ा, चांचरी  छोलिया नृत्य मुख्य आकर्षण का केन्द्र बनते हैं| गायक लोग भी यहाँ पर अपनी अपनी कविता, भगनौल,बैर आदि गाकर लोगों का समय बांध देते हैं और अपने हुनर को आगे बढ़ाते हैं|