Sunday, May 30, 2010

बाघ नाथ (बागेश्वर )

देवभूमि उत्तराखंड मे एक जिला है बागेश्वर जो सरयू और गोमती के संगम पर बसा हुआ है | बागेश्वर एक सुन्दर  घाटी   मे बसा हुआ है इस के चारो तरफ ऊंची ऊंची पहारियां  है, यहाँ से कुछ दूरी पर झिरोली नाम की जगह है जो ताकुला बागेश्वर मार्ग मे स्थित है यहाँ पर मैग्नेशियम की खान है जो भारत मे बहुत कम जगह पर मिलती है|              
बागेश्वर  के नजदीक ही पिंडारी ग्लेशियर हैं जहाँ हमेशा  बरफ के गलेशियर बने रहते हैं | बागेश्वर मे बहुत पुराना शिव मंदिर है जो सरयू और गोमती के संगम पर है जिसे बाघ नाथ का मंदिर कहते हैं | इस मंदिर  के बारे मे कहा गया है कि जब सरयू सर्मूल से निकल कर जमीन मे बह रही थी तो सरयू को बागेश्वर नाम की जगह से होते हुए आगे जाना था जब सरयू बागेश्वर पहुंची तो देखाकि  कोई तपस्वी   रस्ते मे तपस्या  कर रहा है| सरयू उन की तपस्या को भंग नहीं करना चाहती थी| सरयू पीछे ही रुक गयी| पानी जमा होना शुरू  हो गया| आस पास के पहाड़  सरयू मे गिरने लगे पहाड़  मैदान मे बदलने लगा जिस को आज मंडल्सेरा कहते हैं| शिव जी को जब पता चला तो आश्चर्य मे पढ़ गए| शिव जी ने सोचा अगर सरयू आगे नहीं बढ़ी तो सारा पानी यहीं जमा हो जाएगा और पहाड़  पानी मे समां जाएगे  |                                                                                                                                                                                                                       इस समस्या   का समाधान करने के  लिए उन्हें  मार्कंडेय                           ऋषि  की तपस्या भंग करनी थी पर डर थाकि   कहीं   ऋषि श्राप न देदे  इस  लिए  इस  काम  के           लिए शिवजी  ने  पार्वती जी को सहायता करने को कहा|पार्वती जी सहायता के लिए तैयार   हो गईं| शिव  जी ने पार्वती    जी से कहा  तुम गाय का रूप धारण कर के ध्यान  मग्न मार्कंडेय ऋषि के पास जाना और मे बाघ का रूप धारण कर के तुम्हारे पास आऊंगा तो तुम जोर जोर से रम्भाना ताकि  मार्कंडेय ऋषि की तपश्या भंग हो जाए| शिव जी के बताए अनुसार पार्वती जी ने ऋषि के नजदीक जा कर गाय का रूप धर लिया और शिवजी भी बाघ का रूप धरके वहां पहुँच गए | जैसे ही शिवजी बाघ के रूप मे गाय के सामने गए गाय ने जोर जोर से रम्भाना शुरू कर दिया गाय की आवाज सुनते ही ऋषि की आँख खुल गयी सामने देखते हैं कि  गाय के पीछे बाघ पड़ा हुआ है तो ऋषि गाय को बचाने  के लिए उठ खड़े  हुए और गाय के पीछे भागे इतने मे सरयू को आगे जाने का रास्ता मिल गया और सरयू अपने गंतब्य की ओर चल दी इस तरह शिवजी ने ऋषि वर को यहाँ पर बाघ के रूप मे दर्शन दिए  बाघ के रूप मे दर्शन देने की वजह से यहाँ    का नाम बागेश्वर पड़ गया    ओर उसी  स्थान  पर शिवजी की बाघनाथ के रूप मे पूजा होने लगी| बाद मे यहाँ पर बाघ नाथ जी का मन्दिर स्थापित हो गया| जो सरयू और गोमती के संगम पर आज भी विधमान है|                                                                                                                                              बागेश्वर के नजदीक ही एक पर्यटक और धार्मिक  जगह  है  गौरीउद्दियार|  यहाँ  के  बारे मे कहा जाता है की जब शिवजी गौरा को बिआह कर कैलाश पर्वत              की  तरफ      को  जा रहे थे  तो रस्ते मे इस गौरिउद्द्यर नाम की जगह पर ठोढ़ी द्देर विश्राम के लिए गौरा की डोली       यहाँ पर उतारी गई थी | यहाँ पर डोली उतरने के निसान आज भी मौजोद हैं| यहाँ उद्द्यर का मतलब गुफा है| इस गुफा मे ही डोली के पैरों के निसान अंकित हैं|        

Saturday, May 29, 2010

राजकुमार और परी

           पहले  समय मे एक  प्रदेश मे  एक राजा राज्य  करते थे उन का नाम था जयेंदर उन का राज्य काफी दूर दूर तक फैला हुआ था .राजा  दयालु  थे और अपनी  परजा से काफी प्यार करते थे. परजा भी राजा को बहुत चाहती थी | राजा  का  एक बेटा था, जो काफी चतुर  और होनहार युवराज था, वह राजा के साथ राजकाज मे भी पूरा सहयोग देता था ,कोई भी समस्या उन के सामने टिक  नहीं  सकती थी  युवराज को शिकार करने का बहुत शौक  था | एक दिन युवराज के  मन  मे  आया कि  जंगल  मे  जाकर शिकार ही क्यों  न खेला जाए ? राजकुमार ने अपने दिल की बात राजा को बताई तो राजा ने भी ख़ुशी से आज्ञा दे दी,और उस ने राजकुमार को हिदायत भी की कि जहाँ भी कहीं रात गुजारोगे   वहां के हाल  चाल  किसी के द्वारा मेरे पास जरुर भेजना ताकि मै  तुम्हारी  तरफ  से  बेफिक्र  हो  के अपना काम चलाता रहूँ|  राजकुमार ने हांमी भर दी और अपने  सेवादारों को साथ  लेकर शिकार करने जंगल की तरफ चल दिए | उस के साथ काफी आदमियों का काफिला था| उन के पास खाने के अलावा काफी मात्रा मे हथियार थे ताकि  जरुरत के समय इस्तेमाल हो सकें | काफिला अपना पड़ाव  जंगल मे कहीं भी डाल लेता था | शिकार खेलते हुए राजकुमार धनुर विद्या मे पूर्ण रूप से निपूर्ण हो गया |काफिला शिकार खेलते हुए और मनोरंजन करते हुए आगे बढ़ते गया |
 एक दिन राजकुमार शिकार करते करते जंगल  मे कहीं दूर निकल गया और रास्ता भटक गया | काफिला राजकुमार से दूर हो गया | सेवक राजकुमार को ढूढ़ते रहे और राजकुमार सेवकों को | किसी का कोई पता नहीं चला| राजकुमार ने हिम्मत नहीं हारी वह काफिले को यहाँ वहां देखता रहा | चलते चलते उसे प्यास लग गयी नजदीक मे उसे कहीं पानी नहीं मिला| इतने बड़े  जंगल मे  वह अकेला पड़ गया| एक जगह कुछ रुका और अपने इष्ट  देवता को याद कर के फिर आगे बढ़ गया| जंगल की सायें सायें की  आवाजें  उस  के  कानों  मे  गूंजने लगी और रात  घिरने लगी आकाश  मे तारे टिमटिमाने लगे| घोडा   भी आगे चलने मे हिचकिचाने लगा| इतने बड़े  जंगल मे घोडा  ही राजकुमार का सहारा था| थोड़ी  दूर और चलने के बाद वे खुले स्थान पर आ गए |रात आधी  बीत चुकी थी और घोडा  और राजकुमार  दोनों प्यासे थे, थोड़ी  दूर जाने के बाद उन्हें एक तालाब  दिखाई  पड़ा  | राजकुमार और घोडा  दोनों थक चुके थे और पैर लड़खड़ा   रहे थे | अचानक राजकुमार  के  कानों  मे मधुर स्वर सुनाई दिए  | सामने देखा तो  तालाब  के  किनारे पर एक सुन्दर लड़की  सफ़ेद कपडे  पहने हुए मछलियों से बातें कर रही थी | मछलियाँ भी पानी मे उछल उछल कर बातें कर रहीं थी| राजकुमार यह सब देख कर हैरान हुआ और आश्चर्य मे पड़  गया | सोचने लगा की कितनी निकटता है इन मछलियों और लड़की  मे | वह हिम्मत करके आगे बढा| घोड़े  की पदचाप सुन कर लड़की  का ध्यान राजकुमार की तरफ गया|  पास पहुँच  कर  राजकुमार  ने  लड़की  से परिचय पूछा| लड़की  बोली आप खड़े  क्यों हैं ? नीचे  उतर कर बैठ जाइए |  राजकुमार  उतरके लड़की  के  नजदीक बैठ गया | राजकुमार  ने कहा  मे अभी मुसीबत का मारा हूँ आप अपने बारे मे परिचय दीजिए | लड़की  बोली मै भी  इन मछलियों की तरह ही एक मछली थी| परियों की रानी हर पूर्णिमा की रात को इस तालाब मे नहाने को आती थीं और  सारी रात नाचती और गाना गाती थीं | हम मछलियों को भी उन का नाचना गाना अछ्छा लगता हम भी उन के साथ नाचने लगते | एक बार परियों की रानी ने मुझे नाचते हुए  देख लिया और मेरा नाच देख कर बहुत प्रसन्न हुई | और  मेरी  तारीफ की | उन्होंने  मुझे परी  लोक चलने को कहा | राजकुमार लड़की  की बातों को ध्यान से सुन रहा था| फिर लड़की  बोलीं मै परी  लोक मे जाने को राजी हो गयी| परी  रानी ने सर झुका कर अपने देवता से मुझे परी  बनाने की परार्थना की| उनके देवता ने उनकी परार्थना स्वीकार कर ली|  और  मुझे परी  बना दिया| उसी दिन से मे उन सब के साथ परी लोक मे ही रहती हूँ | जब कभी जी करता है तो मै अपनी इन सहेलियों को मिलने  यहाँ आ जाया करती हूँ| उस के बाद राज कुमार  ने अपने बारे मे बताया और अपनी समस्या सामने रखी और बताया की वह सुबह से भूखा प्यासा ही घूम रहा है| परी  ने अपनी जादुई  ताकत से  राजकुमार  के  लिए खाना हाजिर किया | राजकुमार  ने खाना खाया  और पानी पिया | अपनी  भूख प्यास  मिटाकर घोड़े  के खाने का  इंतजाम किया| लड़की और राजकुमार बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे|  सुबह होने से पहले ही लड़की ने परी  लोक पहुंचना था|  अब परी जाने  को तैयार हुई  तो राजकुमार ने भी साथ चलने की इछ्छा जाहिर की| परी ने कहा की ऐसे करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है इस बात के लिए क्षमा  चाहती हूँ| आप मेरी इन सहेलियों से मिलने आ सकते हैं  आप के यहाँ आने पर ये आप का स्वागत करेंगी | अगर आप मुझे मिलना चाहें तो इसी तरह आधी रात को यहाँ आ जाना मे आप  को  जरुर  मिलूंगी|  अब मुझे देरी हो रही है आप भी अपने राज्य मे चले जाओ| परी ने राजकुमार को बताया की उसका काफिला उत्तर की ओर उसको ढूंढता  हुआ आ रहा है | न चाहते हुए भी परी, परीलोक की तरफ उड़ चली और राजकुमार घोड़े  पर बैठ कर परी के बताए हुए रास्ते  की तरफ अपने काफिले की खोज मे चल पड़ा  | कुछ दूरी पर ही उसे अपने काफिले के लोग मिलगये | काफिले  के  साथ राजकुमार अपने राज्य मे लौट  आया | राजकुमार को इस बात का दुःख था की वह परी के साथ नहीं जा सका पर उस को इस बात की ख़ुशी थी की उसकी दोस्ती एक परी के साथ होगयी है जो मुसीबत के समय उसके काम आई | राजकुमार का जब भी दिल करता वह परी को मिलने आधी रात मे तालाब के किनारे आ जाता दोनों घंटों बैठ कर बातें करते इस तरह उन का समय हसी ख़ुशी से कट ता  रहा|और दोनों को अपनी दोस्ती पर नाज था|
                                            के:आर: जोशी (पाटली)

Thursday, May 13, 2010

यात्रा

सैर करना आदमी की फितरत में है. आदमी अपनी जिन्दगी में काफी लम्बा सफ़र तय करता है, लेकिन पूरे परिवार के साथ सैर करने का अपना ही मज़ा है, खास कर जब कुदरत और भगवन दोनों के दर्शन एक साथ हो. ऐसी जगह केदारनाथ बद्रीनाथ के सिवाय और कहाँ मिल सकती है. इस लिए हमने फैसला किया की गर्मी के मौसम मे उत्तराखंड के चार धामों में से दो धाम बद्रीनाथ धाम और केदार नाथ के दर्शन किए जाएँ. यहाँ के दरवाजे मई आखिर मे खुलते हैं तो हमने जून शुरू में जाने का प्रोग्राम बनाया उस साल बद्रीनाथ के कपाट २४ मई को खुले. हमने २ जून को जाने का फैसला किया और सारा परिवार हरिद्वार मे एकत्र हो गए और होटल में कमरा लेकर ठहर गए. सुबह अमृत वेले हम सबने हर की पौढ़ी में गंगा जी में दुबकी लगाई, पानी काफी ठंडा था दाँत बज रहे थे फिर भी दुबकी लगाने में मज़ा आ रहा था नहा कर प्राचीन गंगा मंदिर में माथा टेक कर हम कमरे की तरफ बढ़ गए कमरे से तैयार हो कर बाज़ार की तरफ को आगये नास्ता किया और आगे के सफर के लिए बस का टिकट और टाइम पता करने गए पता चला की देवभूमि केदार नाथ के लिए बस ऋषिकेश से चलती है तो हम दिन में माता मनसा देवी के मंदिर में रोप्वेज से चले गए और माँ मनसा देवी के दर्शन किये उप्पर से सारे हरिद्वार का विहंगम दृश्य देखने को मिला हर तरफ मंदिर ही मंदिर दिख रहे थे और गंगा की लहरें इठला रही थी मनो सभी देवी देवता हरिद्वार में ही बसते हों जी न होते हुए भी हमें वापिस आना पढ़ा क्योंकि रात हमें ऋषिकेश में बितानी थी, ऋषिकेश पहुँच कर बस टिकट का इंतजाम कर के साम को हम पर्मार्थनिकेतन में चले गए वहां पर उस समय स्वामी चिदानन्द जी महाराज आरती उतार रहे थे ,सो हम भी आरती स्थल पर दर्शन करने पहुँच गए वहां का द्रश्य देखते ही बन रहा था, गंगा जी के किनारे पर आरती हो रही थी सामने शिव जी की परतिमा गंगा जी में विराजमान थी ऐसा लग रहा था मनो सीधे स्वर्ग से उतर आये हों,आरती के बाद हम लोग खाना खाने होटल में गए और फिर ग: मं निगम के विश्राम घर में रातबिताने चले गए , सुबह ५ बजे बस ने केदार नाथ को चलना था सो हम जल्दी सो गए सुबह टाइम पर उठ कर तैयार हो गए ,चाय पीकर हम बस में बैठ गए और बस केदारनाथ की तरफ चल दी, सब से पहले देव प्रियाग आया जहाँ पर भागीरथी और अलकनंदा का संगम है,यहाँ पर शिव जी और रघुनाथ जी के मंदिर हैं, दोपहर २ बजे के करीब हम गौरीकुंड पहुँच गए, गौरीकुंड मई रुकने के बजाई हमने केदारनाथ की तरफ को चलना ही ठीक समझा तो चाय पानी पी कर ऊपर को चल दीए यह चढ़ी १४ की;मी; की है आधे रस्ते मेराम्वाधा आता है यहाँ पर कुछ दुकानें चाय पानी की हैं छिपानी पी कर फिर चल दिए , रत होते होते हम केदारनाथ पहुँच गए , यहाँ पर ठण्ड काफी थी हमने कमरे का इंतजाम किया और चाय पी कर बिस्तरों मे बैठ गए कब नींद आई पता ही नहीं चला कियों की सभी थके हुए थे सुबह ४ बजे उठ कर देखा तो गरम पानी वाला आवाजें दे रहा था हमने भी उस से पानी लिया और मुंह हाथ धो कर तैयार हो गए , ठण्ड की वजह से नहाने की हिम्मत किसी को नहीं आई ५बजे तक हम मंदिर मे पहुँच गए हमारे जाने से पहले ही वहां लाइन लग चुकी थी हमभी लाइन मे लग गए हमारी बरी आने पर पुजारी जी ने हम से पूजा करवाई और बताया की यहाँ पर शिव जी की पूजा बर्ष के पीठ के रूप मे होती है कियूं की यहाँ पर शिवजी ने पांडवों कोबैल के रूप मे दर्शन दिए थे पूजा के बाद हम आदि गुरु शंकराचार्य जी की समाधी पर गए जिन्हों ने केदार नाथ कीस्थापना की थी समाधी मे माथा टेक कर ठोढ़ी देर हम वहां घुमे खाना खाया और वापिस गौरीकुंड को चल दिए,गौरीकुंड पहुँच कर होटल मई कमरा लेकर हम आगे के सफ़र के लिए बस का पता करने गए बस के टिकट हमें साम को ही मिल गए , वापिस आ कर खाना खाकर होटल मई आराम करने चले गए अगले दिन सुबह ही हम बद्रीनाथ को चल दिए, श्रीनगर होते हुए हम रुद्द्रप्रियाग पहुंचे जहाँ पर अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम है आगे गौचर होते हुए करनप्रियाग पहुंचे जहाँ पर पिंडारी और अलाक्नाब्दा का संगम है, फिर नन्द प्रियाग होते हुए पीपलकोटी मई दिन का खाना खाया, पीपलकोटी काफी सुन्दर जगह है,यहाँ से हम जोशीमठ पहुंचे जहाँ पर ५कि; मी; लम्बा जम लगाहुआ था ३ घंटे बाद जाम खुला तो हम आगे बढ़ पाए आगे का रास्ता एकतरफा है रात होते होते हम बद्रीनाथ पहुँच गए, वहां रात को कोई होटल या धरमसाला खली नहीं मिला ढूंढते होए हम ग;मं; निगम के होटल पहुँच गए वहां पर कमरे खाली थे हमने वहीँ कमरे बुक करवा लिए।खानखा के हम लोग आराम से सो गए, सुबह उठ कर मंदिर मे गए पूजा की थाली लेकर हम कुंड की तरफ हो लिए जहाँ गरम पानी निकलता है ,गरम पानी से मुंह हाथ धोकर हम मंदिर मे चले गए पूजा अर्चना के बाद हम लोग बाज़ार की तरफ घूमने चले गए घूम फिर के थोढ़ा आराम करने कमरे मे आगये साम के वक्त बस का पता करने गए तो पता चला की आज की बुकिंग ख़तम हो चुकी है, हम वापिस कमरे मे आगये दुसरे दिन टिकटों का इंतजाम कर के हम माना गांव देखने चले गए जो बद्रीनाथ से ३ की:मी: की दूरी पर है हम पैदल ही कुदरत के नजारेलेते माना गांव पहुँच गए यहाँ से कुछ दूरी पर पर गणेश गुफा और विष्णु गुफा हैं यहाँ पर अलकनंदा के उप्पर भीमपुल भी है जो कभी भीम ने नदी पार करने को बनाया था यहाँ पार सरश्व्ती और अलकनंदा का संगम है कुदरत की वादियुं का नज़ारा लेते हुए हम वापिस बद्रीनाथ आगये अगले दिन सुबह ही हम हरिद्वार के लिए वापिस हो गए दिन का खाना गौचर मे खाया और साम को हरिद्वार पहुँच गए वहां से अगले दिन एक और सुखद यात्रा की कामना करते हुए सब ने विदाई ली , और मानसा अपने घर वापिस आगये|
                                              के:आर:जोशी (पाटली)

Wednesday, May 12, 2010

पाटली ( मेरा गांव)

भारत वर्ष मे एक राज्य है उत्तराखंड जो उत्तर प्रदेश से अलग हुआ राज्य है. इस राज्य मे एक जिला है बागेश्वर जो अल्मोरा जिले से अलग हुआ है. बागेश्वर जिले मे एक खंड है बैजनाथ. बैजनाथ खंड मे एक गांव है पाटली. पाटली एक बहुत सुन्दर गॉंव है. यह गॉंव कौसानी गरूर पैदल मार्ग मे बसा हुआ है यह गॉंव तीन भागों मे बटा हुआ है पार की धार, बीच की धार और कोटुली धार गॉंव के सभी लोग मिलजुल कर रहते है ,यह गॉंव समुन्दर ताल से ५००० फुट की ऊंचाई पर बसा हुवा है. यहाँ की मुख्या फसल धान  और गेहूं हैं, जों मडुवा सहायक फसलें हैं. दालों मे भट (काला सोयाबीन) मांस, गहत ,मसूर आदि होतीं हैं , तेल के लिए सरसों, तिल आदि होती हैं। यहाँ के लोग खेती का काम  मिलजुल कर करते हैं .यहाँ की खेती जैविक ढंग से की जाती है पहाढ़ी ककढ़ी खाने मे काफी सवाद होती है जो खीरे की तरह ही होती है पर उस से काफी बढ़ी होती है यहाँ पर फलों मे नासपाती, आरू खुमानी, आलूबुखारा , अखरोट होते हैं । एक फल ऐसा भी होता है जो सिर्फ पहाढ़ मे ही मिलता है, इसे काफल कहते हैं यह फल बहार नहीं जा सकता है क्यूँ की एक दिन से ज्यादा नहीं रहता। खाने मे खट्टा मीठा सवादिस्ट होता है इस गॉंव के नीचे एक नदी बहती है जिसे घटगाढ़ कहते हैं इस नदी को घटगाढ़ इस लिए कहते हैं क्यूँ की यहाँ नदी के किनारे पहले से पानी से चलने वाली पनचक्की हुआ करती थीं पर अब उनकी जगह बिजली वाली चक्की ने लेली है , इस गांव के ऊपर एक सरकारी जंगल है जिसे मोहर्पाली का जंगल कहते हैं ,यह जंगल चीढ़ के पढ़ों से भरा हुआ है ऐसा लगता है मानो इस गांव के शिर पर मकुट बिराजमान हो , इस गांव के लोग परमात्मा मे आस्था रखने वाले हैं यहाँ गांव के नजदीक एक शिवालय है जहाँ लोगों की मनोकामना पूरी होती है कहते हैं की एक बार एक आदमी यहाँ से घंटियाँ चुरा के जा रहा था तो वह अन्धा हो गया जब उसने घंटियाँ नीचे रखीं तो उसे फिर से दिखाई देने लग गया ,फिर दुबारा उसने घंटियाँ उठाई और चलने लग गया तो फिर अन्धा हो गया जब दो तीन बार ऐसा हो गया तो वह आदमी घंटियाँ वहीँ छोढ़ कर भाग गया, यहाँ से ठोढ़ी दू री पर कोट की माई    का मंदिर है कोट किले को कहते हैं यह मब्दिर भी एक किले के ऊपर स्थित है ,यह मंदिर भारमरी देवी का है यहाँ पर देवी की पीठ की पूजा होती है .हमरे गांव के नजदीक बैजनाथ में काफी पुराने मंदिर हैं जो पुरातत्व बिभाग ने अपने कब्जे मे ले रख्खे हैं | इस तरह कुदरत के रंगों मे रंगा है मेरा गांव | परमात्मा करे मेरा गांव दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की  करे ,यही मनोकामना करते हुए कलम को बिराम देता हूँ |                     के: आर: जोशी (पाटली)

Sunday, May 9, 2010

"हिमालय की गोद में"

हिमालय  कि  गोद  में  एक  छोटा  सा  गांव  है  जिस  में  रहने  वाले  लोगों  के  दिल  बहुत  बड़े  बड़े   हैं|. इस  गांव  का  नाम  पाटली  है  जोकि  जिला  बागेश्वेर के  कौसानी  बैजनाथ [गरूर] के  पैदल  मार्ग  मे  बसा  हुवा  है  इस  गांव  ने  भारतीय  फौज  को  बहुत  सारे  जवान  दीए  हैं |. गांव  में  प्रायमरी  स्कूल  तक  ही  पढाई  होती  है ,अब  लड़कियों  के  लिए  मिडल  स्कूल  भी  खुल  चुका  है  फिर  भी  लड़कों  को  काफी  दूर  दूर  तक  जाकर  अपनी  पढाई  पूरी  करनी  पड़ती है |. अपनी  मेहनत  और  लगन  से  पढाई  पूरी  करने  के  बाद  इस  गांव  के  लोग  कई  सरकारी  और  गैर  सरकारी  क्षेत्रों  में  अपना  अहम्  योगदान  दे  रहे  हैं |. यहाँ  के  लोग  पढ़े  लिखे  होने  के  बाबजूद  काफी  भोले  भाले और  इमानदार  हैं |.गांव  के  सभी  लोग  मिलजुल  कर  रहते  हैं |  अपने  सभी  कामों  को  मिलजुल  कर  निजी  काम  समझकर  निभाते  हैं |. सभी गांव  वासी  मिलकर  त्यावाहार,उत्सव  आदि  मानते  हैं |. होली  के  मौके  पर  तो  सारे  गांव  के  आदमी  मिलकर  घर  घर  जाकर  होली  गाते  हैं  और  फूलने  फलने  का  आशीर्वाद  देते  हैं |. हमारे  गांव  कि  भाषा थेट  पहाड़ी  [कुमांउनी ] है   पर  होली  खड़ीबोली  मैं  ही  गाई जाती  है |. पुराने  लोगों  मे  एक  गिरीश  चाचा  हैं  जो  होली  गाने मे  मुहारत रखते  हैं | उन  के  बगैर  होली  अधूरी   ही  मानी   जाती  है |. गांव  के  पुराने  लोग  गरीबी  मे  ही  गुजारा  करते  रहे  हैं  लेकिन  आज    दुनियां   के  साथ  साथ  इस  गांव  के  लोगों  ने  भी  तरक्की  के  लिए  कदम  आगे  बढ़ाए  हैं  और  आगे  तरक्की  की और  अग्रसर  हैं |. गांव  के  नजदीक  गाड़ी  की  सड़क  भी  आ  चुकी  है .पहले  लोगों  को  मीलों  दुरी  से  अपने  रोज  मर्रा  की  चीजों  को  सर  मे  लाद कर  पैदल  ही  लाना  पड़ता  था|. गांव  के  पास  कोई  फालतू  जमीन  ना  होने  की  वजह  से  यहाँ  अभी  तक  कोई  इंटर  कॉलेज, हॉस्पिटल  आदि  का  पर्बंध  नहीं  हो  सका  है|. इस  गांव  की  आबादी  450 के  करीब  और  घरों  की  गिनती  100 के  करीब  है |.
इस  गांव  मे  भुरून  हत्या  जैसा  पाप  कोई  नहीं  करता  इस  बात  का  अन्तजा  इस  बात  से  लगाया  जा  सकता  है  की  इस  गांव  की  महिलाओं  का  औसत 1200 महिला  प्रति  1000 पुरुस  है . 88% लोग  सक्सर  हैं  और  धार्मिक  प्रबिरिती के  हैं  इस  गांव  मे  जोभी  फसल  तैयार  होती  है  उस  का  पहला  अंश  भूमियाँ  देवता  को  चडाया जाता है क्युकी  लोगों  मे  ये  विस्वास ब्याप्त  है  की  भूमियाँ  देवता  ही  हमरि  खेती  की  रक्षा  करते  हैं |. गांव  वालों  के  अपने  घरों  मे भी  अपने  अपने  इष्ट  देवता  की  सथपना की  होती  है  और  उस  पर  पूरा  भरोसा  जताया  जाता  है, ऐसा मना  जाता  है  की  इष्ट  देवता  की  ही  मेहरबानी  से  गांव  तरक्की  की  और  आगे  बढ़  रहा  है , गांव  के  इष्ट  गोलू, नरसिंह , देवी आदि  को  माना जाता  है  और  पूजा  की  जाती  है|. लोग  अपने  इष्ट  देवता  को  खुश  करने  के  लिए  जगर  भी लगाते  हैं  और  मनौती  मांगते  हैं |.
इन्हीं  शब्दों  के  साथ  आज  के  लिए  कलम  को  बिराम  देता  हूँ  "बोलो  इष्ट  देवता  की  जय" K. R. Joshi

Mother`s Day

Mother`s day ma or bachchon ke lie ek khas mauka hota hai jab bachchon ko ma ke lie kuchh karne ka maoka hota hai, wese to ma bachche ke janam se lekar apane aakhari sans tak apane bachchon ke parti samrpit rahti hai', bachchonki khatir wah har kurbani dene ko tayar rahti hai hartarh se apane bachchon ko pyar karti hai or apane bachchon ke bhawisya ke bare man bahut unche unche sapne sanjoe rakhti hai, wah ma dhanya ho jati hai jis ke bachche us ke sapnon ko sakar kar dikhate hai , or yah hi ek ma ko apane bachchon ki tarf se sachcha upahar mil jata hai, ma ke payar ki koi seema nahin hoti hai na hi ma ke payar ko kisi paimane se napa/tola ja sakta hai, bachche chahe kitni hi galtian kayou na karlen ma ki anteratama kabhi bhi unhain baddua nahin deti sada un ke lie subhkamna ki hi kamna karti hai is ke eawaj mai ma bachchon se koi khas kamna bhi nahin rakhti hai islie bachchun ko chahie ki wo bhi apane mabaap ko samrpit hon or unka aashirwad pane ki chahat rakhen. Yahi Unka sachcha uphaar hoga. kiyoun ki ma ke charnon me hi sara sansar hai or unko barambar pranam hai. mother`s day ki subh kamnaon sahit.

K.R. Joshi
VPO Patli

Saturday, May 8, 2010

The Natural Beauty "प्राक्रतिक सौन्दर्य"

हमारा  गॉव एक  बहुत  ही  सुंदर  घाटी  मे  बसा  हुवा  है |. हमारे  गॉव  का  नाम  पाटली  है  जो  बैजनाथ [गरूर] के   नजदीक  है |. हमारे  गॉव  के  ठीक  सामने  कौसानी  है  जिसे  कभी  गाँधी  जी  ने  "स्वीटज़र्लेंड ऑफ़  इंडिया" का नाम  दिया  था| जहाँ  से  त्रिसुली, पंच्सुली, नंदादेवी  नंदाकोट, कमेट  आदि  बर्फीली  पहाड़ियों  के  मनोहर  द्रश्य देखने  को  मिलते  हैं  और  जहाँ  से  सन  राइज  तथा  सन  सैट का    द्रश्य देखते  ही  बनता है, ऐसा  लगता  है  कि मनो  हिमालय  की  बर्फीली  पहाड़ियों  पर  सोने  की  परत  चढ़ा  दी  गई  हो |. कौसानी  मे  एक  डाकबंगला  है  जिस  को  कस्तूरबा  आश्रम भी  कहते  हैं  और  एक  स्टेट  बंगला  है  जहाँ  से  ये  मनोरम  द्रश्य  देखे  जा  सकते है|
                                                    K.R. Joshi (Patali).