भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद भयं
माने दैन्य भयं बले रिपुभयं रुपे जराया भयं||
शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताभ्दयं
सर्व वस्तु भयावहं भुवि नृणा बैराग्य मेवाभयं||
भोग में रोग का भय है,ऊँचे कुल में पतन का भय है, धन में राजा का भय है मान में दीनता का भय है, बल में शत्रुका भय है तथा रूप में बृद्धावस्था का भय है, शास्त्र में वाद-विवाद का भय है, गुण में दुष्ट जनों का भय है तथा शरीरमें कालका भय है| इस प्रकार संसार में मनुष्य के लिए सभी वस्तुएं भयपूर्ण हैं, भय से रहित तो केवल बैराग्य हीहै|
सर्व वस्तु भयावहं भुवि नृणा बैराग्य मेवाभयं||