Sunday, July 11, 2010

||तब मे ठेकुवा ठीक ||

            हुत समय पहले कि बात है| एक गांव मे एक गरीब किसान रहता था| खेतो मे जी तोड़ मेहनत कर के अपने और अपने परिवार का पेट पालता था| किसान  का एक बेटा था उस का नाम ठेकुवा (बौना) था| क्यों कि उसकी लम्बाई कम थी या कद का ठिगना  था | ठेकुआ जब बड़ा हुआ तो उसकी भी शादी हो गई | सब ठीक था लेकिन उसकी घर वाली को उसका ठेकुआ नाम ठीक नहीं लगा |शुरू मे तो वह कुछ कह नहीं पाई | जी जान से मेहनत करके उन्होंने  कुछ पैसे जमा किये और अच्छा  खाने  पीने लग गए तो एक दिन ठेकुवा की घरवाली ने ठेकुवा से कह दिया  कि आप का नाम सुनने  मे ठीक नहीं लगता है इस लिए आप कोई अच्छा सा नाम क्यों नहीं रख लेते| ठेकुवा ने कहा कि मे अच्छा  नाम कहाँ से रक्खूं कौन बताएगा अच्छा सा नाम | घर वाली ने बड़े प्यारसे कहा आप एक दिन शहर हो आयें | वहां आप को कोई न कोई अच्छा नाम मिल जाएगा | घरवाली की बात मान कर ठेकुवा एक दिन शहर गया| जाते जाते उसे रास्ते मे एक जमादारनी झाड़ू लगाते हुए मिल गई| ठेकुवा ने उस से उसका नाम पूछा |उसने बताया मेरा नाम लक्ष्मी है| ठेकुवा को नाम कुछ जचा  सा नहीं आगे बड़ गया| आगे उसे एक भिखारी मिल गया उसने भिखारी  से उसका नाम पूछा| भिखारी ने बताया उसका नाम धनपति है| उसने सोचा धनपति भीख कैसे मांग सकता है यह नाम भी ठीक नहीं है|  आगे जाने पर उसे कुछ आदमी एक शव को शमशान  घाट की  तरफ लेजाते हुए मिले | उसने उनसे पुछा कि इसका नाम क्या था| एकने बताया कि इस का नाम अमर सिंह था| ठेकुवा के दिमांग मे बात आई कि जब "अमर सिंह जैसे मर गए, धनपति मांगे भीख| लक्ष्मी जैसे झाड़ू देवे, तब मे ठेकुवा ठीक|| यह सोचते हुए वह घर को आगया कि नाम मे क्या रख्खा है| नाम तो अच्छे कामों से होता है| घर आकर उसने अपनी घरवाली को सारी कहानी बताई कि जब "अमर सिंह जैसे मर  गए, धनपति मांगे भीख|लक्षी जैसे झाड़ू देवे तब मे ठेकुवा ठीक ||" इस प्रकार उसने अपने नाम बदलने कि प्रक्रिया को यहीं बिराम दे दिया|                                 के: आर: जोशी (पाटली)
       

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