Monday, August 30, 2010

माँ की नसीहत

            किसी गांव मे एक सेठ रहता था| सेठ के परिवार मे पत्नी और दो बच्चे थे| बेटा बड़ा था और उसका नाम गोमू था| बेटी छोटी थी उस का नाम गोबिंदी था| गोबिंदी घर मे सब से छोटी थी इस लिए सब की  लाडली थी| हर कोई उसकी फरमाइश  पूरी करता था| धीरे धीरे बच्चे बड़े हो गए| बेटा शादी लायक हो गया| सेठ ने एक सुन्दर सी लड़की देख कर बेटे की शादी कर दी| घर मे नईं बहु आ गयी| बहु के आने पर घर वालों का बहु के प्रति आकर्षण बढ गया| गोबिंदी कि तरफ कुछ कम हो गया | गोबिंदी इस को बर्दाश्त नहीं कर सकी| वह अपनी भाभी से इर्ष्या करने लगी| जब गोबिंदी की माँ को इस बात का पता चला तो उसने गोबिंदी को बुलाकर अपने पास बैठाया और नसीहत देनी शुरु करदी| देखो बेटी  जिस तरह तुम इस घर की  बेटी हो वैसे ही वह भी किसी के घर की  बेटी है| नए घर मे आई है| उसे अपने घर के जैसा ही प्यार मिलना चाहिए| क्या तुम नहीं चाहती हो कि जैसा प्यार तुम्हे यहाँ मिल रहा है वैसा ही प्यार तुम्हारे ससुराल मे भी मिले?
           अगर तुम किसी से प्यार, इज्जत पाना चाहती हो तो पहले खुद उसकी पहल करो| प्यार बाँटने से और बढता है| इस लिए तुम पहल  कर के अपनी भाभी से प्यार करो| वह इतनी बुरी नहीं है जितनी तुम इर्ष्या  करती हो| माँ की नसीहत को गोबिंदी ने पल्ले बांध लिया | अपनी भाभी को गले लगाकर प्यार दिया,और हंसी ख़ुशी साथ रहने लगे| जितना प्यार गोबिंदी ने अपनी भाभी को दिया उस से कहीं अधिक प्यार उसको मिला| इस लिए कभी किसी से इर्ष्या  नहीं करनी चाहिए| 
                                                                   के: आर: जोशी. (पाटली)                 
              

Thursday, August 19, 2010

|| एक टांग वाला बगुला ||

            क अंग्रेज भारत मे घूमने को आया| उसने भारत के कई राज्यों की सैर की| उसको भारत  पसंद आया और उसने कुछ दिन यहाँ ठहरने  का मन बनाया| अंग्रेज ने शहर मे एक घर किराए पर ले लिया| घर के काम काज निपटाने के लिए एक नौकर भी रख लिया| नौकर घर के सारे काम रोटी बनाने से लेकर कपड़े धोने तक का काम करता था| एक  दिन अंग्रेज कहीं से एक बगुला मार कर लाया और नौकर से कहा की इसको अच्छी तरह से तड़का लगाकर बनाना| नौकर ने पूरे दिल  से बगुले को बनाया पर बगुले  को भूनते समय उसने बगुले की एक टांग खा ली| उसने बगुले  को पलेट मे सजा कर अंग्रेज के आगे रख दिया| अंग्रेज ने देखा की बगुले की एक टांग गायब है|उसने नौकर को बुलाकर पूछा की इस बगुले की एक ही टांग है दूसरी कहाँ गई| नौकर ने जवाब दिया की बगुले की एक ही टांग होती है| अंग्रेज ने कहा की बगुले की दो टाँगें होती हैं| मे तुम्हें कल सुबह ही दिखा दूंगा | नौकर ने कहा ठीक है| अगले दिन दोनों बगुला देखने चले गए| झील के किनारे एक बगुला बैठा हुआ दिखाई दिया|बगुले ने एक पैर ऊपर उठा रख्खा था| नौकर ने कहा वह देखो बगुले का एक ही पैर है| अंग्रेज ने अपने दोनों हाथों से ताली बजायी| बगुले ने अपना दूसरा पैर नीचे किया और उड़ गया| अंग्रेज ने कहा वह देखो उसके दो पैर हैं| नौकर ने कहा आप  रात को प्लेट  मे रख्खे बगुले के सामने अपने हाथों से ताली बजाना ही भूल गए| अगर आप ने रात को भी ताली बजाई होती तो वह बगुला भी अपनी दूसरी टांग नीचे कर देता| अंग्रेज को कोई जवाब नहीं सूझा दोनों घर को वापिस आगये|                                                                के: आर: जोशी. (पाटली)

Friday, August 13, 2010

आप की कहानी, मेरी जुबानी

आप खुबसूरत हैं,
कोई मानता नहीं, अलग बात है|
आप के पास दिमांग है,
चलता नहीं, अलग बात है|
आप निहायत सरीफ है,
लगते नहीं, अलग बात है|
आप के पास मोबाईल है,
उठाते नहीं , अलग बात है|
आप की इज्जत काफी है,
कोई करता नहीं, अलग बात है|
                                    हम याद करते रहते हैं,
                                    आप भुला देते हैं,अलग बात है|
                                   आप की बेइज्जती हो रही है,
                                   आप हँस रहे हैं, अलग बात है|
                                    के: आर: जोशी. (पाटली)

Saturday, August 7, 2010

"गरीब की आह"

            क गांव मे एक बुढ़िया रहती थी| उस का अपना कोई नहीं था| बुढ़िया बेचारी लोगों का कम करके अपना पेट भरती थी| जब कभी समय मिलता तो जंगल से गोबर इकठ्ठा करके उप्पलें(कंडे) बनाकर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थी|एक बार उसे कोई कागज ठाणे से तस्दीक करवाना था| ठाणे के कई चक्कर लगाने के बाद भी उसका कम नहीं बना|थानेदार से बात करने पर थानेदार  ने १००० रूपये की मांग रख दी| बेचारी ने काफी कहा की मे एक गरीब औरत हूँ १००० रुपये कहाँ से लाउंगी | काफी तरले किये पर थानेदार ने उसकी एक नहीं सुनी| जब किसी तरह भी उसकी बात नहीं बनी तो बुडिया बेचारी ने अपना एकमात्र सहारा उप्पलों का ढेर  बेच दिया उस से उसको सारे ही ५०० रुपये मिले| ५०० रुपये लेकर बुढ़िया थानेदार के पास गयी और ५०० रुपये थानेदार को देते हुए कहा की अब मेरा काम कर दे| मे अपना एक मात्र उप्पलों का ढेर बेच कर ये रुपये दे रही हूँ| थानेदार ने ५०० रुपये लेकर उसका काम कर दिया| जब थानेदार शाम को घर पहुंचा तो देखा की उसका बेटा बुखार से तड़प रहा था| उसने उसे डाक्टर को दिखया बहुत इलाज करवाया पर कोई फरक नहीं पड़ा| तीन चार दिनों के बाद कहीं जाकर बच्चा ठीक हुआ|बच्चे के ठीक होने के बाद जब घर गए तो थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा की आप ने किसी गरीब से कोई पैसे तो नहीं लिए जिसकी आह से हमारे बच्चे को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी| थानेदार को बुढ़िया की याद आई| उसने बताया की एक बुढ़िया से ५०० रूपया लिया था|थानेदार की घरवाली ने थानेदार से कहा आप अभी उस बेचारी के पैसे वापिस करके आओ और बुदिया  से माफ़ी मांगकर आगे से किसी गरीब से पैसे ना लेने की कसम खाओ| थानेदार उसीवक्त बुडिया के पास गया , बुडिया को पैसे देते हुए कहा की मुझे ये पैसे की जरुरत नहीं है यह पैसे रखलो| उसके बाद थनेदार ने बुडिया को सारी बात बता दी और कसम खाई की वह किसी गरीब से पैसे नहीं लेगा|                  के: आर: जोशी. (पाटली)

Wednesday, August 4, 2010

"सफ़ेद झूठ"

किसी गांव मे दो भाई रहते थे| बड़े भाई का नाम सच था और छोटे भाई का नाम झूठ था| सच गोरे रंग का था और झूठ काले रंग का था| दोनों भाइयों का पहनावा भी अलग अलग था| सच हमेशा सफ़ेद पोशाक मे रहता था और झूठ काली पोशाक मे रहता था| सच इमानदार ,नम्र और परोपकारी था उस से किसी का दुःख देखा नहीं जाता था | दूसरी तरफ झूठ मे फरेब , मक्कारी,बेईमानी आदि भरी हुई थी|
सच की ईमानदारी और परोपकारी की डंके बजते थे उसकी ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी झूठ को इस बात से चिढ थी| और वह मौका ढूंढता फिरता था की कैसे सच की बदनामी हो| एक बार झूठ ने बेईमानी से सच के कपड़े चुरा लिए और सच का चोला पहन कर निकाल गया सच की बदनामी करने | उसने दुनियां मे लोगों को आपस मे लड़ा दिया जगह जगह धोखा धडी होने लगी| झूठ ने मनमाने ढंग से अत्याचार करके सच की बदनामी करनी शुरू कर दी लोगों मे हाहाकार मच गया| सच बेचारा बेबसी के कारन कुछ भी नहीं कर सकता था उसके पास सफ़ेद कपडे भी नहीं थे| वह दुबक कर अपने कमरे मे ही बैठा रहा| जब बात समझ से बाहर हो गई तो लोगों ने इस बात की तहकीकात की और पाया कि सच तो बाहर निकला ही नहीं है यह सारा उत्पात तो झूठ मचा रहा है वह भी सफ़ेद कपड़ों मे| झूठ तो अत्याचारों के लिए पहले ही बदनाम था सो लोगों ने उसका नाम सफ़ेद झूठ रख दिया| आज भी लोग जब किसी को झूठ बोलते हुए सुनते है तो कहते हैं की यह तो सफ़ेद झूठ है|
के: आर: जोशी. (पाटली)