Sunday, July 31, 2011

बैराग्य

भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद भयं
माने दैन्य भयं बले रिपुभयं रुपे जराया भयं||
शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताभ्दयं
सर्व वस्तु भयावहं भुवि नृणा बैराग्य मेवाभयं||
भोग में रोग का भय है,ऊँचे कुल में पतन का भय है, धन में राजा का भय है मान में दीनता का भय है, बल में शत्रुका भय है तथा रूप में बृद्धावस्था का भय है, शास्त्र में वाद-विवाद का भय है, गुण में दुष्ट जनों का भय है तथा शरीरमें कालका भय है| इस प्रकार संसार में मनुष्य के लिए सभी वस्तुएं भयपूर्ण हैं, भय से रहित तो केवल बैराग्य हीहै|

Saturday, July 16, 2011

"हरेला"

       हरेला कुमाऊ  का  एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो सावन के महीने मे कर्क संक्रांति को मनाया जाता है| इस दिन से ठीक दस  दिन पहले सात अनाजों को मिला कर बांस की टोकरी, लकड़ी की  फट्टी  या गत्ते का डिब्बा जो भी मौके पर उपलब्ध हो उस मे रेत  बिछा के बोया  जाता है| रोज सुबह शाम ताजा  जल लाकर उसमे डाला जाता है | इस खेती को घर के अँधेरे कोने मे रख्खा जाता है ताकि इसका रंग पीला रहे| कर्क संक्रांति के दिन घर मे   सामर्थ के मुताबिक तरह तरह के पकवान बनाए जाते है| फिर सुबह को पुरोहित जी आ कर हरेले को प्रतिष्ठित करते हैं|फिर पुरोहित जी हरेले को पहले घर मे भगवान्  जी को चढाते  हैं और इष्ट देब के मन्दिर मे चढाते  हैं| जो भी पकवान बनाए होते  है सब का भगवान को भोग लगता है| पुरोहित जी के  भोग लगाने के बाद घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को एक साथ बैठा कर हरेला लगाते हैं | हरेले को दोनों हाथों मे पकड कर पैरों पर लगाते हुए सर की और लेजाकर सर मे रख देते हैं और मुह से बोलते हैं|
           लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए  जागि रए  बची रए |
( भाव तुम लाख हरेला, लाख बग्वाली, लाख पंचिमी तक जीते रहना)
          स्यावक जसी बुध्धि  हो, सिंह जस त्राण हो|
(भाव लोमड़ी की तरह तेज बुध्धि  हो और शेर की तरह बलवान हो )
          दुब जैस पनपिये, आसमान  बराबर उच्च है जाए, धरती बराबर चाकौव है जाए|
(भाव दुब की तरह फूटना , आसमान  बराबर ऊँचा होजाना, धरती के बराबर चौड़ा हो जाना|)  
         आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए|
(भाव अपने गांव का प्रधान  बनना और इतने बूढ़े  हो जाना की खाना भी पीस कर खाना|)
         जान्ठी  टेकि झाड़ी जाये , जी रए  जागि  रए  बची रए  |
(भाव छड़ी ले कर जंगल पानी जाना, इतनी लम्बी उम्र तक जीते रहना जागते रहना.|)
        सब को हरेला  लगाने के बाद भगवान  को लगाया गया भोग सब बच्चों मे बाँट दिया जाता है| लड़के हरेले को अपने कान मे टांग लेते हैं  और लड़कियां हरेले को अपनी धपेली के साथ गूँथ लिया करती हैं|

        आज मुझे भी अपना बचपन याद आ गया है जब हमारी आमा (दादी) जिन्दा हुआ करती थीं | हम छोटे छोटे बच्चे थे जब खाने पीने की कोई चीज घर मे बनती थी तो पहले हम बच्चों को ही दी जाती थी| पर हरेले के दिन जब तक पुरोहित जी नहीं आते थे किसी को कुछ नही मिलता था|जब हम आमा से खाने को मांगते थे तो आमा कहती थीं '"इजा लुह्न्ज्यु कै ओन दे, हर्याव लगे बेर फिर दयूल| कहने का मतलब था कि पुरोहित जी जोकि लोहनी थे उनको आलेने दे हरेला लगाकर फिर  खाने  को दुगी | काश ! कि वो  बचपन फिर लौट आता?
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
                                            

Friday, July 8, 2011

नीचा सिर क्यों?

             एक सज्जन बड़े ही दानी थे, उन का हाथ सदा ही ऊँचा रहता था; परन्तु वे किसी की ओर नज़र उठाकर देखते नहीं थे| एक दिन किसी ने उनसे कहा--"आप इतना देते हैं पर आखें नीची क्यों रखते हैं? चेहरा न देखने से आप किसी को पहचान नहीं पाते, इसलिए कुछ लोग आप से दुबारा भी ले जाते हैं"| इसपर उन्हों ने कहा-- भाई! में देने वाला कौन हूँ?
                   
                      देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन| 
                      लोग भरम हम पर धरें याते नीचे नैन||
         
            देने वाला तो कोई दूसरा (भगवान) ही है| में तो निमित्त मात्र हूँ| लोग मुझे दाता कहते हैं|  इसलिए शर्म के मारे मैं आखें ऊँची नहीं कर सकता|