आज चुटकले डाल रहा हूँ जो मै ने कहीं पढ़े थे | शायद आप लोगों को भी पसंद आएं|
1 एक बार एक गप्पी गप्पें मार रहा था कि उसने संसार के लगभग सभी शहरों की सैर की हुई है|
वह बोला मैंने लन्दन, पैरिस, न्यूयार्क,जोहान्सबर्ग,दुबई, करांची आदि शहरों को देखा है |
एक आदमी बीच में खड़े होकर बोला "इसका मतलब आप जौग्रफी की अच्छी जानकरी रखते हैं|
उसने कहा क्या बात करते हो वहां तो मै पूरा एक महीना ठहरा था|बहुत अच्छा शहर है|
2 एक डाकू पिंटू के घर में घुस आया|
डाकू:- बताओ सोना कहाँ है, जल्दी बताओ|
पिंटू:- पूरा घर खाली है, जहाँ अच्छा लगे सो जावो|
३ एक अफ्रीकन लड़की को परमात्मा ने एकजोड़ी पंख दिए और कहा "यह तुम्हारा इनाम है|"
लड़की खुश होते हुए बोली "वाह परमात्मा क्या अब मैं परी बन गयी हूँ?
परमात्मा ने कहा "नहीं रे पगली तू अब चिमगादड बन गई है|
४ एक बार एक आदमी अपने पडोसी के यहाँ गया और बोला| भैया जी अपनी इस्त्री तो देना|
पडोसी:-(जिस की बीवी लड़ के हटी थी)बीवी की तरफ इशारा करके बोला वो है|
आदमी:-भैया जी ये नहीं जो करंट मारती है|
पडोसी:-जरा छू कर के तो देखो पूरे २४० वोल्ट का करंट मारती है|
के: आर: जोशी (पाटली)
Tuesday, September 28, 2010
Sunday, September 19, 2010
"जौं हो " "भोव भोव"
यह एक दन्त कथा है | उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में पुराने ज़माने में आने जाने का कोई साधन नहीं था| लोगों को कहीं भी जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ता था| रास्ते भी उबड़ खाबड़ थे| उस समय एक नई व्याहता लड़की अपने ससुराल में आई| उसका मायका उसके ससुराल से काफी दूर पड़ता था| अकेले और बारबार आना जाना मुश्किल था| नई व्याहता लड़की को ससुराल आए काफी समय हो गया था| उसे अपने मायके की बहुत याद आने लग गई| उसे सब की नराई लग गयी थी|
एक दिन उसने अपनी सास से कहा कि मुझे मायके की बहुत याद आ रही है, मैं मैत जौं हो (मे मायके चली जाऊं )| सास ने कहा कि दिन खड़े सारा काम निपटा दो तो चली जाना| उसने अपने जेठ से अनुरोध किया कि वह उसको मायके पहुंचा दे| जेठ ने कहा भोव(कल )चलने को कहा| बेचारी ने सारा काम पूरे लगन से निपटाने की कोशिश की पर दिन खड़े काम ख़तम नहीं हो सका| कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा| बहू पूछती जौं हो (मे मायके चली जाऊं) तो सास फिर से कई काम गिना देती | जेठ को कहती तो वह भोव (कल) चलने को कह देता| आखिर में उसने सूरज देव से प्रार्थना की कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना,खड़े रहना मुझे दिन खड़े मायके जाना है| सूरज ने उसकी प्रार्थना सुन ली ओर अपनी चाल धीरे कर ली| उस दिन लड़की ने अपना काम दिन खड़े ही निपटा लिया| और मायके जाने के लिए तैयार हो गई| जेठ को भी साथ जाना ही पड़ा| लड़की सारे रास्ते में सूरज को कहती गई कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना|
सूरज ने भी उसका पूरा साथ दिया जैसे ही वह अपने मायके के आँगन में पहुंची, ख़ुशी के मारे वह सूरज को चला जा कहना भूल गई| यह देख कर सूरज को गुस्सा आ गया| सूरज ने अपनी गर्मी से दोनों को भस्म कर दिया| अगले जन्म में उन दोनों ने पंछी के रूप में जन्म लिया| एक को कोयल का रूप मिला जो "जौं हो" "जौं हो" कहने लगी | दूसरे को कठफोड़े का रूप मिला जो "भोव" "भोव" करने लगा| आज भी जब पहाड़ की वादियों में कोयल जब "जौं हो" "जौं हो" बोलती है तो किसी दूसरे पेड़ से "भोव" "भोव" की आवाज आती है| यह मार्मिक आवाज आज भी मन को विचलित कर देती है|
एक दिन उसने अपनी सास से कहा कि मुझे मायके की बहुत याद आ रही है, मैं मैत जौं हो (मे मायके चली जाऊं )| सास ने कहा कि दिन खड़े सारा काम निपटा दो तो चली जाना| उसने अपने जेठ से अनुरोध किया कि वह उसको मायके पहुंचा दे| जेठ ने कहा भोव(कल )चलने को कहा| बेचारी ने सारा काम पूरे लगन से निपटाने की कोशिश की पर दिन खड़े काम ख़तम नहीं हो सका| कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा| बहू पूछती जौं हो (मे मायके चली जाऊं) तो सास फिर से कई काम गिना देती | जेठ को कहती तो वह भोव (कल) चलने को कह देता| आखिर में उसने सूरज देव से प्रार्थना की कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना,खड़े रहना मुझे दिन खड़े मायके जाना है| सूरज ने उसकी प्रार्थना सुन ली ओर अपनी चाल धीरे कर ली| उस दिन लड़की ने अपना काम दिन खड़े ही निपटा लिया| और मायके जाने के लिए तैयार हो गई| जेठ को भी साथ जाना ही पड़ा| लड़की सारे रास्ते में सूरज को कहती गई कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना|
सूरज ने भी उसका पूरा साथ दिया जैसे ही वह अपने मायके के आँगन में पहुंची, ख़ुशी के मारे वह सूरज को चला जा कहना भूल गई| यह देख कर सूरज को गुस्सा आ गया| सूरज ने अपनी गर्मी से दोनों को भस्म कर दिया| अगले जन्म में उन दोनों ने पंछी के रूप में जन्म लिया| एक को कोयल का रूप मिला जो "जौं हो" "जौं हो" कहने लगी | दूसरे को कठफोड़े का रूप मिला जो "भोव" "भोव" करने लगा| आज भी जब पहाड़ की वादियों में कोयल जब "जौं हो" "जौं हो" बोलती है तो किसी दूसरे पेड़ से "भोव" "भोव" की आवाज आती है| यह मार्मिक आवाज आज भी मन को विचलित कर देती है|
के: आर: जोशी. (पाटली)
Sunday, September 12, 2010
"बेटी तू पहाड़ की"
बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
मारता है आवाज तुझे पेड़ बांज का|
झूला डाल दे तू लेके रस्सा पराल का|
लेके हुलारे तू पींघ चढ़ा जा|
दे जा संदेशा कोई पहाड़ प्रेम का|
देर से है इंतजार तेरा जंगल के राज का|
लेके गठ्ठा तू घास का घर को आजा|
याद करते हैं तुझे पहाड़ के नदी और नौला|
आके बसंत मे चैत के काफल खाजा |
अंगरेजी धुन छोड़ के तू पहाड़ी घुन मे आ|
पौप गीत छोड़ के तू झोडा चांचरी गा|
बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
के: आर: जोशी. (पाटली)
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
मारता है आवाज तुझे पेड़ बांज का|
झूला डाल दे तू लेके रस्सा पराल का|
लेके हुलारे तू पींघ चढ़ा जा|
दे जा संदेशा कोई पहाड़ प्रेम का|
देर से है इंतजार तेरा जंगल के राज का|
लेके गठ्ठा तू घास का घर को आजा|
याद करते हैं तुझे पहाड़ के नदी और नौला|
आके बसंत मे चैत के काफल खाजा |
अंगरेजी धुन छोड़ के तू पहाड़ी घुन मे आ|
पौप गीत छोड़ के तू झोडा चांचरी गा|
बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
के: आर: जोशी. (पाटली)
Sunday, September 5, 2010
पराधीनता मे सुख कहाँ ?
एक कुत्ते और बाघ की आपस मे दोस्ती हो गयी| कुत्ता काफी मोटा ताजा था और बाघ दुबला पतला सा था| एक दिन बाघ ने कुत्ते से कहा- भाई एक बात बताओ तुम कैसे इतने मोटे-तगड़े तथा सबल हुए; तुम प्रति दिन क्या खाते हो और कैसे उसकी प्राप्ति करते हो? मे तो दिन रात भोजन की खोज मे घूम कर भी भरपेट खा नहीं पाता किसी किसी दिन तो मुझे उपवास भी करना पड़ता है| भोजन के कष्ट के कारन ही मे इतना कमजोर हूँ| कुत्ते ने कहा मे जो करता हूँ तुम भी अगर वैसा ही कर सको तो तुम्हे भी मेरे जैसा ही भोजन मिल जाएगा| बाघ ने पूछा तुम्हें करना क्या पड़ता है जरा बताओ तो सही| कुत्ते ने कहा कुछ नहीं रात को मालिक के मकान की रखवाली करनी पड़ती है| बाघ बोला बस इतना ही| इतना तो मे भी कर सकता हूँ| मे भोजन की तलाश मे बन बन भटकता हुआ धूप तथा वर्षा से बड़ा कष्ट पाता हूँ| अब और यह क्लेश सहा नहीं जाता| यदि धूप और वर्षा के समय घर मे रहने को मिले और भूख के समय भर पेट खाने को मिले तब तो मेरे प्राण बच जायंगे | बाघ की दुःख की बातें सुन कर कुत्तेने कहा ; तो फिर मेरे साथ आओ|मे मालिक से कहकर तुम्हारे लिए सारी ब्यवस्था करा देता हूँ| बाघ कुत्ते के साथ चल पड़ा| थोड़ी देर चलने के बाद बाघ को कुत्ते की गर्दन पर एक दाग दिखाई पड़ा| यह देख कर बाघ ने कुत्ते से पूछा भाई तुम्हारी गर्दन पर यह कैसा दाग है?
कुत्ता बोला अरे वह कुछ भी नहीं है| बाघ ने कहा नहीं भाई मुझे बताओ मुझे जान ने की बड़ी इच्छा हो रही है| कुत्ता बोला गर्दन मे कुछ भी नहीं है लगता है कोई पत्ते का दाग लगा होगा| बाघ ने कहा पत्ता क्यों ? कुत्ते ने कहा पत्ते मे जंजीर फसा कर पूरा दिन मुझे बांध कर रखा जाता है| यह सुन कर बाघ विस्मित हो कर कह उठा-जंजीर से बांध कर रखा जाता है? तब तो तुम जब जहाँ जाने की इच्छा हो जा नहीं सकते? कुत्ता बोला ऐसी बात नहीं है , दिन के समय भले ही बंधा रहता हूँ, परन्तु रात के समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है तब मी जहाँ चाहे ख़ुशी से जा सकता हूँ| इस के अतिरिक्त मालिक के नौकर मेरी कितनी देख भाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं| स्नान कराते हैं कभी कभी मालिक भी स्नेह पूर्वक मेरे शरीर पर हाथ फेर दिया करते हैं| जरा सोचो तो मे कितने सुख मे रहता हूँ| बाघ ने कहा भाई तुम्हारा सुख तुम्हीं को मुबारक हो, मुझे ऐसी सुख की जरुरत नहीं है| अत्यंत पराधीन हो कर राज सुख भोगने की अपेक्षा स्वाधीन रह कर भूख का कष्ट उठाना हजार गुना अच्छा है| मे अब तुम्हारे साथ नहीं जाउगा यह कह कर बाघ फिर जंगल की तरफ लौट गया|
के: आर: जोशी. (पाटली)
कुत्ता बोला अरे वह कुछ भी नहीं है| बाघ ने कहा नहीं भाई मुझे बताओ मुझे जान ने की बड़ी इच्छा हो रही है| कुत्ता बोला गर्दन मे कुछ भी नहीं है लगता है कोई पत्ते का दाग लगा होगा| बाघ ने कहा पत्ता क्यों ? कुत्ते ने कहा पत्ते मे जंजीर फसा कर पूरा दिन मुझे बांध कर रखा जाता है| यह सुन कर बाघ विस्मित हो कर कह उठा-जंजीर से बांध कर रखा जाता है? तब तो तुम जब जहाँ जाने की इच्छा हो जा नहीं सकते? कुत्ता बोला ऐसी बात नहीं है , दिन के समय भले ही बंधा रहता हूँ, परन्तु रात के समय जब मुझे छोड़ दिया जाता है तब मी जहाँ चाहे ख़ुशी से जा सकता हूँ| इस के अतिरिक्त मालिक के नौकर मेरी कितनी देख भाल करते हैं, अच्छा खाना देते हैं| स्नान कराते हैं कभी कभी मालिक भी स्नेह पूर्वक मेरे शरीर पर हाथ फेर दिया करते हैं| जरा सोचो तो मे कितने सुख मे रहता हूँ| बाघ ने कहा भाई तुम्हारा सुख तुम्हीं को मुबारक हो, मुझे ऐसी सुख की जरुरत नहीं है| अत्यंत पराधीन हो कर राज सुख भोगने की अपेक्षा स्वाधीन रह कर भूख का कष्ट उठाना हजार गुना अच्छा है| मे अब तुम्हारे साथ नहीं जाउगा यह कह कर बाघ फिर जंगल की तरफ लौट गया|
के: आर: जोशी. (पाटली)
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