एक गांव मे एक बुढ़िया रहती थी| उस का अपना कोई नहीं था| बुढ़िया बेचारी लोगों का कम करके अपना पेट भरती थी| जब कभी समय मिलता तो जंगल से गोबर इकठ्ठा करके उप्पलें(कंडे) बनाकर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थी|एक बार उसे कोई कागज ठाणे से तस्दीक करवाना था| ठाणे के कई चक्कर लगाने के बाद भी उसका कम नहीं बना|थानेदार से बात करने पर थानेदार ने १००० रूपये की मांग रख दी| बेचारी ने काफी कहा की मे एक गरीब औरत हूँ १००० रुपये कहाँ से लाउंगी | काफी तरले किये पर थानेदार ने उसकी एक नहीं सुनी| जब किसी तरह भी उसकी बात नहीं बनी तो बुडिया बेचारी ने अपना एकमात्र सहारा उप्पलों का ढेर बेच दिया उस से उसको सारे ही ५०० रुपये मिले| ५०० रुपये लेकर बुढ़िया थानेदार के पास गयी और ५०० रुपये थानेदार को देते हुए कहा की अब मेरा काम कर दे| मे अपना एक मात्र उप्पलों का ढेर बेच कर ये रुपये दे रही हूँ| थानेदार ने ५०० रुपये लेकर उसका काम कर दिया| जब थानेदार शाम को घर पहुंचा तो देखा की उसका बेटा बुखार से तड़प रहा था| उसने उसे डाक्टर को दिखया बहुत इलाज करवाया पर कोई फरक नहीं पड़ा| तीन चार दिनों के बाद कहीं जाकर बच्चा ठीक हुआ|बच्चे के ठीक होने के बाद जब घर गए तो थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा की आप ने किसी गरीब से कोई पैसे तो नहीं लिए जिसकी आह से हमारे बच्चे को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी| थानेदार को बुढ़िया की याद आई| उसने बताया की एक बुढ़िया से ५०० रूपया लिया था|थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा आप अभी उस बेचारी के पैसे वापिस करके आओ और बुदिया से माफ़ी मांगकर आगे से किसी गरीब से पैसे ना लेने की कसम खाओ| थानेदार उसीवक्त बुडिया के पास गया , बुडिया को पैसे देते हुए कहा की मुझे ये पैसे की जरुरत नहीं है यह पैसे रखलो| उसके बाद थनेदार ने बुडिया को सारी बात बता दी और कसम खाई की वह किसी गरीब से पैसे नहीं लेगा| के: आर: जोशी. (पाटली)
अफसोस,कि वह बुढिया तो अब भी हम सबके मोहल्ले में है मगर वे थानेदार कहीं नहीं दिखते।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कहानी है। श्रीमान जी हमारी साईट पर पधारने के लिए आपको धन्यवाद
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अच्छा हुआ कि अंत में सद्बुद्धि तो आई थानेदार को.
ReplyDeleteits very interesting story...i love it...
ReplyDeleteजोशी जी,
ReplyDeleteइस कहानी के माध्यम से यह प्रमाणित होता है कि , "बुरे काम का बुरा नतीजा". हो सकता है किसी थानेदार की पत्नी को बात समझ में आ जाये तो किसी जरूरतमंद गरीब का भला हो जाये.
नारायण भूषणिया