Tuesday, June 29, 2010

शरीर की कमाई

            क गांव मे एक किसान रहता था| वह किसान बहुत मेहनती था| उस के खेत लहलहा रहे थे| खून पसीने की मेहनत के बाद कहीं फसल देखने को मिली थी| फसल इकट्ठी कर के किसान दुबारा फसल बीज ने के लिए किसान खेत मे गया हुआ था|सुबह से ही वह खेत की जुताई पर लगा हुआ था | गर्मी अपने जोरों पर थी | दिन के समय जब किसान थक गया तो थोड़ी देर आराम करने के लिए पास मे एक पेड़ के नीचे पत्थर का सिरहाना बना कर लेट गया| कुछ ही पल मे उसे नीद आ गई| वहां का राजा अपने वजीर के साथ शिकार खेलता हुआ वहां से गुजर रहा था , उसकी नजर उस सोए हुए किसान पर पड़ी , उसने अपने वजीर से पूछा की इस किसान को यह पथर चुभ नहीं रहा होगा? वजीर ने जवाब दिया जहाँपनाह इस किसान ने शरीर की कमाई की है | जिस माहौल मे शरीर रहता है उसी तरह का बन जाता है| राजा ने सवाल किया वह कैसे? वजीर ने कहा जहाँपनाह इस जवाब के उत्तर के लिए किसान को कुछ दिनों के लिए राज महल मे रखना होगा| राजा मान गया और किसान को उठा कर कहा की तुम कुछ दिनों के लिए हमारे साथ राजमहल मे चलो वहां तुम्हें किसी किसम की कोई तकलीफ नहीं होगी |इस बीच जो भी तुम्हारा कोई नुकसान होगा उस की भरपाई कर दी जाएगी| किसान मान गया और उनके साथ जाने को तयार हो गया|
           राजमहल मे जाकर किसान की खातिरदारी  बहुत अच्छी तरह से की गई| किसान के लिए काफी नरम नरम बिस्तरे का बंदोबस्त किया गया और किसान को कहा गया की वह एक महीना यहीं पर आराम करेगा| एक महीने के लिए नौकर चाकरों को आदेस दिया गया की किसान को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो| किसान को पता ही नहीं चला कब महीना ख़तम होगया| पूरे महीने के बाद वजीर ने राजा से कहा जहाँपनाह अब समय आ गया है आप के सवाल के जवाब देने का| वजीर राजा को किसान के पास ले गया| किसान राजा को देख कर खड़ा हो गया और झुक  कर राजाको नमन किया , इतने मे वजीर कहीं से घोड़े की पूंछ के दो बाल ले कर आया था, वजीर ने उन बालों को किसान की नजरें बचा कर किसान  के बिस्तरे मे डाल दिए| राजा ने किसान को बैठने के लिए कहा| जैसे ही किसान बिस्तरे के ऊपर बैठा एकदम उछल कर खड़ा हो गया| वजीर ने पूछा क्या बात हो गई है? किसान ने जवाब दिया की बिस्तरे मे कोई चीज चुभ रही है| इस पर वजीर ने राजा को बताया की जहाँपनाह जब आप ने इस किसान को जमीं पर बगैर बिस्तरे  और बगैर सिरहाने सोया देखा था तो उस समय किसान ने उस के अनुकूल शारीर बनाया था पर अब एक महीने मे ही इस का शारीर इतना कोमल हो गया है की घोड़े के पूंछ के बाल भी इसे चुभने लग गए हैं| इसीको शरीर की कमाई कहते हैं|                                      के:आर: जोशी (पाटली)

Sunday, June 27, 2010

अनुभव

            हुत समय पहले  की बात है एक गांव मे देवदत्त नाम का आदमी रहता था| उसका एक बेटा था जिस  का नाम पान देव था| पान देव को देव दत्त ने बड़े लाड़ प्यार से पाला  पोषा और उसको ऊँची तालीम दिलाई ताकि पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने और बुढ़ापे  मे उस  का सहारा बने| पान देव पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन गया और उसको शहर मे एक अच्छी सी नौकरी मिल गई अब पान देव नौकरी करने शहर जाया करता था| कुछ समय बाद  पान देव की शादी हो गई| शादी के बाद कुछ ही दिनों मे पानदेव ने शहर मे एक कमरा किराए पर लेलिया और अपनी घर वाली को साथ  लेकर शहर मे ही रहने लगा| कुछ समय बाद उस के घर मे बेटे ने जन्म लिया| समय धीरे धीरे आगे बढता गया| पान देव ने बेटे का नाम शोम देव रख्खा| शोमदेव समय के साथ साथ बड़ा होता गया| स्कूल की पढाई चालू हो गई| उधर पान देव के माँ  बाप भी गांव मे रहते हुए बूढ़े हो गए थे| पान देव ने कभी भी उनके बारे मे नहीं सोचा कि उनको भी साथ रखले| उसने उन्हे बेकार समझ कर  ही गांव मे छोड़ा था|
            शोमदेव अब बड़ा हो गया था |उसके स्कूल मे कुछ यार दोस्त भी बन गए|शिव लाल उसका अच्छा दोस्त था और दोनों एक दूसरे के घर आया जाया करते थे| एक दिन उनका परिक्षा का परिणाम आने वाला था दोनों दोस्त स्कूल गए| परिक्षा परिणाम देखा तो शोमदेव के  अंग्रेजी मे नंबर कम थे उसके दोस्त शिवलाल अच्छे नंबरों मे पास हुआ था| दोनों दोस्त मिल कर शोम देव के घर आ गए| शोम देव के पिता पान देव ने परीक्षा परिणाम के बारे मे पूछा तो शोम देव ने बताया कि मेरी  अंग्रेजी मे कमपार्टमेंट  है  और शिवलाल अच्छे नम्बरों से पास हुआ है| पान देव ने शिव लाल की तरफ देखा तो शिव लाल बोल पड़ा कि ताया जी यह सब मेरे दादाजी, दादीजी के  आशीर्वाद का फल है| मेरे दादाजी मुझे रात दिन पढ़ाते हैं और अच्छी अच्छी बातें बताते हैं| दादाजी ने मुझे कई किसम के खेल भी सिखाए हैं| उन के अनुभव ही मेरे काम आ रहे हैं और आगे भी आते रहेंगे | शिव लाल से अपने दादा,दादी की प्रशंसा सुन कर पान देव को भी अपने माँ बाप की याद आ गई| वह सोचने लगा कि मैंने  तो कभी अपने माँबाप के अनुभवों  का लाभ उठाने के बारे मे सोचा ही नहीं था| पुराने लोगों के अनुभव ही आदमी को सफलता की सीडियां पार  करने मे सहायक हो सकती हैं| यह सोचते ही पान देव के मन मे  आया कि वह कल ही जा कर अपने माँ  बाप को शहर अपने पास ले आये| उसने अपने बेटे से कहा  बेटा अब तुम भी अच्छी पोजीसन मे पास हुआ करोगे | मे कल ही जाकर तुम्हारे दादा, दादीजी को यहाँ शहर अपने साथ ले आऊंगा | वे हमारे साथ ही शहर मे रहेंगे| इतना सुनते ही शोम देव के चहरे पर मुस्कराहट आ गई| और सोचने लगा कि अब मे भी शिवलाल की तरह अपने दादाजी दादीजी के अनुभवों का फ़ायदा ले सकूँगा| जिन्दगी मे सफलता की सीड़ियों को आसानी से पार  कर सकूँगा|  अगले ही दिन पान देव गांव गया और अपने माता  पिताजी को साथ लेकर शहर आगया| बुजर्गों के पास अनुभवों का ऐसा अनमोल खजाना होता है,जिस का लाभ उठाकर उनके परिवार के लोग अपने जीवन को सुखी, सुसंस्कृत और संपन्न बना सकते हैं| इस लिए हमेसा बुजर्गों का आदर सत्कार करना चाहिए| और उनका  आशीर्वाद  लेना चाहिए|                                            
                                                                के: आर: जोशी (पाटली)

Wednesday, June 16, 2010

जो तुम ने करी सो हमने जानी

                    बहुत पुराने समय की  बात है एक गांव  मे अमर नाम का एक गरीब ब्राहमण रहता था| इधर उधर से मांग कर अपना और अपने परिवार का गुजारा  बड़ी  मुश्किल  से चलाता  था|वहीँ पास के गांव मे एक नामी  सेठ घनश्याम दास भी रहता था| सेठ घनश्याम दास की  कोई औलाद नहीं थी| सेठ जगह जगह अपनी औलाद के लिए प्रार्थना करता और धरम करम के काम भी करवाता रहता था आखिर भगवान्  ने उस की सुन ली | सेठ घनश्याम दास के घर एक सुन्दर सा बेटा पैदा हुआ| सेठ घनश्याम दास ने पुत्र रतन पाने पर भगवान्  का शुक्रिया  अदा किया और इस ख़ुशी मे एक दावत का आयोजन किया जिस मे आस पास के सभी ब्राहमणों को बुलावा भेजा| यह बात गरीब ब्राहमण अमर के कानों मे भी पड  गयी| दावत मे ३६ प्रकार के भोजन होंगे यह सोचते ही अमर के मुंह मे पानी आ गया| और उस ने भी दावत मे शामिल होने की सोची लेकिन अगले ही पल उदास हो गया क्योँ कि खाना खाने के बाद टीका लगते समय कोई मंत्र या श्लोक बोलना होता था| जो बेचारे गरीब अमर को नहीं आता था| अमर ने फिर भी हिम्मत नहीं हांरी  सोचा कम से कम भर पेट खाना तो मिलेगा ही आगे जो होगा देखा जाएगा भगवान् भली करेंगे? अमर साफ सुथरे कपडे  पहन कर कंधे मै अंगोछा लटकाए सेठ घनश्याम दास के घर की तरफ चल दिया| वहां जा कर क्या कहूँगा यह सोचते सोचते वह एक तालाब के नजदीक से गुजरा| तालाब के नजदीक से गुजरते समय उसने देखा कि कुछ मेढक तालाब के किनारे धूप  सेक रहे थे| अमर के तालाब  के नजदीक जाते ही मेढ़को  ने पानी मे छलाग लगा दी| मेढ़को के पानी मे छलाग लगाते  ही पानी की बूंदें इधर उधर बिखर गयीं और तालाब के पानी मे लहरें हिलने लगीं | इस दृश्य को देख कर अमर के मनमे एक ख्याल आया और उस के मुंह से निकल पढ़ा" छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| अमर का चेहरा खिल उठा उसने सोचा कि टीका लगाते समय के लिए यह श्लोक ही ठीक रहेगा| वह इस श्लोक को याद करता हुआ सेठ घनश्याम दास के घर पहुँच गया| यहाँ उसने देखा कि बहुत बड़े  बड़े  विद्वान पहुंचे हुए हैं और काफी चहल पहल है| अमर भी एक तरफ हो कर बैठ गया| कुछ समय बाद खाने का बुलावा आया सभी लोग खाने को बैठ गए अमर भी बैठ गया| खूब डट कर खाया  आनंद आ गया |
                   खाना खाने के बाद अब बारी  आई टीका लगाने की तो अमर ने देखा की यहाँ तो ब्राहमण एक से बढ़ कर एक श्लोक या मंत्र बोल रहे थे अमर का दिल घबराया, पर अब क्या हो सकता था जब आ ही गया था| अमर ने हिम्मत से काम  लिया और जब उसकी बारी आई तो उसने डरते हुए धीरे से मंत्र बोल दिया जो उसे तालाब के किनारे सुझा था| घबराहट मै उसकी आवाज साफ नहीं सुन रही थी| सेठ घनश्याम दास ने मंत्र दुबारा कहने को कहा तो अमर ने डरते हुए जोर से बोल दिया "छिटपित छिटपित उप्पर छटकायो पानी, जो तुम ने करी सो हमने जानी"| सेठ को ये शब्द अच्छे  लगे और उसने इन्हे एक तख्ती मै लिख कर लटका दिया| ब्राहमण अमर को काफी सारा धन दे कर विदा कर दिया| अमर धन पाकर बहुत खुश हो गया और सेठ को आशीर्वाद दे कर ख़ुशी ख़ुशी अपने घर को चला गया| 
                    सेठ घनश्याम दास की अपने पडोसी  सेठ जीवन दास से पुरानी  दुश्मनी थी| घनश्याम दास के ज्यादा पैसे वाला  होने की वजह से जीवन दास उस का कुछ भी बिगाड़  नहीं सकता था| घनश्यामदास और जीवन दास का नाई एक ही था | जीवनदास ने उस नाई को लालच दे कर कहा कि तुम मेरा एक काम  कर सकते हो,अगर तुम मेरा काम कर दो तो मै तुम्हें मुह माँगा इनाम दुगा? इस पर नाई ने पूछा क्या काम  है? मै कर दुगा| जीवनदास ने बताया कि जब तुम घनश्यामदास की शेव करोगे तो वह गले के बाल  काटने के लिए अपनी गर्दन ऊपर करेगा तो उस्तरे से उस का गला चीर  देना| पैसे के लालच मे आ कर नाई ऐसा करने को तैयार  हो गया| अगले दिन जब नाई घनश्यामदास के घर शेव करने गया तो शेव करते समय जब घनश्यामदास ने गला ऊपर किया तो उसकी नजर अमर की लिखी तख्ती पर पढ़ गई और वह  बोल उठा "छिटपित छिटपित ऊपर छटकायो  पानी,जो तुम ने करी सो हमने जानी"| नाई के हाथ से उस्तरा नीचे गिर गया और सेठ घनश्यामदास से मांफी मागने लगा| घनश्याम दास के पूछने पर नाई ने सारी   हकीकत बता दी कि किस तरह जीवनदास उसकी हत्या करवाना चाहता था| उसने नाई को माफ़ कर दिया और आगे से शेव करने घर आने को मना कर दिया| सेठ घनश्यामदास ने भगवान् को धन्यवाद किया और फिर उस गरीब अमर को याद किया जिस की वजह से उस की जान बच गई | सेठ घनश्यामदास ने तुरंत अपना आदमी भेज कर अमर को बुलवाया| अमर बेचारा डर गया पता नहीं सेठ ने क्यों बुलाया है? जब बुलावा आया ही था तो जाना ही था | अमर सेठ घनश्यामदास के घर गया और  हाथ जोड़ कर खड़ा  हो गया | सेठ घनश्यामदास ने उस की अच्छी तरह से खातिरदारी  की और बताया की किस तरह आज अमर के कहे शब्दों  ने घनश्यामदास की जान बचाई| सेठ घनश्यामदास ने अमर को खूब सारा धन दिया और उसका  धन्यवाद किया| अमर ने  सेठ घनश्याम दास को आशीर्वाद दिया और अपने घर आ कर आराम से अपनी जिन्दगी बसर करने लगा|                                  के. आर. जोशी (पाटली)








            


Sunday, June 13, 2010

इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"

   किसी गांव में  एक गरीब ब्राहमण रहता था|वह लोगों के घरों में पूजा पाठ कर के अपनी जीविका चलाता  था| एक दिन एक राजा ने इस ब्राहमण को पूजा के लिए बुलवाया| ब्राहमण ख़ुशी ख़ुशी राजा के यहाँ चला गया | पूजा पाठ करके जब ब्राहमण अपने घर को आने लगा तो राजा ने ब्राहमण से पूछा "इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है"? ब्राहमण कुछ सोचने लग गया और फिर राजा से कहा, महाराज मुझे कुछ समय चाहिए इस सवाल का उत्तर देने के लिए| राजा ने कहा ठीक है एक महीने का समय दिया| एक महीने बाद आकर  इस सवाल का उत्तर दे जाना | ब्राहमण इसका उत्तर सोचता रहा और घर की ओर  चलता रहा परन्तु उसके कुछ समझ नहीं आरहा था| समय बीतने के साथ साथ ब्राहमण की चिंता भी बढ़ने लगी और  ब्राहमण उदास रहने लगा| ब्रह्मण का एक बेटा था जो काफी होशियार था उसने अपने पिता से उदासी का कारण  पूछा |ब्राहमण ने बेटे को बताया कि राजा ने उस से एक सवाल का जवाब माँगा है कि इश्वर  कहाँ रहता है;किधर देखता है,ओर क्या करता है ? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है| बेटे ने कहा पिताजी आप मुझे राजा के पास ले चलना  उनके सवालों का जवाब मै दूंगा| ठीक एक महीने बाद ब्राह्मण  अपने बेटे को साथ लेकर राजा के पास गया ओर कहा कि आप के सवालों के जवाब मेरा बेटा देगा| राजा   ने   ब्राहमण के बेटे से पूछा बताओ इश्वर कहाँ रहता है?
            ब्राहमण के बेटे ने कहा राजन ! पहले अतिथि का आदर सत्कार किया जाता है उसे कुछ खिलाया पिलाया जाता है, फिर उस से कुछ पूछा जाता है| आपने तो बिना आतिथ्य  किए ही प्रश्न पूछना  शुरू  कर दिया है| राजा इस बात पर कुछ लज्जित हुए और  अतिथि के लिए दूध लाने  का आदेश दिया| दूध का गिलास प्रस्तुत किया गया|ब्राहमण बेटे ने दूध का गिलास हाथ मै पकड़ा  और  दूध में  अंगुल डाल कर घुमा कर बार बार दूध से बहार निकाल  कर देखने लगा| राजा ने पूछा ये क्या कर रहे हो  ?| ब्राहमण पुत्र बोला सुना है दूध में  मक्खन  होता है| मै वही देख रहा हूँ कि दूध में  मक्खन  कहाँ है? राजा ने कहा दूध मै मक्खन  होता है,परन्तु वह ऐसे  दिखाई नहीं देता| दूध को जमाकर दही बनाया जाता है  फिर उसको मथते है तब मक्खन  प्राप्त होता है|ब्राहमण बेटे ने कहा महाराज यही आपके सवाल का जवाब है|
           परमात्मा प्रत्येक  जीव के अन्दर बिद्यमान  है | उसे पाने के लिए नियमों का अनुष्ठान करना पड़ता  है | मान  से ध्यान द्वारा अभ्यास से आत्मा में  छुपे हुए परम देव पर आत्मा के निवास का आभास होता है| जवाब सुन कर राजा खुश  हुआ ओर कहा अब मेरे दुसरे सवाल का जवाब दो| "इश्वर किधर देखता है"?
          ब्राहमण के बेटे ने तुरंत एक मोमबत्ती मगाई ओर उसे जला कर राजा से बोला महाराज यह मोमबत्ती किधर रोशनी करती है? राजा ने कहा इस कि रोशनी चारो  तरफ है| तो ब्राहमण  के बेटे ने कहा यह ही आप के दुसरे सवाल का जवाब है| परमात्मा सर्वद्रिश्ता  है और  सभी प्राणियों के कर्मों को देखता है| राजा ने खुश होते हुए कहा कि अब मेरे अंतिम सवाल का जवाब दो  कि"परमात्मा क्या करता है"?
          ब्राहमण के बेटे ने पूछा राजन यह बताइए कि आप इन सवालों को गुरु बन कर पूछ रहे हैं या शिष्य बन कर? राजा विनम्र हो कर बोले मै शिष्य बनकर पूछ रहा हूँ| ब्राहमण बेटे ने  कहा वह महाराज!आप बहुत अच्छे शिष्य हैं| गुरु तो नीचे  जमीं पर खड़ा  है और  शिष्य सिहासन पर विराजमान है| धन्य है महाराज आप को ओर आप के शिष्टचार को | यह सुन कर राजा लज्जित हुए वे अपने सिहासन से नीचे उतरे और ब्राहमण बेटे को सिंहासन  पर बैठा कर पूछा अब बताइए  इश्वर क्या करता है? ब्राहमण बेटे ने कहा अब क्या बतलाना रह गया है| इश्वर यही करता है कि राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है| राजा उस के जवाब सुन कर काफी प्रभावित हुआ और ब्राहमण बेटे को  अपने दरबार में  रख लिया|
          इस प्रकार परमात्मा प्रत्येक जीव के ह्रदय में  आत्मा रूप से विद्यमान रहता है| परमात्मा  के साथ प्रेम होने पर सभी प्रकार के सुख एश्वर्य की प्राप्ति होती है परमात्मा के बिमुख जाने पर दुर्गति होती है|
                                के. आर. जोशी (पाटली)

Saturday, June 12, 2010

ज्योतिर्लिंग


भारत मै १२ ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही जीवन सफल हो जाता है और हमाजन्मान्तरों के पापों का वीनस हो रे जन्म जाता है | ये ज्योतिर्लिंग  इस प्रकार हैं|
सोमनाथ:-गुजरात के सौरास्त्र में समुन्द्र तट पर प्रभास छेत्र में सोमनाथ महादेव जी का ज्योतिर्लिंग स्थित है इस प्रभास छेत्र से भगवन श्री कृष्ण जी ने बकुंथ धाम का गमन किया था |
मल्लिकार्जुन :- आन्ध्र प्रदेश  के कुर्नुल जिले के श्रीशैलम में भगवन मल्लिकार्जुन का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग है | यहीं पर भगवन शिव ने भक्त अर्जुन कि परीक्षा लेने को उनसे युद्ध लड़ा और अर्जुन को पशु पास्त्र प्रदान किया |
श्री महां काल :- मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवन महां काल का ज्योतिरलिंग स्थित है | एक समय जब इस इलाके के निवासी भगवन को भूल कर स्वार्थ सिध्धी में रमने लगे तब एक ज्ञानी ब्रह्मण के पुत्रों ने जन कल्याण का काम शुरू किया| इनके आवाहन पर ही इस स्थान पर भगवन महाकाल प्रकट हुए|
श्री ओंकारममालेश्वर :- मध्यप्रदेश के नर्वदा नदी के एक द्वीप पर स्थित है | कहा जाता है कि यहाँ वैदिक काल में वेदों के महान अध्यनरत एक ऋषि कुमार ने पाया कि बिंध्य पर्वत का अकार एक जगह पर ओमकार जैसा है | वहां पर ओमकार व ममलेश्वर के दो अलग -अलग लिंग हैं | परन्तु ये एक लिंग के दो स्वरूप हैं |
श्री वैद्यनाथ :- शिव पुराण के अनुसार" वैध्यनाथ चिताभूमो" के अनुसार संथाल के पास जो वैद्यनाथ शिव लिंग है वही वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है| क्यों कि यह ही चिताभूमि है|
श्री भीमाशंकर:- भीमाशंकर का स्थान मुंबई के भीमा नदी के किनारे सहम पर्वत पर है| यहाँ के एक शिखर का नाम डाकिनी है| और कभी यहाँ डाकिनी और भूतों का निवास था|
श्री रामेश्वर:-यह्ज्योतिर्लिंग मद्रास के रामनद जिले मै है| भगवन राम ने लंका विजय के लिए यहाँ पर शिवलिंग कि प्राण प्रतिष्ठा कि थी| 
श्री नागेश्वर:-यह स्थान अल्मोरे जिले के जागेश्वर नाम से जाना जाता है| शिवलिंग को नागेशं दारुकाबन  देवदार के वृक्षों के बीच मै यह ज्योतिर्लिंग स्तिथ है| देव दर के वृक्षों  के मध्य होने पर ही इसे दारुकाबन कहा गया है|
श्री विश्वेश्वर:- उत्तर प्रदेश के वाराणसी  मै स्तिथ है | इसे कशी विश्वनाथ भी कहते हैं|
श्री त्रयम्बकेश्वर:-यह ज्योतिर्लिंग नासिक मै स्तिथ है | यहाँ पर भगवन शिव गौतम ऋषि को मिलने त्रयम्बक भूतल पर आए और लिंग मै समां गए |
श्री केदारनाथ:- यह उत्तराखण्ड के केदार नामक श्रंग पर है| यह मन्दाकिनी के किनारे विराजमान है|
श्री  घुश्मेश्वर:- यह ज्योतिर्लिंग महांराष्ट्र  मै है |यहाँ पर रूठे हुए शिव को पार्वती जी ने मनाया था|
                                        के:आर: जोशी (पाटली)

















   






                                                                                                                                 

Friday, June 11, 2010

कुशिया और खुशिया

किसी गांव मै कुशिया और खुशिया नाम के दो भाई रहते थे| दोनों काफी गरीबी मै अपना गुजरबसर करते थे| दोनों भाइयों मै कुशिया भोला भाला था और खुशिया काफी चालक था| एक दिन कुशिया अपनी गरीबी से तंग आ कर गांव से कहीं बाहर चला गया | चलते चलते वह एक जमीदार के वहां पहुँच गया| जमीदार से उसने नौकरी मांगी तो जमीदार उसको सर्तों पर नौकरी देने को तयार हो गया | और जमीदार ने अपनी सरतें उस के सामने रख दीं| जमीदार की  सर्तों मै था कि एक दिन मै सारा खेत जोतना है और वहीँ से मांस  का इंतजाम भी करना है ,लकड़ी का इंतजाम करना है,पत्तों का इंतजाम करना है आदि |साथ मै जो बुरा मानेगा उस की  नाक काट दी जाएगी| या जो काम पूरा नहीं कर पाएगा उस की  नाक काट दी जाएगी | कुशिया सर्तों को मान गया और काम करने को तयार हो गया| जमीदार ने उस को काम पर रख लिया| अगले दिन कुशिया खेत जोतने  हल और बैलों के साथ खेत मै गया | खेत सूखा था | कुशिया खेत के काम को पूरा नहीं कर सका और नहीं उसे कहीं से कोई शिकार ही मिला | वह रात  को अपना जैसा मुह लेकर जमीदार के पास गया| जमीदार ने उसको सर्त  याद दिलाई और कहा कि तुम सर्त हार  चुके हो इसलिए तुम्हारी नाक काटनी  पढेगी | और जमीदार ने उस की नाक काट ली | कुशिया बेचारा रोता हुआ अपने घर वापिस आ गया उसने जमीदार के वहां जोकुछ भी उस के साथ हुआ उस के बारे मै अपने भाई को बताया| भाई ने उसको दिलासा देते हुए कहा की तुम तो अपनी नाक कटवा ही चुके हो अब मुझे देखो मै क्या करता हूँ?                                                                                           अगले दिन सुबह ही खुशिया जमीदार के वहां को चल दिया और जमीदार के यहाँ पहुँच कर उसने जमीदार से नौकरी मांगी तो जमीदार ने उसके आगे भी वही सरतें रख्खी जो उसके भाई  के आगे रख्खी गयी थी | एक दिन मै सारा खेत जोतना है वहीँ से मीट लाना है ,वहीँ से लकड़ी लानी हैं और वहीँ से पत्तों का इंतजाम करना है| यह काम पूरा न होने पर या नाराज होने पर नाक काट ली जाएगी| खुशिया उसकी सर्तों के मुताबिक काम करने को तयार होगया| जमीदार ने उस को काम पर रख लिया| अगले दिन खुशिया बैलों को लेकर हल के साथ खेत जोतने चला गया |उस ने हल को यहाँ से वहां वहां से यहाँ जोत कर साम को खेत पूरा जोत दिया| जमीदार का कुत्ता खेत मै आया हुआ था उसने कुत्ते को मर कर मीट तयार किया और वापसी पर हल को फाड़  कर लकड़ी बनाई, बैल के कानों को काट कर पत्ते बनाई और जमीदार के पास वापिस आ गया| जमीदार उसके काम को देख कर एक बार तो खुश हो गया| रात को खाना खाने के बाद जब जमीदार ने कुत्ते को रोटी देने के लिए आवाज दी तो कुत्ता नहीं आया| जमीदार ने खुशिया से कहा कि आज कुत्ता नहीं आ रहा है कहाँ गया तो खुशिया ने जवाब दिया कि महाराज आप ने जो मीट खाया है वह उसी कुत्ते का था| जमीदार ने  सोचा पता नहीं और क्या क्या गुल खिला कर आया होगा देखें जब वह बैलों के पास गया तो देखा बैलों के कान नहीं हैं और हल भी अपनी जगह पर नहीं है तो जमीदार ने खुशिया से इस के बारे मै पूछा खुशिया ने बताया कि महाराज जो आपने लकड़ी जलाई थी वो हल की  ही थी और जी पत्तों मै आप ने भोजन किया वो बैलों के कान के ही थे| यह सब कुछ सुन के जमीदार को बहुत गुस्सा आया पर सर्त के मुताबिक नाराज होने पर नाक काटने का डर  था इस लिए सबकुछ चुपचाप  सह लिया| इतने मै खुसिया ने खुद ही जमीदार से पूछ लिया, जमीदार जी जमीदार जी आप को बुरा तो नहीं लगा| जमीदार ने मन मारते  हुए कहा नहीं| अब जमीदार ने खुशिया से पीछे छुड़ाने की तरकीब सोची| उसने सोचा  अगर इसे मै कहीं साथ लेकर जाऊ और रस्ते मै मौका देख कर पहाड़ी से गिरा दूंगा | जमीदार ने अपने ससुराल को एक पत्र लिखा और खुसिया को कहा इसे मेरे ससुराल दे आ| खुशिया पत्र लेकर गया और रस्ते मै पत्र को खोल कर देख लिया उस मै लिखा था कि मै ससुराल आ रहा हूँ मेरे साथ मेरा नौकर भी आ रहा है आप लोग इस से बुरा सलूक करना ताकि यह बुरा मान  जाये| खुशिये  ने वह पत्र फाड़  दिया और नया पत्र लिख दिया जिस मै लिखा था कि मै ससुराल आ रहा हूँ मेरी तबियत ठीक नहीं है इस लिए मरे लिए सिर्फ भट्ट (काले सोयाबीन) भून कर रखना मेरे साथ मारा नौकर आ रहा है उस की  अछ्छी तरह से सेवा करना|और पत्र दे कर खुशिया वापिस आ गया|  अगले दिन जमीदार और खुसिया अपने खाने का सामान बांध कर चलने लगे तो जमीदार ने देखा कि उस के पैर नंगे हैं तो उस ने खुसिया से कहा कि घर से मेरे बूट ले आ | घर मै जमीदार की  दो पत्नियाँ थीं | खुसिया घर मै जा कर जमीदार की  पत्नियों से कहता है कि जमीदार ने आप दोनों कि नाक मागे है| अगर आप को विस्वास नहीं हो रहा है तो मै दुबारा पूछ देता हूँ और उस ने आवाज दी जमीदार जी जमीदार जी एक लाओं या दो|  जमीदार ने कहा दोनों ला एक से क्या करना है| उस ने कहा देखा जमीदार जी कह रहे हैं की दोनों  ले आ  और उसने दोनों की नाक काट कर जेब मे डाल ली| जूते उठाए और चल कर जूते जमीदार को दे दिए| आगे चल कर रस्ते मे खुशिया ने जमीदार को उसकी पत्निओं की कटी नाक जेब से निकाल कर दिखा दीं| जमीदार नाक देख कर परेसान हो गया और घर को वापिस आ गया घर आ कर देखा तो दोनों पत्नियाँ नाक के बगैर थी उस को देखकर जमीदार को बहुत दुःख हुआ| खुशिया ने जमीदार से पूछा बुरा मान गए क्या? जमीदार ने कहा बुरा मान ने की तो बात की है| सर्त के मताबिक खुशिया ने जमीदार की भी नाक काट ली|तीनों नखो को लेकर खुशिया कुशिया  के पास आ गया और कहने लगा देख तू  एक नाक कटवाके आया था मे उस के बदले मे तीन नाक ले आया हूँ| इस तरह खुशिया ने कुशिये की नाक का बदला ले लिया|
                                                     के: आर: जोशी (पाटली )
 

Sunday, June 6, 2010

जागेश्वर (नागेश्वर )

  देव भूमि उत्तराखंड सदियों से ही ऋषियों मुनियों की तपो स्थली रही है, भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोरा जिले मे जागेश्वर नाम की एक जगह है,जहाँ जागनाथ  का मन्दिर स्थित  है | जागनाथ  का मन्दिर १२ ज्योतिर्लिंगों  मे से एक है जिसे नागेश्वर (दारुकाबन)के नाम से जाना जाता है|जागेश्वर जिला मुख्यालय अल्मोरा से ३४ की;मी; की दूरी पर स्थित है जो एक संकीर्ण घाटी  मे बसा हुआ है| इस ज्योतिर्लिंग परिसर मे १२४ देवी देवताओं के मन्दिर हैं जिनमें  जागनाथ ,नव दुर्गा ,महामृत्युंजय ,केदारनाथ,कुबेर, दानेश्वर,  वृद्ध  जागेश्वर, कोटेश्वर, झाकर सैंम आदि के मन्दिर शामिल  हैं| ये सारे  मन्दिर ११वी सदी के बने हुए हैं|
जागेश्वर चारो  तरफ से ऊँचे  ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है| जो बांज बुरांश और देवदार के पौधो  से भरे हुए है| जागनाथ  से वृद्ध  जागेश्वर जाने के लिए  ३ की: मी: की चढ़ाई चढ़नी पड़ती  है| वृद्ध जागेश्वर पहाड़ी   पर स्थित है यहाँ से नंदा देवी की पहाडियों   के नज़ारे देखने को मिलते हैं जो दिल को छू जाते हैं|बसंत ऋतु मे तो यहाँ कुदरत के नज़ारे देखने को मिलते हैं  मानो कुदरत आप का स्वागत कर रही है | जगह जगह  फूल आप के ऊपर गिरते हैं और सारा जंगल बुरांश महल आदि के फूलों से लदा रहता है | यहाँ पर कई जीवन दायिनी  जड़ी  बूटियाँ भी मिलती हैं, इसी लिए इसे दारू का बन कहा गया है| जागेश्वर ७००० फुट की ऊंचाई पर है | यहाँ जंगलों मे अनेक प्रकार के जीव देखने को मिलते हैं | बाघ, भालू, लंगूर, बन्दर , जंगली सूकर, चुथराव, घुरढ़, काकढ़  आदि जंगली जीव आम बिचरते नजर आ जाते   हैं |                                                                                  जागेश्वर मे साल मे कई बार मेले लगते हैं | गर्मियों मे तो यहाँ पर सैलानियों का मेला लगा ही रहता है | शिव रात्रि को यहाँ पर बहुत बड़ा  मेला आयोजित  होता है जिस मे लोग दूर दूर से आते हैं| कई लोग यहाँ पर मन्नतें मांगने आते है तो कई लोग मन्नत पूरी होने की ख़ुशी  मे आते हैं और भगवन शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं | जो भी यहाँ सच्चे मन से मुराद मांगता है उस की मुराद भगवन शिव पूरी करते हैं| शिव भक्त सावन के महीने मे हर सोमवार को शिवजी का जल और कच्ची लस्सी से अभिषेक करते हैं, और महादेव  से अपनी अपनी इछ्छा पूरी करने की कामना करते हैं,| भगवन सदाशिव उन की कामना पूरी भी करते हैं| यहाँ के मेले मे कुमाऊ  का सभ्याचार देखने को मिलता है, लोग अपनी अपनी कला का प्रदर्शन  करके अपनी कला को उजागर करते हैं और लोगों का दिल बहलाते हैं| झोढ़ा, चांचरी  छोलिया नृत्य मुख्य आकर्षण का केन्द्र बनते हैं| गायक लोग भी यहाँ पर अपनी अपनी कविता, भगनौल,बैर आदि गाकर लोगों का समय बांध देते हैं और अपने हुनर को आगे बढ़ाते हैं|