tag:blogger.com,1999:blog-27476186646871803942024-03-13T08:03:32.270-07:00PataliPatali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.comBlogger123125tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-46167374383828351352015-08-22T06:40:00.000-07:002015-08-22T06:40:09.502-07:00'सफल जीवन'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 12px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 14.6181812286377px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
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<br />
<div class="_1dwg" style="background-color: white; orphans: auto; padding: 12px 12px 0px; text-align: left; text-indent: 0px; widows: 1;">
<div class="_5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}" style="overflow: hidden;">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_55d87684e897e4479562318" style="display: inline;">
<span style="color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif;"><div style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
एक बेटे ने पिता से पूछा - पापा ये 'सफल जीवन' क्या होता है ? पापा ने कहा आओ बताता हूँ । </div>
<div style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
पिता, बेटे को पतंग उड़ाने ले गए। बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था! थोड़ी देर बाद बेटा बोला, पापा जी ये धागे की वजह से पतंग और ऊपर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें !! ये और ऊपर चली जाएगी ! पिता ने धागा तोड़ दिया! पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आइ और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई, तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया ! बेटा:- 'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं, हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं जैसे :</div>
<div style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता आदि और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं। </div>
<div style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
वास्तव में यही वो धागे होते हैं जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा जो <span style="line-height: 19.3199996948242px;">बिन धागे की पतंग का हुआ। </span></div>
<div style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px; margin-bottom: 6px;">
"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना|</div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<span style="font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">" धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही 'सफल जीवन' कहते हैं। </span></div>
</span></div>
<div class="" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 1.38; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;">
</div>
</div>
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 12px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 14.6181812286377px; text-transform: none; white-space: normal; word-spacing: 0px;">
<div data-ft="{"tn":"H"}">
</div>
</div>
</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-62736016664559050982015-05-08T08:38:00.000-07:002015-05-08T08:38:03.836-07:00*एक पते की बात*<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक घर के मुखिया को यह अभिमान हो गया कि उसके बिना उसके परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी सी दुकान थी। उससे जो आय होती थी, उसी से उसके परिवार का गुजारा चलता था।चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता। वह लोगों के सामने डींग हांका करता था। एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, “दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता। यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा।सभी को अपने भाग्य के अनुसार प्राप्त होता है।” सत्संग समाप्त होने के बाद मुखिया ने संत से कहा, “मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है।मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।”</div>
<div style="text-align: justify;">
संत बोले, “यह तुम्हारा भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।” इस पर मुखिया ने कहा, “आप इसे प्रमाणित करके दिखाइए।"</div>
<div style="text-align: justify;">
संत ने कहा, “ठीक है। तुम बिना किसी को बताए घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ।" उसने ऐसा ही किया। संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने अपना भोजन बना लिया है। मुखिया के परिवार वाले कई दिनों तक शोक संतप्त रहे। गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए।</div>
<div style="text-align: justify;">
एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया और उनके दिन फिर मजे में गुजरने लगे। एक महीने बाद मुखिया छिपता -छिपाता रात के वक्त अपने घर आया।</div>
<div style="text-align: justify;">
घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा नहीं खोला। जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सारी बातें बताईं तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया,</div>
<div style="text-align: justify;">
‘हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं।’ उस व्यक्ति का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया। संसार किसी के लिए भी नही रुकता!</div>
<div style="text-align: justify;">
यहाँ सभी के बिना काम चल सकता है संसार सदा से चला आ रहा है और चलता रहेगा। जगत को चलाने की हामी भरने वाले बड़े- बड़े सम्राट मिट्टी हो गए। जगत उनके बिना भी चला है और आगे भी चलता रहेगा। फिर किस बात पर अभिमान करना।</div>
<div style="text-align: justify;">
इसीलिए अपने बल का, अपने धन का, अपने कार्यों का, अपने ज्ञान का गर्व व्यर्थ है।</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-3837344683632138562015-01-24T22:27:00.002-08:002015-01-24T22:27:43.041-08:00~*~ काँच की बरनी और दो कप चाय ~*~<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची। उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ! आवाज आई !!<br />
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ कहा !! अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे !!<br />
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ अब तो पूरी भर गई है, सभी ने एक स्वर में कहा !!<br />
सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई !!<br />
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो, टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं , छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है !!<br />
अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी !!<br />
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ;-<br />
यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा !<br />
मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ, टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है, पहले तय करो कि क्या जरूरी है, बाकी सब तो रेत है !<br />
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे :-<br />
अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ?<br />
प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले ; मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया, इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-86279944788410268232014-11-24T02:18:00.000-08:002014-11-24T02:18:47.453-08:00बुझी मोमबत्ती<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; margin-bottom: 1em; margin-top: 1em; text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;"><span style="background-color: white; color: #60636d;"> </span></span><span style="background-color: white; color: #60636d; line-height: 15.3599996566772px; text-align: left;">एक पिता अपनी चार वर्षीय बेटी मिनी से बहुत प्रेम करता था। ऑफिस से लौटते वक़्त वह रोज़ उसके लिए तरह-तरह के खिलौने और खाने-पीने की चीजें लाता था। बेटी</span><span style="background-color: white; color: #60636d; line-height: 15.3599996566772px; text-align: left;"> </span><span class="text_exposed_show" style="color: #60636d; display: inline; line-height: 15.3599996566772px; text-align: left;">भी अपने पिता से बहुत लगाव रखती थी और हमेशा अपनी तोतली आवाज़ में पापा-पापा कह कर पुकारा करती थी।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #60636d; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 12px; line-height: 15.3599996566772px; margin-bottom: 1em; margin-top: 1em;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">दिन अच्छे बीत रहे थे की अचानक एक दिन मिनी को बहुत तेज बुखार हुआ, सभी घबरा गए , वे दौड़े भागे डॉक्टर के पास गए , पर वहां ले जाते-ले जाते मिनी की मृत्यु हो गयी।</span></div>
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">परिवार पे तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ा और पिता की हालत तो मृत व्यक्ति के समान हो गयी। मिनी के जाने के हफ़्तों बाद भी वे ना किसी से बोलते ना बात करते, बस रोते ही रहते। यहाँ तक की उन्होंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया और घर से निकलना भी बंद कर दिया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">आस-पड़ोस के लोगों और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की पर वे किसी की ना सुनते , उनके मुख से बस एक ही शब्द निकलता! मिनी !</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">एक दिन ऐसे ही मिनी के बारे में सोचते-सोचते उनकी आँख लग गयी और उन्हें एक स्वप्न आया।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">उन्होंने देखा कि स्वर्ग में सैकड़ों बच्चियां परी बन कर घूम रही हैं, सभी सफ़ेद पोशाकें पहने हुए हैं और हाथ में मोमबत्ती ले कर चल रही हैं। तभी उन्हें मिनी भी दिखाई दी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">उसे देखते ही पिता बोले , ” मिनी , मेरी प्यारी बच्ची , सभी परियों की मोमबत्तियां जल रही हैं, पर तुम्हारी बुझी क्यों हैं , तुम इसे जला क्यों नहीं लेती ?”</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">मिनी बोली, ” पापा, मैं तो बार-बार मोमबत्ती जलाती हूँ , पर आप इतना रोते हो कि आपके आंसुओं से मेरी मोमबत्ती बुझ जाती है|</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">ये सुनते ही पिता की नींद टूट गयी। उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया , वे समझ गए की उनके इस तरह दुखी रहने से उनकी बेटी भी खुश नहीं रह सकती , और वह पुनः सामान्य जीवन की तरफ बढ़ने लगे।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 15.3599996566772px;">मित्रों, किसी करीबी के जाने का ग़म शब्दों से बयान नहीं किया जा सकता। पर कहीं ना कहीं हमें अपने आप को मजबूत करना होता है और अपनी जिम्मेदारियों को निभाना होता है। और शायद ऐसा करना ही मरने वाले की आत्मा को शांति देता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जो हमसे प्रेम करते हैं वे हमे खुश ही देखना चाहते हैं|</span></div>
</span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-14468166289082092552014-11-07T02:03:00.001-08:002014-11-07T02:03:42.780-08:00बदकिस्मत कौन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;" />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"> एक बार यात्रियों से भरी एक बस कहीं जा रही थी। </span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">अचानक मौसम बदला धुलभरी आंधी के बाद बारिश </span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">की बूंदे गिरने लगी बारिश तेज होकर तूफान मे बदल </span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">चुकी थी </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;">घनघोर अंधेरा छा गया भयंकर बिजली चमकने लगी बिजली कडककर बस की तरफ आती और वापस चली जाती ऐसा कई बार हुआ सब की सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। ड्राईवर ने आखिरकार बस को एक बडे से पेड से करीब पचास कदम की दूरी पर रोक दी और यात्रियों से कहा कि इस बस मे कोई ऐसा यात्री बैठा है जिसकी मौत आज निश्चित है उसके साथ साथ कहीं हमे भी अपनी जिन्दगी से हाथ न धोना पडे इसलिए सभी यात्री एक एक कर जाओ और उस पेड के हाथ लगाकर आओ जो भी बदकिस्मत होगा उस पर बिजली गिर जाएगी और बाकी सब बच जाएंगे। सबसे पहले जिसकी बारी थी उसको दो तीन यात्रियों ने जबरदस्ती धक्का देकर बस से नीचे उतारा वह धीरे धीरे पेड तक गया डरते डरते पेड के हाथ लगाया और भाग कर आकर बस मे बैठ गया।</span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.3199996948242px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.3199996948242px;"> ऐसे ही एक एक कर सब जाते और भागकर आकर </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">बस मे बैठ चैन की सांस लेते। </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">अंत मे केवल एक आदमी बच गया उसने </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">सोचा तेरी मौत तो आज निश्चित है सब उसे </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">किसी अपराधी की तरह देख रहे थे जो आज उन्हे </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">अपने साथ ले मरता उसे भी जबरदस्ती बस से नीचे </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">उतारा गया वह भारी मन से पेड के पास पहुँचा </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">और जैसे ही पेड के हाथ लगाया तेज आवाज से </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">बिजली कडकी और बिजली बस पर गिर गयी बस धूं </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">धूं कर जल उठी सब यात्री मारे गये सिर्फ उस एक </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">को छोडकर से सब बदकिस्मत मान रहे थे </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">वो नही जानते थे कि उसकी वजह से ही सबकी जान </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">बची हुई थी।</span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 19.3199996948242px;"> "दोस्तो हम सब अपनी सफलता का श्रेय खुद </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">लेना चाहते है जबकि क्या पता हमारे साथ रहने वाले </span><span style="line-height: 19.3199996948242px;">की वजह से हमे यह हासिल हो पाया हो।"</span></div>
</span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-16528020469548856352014-10-04T05:58:00.002-07:002014-10-04T05:58:34.562-07:00बाड़े की कील<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक लड़का रहता था. वह बहुत ही गुस्सैल था, छोटी-छोटी बात पर अपना आप खो बैठता और लोगों को भला-बुरा कह देता. उसकी इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पिता ने उसे कीलों से भरा हुआ एक थैला दिया और कहा कि , ” अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और बाड़े में ठोक देना.”</div>
<div style="text-align: justify;">
पहले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा किया और इतनी ही कीलें बाड़े में ठोंक दी.पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या घटने लगी,उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में उसने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक काबू करना सीख लिया. और फिर एक दिन ऐसा आया कि उस लड़के ने पूरे दिन में एक बार भी गुस्सा नहीं किया.</div>
<div style="text-align: justify;">
जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने कहा कि ,” अब हर उस दिन जिस दिन तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस बाड़े से एक कील निकाल निकाल देना.”</div>
<div style="text-align: justify;">
लड़के ने ऐसा ही किया, और बहुत समय बाद वो दिन भी आ गया जब लड़के ने बाड़े में लगी आखिरी कील भी निकाल दी, और अपने पिता को ख़ुशी से ये बात बतायी.</div>
<div style="text-align: justify;">
तब पिताजी उसका हाथ पकड़कर उस बाड़े के पास ले गए, और बोले, ” बेटे तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो. अब वो बाड़ा कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था.जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं.”</div>
<div style="text-align: justify;">
इसलिए अगली बार अपना गुस्सा ठंडा करने से पहले सोचिये कि क्या आप भी उस बाड़े में और कीलें ठोकना चाहते हैं !!</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-76978594170816639302014-08-24T03:45:00.000-07:002014-08-24T03:45:30.909-07:00 हनुमान जी के अहंकार का नाश !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"> जब समुद्र पर सेतुबंधन का कार्य हो रहा था तब भगवान राम ने वहाँ गणेशजी और नौ ग्रहों की स्थापना के पश्चात शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमानजी को काशी भेजा। हनुमानजी पवन वेग से काशी जा पहुँचे। उन्हें देख भोलेनाथ बोले- “पवनपुत्र!” दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान राम मेरी ही इच्छा पूर्ण कर रहे हैं क्योंकि महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल पर्वत को झुकाकर वहाँ प्रस्थान तो कर गए लेकिन वे मेरी प्रतीक्षा में हैं। इसलिए मुझे भी वहाँ जाना था। तुम शीघ्र ही मेरे प्रतीक को वहाँ ले जाओ। यह बात सुनकर हनुमान गर्व से फूल गए और सोचने लगे कि केवल वे ही यह कार्य शीघ्र-अतिशीघ्र कर सकते हैं।</span></div>
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान भी अहंकार के पाश में बंध गए थे। अतः भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वारनराज सुग्रीव को बुलवाया और कहा-“हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ।”</div>
</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा-अर्चनादि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। ऋषि-मुनियों को दक्षिणा देने के लिए श्रीराम ने कौस्तुम मणि का स्मरण किया तो वह मणि उनके समक्ष उपस्थित हो गई। भगवान श्रीराम ने उसे गले में धारण किया। मणि के प्रभाव से देखते-ही-देखते वहाँ दान-दक्षिणा के लिए धन, अन्न, वस्त्र आदि एकत्रित हो गए। उन्होंने ऋषि-मुनियों को भेंटें दीं। फिर ऋषि-मुनि वहाँ से चले गए।</div>
</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
मार्ग में हनुमानजी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से पधार रहे हैं? उन्होंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले-“भगवन! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किसलिए भेजा था? आपने मेरा और मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है।”</div>
</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
श्रीराम मुस्कराते हुए बोले-“पवनपुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो, मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहाँ स्थापित कर देता हूँ।” हनुमान प्रसन्न होकर बोले-“ठीक है भगवन! मैं अभी इस शिविलंग को उखाड़ फेंकता हूँ।”</div>
</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
उन्होंने शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाड़ने का प्रयास किया। किंतु वह नहीं उखड़ा। अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।</div>
</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.31999969482422px;"><div style="text-align: justify;">
इस प्रकार हनुमान ने अहम का नाश हुआ। श्रीराम ने जहाँ बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि ‘इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे।’ यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ है|</div>
</span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-60381106027231622572014-06-25T08:58:00.001-07:002014-06-25T08:58:08.264-07:00शिष्योँ की परीक्षा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक बार गुरुकुल में तीन शिष्यों की विदाई का अवसर आया तो आचार्य बहुश्रुत ने कहा की सुबह मेरी कुटिया में आना , तुम्हारी अंतिम परीक्षा होगी। आचार्य बहुश्रुत ने रात्रि में कुटिया के मार्ग पर कांटे बिखेर दिए । सुबह तीनों शिष्य अपने-अपने घर से गुरु के निवास की ओर चल पड़े।</div>
<div style="text-align: justify;">
मार्ग पर कांटे थे। लेकिन शिष्य भी कमजोर नहीं थे। पहला शिष्य कांटों की चुभन के बावजूद कुटिया तक पहुंच गया। दूसरा शिष्य कांटो से बचकर आया। फिर भी एक कांटा तो चुभ ही गया। तीसरे शिष्य ने कांटे देखे तो कांटों की डालियों को घसीट कर दूर फेंक दिया। फिर हाथ मुंह धोकर कुटिया तक तीनों गए। आचार्य बहुश्रुत तीनों की गतिविधियां गौर से देख रहे थे। तीसरा शिष्य ज्यों ही आया, त्यों ही उन्होंने कुटिया के द्वार खोल दिए और बोले- वत्स, तुम मेरी अंतिम परीक्षा में उतीर्ण हो गए हो।</div>
<div style="text-align: justify;">
गुरु ने कहा कि ज्ञान वही है जो व्यवहार में काम आए। तुम्हारा ज्ञान व्यावहारिक हो गया है। तुम संसार में रहोगे तो तुम्हें कांटे नहीं चुभेंगे और तुम दूसरों को भी चुभने नहीं दोगे। फिर पहले और दूसरे शिष्य की ओर देखकर बोले, तुम्हारी शिक्षा अभी अधूरी है।<br /> संक्षेप में ज्ञान वही है जो व्यावहारिक रूप से उपयोग में लिया जा सके। इसलिए सदैव हमें व्यावहारिकता को पहले पायदान में रखना चाहिए। कुछ समय और परिस्थितयां अपवाद स्वरूप बन सकती हैं।</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-73182669229435262482014-05-10T01:40:00.001-07:002014-05-10T01:40:33.163-07:00चित्रकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक नगर में एक मशहूर चित्रकार रहता था । चित्रकार ने एक बहुत सुन्दर तस्वीर बनाई और उसे नगर के चौराहे मे लगा दिया और नीचे लिख दिया कि जिस किसी को , जहाँ भी इस में कमी नजर आये वह वहाँ निशान लगा दे । जब उसने शाम को तस्वीर देखी उसकी पूरी तस्वीर पर निशानों से ख़राब हो चुकी थी । <br /> यह देख वह बहुत दुखी हुआ । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे वह दुःखी बैठा हुआ था । <br /> तभी उसका एक मित्र वहाँ से गुजरा उसने उस के दुःखी होने का कारण पूछा तो उसने उसे पूरी घटना बताई । <span class="text_exposed_hide">...</span><span class="text_exposed_show"><br /> उसने कहा एक काम करो कल दूसरी तस्वीर बनाना और उस मे लिखना कि जिस किसी को इस तस्वीर मे जहाँ कहीं भी कोई कमी नजर आये उसे सही कर दे । <br /> उसने अगले दिन यही किया । शाम को जब उसने अपनी तस्वीर देखी तो उसने देखा की तस्वीर पर किसी ने कुछ नहीं किया । <br /> वह संसार की रीति समझ गया । "कमी निकालना , निंदा करना , बुराई करना आसान , लेकिन उन कमियों को दूर करना अत्यंत कठिन होता है|</span></div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-32079017434507036052014-03-25T18:26:00.000-07:002014-03-25T18:26:41.391-07:00जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया । वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटतेहैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सुई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं। जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया । उत्तर था- </div>
<div style="text-align: justify;">
बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है। यही कारण है कि मैं सुई को टोपी परलगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं। </div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-44165472051537099542014-02-15T19:16:00.000-08:002014-02-15T19:16:52.118-08:00होली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग<br />अबीर उड़ता गुलाल उड़ता, उड़ते सातों रंग<br />भर पिचकारी ऐसी मारी, अंगियां हो गयी तंग<br />ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग<br />तबला बाजे, सारंगी बाजे, और बाजे मिरदंग <br />कान्हा जी की बंसी बाजे, राधा जी के संग<br />ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग<br />कोरे कोरे माट मंगाये, तापर घोला रंग<br />भर पिचकारी सनमुख मारी, सखिंया हो गयी तंग <br />ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग<br />लंहगा तेरा घूम घुमेला, चोली तेरी तंग<br />खसम तुम्हारा बड़ा निखट्ठू , चलो हमारे संग <br />ब्रिज में होली कैसे खेलूं मैं लाला सांवरियां के संग</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-1066469575097951872014-01-26T23:10:00.001-08:002014-01-26T23:10:21.289-08:00प्रभु की सीख <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52e603f651c703820659286" style="text-align: justify;">
एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी<span class="text_exposed_hide">...</span><span class="text_exposed_show">| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते?</span></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show"> एक दिन उससे न रहा गया| वह भिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?" भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं|</span></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed" style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show"> शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|" लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|</span></div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-24086757106853889632013-11-13T07:19:00.000-08:002013-11-13T07:19:27.050-08:00ज्ञान का अंदाज़<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_527789c7e4adc9e53936702">
<div style="text-align: justify;">
जिन्दगी में सीखने कि लिए सदैव तत्पर रहना चाहिये. एक ट्रक ड्राइवर अपने सामान डिलेवरी करने के लिए मेंटल हॉस्पिटल गया। सामान डिलेवरी के पश्चात वापस लौटते समय उसने देखा कि उसके ट्रक का एक पहिया पंचर हो गया। ड्राइवर ने स्टेपनी निकाल कर पहिया खोला पर गलती से उसके हाथ से पहिये कसने के चारों बोल्ट पास की गहरी नाली में गिर गए जहाँ से निकालना संभव न था। अब ड्राइवर बहुत ही परेशान हो गया कि वापस कैसे जाए।</div>
<div style="text-align: justify;">
इतने में पास से मेंटल हॉस्पिटल का एक मरीज गुजरा। उसने ड्राइवर से कहा कि क्या बात है। ड्राइवर ने मरीज को बहुत ही हिकारत से देखते हुए सोचा कि यह पागल क्या कर लेगा। फिर भी उसने मरीज को पूरी बात बता दी. मरीज ने ड्राइवर के ऊपर हँसते हुए कहा कि तुम इतनी छोटी समस्या का समाधान भी नहीं कर सकते हो और इसीलिये तुम ड्राइवर ही हो। ड्राइवर को एक पागलपन के मरीज से इस प्रकार का संबोधन अच्छा नहीं लगा और उसने मरीज से चेतावनी भरे शब्दों में पूछा कि तुम क्या कर सकते हो?</div>
<div style="text-align: justify;">
मरीज ने जवाब दिया कि बहुत ही साधारण बात है। बाकी के तीन पहियों से एक एक बोल्ट निकाल कर पहिया कस लो और फिर नजदीक की ऑटो पार्ट की दुकान के पास जाकर नए बोल्ट खरीद लो। ड्राइवर इस सुझाव से बहुत ही प्रभावित हुआ और उसने मरीज से पूछा कि तुम इतने बुद्धिमान हो फिर इस हॉस्पिटल में क्यों हो? मरीज ने जवाब दिया कि, "मैं सनकी हूँ पर मूर्ख नहीं." कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ लोग ट्रक ड्राइवर की तरह व्यवहार करते हैं, सोचते हैं कि दूसरे लोग मूर्ख हैं. अतः हम सब ज्ञानी और पढ़ें लिखे हैं, पर निरीक्षण करें कि हमारे आस् पास इस प्रकार के सनकी व्यक्ति भी रहते हैं जिनसे ढेर सारे व्यावहारिक जीवन के नुस्खे मिल सकते हैं और जो हमारी बुद्धिमत्ता को ललकारते रहेंगे।</div>
<div style="text-align: justify;">
कहानी से सीख :-- कभी भी यह न सोचे कि आपको सब कुछ आता है और दूसरे लोगों को उनके बाहरी आवरण के आधार पर उनके ज्ञान का अंदाज़ न लगाये.</div>
</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-58803794637969554052013-11-01T09:45:00.001-07:002013-11-01T09:45:25.641-07:00आज ही क्यों नहीं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि अपने पर्यावरण के प्रति भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |</div>
<div style="text-align: justify;">
एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस्तु को तुम इससे स्पर्श करोगे, वह स्वर्ण में परिवर्तित हो जायेगी| पर याद रहे कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पश्चात मैं इसे तुमसे वापस ले लूँगा|’ शिष्य इस सुअवसर को पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ लेकिन आलसी होने के कारण उसने अपना पहला दिन यह कल्पना करते-करते बिता दिया कि जब उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होगा तब वह कितना प्रसन्न, सुखी,समृद्ध और संतुष्ट रहेगा, इतने नौकर-चाकर होंगे कि उसे पानी पीने के लिए भी नहीं उठाना पड़ेगा | फिर दूसरे दिन जब वह प्रातःकाल जागा,उसे अच्छी तरह से स्मरण था कि आज स्वर्ण पाने का दूसरा और अंतिम दिन है |उसने मन में पक्का विचार किया कि आज वह गुरूजी द्वारा दिए गये काले पत्थर का लाभ ज़रूर उठाएगा |</div>
<div style="text-align: justify;">
उसने निश्चय किया कि वो बाज़ार से लोहे के बड़े-बड़े सामान खरीद कर लायेगा और उन्हें स्वर्ण में परिवर्तित कर देगा. दिन बीतता गया, पर वह इसी सोच में बैठा रहा की अभी तो बहुत समय है, कभी भी बाज़ार जाकर सामान लेता आएगा. उसने सोचा कि अब तो दोपहर का भोजन करने के पश्चात ही सामान लेने निकलूंगा.पर भोजन करने के बाद उसे विश्राम करने की आदत थी , और उसने बजाये उठ के मेहनत करने के थोड़ी देर आराम करना उचित समझा. पर आलस्य से परिपूर्ण उसका शरीर नीद की गहराइयों में खो गया, और जब वो उठा तो सूर्यास्त होने को था. अब वह जल्दी-जल्दी बाज़ार की तरफ भागने लगा, पर रास्ते में ही उसे गुरूजी मिल गए उनको देखते ही वह उनके चरणों पर गिरकर, उस जादुई पत्थर को एक दिन और अपने पास रखने के लिए याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने और उस शिष्य का धनी होने का सपना चूर-चूर हो गया |</div>
<div style="text-align: justify;">
पर इस घटना की वजह से शिष्य को एक बहुत बड़ी सीख मिल गयी: उसे अपने आलस्य पर पछतावा होने लगा, वह समझ गया कि आलस्य उसके जीवन के लिए एक अभिशाप है और उसने प्रण किया कि अब वो कभी भी काम से जी नहीं चुराएगा और एक कर्मठ, सजग और सक्रिय व्यक्ति बन कर दिखायेगा. मित्रों, जीवन में हर किसी को एक से बढ़कर एक अवसर मिलते हैं , पर कई लोग इन्हें बस अपने आलस्य के कारण गवां देते हैं. इसलिए मैं यही कहना चाहता हूँ कि यदि आप सफल, सुखी, भाग्यशाली, धनी अथवा महान बनना चाहते हैं तो आलस्य और दीर्घसूत्रता को त्यागकर, अपने अंदर विवेक, कष्टसाध्य श्रम,और सतत् जागरूकता जैसे गुणों को विकसित कीजिये और जब कभी आपके मन में किसी आवश्यक काम को टालने का विचार आये तो स्वयं से एक प्रश्न कीजिये – “आज ही क्यों नहीं ?”</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-5607689634126245772013-10-14T03:10:00.001-07:002013-10-14T03:10:11.023-07:00गुरु नानक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">गुरु नानक तीर्थाटन करते हुए मक्का-शरीफ पधारे। रात हो गई थी, अतः वे समीप ही एक वृक्ष के नीचे सो गए।</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया। उनमें से एक ने नानक देव को उठा देख डांटकर पूछा, 'कौन हो जी तुम, जो खुदा पाक के घर की ओर पांव किए सो रहे हो?'</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">बात यह थी कि नानक देव के पैर जिस ओर थे, उस ओर काबा था। नानक देव ने उत्तर दिया, 'जी, मैं एक मुसाफिर हूं, गलती हो गई। आप इन पैरों को उस ओर कर दें जिस ओर खुदा का घर नहीं हो।'</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">यह सुनते ही उस मुल्ला ने गुस्से से पैर खींचकर दूसरी ओर कर दिए किंतु सबको यह देख आश्चर्य हुआ कि उनके पैर अब जिस दिशा की ओर किए गए थे, काबा भी उसी तरफ है। वह मुल्ला तो आग बबूला हो उठा और उसने उनके पैर तीसरी दिशा की ओर कर दिए किंतु यह देख वह दंग रह गया कि काबा भी उसी दिशा की ओर है।</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">सभी मुल्लाओं को लगा कि यह व्यक्ति जरूर ही कोई जादूगर होगा। वे उन्हें काजी के पास ले गए और उससे सारा वृत्तांत कह सुनाया। काजी ने नानकदेव से प्रश्न किया, 'तुम कौन हो, हिंदू या मुसलमान?'</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">'जी, मैं तो पांच तत्वों का पुतला हूं'- उत्तर मिला।</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">'फिर तुम्हारे हाथ में पुस्तक कैसे है?'</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">'यह तो मेरा भोजन है। इसे पढ़ने से मेरी भूख मिटती है।'</span><br />
<br style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;" />
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px;">इन उत्तरों से ही काजी जान गया कि यह साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि कोई पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने उनका आदर किया और उन्हें तख्त पर बिठाया।</span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-66329785293685936132013-10-09T00:34:00.000-07:002013-10-09T00:34:27.442-07:00विश्वास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी| दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी| आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी| एक दिन वह एक पार्क में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था| तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे| कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे. बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी| बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो| मेरा नाम जोहन डी रोकेफिलर है| मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो| इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.” फिर जेब से चैक बुक निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे| तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.” इतना कहकर वो चले गए| युवक अचम्भित था| रोकेफिलर तब अमेरिका के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे| युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी| उसके पैरो को पंख लग गये| घर पहुंचकर वह अपने कर्जो का हिसाब लगाने लगा|</div>
<div style="text-align: justify;">
बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है| अचानक उसके मन में ख्याल आया. उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझपे भरोसा किया, पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ| यह ख्याल आते ही उसने चेक को संभाल कर रख लिया| उसने निश्चय कर लिया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा, पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से निकल जाए| उसके बाद भी अगर कोई चारा न बचे तो वो चैक इस्तेमाल करेगा| उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया| बस एक ही धुन थी, किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं| उसकी कोशिशे रंग लाने लगी| कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा| साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था|</div>
<div style="text-align: justify;">
निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया| वह चेक लेकर रोकेफिलर की राह देख रहा था की वे दूर से आते दिखे| जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया| उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते हुए आई और झपट्टा मरकर वृद्ध को पकड़ लिया| युवक हैरान रह गया| नर्स बोली, “यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता हैं और लोगो को जॉन डी . रोकेफिलर के रूप में चैक बाँटता फिरता हैं. ” अब वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान रह गया| जिस चैक के बल पर उसने अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा किया,वह फर्जी था| पर यह बात जरुर साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती हैं| हम सभी यदि खुद पर विश्वास रखे तो यक़ीनन किसी भी असुविधा से सेनिपट सकते है| </div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-91589337196141605732013-10-01T03:43:00.002-07:002013-10-01T03:43:31.683-07:00 लक्ष्य <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"> किसी गाँव मे एक साधु रहा करता था ,वो जब भी नाचता तो बारिस होती थी . अतः गाव के लोगों को जब भी बारिस की जरूरत होती थी ,तो वे लोग साधु के पास जाते और उनसे अनुरोध करते की वे नाचे , और जब वो नाचने लगता तो बारिस ज़रूर होती.</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;">कुछ दिनों बाद चार लड़के शहर से गाँव में घूमने आये, जब उन्हें यह बात मालूम हुई की किसी साधू के नाचने से बारिस होती है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ .</span><br />
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"> शहरी पढाई लिखाई के घमंड में उन्होंने गाँव वालों को चुनौती दे दी कि हम भी नाचेंगे तो बारिस होगी और अगर हमारे नाचने से नहीं हुई तो उस साधु के नाचने से भी नहीं होगी. </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;">फिर क्या था अगले दिन सुबह-सुबह ही गाँव वाले उन लड़कों को लेकर साधु की कुटिया पर पहुंचे. </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;">साधु को सारी बात बताई गयी , फिर लड़कों ने नाचना शुरू किया , आधे घंटे बीते और पहला लड़का थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे , कुछ देर में दूसरे ने भी यही किया और एक घंटा बीतते-बीतते बाकी दोनों लड़के भी थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई.</span><br />
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"> अब साधु की बारी थी , उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई, साधु नाचता रहा …दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई….पर साधु तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ,धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहत सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी . लड़के दंग रह गए और तुरंत साधु से क्षमा मांगी और पूछा- ” बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिस नहीं हुई और आपके नाचने से हो गयी ?”<br /> साधु ने उत्तर दिया – ” जब मैं नाचता हूँ तो दो बातों का ध्यान रखता हूँ , पहली बात मैं ये सोचता हूँ कि अगर मैं नाचूँगा तो बारिस को होना ही पड़ेगा और दूसरी ये कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक कि बारिस न हो जाये .”<br /> सफलता पाने वालों में यही गुण विद्यमान होता है वो जिस चीज को करते हैं उसमे उन्हें सफल होने का पूरा यकीन होता है और वे तब तक उस चीज को करते हैं जब तक कि उसमे सफल ना हो जाएं. इसलिए यदि हमें सफलता हांसिल करनी है तो उस साधु की तरह ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा.</span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-32959644456555866512013-09-25T20:07:00.004-07:002013-09-25T20:07:36.083-07:00अर्जुन का अहंकार <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी। अर्जुन ने उससे पूछा, ‘आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?’ ब्राह्मण ने जवाब दिया, ‘मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।’ आपके शत्रु कौन हैं? अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की। ब्राह्मण ने कहा, ‘मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है।नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं। फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।’</div>
<div style="text-align: justify;">
आप का तीसरा शत्रु कौन है? अर्जुन ने पूछा। वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिएविवश किया। और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा।कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को।’ यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए। यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, ‘मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।</div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-32859672084781760862013-09-20T22:14:00.002-07:002013-09-20T22:14:55.730-07:00 अटूट विश्वास<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"> </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"> एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था | उसका भागवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे|</span></div>
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई | चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे | जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी| पर साधु ने कहा- ” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!” <span class="text_exposed_show" style="display: inline;">धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया , और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा , इतने में वहां से एक नाव गुजरी| </span><span class="text_exposed_show" style="display: inline;">मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा |” “नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !! “, साधु ने उत्तर दिया. नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया.</span></div>
</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline;"><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"><br /></span></div>
<span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी , साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा | तभी अचानक उन्हें गड़गडाहत की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया| पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा |” उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया | कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी |</div>
</span><span style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु ? भगवान बोले , ” हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया , पहला, ग्रामीणों के रूप में , दूसरा नाव वाले के रूप में , और तीसरा ,हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में. किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए |”</div>
</span><span class="userContent" style="color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"><div style="text-align: justify;">
<span class="userContent"><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_523d23cda3ee37e56155537" style="display: inline;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"> इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है , इन अवसरों की प्रकृति कुछ ऐसी होती है कि वे किसी की प्रतीक्षा नहीं करते है , वे एक दौड़ते हुआ घोड़े के सामान होते हैं जो हमारे सामने से तेजी से गुजरते हैं , यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है, अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है|</span></div>
</span><span class="userContentSecondary"><span class="fcg" style="color: grey;"> </span></span></div>
</span></span></div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-40587216261355595982013-09-15T21:30:00.002-07:002013-09-15T21:30:28.644-07:00 धन, सफलता और प्रेम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17px;"> </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"> एक दिन एक औरत अपने घर के बाहर आई और उसने तीन </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;">संतों को अपने घर के सामने देखा। वह उन्हें जानती नहीं थी। </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;">औरत ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”</span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;">संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?” </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;">औरत ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;">संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे जब वह घर पर हों।” शाम को उस औरत का पति घर आया और औरत ने उसे यह सब बताया। औरत के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।” औरत बाहर गई और उनको भीतर आने के लिए कहा। संत बोले – “हम सब किसी भी घर में एक साथ नहीं जाते।” “पर क्यों?” – औरत ने पूछा। उनमें से एक संत ने कहा – “मेरा नाम धन है” – फ़िर दूसरे संतों की ओर इशारा कर के कहा – “इन दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।” औरत ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया। उसका पति बहुत प्रसन्न हो गया और बोला – “यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। हमारा घर खुशियों से भर जाएगा।” लेकिन उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।” </span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 17px;"> उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।” “तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” – उसके माता-पिता ने कहा। औरत घर के बाहर गई और उसने संतों से पूछा – “आप में से जिनका नाम प्रेम है वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।” प्रेम घर की ओर बढ़ चले। बाकी के दो संत भी उनके पीछे चलने लगे। औरत ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने तो सिर्फ़ प्रेम को आमंत्रित किया था। आप लोग भीतर क्यों जा रहे हैं?” उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और सफलता में से किसी एक को आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। आपने प्रेमको आमंत्रित किया है। प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। प्रेम जहाँ-जहाँ जाता है, धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।</span></div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-45414769566888412632013-09-06T01:49:00.001-07:002013-09-06T01:49:08.477-07:00कल्याण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
लोकरंजन की इच्छा वाला मनुष्य शुद्धाचारी ही हो ऐसी बात नहीं है। उसको तो अपने बाहरी दिखावे पर अधिक ध्यान रखना पड़ता है, इसीसे वह सुन्दर स्वर में गाना, मधुर भाषा में ब्याख्यान देना, नाचना, को हँसाने-रुलानेके उद्देश्यसे विभिन्न प्रकार के स्वरों में बोलना, भाव बताना, मुखाकृति बनाना,ध्यानस्थ की भाँति बैठना आदि न मालूम कितनी बातें करता है। उसका ध्यान रहता है कि मेरे गायन,भाषण व्याख्यान,सत्संग से और मेरी ध्यानस्थ मुर्तिसे लोगों का मेरी ओर खिंचाव हुआ या नहीं। गान,नृत्य, भावप्रदर्शन आदि चीजें कला की दृष्टिसे बहुत उपादेय हैं और किसी सीमातक प्रचारकी दृष्टिसे भी इसकी उपयोगिता है,परंतु जहाँ और जितने अंश में इनका उपयोग केवल लोकरंजन के लिए होता है,वहां उतने अंश में इस लोकरंजन के पीछे,किसी भी हेतुसे हो,अपने व्यक्तित्व के प्रचारकी वासना छिपी रहती है। तुम यदि साधक पुरुष हो अथवा अपना पारमार्थिक कल्याण चाहते हो तो ऐसी वासना को मनद्वारा कहीं किसी कोने में भी मत रहने दो। भगवान की भक्ति और सदाचार का प्रचार भगवत्सेवा के लिए ही करो। </div>
</div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-71913114928800728952013-07-14T22:50:00.000-07:002013-07-14T22:50:46.063-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फ़िराक़ गोरखपुरी जी की एक गजल<br />
<br />
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं<br />
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से ही पहचान लेते हैं <br />
<br />
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में<br />
तो ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं<br />
<br />
हम-आहंगी में भी इक चाशनी है इख्तिलाफों की<br />
मेरी बातें ब-उन्वाने-दिगर वो मान लेते हैं<br />
<br />
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का<br />
इबारत देख कर जिस तरह मा नी जान लेते हैं<br />
<br />
रफ़िके-जिन्दगी भी अब अनिसे-वक्ते-आखिर है<br />
तेरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं<br />
<br />
फ़िराक अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर<br />
कभी हम जान लेते हैं कभी हम पहचान लेते हैं </div>
Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-35862498224200018942013-03-26T04:11:00.000-07:002013-03-26T04:11:20.105-07:00 होली<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px;">बलमा घर आयो फागुन में -२</span><br />
<div style="background-color: white; color: #444444; font-family: arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 24px;">
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
जबसे पिया परदेश गये , आम लगावे बागन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
चैत मास में कांफल पाके, आम जी पाके सावन में। </div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
गऊ को गोबर आंगन लिपायो, मंगल काज करावन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
प्रिय बिन बसन रहे सब मैले, चोली चादर भिजावन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
भोजन पान बानये मन से, लड्डू पेड़ा लावन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…'</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
सुन्दर तेल फुलेल लगायो, स्योनिश्रृंगार करावन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर…</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
वस्त्र आभूषण साज सजाये, लागि रही पहिरावन में।</div>
<div style="color: black; font-family: sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19.1875px; margin-bottom: 0.5em; margin-top: 0.4em;">
बलमा घर आयो फागुन में।</div>
</div>
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Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-74746376479429481042013-01-05T23:48:00.000-08:002013-01-05T23:48:46.432-08:00इन्दर ( इनरु मुया )<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div style="background-color: #c0a154; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;">
बहुत समय पहले की बात है एक गांव में इन्दर नाम का लड़का रहता था| इन्दर का इस दुनियां में कोई नहीं था|बेचारा अनाथ था| लोग उसे इनरु मुया इनरु मुया कहते थे|(मुया का मतलब अनाथ से है) जब इन्दर कुछ बड़ा हुआ तो गांव के लोगों ने उसे अपने गाय बछिओं को चराने के लिए ग्वाला रख लिया|इन्दर रोज सुबह गायों को लेकर बन में चला जाता सारा दिन गायों को चराता और शाम को वापस ले आता| गांव वाले उसे बारी बारी से खाना और कपड़ा दे देते थे | इस तरह इन्दर का समय बीत रहा था| एक दिन किसी ने इन्दर को दो बेर देदिए| बेर स्वाद थे इन्दर ने बेर खा कर गुठलियाँ जंगल में जा कर मिटटी मे दबा दी कुछ समय बाद वहां पर बेर के पेड़ उग आये | इन्दर ने पौधों की साम संभाल की तो कुछ ही सालों में पौधे काफी बड़े हो गए और उन पर फल भी लगने लग गए| बेर काफी मीठे और स्वादिष्ट थे| इन्दर खुद भी खाता और लोगों को भी खाने को देता था| एक बार एक बुढ़िया वहां से जा रही थी| उस की नज़र बेरों पर गई, उसने इन्दर से बेर मांगे तो इन्दर ने बुढ़िया को बेर दे दिए| वह बुढ़िया एक नरभक्षी थी| जब उसने बेर खाए तो सोचा, ये बेर अगर इतने मीठे हैं तो इन बेरो को खाने वाला कितना मीठा नहीं होगा? उसने इन्दर को पकड़ने की चाल बनाई | बुढ़िया के कंधे पर एक बोरा टांका हुआ था | उसने सोचा कि इन्दर को किसी तरह बोरे में डाल लूँ तो शाम का खाना हो जाएगा| उसने इन्दर को अपने पास बुलाया और कहा इस बोरे में जादू है इस बोरे में बैठ कर जो मांगो मिल जाता है| इन्दर बेचारा सीधा साधा था उस ने सोचा देखूं क्या होता है| जैसे ही इन्दर बोरे में बैठा बुढ़िया ने बोरे को ऊपर से बांध दिया और पीठ पर बोरा लगा कर अपने घर की तरफ चल दी| रास्ते में बुढ़िया को प्यास लगी तो पानी पीने के लिए बुढ़िया ने बोरा जमीन पर रख्खा और पानी पीने चली गयी| वहां से कोई राही गुजर रहा था| इन्दर ने उस से बोरे का मुंह खोलने के लिए कहा | उसने बोरे का मुंह खोल दिया| इन्दर बोरे से बाहर आ गया | इन्दर ने फटा फट बोरे में पत्थर कांटे भ्रिड ,तितैया आदि जो भी हाथ लगा बोरे में भर दिया और ऊपर से वैसे ही बांध दिया | बुढ़िया आई बोरा उठाया घर को चल दी | रास्ते में उस की पीठ पर कांटे चुभने लगे तो उस ने सोचा कि इन्दर चिकोटी काट रहा है, उस ने कहा जितना मर्जी चिकोटी काट ले, घर जा कर तो मैं तुझे ही काट दूंगी| घर जा कर उस ने अपनी बेटी से कहा कि तू जरा इस का मांस तैयार कर मैं अभी आती हूँ, कहकर बुढ़िया कुछ लेने बाहर चली गयी| बुढ़िया की बेटी ने जब बोरे का मुंह खोला तो सारे भ्रिंद और तितैया बुढ़िया की बेटी पर चिपट गए और उस का बुरा हाल कर दिया | बुढ़िया ने आ कर देखा तो पछताने लगी कि मैंने रास्ते में क्यों उतारा|</div>
<div style="background-color: #c0a154; color: #333333; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 20px; text-align: justify;">
कुछ दिनों बाद बुढ़िया अपना भेष बदल कर फिर से इन्दर के पास जंगल में गयी और इन्दर से बेर मांगे ,इन्दर ने कहा कि तू वही बुढ़िया है जिस ने कुछ दिन पहले मुझे बोरे में बंद कर लिया था | बुढ़िया ने कहा कि में तुझे वैसी बुढ़िया लग रही हूँ में तो किसी को यहाँ जानती भी नहीं हूँ| इन्दर ने देखा नजदीक में अब बेर भी नहीं हैं, तो उसने बुढ़िया से कहा कि बेर तो अब पहुँच से दूर रह गए हैं पंहुचा नहीं जाता है तो बुढ़िया ने तरकीब बताई कि सूखी टहनी पर पैर रख कर आगे बढ़ो तो बेर हाथ आ जाएँगे | इन्दर ने वैसा ही किया |जैसे ही इन्दर ने सूखी टहनी पर पैर रखा टहनी टूट गई और इन्दर नीचे गिर गया नीचे बुढ़िया पहले से ही तैयार थी उस ने बोरे का मुंह खोल दिया और इन्दर बोरे में जा गिरा| बुढ़िया ने फटा फट बोरे का मुंह बंद कर दिया| बुढ़िया ने बोरा फिर पीठ से लगाया और घर की तरफ चल दी , आज उसने कहीं भी बोरे को रास्ते में नहीं उतारा, सीधे घर जाकर ही उतारा| बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि आज तो मैं इन्दर को पकड़ कर सीधे घर ही लाई हूँ , इस का मांस तैयार कर मैं इस के तडके का इन्तजाम करती हूँ, कह कर बुढ़िया बाहर चली गयी| बुढ़िया के जाने के बाद जब बुढ़िया की बेटी ने बोरे का मुंह खोला तो देखा कि इन्दर के बाल बहुत पतले और लम्बे हैं तो उसने इन्दर से पूछा कि<br />उसके बाल इतने लम्बे कैसे हो गए, तो इन्दर ने कहा कि मैं अपने बालों को उखल में कूटता हूँ ,इस से मेरे बाल पतले और लम्बे बनते हैं| बुढ़िया की बेटी ने कहा एक बार मेरे बालों को भी कूट दो ताकि मेरे बाल लम्बे और पतले हो जाएँ, इन्दर ने कहा चलो उखल के पास चलो मैं तुम्हारे बालों को कूट देता हूँ, ताकि तुम्हारे बाल भी लम्बे हो जाएँ |बुढ़िया की बेटी मान गई और इन्दर को उखल में ले गई, इन्दर ने कहा अपने बालों को उखल में डालो मैं कूट देता हूँ| बुढ़िया की बेटी ने अपने बाल उखल में डाल दिए और इन्दर कूटने लग गया|उसने एक दो चोट बालों में मारी फिर उसके बाद बुढ़िया की बेटी के गर्दन पर दे मारी जिस से बुढ़िया की बेटी मर गई, इन्दर ने जल्दी से बुढ़िया की बेटी के कपडे उतार कर खुद पहन लिए और बुढ़िया की बेटी का मांस तैयार करके चूल्हे के पास बैठ गया, जब बुढ़िया आई तो इन्दर चुपचाप बाहर आ गया और छत के झरोखे से देखने लगा, बुढ़िया ने मांस को भून कर तैयार किया और बेटी को आवाज दी, बेटी होती तो आती वह तो इन्दर ने मारदी |इन्दर जो झरोखे से देख रहा था बोल उठा "देखी अपनी चालाकी अपनी बेटी खुद ही खाली" बुढ़िया ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है तो इन्दर ने बुढ़िया की बेटी के कपडे झरोखे से नीचे गिरा दिए और उस के हाथ की अंगूठी भी गिरा दी| बुढ़िया बेटी की जुदाई सहन नहीं कर सकी| उसने अपनी जीभ अपने दातों तले दबा ली और काटली| इस तरह एक नरभक्षी बुढ़िया का अंत हो गया| इन्दर फिर जंगल में आ गया और अपनी रोज मर्रा की जिन्दगी जीने लग गया| </div>
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Patali-The-Villagehttp://www.blogger.com/profile/08855726404095683355noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2747618664687180394.post-73679065289171954622012-12-31T16:11:00.000-08:002012-12-31T16:11:07.987-08:00 नए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #4e2800; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px; text-align: justify;"> नया साल 2013 आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल 2013 में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| नए साल के आगमन पर आइए हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|</span><br />
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<span style="background-color: white; color: #4e2800; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px; text-align: justify;"><br /></span></div>
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<span style="background-color: white; color: #4e2800; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px; text-align: justify;"><br /></span></div>
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