किसी शहर में एक सेठ रहता था। सेठ का
एक बेटा था। सेठ के बेटे की दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से थी जिनकी आदत ख़राब
थी। बुरी संगत में रहते थे। सेठ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। सेठ ने अपने
बेटे को समझाने की बहुत कोशिस की पर कामयाब नहीं हुआ। जब भी सेठ उसको
समझाने की कोशिस करता बेटा कह देता कि में उनकी गलत आदतों को नहीं अपनाता।
इस बात से दुखी हो कर सेठ ने अपने बेटे को सबक सिखाना चाहा। एक दिन सेठ
बाज़ार से कुछ सेव खरीद कर लाया और उनके साथ एक सेव गला हुआ भी ले आया। घर
आकर सेठ ने अपने लड़के को सेव देते हुए कहा इनको अलमारी में रख दो कल को
खाएंगे। जब बेटा सेव रखने लगा तो एक सेव सडा हुआ देख कर सेठ से बोला यह
सेव तो सडा हुआ है। सेठ ने कहा कोई बात नहीं कल देख लेंगे। दुसरे दिन सेठ
ने अपने बेटे से सेव निकले को कहा। सेठ के बेटे ने जब सेव निकले तो आधे से
जादा सेव सड़े हुए थे। सेठ के लड़के ने कहा इस एक सेव ने तो बाकि सेवों को भी
सडा दिया है। तब सेठ ने कहा यह सब संगत का असर है। बेटा इसी तरह गलत संगत
में पड़ के सही आदमी भी गलत काम करने लगता है। गलत संगत को छोड़ दे। बेटे की
समझ में बात आ गई और उसने वादा किया कि अब वह गलत संगत में नहीं जाएगा।
हमेसा आच्छी संगत में ही रहेगा। इस लिए आदमी को कभी भी बुरी संगत में नहीं
पड़ना चाहिए।
Monday, May 28, 2012
Saturday, May 12, 2012
अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए
किसी
जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह
नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता
था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया
हुआ था तो उसे काले रंग का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख
कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण बाण से उस पर प्रहार किया|
बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील
पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों
से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर
गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को
वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी
दोनों भूमि पर धराशाइ हो गए|
उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील
दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल
है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे
उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस
मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर
दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर टूट गई, जिस से धनुष का अग्र
भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़
कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत हुयी लोमड़ी की भयानक एवं
पीड़ा दायक मृत्यु हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|
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