Tuesday, February 28, 2012

"पुर पुतइ पुरै पुर"

          ह  एक कुमाऊ  की पुरानी लोक कथा है| किसी गांव मे  एक गरीब परिवार रहता था | परिवार क्या था एक माँ थी एक बेटी थी| बेटी का नाम पुतइ  था| दोनों माँ बेटी जंगल से फल फूल तोड़  कर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थीं| एक दिन माँ जंगल मे फल फूल तोड़ने गई |बेटी को घर की रखवाली के लिए घर मे छोड़ गई| घर मे पहले दिन के कुछ फल पड़े हुए थे| माँ जंगल को जाते समय कह गई थी कि इन फलों का ध्यान रखना| इन फलों को कोई खा ना जाए| बेटी ने ऐसा ही किया| चिड़िया तोते आदि उड़ाती रही| शाम  को जब माँ घर आई तो देखा कि फल पहले से कम हैं क्यूंकि फल सूख चुके थे| सूखने के बाद वह कम हो गए| माँ ने गुस्से में आकर बेटी के सर में डंडा दे मारा और बेटी की मौत हो गई| रात को खूब बारिश होगइ उस से उसके फल भीग गए भीगने के बाद फल फिर से उतने ही हो गए |यह देख कर माँ को बहुत पछतावा हुआ कि फल तो पूरे ही हैं|मैंने बगैर सोचे समझे ही अपनी बेकसूर बेटी को मार डाला|और वह कहने लगी "पुर पुतइ पुरै पुर " अर्थात वह अपनी बेटी से कहती है कि बेटी फल तो पूरे के पूरे हैं| मैंने ही तुझे गलत समझ कर मार डाला है|वह इस गम को सहन नहीं कर सकी और पुर पुतइ पुरै पुर कहते हुए उसके भी प्राण निकल गए| कहते हैं अगले जन्म  मे उसने  घुघूती (फाख्ता)  के रूप मे जन्म  लिया और वह आज भी इधर उधर पेड़ों मे बैठ कर "पुर पुतइ पुरै पुर" पुकारती फिरती है| इसलिए बगैर सोचे समझे कोई काम  नहीं करना चाहिए|

Monday, February 20, 2012

"आत्मा की आवाज"

                किसी गांव में  एक गरीब ब्राह्मण  रहता था | ब्राह्मण  गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था| परमात्मा में  आस्था रखने वाला था | वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में  नहाने जाया करता था| नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था| रोज की  तरह वह एक दिन गंगा में  नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में  एक लिफाफा पड़ा हुआ है| उसने लिफाफा उठा लिया| लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण  हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे| रास्ते में  नोटों को गिनना  ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल  दिया| घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला | नोट गिनने पर पता चला कि  लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे| पहले तो ब्रह्मण ने सोचा कि भगवान  ने उस की सुन ली है| उसे माला माल  कर दिया है |
           
            ब्राह्मण  की ख़ुशी  जादा देर रुक नहीं सकी| अगले ही पल उसके दिमाग  में  आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों| सायद किसी ने अपनी बेटी की शादी  के लिए जोड़ कर रख्खे हों| उसकी आत्मा ने  आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये| वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल  दिया| अभी वह ग्राम प्रधान के आँगन  मे ही गया था उसे लगा कोई गरीब आदमी पहले से ही ग्राम प्रधान के घर आया हुआ है | वह भी उन के पास पहुँच गया| गरीब आदमी रो-रोकर प्रधान  को बता रहा  था की कैसे कैसे यत्नों से उसने पैसे जोड़े थे पर कहीं रास्ते में  गिर गए थे| सारी कहानी सुन ने पर गरीब ब्रह्मण ने जेब से पैसे निकले और उस गरीब आदमी को देते हुए कहा कि मुझे ये पैसे रास्ते में  मिले हैं| आप की कहानी सुन ने के बाद अब यकीन हो गया है कि ये पैसे आप के ही है| पैसे देखते ही गरीब के चेहरे पर रौनक  आ गई | गरीब ब्राह्मण  ने कहा पैसे गिन लीजिये| गरीब आदमी ने ब्राह्मण  का धन्यवाद करते हुए कहाकि पैसे तो पूरे ही हैं इसमे से में  आप को कुछ इनाम देना चाहता हूँ | गरीब ब्रह्मण ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया| ब्राह्मण  अपने घर को वापस  आ गया उस को इस बात की ख़ुशी थी कि  उसकी आत्मा की आवाज की जीत हुई है |
                                                     

 


Monday, February 6, 2012

कार्य सिद्धि की नीति

                                   नास्ति  विद्यासमं  चक्षुर्नास्ति  सत्यसमं  तप:|
                                   नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं  सुखम||
                                   उत्थातव्यं  जाग्रतव्यं  योक्तव्यं  भूति  कर्मसु |
                                   भविष्यतीत्येव   मन:  कृत्वा   सततमव्यथै:||


                  विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है, सत्य के समान कोई तप नहीं है, राग के समान कोई दुःख नहीं है, और त्याग के समान कोई सुख नहीं है| "मेरा कार्य अवश्य ही सिद्ध होगा"  ऐसा दृढ  निश्चय कर के मनुष्य को आलस्य छोड़ कर उठना चाहिए तथा प्रसन्नता और आशा के साथ कल्याणकारी उन्नति के साथ कार्यों में जुट जाना चाहिए|