Saturday, July 17, 2010

"हरेला"

            रेला कुमाऊ  का  एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो सावन के महीने मे कर्क संक्रांति को मनाया जाता है| इस दिन से ठीक दस  दिन पहले सात अनाजों को मिला कर बांस की टोकरी, लकड़ी की  फट्टी  या गत्ते का डिब्बा जो भी मौके पर उपलब्ध हो उस मे रेत  बिछा के बोया  जाता है| रोज सुबह शाम ताजा  जल लाकर उसमे डाला जाता है | इस खेती को घर के अँधेरे कोने मे रख्खा जाता है ताकि इसका रंग पीला रहे| कर्क संक्रांति के दिन घर मे   सामर्थ के मुताबिक तरह तरह के पकवान बनाए जाते है| फिर सुबह को पुरोहित जी आ कर हरेले को प्रतिष्ठित करते हैं|फिर पुरोहित जी हरेले को पहले घर मे भगवान्  जी को चढाते  हैं और इष्ट देब के मन्दिर मे चढाते  हैं| जो भी पकवान बनाए होते  है सब का भगवान को भोग लगता है| पुरोहित जी के  भोग लगाने के बाद घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को एक साथ बैठा कर हरेला लगाते हैं | हरेले को दोनों हाथों मे पकड कर पैरों पर लगाते हुए सर की और लेजाकर सर मे रख देते हैं और मुह से बोलते हैं|
           लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए  जागि रए  बची रए |
( भाव तुम लाख हरेला, लाख बग्वाली, लाख पंचिमी तक जीते रहना)
          स्यावक जसी बुध्धि  हो, सिंह जस त्राण हो|
(भाव लोमड़ी की तरह तेज बुध्धि  हो और शेर की तरह बलवान हो )
          दुब जैस पनपिये, आसमान  बराबर उच्च है जाए, धरती बराबर चाकौव है जाए|
(भाव दुब की तरह फूटना , आसमान  बराबर ऊँचा होजाना, धरती के बराबर चौड़ा हो जाना|)  
         आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए|
(भाव अपने गांव का प्रधान  बनना और इतने बूढ़े  हो जाना की खाना भी पीस कर खाना|)
         जान्ठी  टेकि घुवेंट जाये , जी रए  जागि  रए  बची रए  |
(भाव छड़ी ले कर जंगल पानी जाना, इतनी लम्बी उम्र तक जीते रहना जागते रहना.|)
        सब को हरेला  लगाने के बाद भगवान  को लगाया गया भोग सब बच्चों मे बाँट दिया जाता है| लड़के हरेले को अपने कान मे टांग लेते हैं  और लड़कियां हरेले को अपनी धपेली के साथ गूँथ लिया करती हैं|
        आज मुझे भी अपना बचपन याद आ गया है जब हमारी आमा (दादी) जिन्दा हुआ करती थीं | हम छोटे छोटे बच्चे थे जब खाने पीने की कोई चीज घर मे बनती थी तो पहले हम बच्चों को ही दी जाती थी| पर हरेले के दिन जब तक पुरोहित जी नहीं आते थे किसी को कुछ नही मिलता था|जब हम आमा से खाने को मांगते थे तो आमा कहती थीं '"इजा लुह्न्ज्यु कै ओन दे, हर्याव लगे बेर फिर दयूल| कहने का मतलब था कि पुरोहित जी जोकि लोहनी थे उनको आलेने दे हरेला लगाकर फिर  खाने  को दुगी | काश ! कि वो  बचपन फिर लौट आता?
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
                                               के: आर: जोशी  (पाटली)

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