Thursday, January 26, 2012

मुर्खता की कोई औषधि नहीं है

शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक छत्रेन सुर्यातपो
                           नागेन्द्रो निशितान्कुशेन संदो दण्डेन गोगर्दभौ।
व्याधिर्भेषजसंग्रहैश्र्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विष
                सर्वस्यौषधमस्ती शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम।।



         जैसे आग को पानी से शांत किया जा सकता है, सूर्य की गर्मी को छाते से रोका जा सकता है, तीक्ष्ण अंकुश  से मदमत्त हाथी को बस में किया जा सकता है, डंडे से बैल और गधे को रास्ते पर लाया जा सकता है; दवाइयों के प्रयोग से रोगों को ख़तम किया जा सकता है, मन्त्रों के प्रयोग से विष को उतरा जा सकता है, सभी के उपचार का विधान शास्त्रों में वर्णित है परन्तु मुर्ख की मुर्खाताके उपचार के लिए कोई औषधि नहीं है।

Friday, January 20, 2012

सद-गृहिणी युक्त जगह ही गृह है

                 वेदों में उसी स्त्री को नारी कहा है जो पतिवल्लभा तथा पति का अनुगमन करने वाली है। ऐसी नारी ही सद-गृहिणी कहलाती है और ऐसी गृहिणी से संपन्न घर ही गृह कहलाता है। लकड़ी पत्थर आदि से निर्मित स्थान गृह नहीं कहलाता, वह तो गृह होते हुए भी शून्य के समान है। कदाचित गृह नारिपदभाक न हो तो वह गृह गृह नहीं, अपितु कलह-स्थान है। यदि सद-गृहिणी साथ में हो तो वृक्ष के मूल में स्थित हुए पति को वह स्थान भी मंदिर के सामान समझना चाहिए, क्यों की सती स्त्री जहाँ रहती है वहां सभी सुख समृद्धियाँ, सम्पतियाँ स्वयमेव चली आती है। सतीं स्त्री देवीरुपा है, लक्ष्मीरूपा है। ऐसी स्त्री से रहित प्रासाद भी अरण्य के समान ही है। वेद में आया है कि यज्ञादि में इन्द्र देवता का आवाहन किया गया और हवि-ग्रहण के अनंतर गृह के लिए प्रयाणकाल के समय महर्षि विश्वामित्र इन्द्र को गृह और गृहणी की महिमा बताते हैं। कल्याणी स्त्री से युक्त स्थान चाहे वह जंगल ही क्यों न हो, उत्तम गृह ही है; क्यों की ऐसी स्त्री से संपन्न स्थान समस्त कल्याण-मंगल के जनक होते हैं।

Thursday, January 12, 2012

उत्तरायनी (घुघुतिया त्यौहार)

              कुमाऊ में मनाए जाने वाले घुघुतिया त्यौहार की अलग ही पहिचान है| त्यौहार का मुख्य आकर्षण कौवा है| बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे  को खिलते हैं| और कहते हैं "काले कावा काले घुघुति मावा खाले"|  बात उनदिनों की है जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे| राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी| उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था| उसका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा| एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी बाघनाथ के मन्दिर में गए और अपनी औलाद के लिए प्रार्थना की| बघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिअका नाम निर्भय चंद पड़ा| निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुति के नाम से बुलाया करती थी| घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिस में घुगरु  लगे हुए थे| इस माला को पहन कर घुघुति बहुत खुश रहता था| जब वह किसी बात पर जिद्द करता तो उसकी माँ उस से कहती कि जिद्द ना कर नहीं तो में माला कौवे को दे दूंगी| उसको डराने के लिए कहती कि "काले कौवा काले घुघुति माला खाले"| यह सुन कर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद्द छोड़ देता| जब माँ के बुलाने पर कौवे आजाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती| धीरे धीरे घुघुति की कौवों  के साथ दोस्ती हो गई|
               उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा| ताकि उसी को राजगद्दी मिले| मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा| एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया| जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा|  उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा| इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों  पर मडराने लगे| एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया| सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया| मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए| घुघुति जंगल में अकेला रह गया| वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए|
               जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा| जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी| माला सभी ने पहचान ली| इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा| सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जनता है| राजाऔर उसके घुडसवार कौवे के पीछे  लग गए| कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे|
              कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर  बैठ गया| राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है| उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया  और घर को लौट आया| घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए| माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता| राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया| घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे| घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया| यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया| तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मानते हैं| मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे घुघूत नाम दिया गया है| इसकी माला बना कर बच्चे मकर  संक्रांति के दिन अपने गले में डाल कर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-
"काले कौवा काले घुघुति माला खाले" ||
"लै कावा भात में कै दे सुनक थात"||
 "लै कावा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़"||
"लै कावा बौड़  मेंकै दे सुनौक घ्वड़"||
 "लै कावा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे"||
          इसके लिए हमारे यहाँ एक कहावत भी मशहूर है कि श्रादों में ब्रह्मण और उत्तरायनी को कौवे मुश्किल से मिलते हैं|

Tuesday, January 3, 2012

बचपन

छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान         
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे