बर्लिन विश्वविध्यालय ने शंख ध्वनि का अनुसंधान कर के यह सिद्ध कर दिया कि शंख-ध्वनिकी शब्द-लहरें बैक्टीरिया को नष्ट करनेके लिए उत्तम एवं सस्ती औषधि है। प्रति सेकेण्ड सत्ताईस घन फुट वायु-शक्तिके जोर से बजाय हुआ शंख 1200 फुट दूरी के बैक्टीरिया को नष्ट कर डालता है और 2600 फुट की दूरी के जन्तु उस ध्वनि से मूर्छित हो जाते हैं। बैक्टीरिया के अलावा इस से हैजा, मलेरिया और गर्दनतोड़ ज्वर के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं; साथ ही ध्वनिविस्तारक स्थान के पास के स्थान निसंदेह कीटाणु रहित हो जाते हैं। मिर्गी मूर्छा, कंठमाला और कोढ़ के रोगियों के अन्दर शंख-ध्वनिकी प्रतिक्रिया रोग नाशक होती है। डॉ डी ब्राइन ने 1300 बहरे रोगियों को शंख-ध्वनि के माध्यम से अब तक ठीक किया है। अफ्रीका के निवासी घंटे को ही बजाकर जहरीले सर्पके काटे हुए मनुष्य को ठीक करनेकी प्रक्रियाको पता नहीं कब से आज तक करते चले आ रहे हैं। ऐसा पता चला है कि मास्को सैनिटोरियम में घंट-ध्वनि से तपेदिक रोग को ठीक करने का प्रयोग सफलता पूर्वक चल रहा है।
एकबार बर्मिघम में एक मुक़दमा चलरह था। तपेदिक के एक रोगी ने गिरजाघर में बजने वाले घंटे के सबंध में अदालत में यह किया था कि इसकी ध्वनि के कारण मेरा स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा है तथा इस से मुझे काफी शारीरिक क्षति हो रही है। इस बात पर अदालत ने तीन प्रमुख वैज्ञानिकों को घंटा-ध्वनिकी जाँच के लिए नियुक्त किया। यह परीक्षण सात महीनों तक चला और अंत में वैज्ञानिकों ने यह घोषित किया कि घंटे की ध्वनिसे तपेदिक रोग ठीक होता है न कि इस से नुकसान। साथ ही तपेदिक के अलावा इस से कई शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं तथा मानसिक उत्कर्ष होता है।