Thursday, March 22, 2012

नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

   विक्रम संवत का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, जो इस वर्ष २३ मार्च को है| भारत में कालगणना  इसी दिन से प्रारंभ हुई| ऋतु मास  तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी यही से शुरू होती है| विक्रमी संवत के मासों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय अस्त से सम्बन्ध रखते हैं| वे सूर्य चन्द्र की गति पर आश्रित हैं| विक्रमी संवत पूर्णत: वैज्ञानिक सत्य पर स्थित हैं| विक्रम संवत सूर्य सिद्धांत पर चलता है|
              अर्थशास्त्र में काल गणना की इकाई "पल" है, एक पलक झपकने में जितना समय लगता है उसे पल कहते हैं|
              नवसंवत्सर बसंत ऋतु में आता है|  बसंत में सभी प्राणियों को मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है| काल गणना का सम्पूर्ण उपक्रम निसर्ग अथवा प्रकृति से तादात्म्य रख कर किया जाता है| चित्रा नक्षत्र से आरम्भ होने पर इस मास का नाम चैत्र  रखा गया| विशाखा नक्षत्र से बैशाख,जेष्ठा नक्षत्र से जेठ ,पुर्वाषाढा से आषाढ़ , श्रवन नक्षत्र से श्रवन , पूर्वभादरा से भादव, अश्वनी नक्षत्र से असोज (आश्विन), कृतिका से कार्तिक, मृगशिरा से मार्गशीर्ष; पुष्य से पौष, मघा  से माघ और पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र से फाल्गुन नामों का नामकरण हुआ|
            सूर्य का उदय होना और अस्त होना दिन रात का पैमाना बन गया| चन्द्रमा  का घटने बढ़ने का आशय चन्द्रमा  का पृथवी से दूरी घटने बढ़ने से है| इसके आधार पर ही शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष और महीने का अस्तित्व आया| दिन रात में २४ होरा होते हैं| प्रत्येक होरा का स्वामी सूर्य,शुक्र,बुध ,चन्द्र शनि, गुरु और मंगल को माना गया है| सूर्योदय के समय जिस गृह की होरा होती है उसदिन वही वार होता है| चन्द्र की होरा में चन्द्रवार (सोमवार) मंगल की होरा में मंगलवार, बुध की होरा में बुधवार, गुरु की होरा में गुरुवार, शुक्र की होरा में शुक्रवार, शनि की  होरा में शनिवार और सूर्य की होरा में रविवार होता है| इस प्रकार सातों दिवसों की गणना की गई है|
            हमारे उत्तराखंड में नवसंवत्सर के मौके पर लोग अपने घरों की लिपाई पोताई करके घर की साफ सफाई करते हैं| ऐपन(अलप्ना) निकालते है| हमारे यहाँ नवसंवत्सर का नाम पुरोहित से ही सुनने का रिवाज है| पुरोहित के मुंह से ही नवसंवत्सर का नाम सुनना शगुन माना जाता है|
            सभी ब्लॉग प्रेमियों को नवसंवत्सर २०६९   की हार्दिक शुभकामनाएँ|

Friday, March 9, 2012

राजकुमार और परी

              पहले  समय मे एक  प्रदेश मे  एक राजा राज्य  करते थे उन का नाम था जयेंदर उन का राज्य काफी दूर दूर तक फैला हुआ था .राजा  दयालु  थे और अपनी  परजा से काफी प्यार करते थे. परजा भी राजा को बहुत चाहती थी | राजा  का  एक बेटा था, जो काफी चतुर  और होनहार युवराज था, वह राजा के साथ राजकाज मे भी पूरा सहयोग देता था ,कोई भी समस्या उन के सामने टिक  नहीं  सकती थी  युवराज को शिकार करने का बहुत शौक  था | एक दिन युवराज के  मन  मे  आया कि  जंगल  मे  जाकर शिकार ही क्यों  न खेला जाए ? राजकुमार ने अपने दिल की बात राजा को बताई तो राजा ने भी ख़ुशी से आज्ञा दे दी,और उस ने राजकुमार को हिदायत भी की कि जहाँ भी कहीं रात गुजारोगे   वहां के हाल  चाल  किसी के द्वारा मेरे पास जरुर भेजना ताकि मै  तुम्हारी  तरफ  से  बेफिक्र  हो  के अपना काम चलाता रहूँ|  राजकुमार ने हांमी भर दी और अपने  सेवादारों को साथ  लेकर शिकार करने जंगल की तरफ चल दिए | उस के साथ काफी आदमियों का काफिला था| उन के पास खाने के अलावा काफी मात्रा मे हथियार थे ताकि  जरुरत के समय इस्तेमाल हो सकें | काफिला अपना पड़ाव  जंगल मे कहीं भी डाल लेता था | शिकार खेलते हुए राजकुमार धनुर विद्या मे पूर्ण रूप से निपूर्ण हो गया |काफिला शिकार खेलते हुए और मनोरंजन करते हुए आगे बढ़ते गया |
 एक दिन राजकुमार शिकार करते करते जंगल  मे कहीं दूर निकल गया और रास्ता भटक गया | काफिला राजकुमार से दूर हो गया | सेवक राजकुमार को ढूढ़ते रहे और राजकुमार सेवकों को | किसी का कोई पता नहीं चला| राजकुमार ने हिम्मत नहीं हारी वह काफिले को यहाँ वहां देखता रहा | चलते चलते उसे प्यास लग गयी नजदीक मे उसे कहीं पानी नहीं मिला| इतने बड़े  जंगल मे  वह अकेला पड़ गया| एक जगह कुछ रुका और अपने इष्ट  देवता को याद कर के फिर आगे बढ़ गया| जंगल की सायें सायें की  आवाजें  उस  के  कानों  मे  गूंजने लगी और रात  घिरने लगी आकाश  मे तारे टिमटिमाने लगे| घोडा   भी आगे चलने मे हिचकिचाने लगा| इतने बड़े  जंगल मे घोडा  ही राजकुमार का सहारा था| थोड़ी  दूर और चलने के बाद वे खुले स्थान पर आ गए |रात आधी  बीत चुकी थी और घोडा  और राजकुमार  दोनों प्यासे थे, थोड़ी  दूर जाने के बाद उन्हें एक तालाब  दिखाई  पड़ा  | राजकुमार और घोडा  दोनों थक चुके थे और पैर लड़खड़ा   रहे थे | अचानक राजकुमार  के  कानों  मे मधुर स्वर सुनाई दिए  | सामने देखा तो  तालाब  के  किनारे पर एक सुन्दर लड़की  सफ़ेद कपडे  पहने हुए मछलियों से बातें कर रही थी | मछलियाँ भी पानी मे उछल उछल कर बातें कर रहीं थी| राजकुमार यह सब देख कर हैरान हुआ और आश्चर्य मे पड़  गया | सोचने लगा की कितनी निकटता है इन मछलियों और लड़की  मे | वह हिम्मत करके आगे बढा| घोड़े  की पदचाप सुन कर लड़की  का ध्यान राजकुमार की तरफ गया|  पास पहुँच  कर  राजकुमार  ने  लड़की  से परिचय पूछा| लड़की  बोली आप खड़े  क्यों हैं ? नीचे  उतर कर बैठ जाइए |  राजकुमार  उतरके लड़की  के  नजदीक बैठ गया | राजकुमार  ने कहा  मे अभी मुसीबत का मारा हूँ आप अपने बारे मे परिचय दीजिए | लड़की  बोली मै भी  इन मछलियों की तरह ही एक मछली थी| परियों की रानी हर पूर्णिमा की रात को इस तालाब मे नहाने को आती थीं और  सारी रात नाचती और गाना गाती थीं | हम मछलियों को भी उन का नाचना गाना अछ्छा लगता हम भी उन के साथ नाचने लगते | एक बार परियों की रानी ने मुझे नाचते हुए  देख लिया और मेरा नाच देख कर बहुत प्रसन्न हुई | और  मेरी  तारीफ की | उन्होंने  मुझे परी  लोक चलने को कहा | राजकुमार लड़की  की बातों को ध्यान से सुन रहा था| फिर लड़की  बोलीं मै परी  लोक मे जाने को राजी हो गयी| परी  रानी ने सर झुका कर अपने देवता से मुझे परी  बनाने की परार्थना की| उनके देवता ने उनकी परार्थना स्वीकार कर ली|  और  मुझे परी  बना दिया| उसी दिन से मे उन सब के साथ परी लोक मे ही रहती हूँ | जब कभी जी करता है तो मै अपनी इन सहेलियों को मिलने  यहाँ आ जाया करती हूँ| उस के बाद राज कुमार  ने अपने बारे मे बताया और अपनी समस्या सामने रखी और बताया की वह सुबह से भूखा प्यासा ही घूम रहा है| परी  ने अपनी जादुई  ताकत से  राजकुमार  के  लिए खाना हाजिर किया | राजकुमार  ने खाना खाया  और पानी पिया | अपनी  भूख प्यास  मिटाकर घोड़े  के खाने का  इंतजाम किया| लड़की और राजकुमार बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे|  सुबह होने से पहले ही लड़की ने परी  लोक पहुंचना था|  अब परी जाने  को तैयार हुई  तो राजकुमार ने भी साथ चलने की इछ्छा जाहिर की| परी ने कहा की ऐसे करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है इस बात के लिए क्षमा  चाहती हूँ| आप मेरी इन सहेलियों से मिलने आ सकते हैं  आप के यहाँ आने पर ये आप का स्वागत करेंगी | अगर आप मुझे मिलना चाहें तो इसी तरह आधी रात को यहाँ आ जाना मे आप  को  जरुर  मिलूंगी|  अब मुझे देरी हो रही है आप भी अपने राज्य मे चले जाओ| परी ने राजकुमार को बताया की उसका काफिला उत्तर की ओर उसको ढूंढता  हुआ आ रहा है | न चाहते हुए भी परी, परीलोक की तरफ उड़ चली और राजकुमार घोड़े  पर बैठ कर परी के बताए हुए रास्ते  की तरफ अपने काफिले की खोज मे चल पड़ा  | कुछ दूरी पर ही उसे अपने काफिले के लोग मिलगये | काफिले  के  साथ राजकुमार अपने राज्य मे लौट  आया | राजकुमार को इस बात का दुःख था की वह परी के साथ नहीं जा सका पर उस को इस बात की ख़ुशी थी की उसकी दोस्ती एक परी के साथ होगयी है जो मुसीबत के समय उसके काम आई | राजकुमार का जब भी दिल करता वह परी को मिलने आधी रात मे तालाब के किनारे आ जाता दोनों घंटों बैठ कर बातें करते इस तरह उन का समय हसी ख़ुशी से कट ता  रहा|और दोनों को अपनी दोस्ती पर नाज था|

Sunday, March 4, 2012

कुमाउनी होली

हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में।
टेसू के रंग में रंगे कपोल हैं,
चार दिशा दिशा फाग के बोल हैं,
उड़त अबीर गुलाल,
देबा तेरे द्वारे में। 
हरि खेल ...
हाथ लिए कंचन पिचकारी,
गावत खेलत सब नर नारी,
भीग रहे होल्यार, 
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
भाग कि मार पड़ी उसके सर,
कौन अभाग है शिव शिव हर हर,
कैसा है लाचार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
गिरिका भी खेलें बची का भी खेलें,
बचुली सरुली और परुली भी खेलें,
कौन करे इंकार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में ।