Saturday, February 26, 2011

वृक्ष -दोहावली


वृक्ष हमारे नित्य सहायक, उनकी सेवा पालन कर्म|
यही   हमारी  भारतीयता,  यही  हमारा  हिन्दू  धर्म||
पत्र- पत्रमें  देव विराजित रोग  सभी करती है  नाश|
तुलसी तुमको नित बंदन है,सभी तीर्थका तुममें वास||
पीपल जो अश्वत्थ  कहता,श्रीकृष्ण का  जिस में वास|
इसे  काटना  महां  पाप  है,  ऐसा  मनमें  हो  विश्वास||
सभी  मांगलिक  कार्यों  की  है  शोभा  कदली  वृक्ष|
हरा भरा  हो जल  सिचनसे,  ऐसा रहे  सर्वदा  लक्ष||
बाग-बगीचे आँगन-बाड़ी, वृक्ष 'आमलक' हो हर ठौर|
सदियों से पूजा जाता है, सभी औषधियों का सिरमौर||
बेर-वृक्ष लक्ष्मी-परिचायक,बद्री वृक्ष जिसे कहते हैं|
शबरी  के मीठे बेरों की, राम  प्रशंसा खुद  करते  हैं||
फल का राजा आम कहाता,आम्र-वृक्ष भारतका गौरव|
वातावरण पवित्र बनाता,आम्र-मंजरी  का यह सौरभ ||
पेड़ नारियलका  उपयोगी,मधुर पौष्टिक श्रीफल नाम|
पंखे,  झाड़ू, रस्सी, बोरी  और  तेल  भी  आता  काम||
मन वांछित फल जो देता है,बोधिसत्व का ज्ञान|
छाया  से  मन  हर्षित होता, वटका  वृक्ष  महान||
खैर, खेजद्री, शीशम, साल, चीड़, चिनार और बांज, बुरांस|
कटहल,इमली, जामुन, लीची, गुलर, नीम, बबूल, पलास||
सभी   वृक्ष   कितने  उपयोगी, पत्थर  मारो  फल  देते  हैं|
ब्यर्थ  न  काटो,  इन्हें  बचाओ, ये  धरती को जल  देते  हैं||                       (कल्याण में से )

Thursday, February 17, 2011

सहारा

अंगुली पकड़ कर चलनेवाला मैं,
उस दिन बिना सहारे के चला था|
पहली बार गिरा फिर रोया,
रोता रहा बेजार|
मुझे सहारा चाहिए था खड़ा होने के लिए,      
उन सहारों को पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चलने के लिए|
मगर कोई नहीं आया,
मैं चीखा था चिल्लाया था|
मैंने हाथ भी फैलाए थे,
मगर कोई नहीं आया|
तब मैंने ढूंढा था,
शायद खुद में ही खुद के लिए सहारा|
तब मैं नादान था इन बातों से अंजान था,
पर अब कभी जब भी मैं गिरता हूँ,
रोता नहीं, पर सोचता जरुर हूँ,
यदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
तो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|

Thursday, February 10, 2011

स्वर्ग से मेले तक


इस बेकारी ने इस लोक तो क्या,  स्वर्ग  लोक तक दिखा दिया|
मज़बूरी से आवेदन पत्र पर, हमने भी अपना नाम लिख दिया||
सुना   है  स्वर्ग   में  पोस्टों  का,   एक  खुला   बम्पर  आया|
एक  - एक   करके   लाइन   से,  हमारा   भी   नंबर   आया||
घूमती कुर्सी  में बैठे यमराज, एक - एक करके  बुला  रहे हैं|
नुक्स  गलतियाँ  कई बता कर, बेरोजगारों  को  रुला रहे  हैं||
बोले- तुम्हारे पोस्टल आर्डर में, डेट ठीक से नहीं चढ़ी हुई है|
वैसे  भी  इस  पोस्ट  के  लिए,   तुम्हारी  उम्र  बढ़ी  हुई  हैं|| 
बोले कितने ही काल अकाल से, यहाँ भी अब भीड़ बढ़ चुकी है|
यहाँ  भी  बेकारी,  भुखमरी  की, गहरी  साज  गढ़  चुकी  है||
जाओ एक बार कर्म के मन्दिर में,फिर से माथा टेक के आओ|
वहां  लगा  है  सुन्दर  मेला,  उसका  ताँता  देख  के  आओ||
देखा  लौट के  इस जहाँ  में, बेकारी  का  मेला लगा हुआ है|
इस भीड़  में उपद्रव का, जगह जगह पर झमेला लगा हुआ है||
कहीं  सपेरा  मरे  सांप के ऊपर, अपनी बीन बजा  रहा है|
बन्दर वाला लाठी के बल पर,भूखे बन्दर को नचा रहा है||
दशा   दृश्य   मेले   की   देख,   कहीं   हम  रो  न   जाएँ|
डर   है   इस   मेले   में  आज,  कहीं   हम  खो  न  जाएँ||

Saturday, February 5, 2011

बसंत पंचमी

            बसंत पंचमी का त्यौहार  सारे भारतवर्ष में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है| इसे श्री पंचमी के नाम  से भी जाना जाता है| इस दिन माता सरस्वती  की पूजा की जाती है| बच्चे अपनी कापी किताबें,नोटबुक आदि माँ सरस्वती  के चरणों में रखते हैं और अच्छी विद्या के लिए प्रार्थनाएँ करते हैं| सरस्वती  माता को विद्या की देवी भी कहते हैं| बसंत ऋतु भी इसी दिन से शुरू होती है| पतझड़ के बाद पेड़ों में नई कोपले फूटती हैं| सभी पेड़ों  में रंग बिरंगे फूल निकल आते हैं| पेड़ों में नई बहार  आ जाती है| जिसे देख कर मन प्रसन्न हो जाता है| इस दिन पतंग उड़ाने का भी रिवाज है| 

             बसंत पंचमी को लोग पीले वस्त्र  पहनते हैं पीला रुमाल इस्तेमाल करते हैं| केशर डाल कर पीले चावल बनाते हैं| इस दिन से होली की बैठकें भी शुरू हो जाती हैं| आज से ही पीला गुलाल  उड़ाना शुरू हो जाता है| हमारे कुमाऊं में आज के दिन लोग कई प्रकार के पकवान बनाकर  अपने ४-६ महीने के बच्चे को अन्न ग्रहण कराते  हैं| इसको बच्चे की पाशिणी कहते हैं|
            आज के दिन कुमाऊं में जौ के छोटे छोटे पौधों को लाकर इन की प्रतिष्ठा की जाती है,और अपने अपने इष्ट देवता के मंदिरों में चढ़ाया जाता है| उसके बाद बड़े बुजुर्ग लोग बच्चों को बैठा के उन्हें हरेले की तरह जौ लगाते हैं| बुजुर्ग लोग अपने दोनों हाथों में जौ के तिनके पकड़ कर पहले बच्चों के पैरों में फिर घुटनों में, बाँहों में, कंधे में फिर आखिर में सर में रख देते हैं| साथ में आशीर्वाद के तौर पर कहते हैं
लाग श्री पंचमी, लाग हर्यावा, लाग दसें  (भाव :- श्री पंचमी, हरेला और दश हरा तीनों त्यौहार  लगें)
स्यावकी जसि बुद्धि  है जो,सिंह जस त्राण है जो (भाव:-लोमड़ी कि तरह तेज बुद्धि हो,शेर की तरह ताकतवर बनो)
सिल पिसि भात खाए, जान्ठी टेकि झाड़ी जाये    (भाव:-इतना बूढ़ा हो जाना कि भात को भी पीस कर खाना,और लाठी  टेकते होए जंगल  पानी जाना) 
जी रये, जगी रये, बची रये|     (भाव:-जीते जागते बचे रहना|)                         फोटो साभार गूगल |
                           ||सभी ब्लॉग प्रेमियों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ| ||