Monday, October 14, 2013

गुरु नानक

गुरु नानक तीर्थाटन करते हुए मक्का-शरीफ पधारे। रात हो गई थी, अतः वे समीप ही एक वृक्ष के नीचे सो गए।

सबेरे उठे तो उन्होंने अपने चारों ओर बहुत सारे मुल्लाओं को खड़ा पाया। उनमें से एक ने नानक देव को उठा देख डांटकर पूछा, 'कौन हो जी तुम, जो खुदा पाक के घर की ओर पांव किए सो रहे हो?'

बात यह थी कि नानक देव के पैर जिस ओर थे, उस ओर काबा था। नानक देव ने उत्तर दिया, 'जी, मैं एक मुसाफिर हूं, गलती हो गई। आप इन पैरों को उस ओर कर दें जिस ओर खुदा का घर नहीं हो।'

यह सुनते ही उस मुल्ला ने गुस्से से पैर खींचकर दूसरी ओर कर दिए किंतु सबको यह देख आश्चर्य हुआ कि उनके पैर अब जिस दिशा की ओर किए गए थे, काबा भी उसी तरफ है। वह मुल्ला तो आग बबूला हो उठा और उसने उनके पैर तीसरी दिशा की ओर कर दिए किंतु यह देख वह दंग रह गया कि काबा भी उसी दिशा की ओर है।

सभी मुल्लाओं को लगा कि यह व्यक्ति जरूर ही कोई जादूगर होगा। वे उन्हें काजी के पास ले गए और उससे सारा वृत्तांत कह सुनाया। काजी ने नानकदेव से प्रश्न किया, 'तुम कौन हो, हिंदू या मुसलमान?'

'जी, मैं तो पांच तत्वों का पुतला हूं'- उत्तर मिला।

'फिर तुम्हारे हाथ में पुस्तक कैसे है?'

'यह तो मेरा भोजन है। इसे पढ़ने से मेरी भूख मिटती है।'

इन उत्तरों से ही काजी जान गया कि यह साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि कोई पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने उनका आदर किया और उन्हें तख्त पर बिठाया।

Wednesday, October 9, 2013

विश्वास

                     अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी| दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी| आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी| एक दिन वह एक  पार्क में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था| तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे| कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे. बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी| बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो| मेरा नाम जोहन डी रोकेफिलर है| मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो| इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.” फिर जेब से  चैक बुक निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे| तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.” इतना कहकर वो चले गए| युवक  अचम्भित था| रोकेफिलर तब अमेरिका  के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे| युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी| उसके पैरो को पंख लग गये| घर पहुंचकर वह अपने कर्जो का हिसाब लगाने लगा|
                  बीसवी सदी की शुरुआत में 10 लाख डॉलर बहुत बड़ी धनराशि होती थी और आज भी है| अचानक उसके मन में ख्याल आया. उसने सोचा एक अपरिचित व्यक्ति ने मुझपे भरोसा किया, पर मैं खुद पर भरोसा नहीं कर रहा हूँ| यह ख्याल आते ही उसने चेक को संभाल कर रख लिया| उसने निश्चय कर लिया की पहले वह अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा, पूरी मेहनत करेगा की इस मुश्किल से निकल जाए| उसके बाद भी अगर कोई चारा न बचे तो वो चैक  इस्तेमाल  करेगा| उस दिन के बाद युवक ने खुद को झोंक दिया| बस एक ही धुन थी, किसी तरह सारे कर्ज चुकाकर अपनी प्रतिष्ठा को फिर से पाना हैं| उसकी कोशिशे रंग लाने लगी| कारोबार उबरने लगा, कर्ज चुकने लगा| साल भर बाद तो वो पहले से भी अच्छी स्तिथि में था|
                  निर्धारित दिन ठीक समय वह बगीचे में पहुँच गया| वह चेक लेकर  रोकेफिलर की राह देख रहा था की वे दूर से आते दिखे| जब वे पास पहुंचे तो युवक ने बड़ी श्रद्धा से उनका अभिवादन किया| उनकी ओर चेक बढाकर उसने कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही था की एक नर्स भागते हुए आई और झपट्टा मरकर वृद्ध को पकड़ लिया| युवक हैरान रह गया| नर्स बोली, “यह पागल बार बार पागलखाने से भाग जाता हैं और लोगो को जॉन डी . रोकेफिलर  के रूप में चैक बाँटता फिरता हैं. ” अब वह युवक पहले से भी ज्यादा हैरान रह गया| जिस चैक के बल पर उसने अपना पूरा डूबता कारोबार फिर से खड़ा किया,वह फर्जी था| पर यह बात जरुर साबित हुई की वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती हैं| हम सभी यदि खुद पर विश्वास रखे तो यक़ीनन किसी भी असुविधा से सेनिपट सकते है| 

Tuesday, October 1, 2013

लक्ष्य

                  किसी गाँव मे एक साधु रहा करता था ,वो जब भी नाचता तो बारिस होती थी . अतः गाव के लोगों को जब भी बारिस की जरूरत होती थी ,तो वे लोग साधु के पास जाते और उनसे अनुरोध करते की वे नाचे , और जब वो नाचने लगता तो बारिस ज़रूर होती.
कुछ दिनों बाद चार लड़के शहर से गाँव में घूमने आये, जब उन्हें यह बात मालूम हुई की किसी साधू के नाचने से बारिस होती है तो उन्हें यकीन नहीं हुआ .
                 शहरी पढाई लिखाई के घमंड में उन्होंने गाँव वालों को चुनौती दे दी कि हम भी नाचेंगे तो बारिस होगी और अगर हमारे नाचने से नहीं हुई तो उस साधु के नाचने से भी नहीं होगी. फिर क्या था अगले दिन सुबह-सुबह ही गाँव वाले उन लड़कों को लेकर साधु की कुटिया पर पहुंचे. साधु को सारी बात बताई गयी , फिर लड़कों ने नाचना शुरू किया , आधे घंटे बीते और पहला लड़का थक कर बैठ गया पर बादल नहीं दिखे , कुछ देर में दूसरे ने भी यही किया और एक घंटा बीतते-बीतते बाकी दोनों लड़के भी थक कर बैठ गए, पर बारिश नहीं हुई.
                  अब साधु की बारी थी , उसने नाचना शुरू किया, एक घंटा बीता, बारिश नहीं हुई, साधु नाचता रहा …दो घंटा बीता बारिश नहीं हुई….पर साधु तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था ,धीरे-धीरे शाम ढलने लगी कि तभी बादलों की गड़गडाहत सुनाई दी और ज़ोरों की बारिश होने लगी . लड़के दंग रह गए और तुरंत साधु से क्षमा मांगी और पूछा- ” बाबा भला ऐसा क्यों हुआ कि हमारे नाचने से बारिस नहीं हुई और आपके नाचने से हो गयी ?”
                  साधु ने उत्तर दिया – ” जब मैं नाचता हूँ तो दो बातों का ध्यान रखता हूँ , पहली बात मैं ये सोचता हूँ कि अगर मैं नाचूँगा तो बारिस को होना ही पड़ेगा और दूसरी ये कि मैं तब तक नाचूँगा जब तक कि बारिस न हो जाये .”
                 सफलता पाने वालों में यही गुण विद्यमान होता है वो जिस चीज को करते हैं उसमे उन्हें सफल होने का पूरा यकीन होता है और वे तब तक उस चीज को करते हैं जब तक कि उसमे सफल ना हो जाएं. इसलिए यदि हमें सफलता हांसिल करनी है तो उस साधु की तरह ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होगा.