नया साल 2013 आप लोगों के लिए खुशियों भरा हो मंगलमय हो भगवान आप सब की मनोकामना पूर्ण करे और आप सब नए साल 2013 में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करें| यह मेरी आप सब के लिए हार्दिक शुभकामना है| नए साल के आगमन पर आइए हम संकल्प करें कि हम इस देश के सच्चे नागरिक बनें| अंत में आप सब को नए साल 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ|
Monday, December 31, 2012
Tuesday, October 23, 2012
कलिन्दनन्दिनी
सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमन्जुला तटोंत्थफ़ुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसुज्ज्वाला|
जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा धुनोतु में मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा ||
जिसके तटवर्ती मन्जुल निकुन्ज सदा ही नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की लीलाओं से सुशोभित होते हैं; किनारे पर बढ़ कर खिली हुई मल्लिका और कदम्ब के पुष्प-परागसे जिसका वर्ण उज्जवल हो रहा है, जो अपने जल में डुबकी लगाने वाले मनुष्य को भवसागर से पर कर देती है, वह कलिन्द-कन्या यमुना सदा ही हमारे मानसिक मलको दूर बहावे|
जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा धुनोतु में मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा ||
जिसके तटवर्ती मन्जुल निकुन्ज सदा ही नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की लीलाओं से सुशोभित होते हैं; किनारे पर बढ़ कर खिली हुई मल्लिका और कदम्ब के पुष्प-परागसे जिसका वर्ण उज्जवल हो रहा है, जो अपने जल में डुबकी लगाने वाले मनुष्य को भवसागर से पर कर देती है, वह कलिन्द-कन्या यमुना सदा ही हमारे मानसिक मलको दूर बहावे|
Wednesday, July 11, 2012
अन्धकासुर
बहुत समय पहले की बात है| हिरण्याक्ष का एक बेटा था, जिसका नाम अन्धक था|
अन्धक ने तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी की कृपा से न मारे जाने का वर
प्राप्त कर के त्रिलोकी का उपभोग करते हुए इन्द्रलोक को जीत लिया और वह
इन्द्र को पीड़ित करने लगा| देवतागण उस से डर कर मंदरपर्वत की गुफा में
प्रविष्ट हो गए| महादैत्य अन्धक भी देवताओं को पीड़ित करता हुआ गुफा वाले
मंदरपर्वत पर पहुँच गया| सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की| यह सब
वृतांत सुन कर भगवान शिव अपने गणेश्वरों के साथ अन्धक के समक्ष पहुँच गए
तथा उन्हों ने उसके समस्त राक्षसों को भस्म कर के अन्धक को अपने त्रिशूल से
बींध डाला| यह देख कर ब्रह्मा, विष्णु आदि सभी देवगण हर्षध्वनि करने लगे|
त्रिशूल से बिंधे हुए उस अन्धक के मन में सात्विक भाव जागृत हो गए| वह
सोचने लगा- शिव की कृपा से मुझे यह गति प्राप्त हुई है| अपने पुण्य-गौरव के
कारण वह अन्धक उसी स्थिति में भगवान शिव की स्तुति करने लगा| उसकी स्तुति
से प्रसन्न हो कर भगवान शंकर दयापूर्वक उसकी ओर देखते हुए बोले- हे अन्धक!
वर मांगो, तुम क्या चाहते हो? अन्धक ने गदगद बाणी में महेश्वर से कहा- हे
भगवन! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मुझे यही वर प्रदान करें की आप में मेरी
सदा भक्ति हो|
अन्धक का वचन सुन कर शिव ने उस दैत्येन्द्र को अपनी दुर्लभ भक्ति प्रदान की और त्रिशूल से उतार कर उसे गणाधिपद प्रदान किया|
अन्धक का वचन सुन कर शिव ने उस दैत्येन्द्र को अपनी दुर्लभ भक्ति प्रदान की और त्रिशूल से उतार कर उसे गणाधिपद प्रदान किया|
Saturday, June 23, 2012
शंख और घंटा-ध्वनीसे रोगों का नाश
बर्लिन विश्वविध्यालय ने शंख ध्वनि का अनुसंधान कर के यह सिद्ध कर दिया कि शंख-ध्वनिकी शब्द-लहरें बैक्टीरिया को नष्ट करनेके लिए उत्तम एवं सस्ती औषधि है। प्रति सेकेण्ड सत्ताईस घन फुट वायु-शक्तिके जोर से बजाय हुआ शंख 1200 फुट दूरी के बैक्टीरिया को नष्ट कर डालता है और 2600 फुट की दूरी के जन्तु उस ध्वनि से मूर्छित हो जाते हैं। बैक्टीरिया के अलावा इस से हैजा, मलेरिया और गर्दनतोड़ ज्वर के कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं; साथ ही ध्वनिविस्तारक स्थान के पास के स्थान निसंदेह कीटाणु रहित हो जाते हैं। मिर्गी मूर्छा, कंठमाला और कोढ़ के रोगियों के अन्दर शंख-ध्वनिकी प्रतिक्रिया रोग नाशक होती है। डॉ डी ब्राइन ने 1300 बहरे रोगियों को शंख-ध्वनि के माध्यम से अब तक ठीक किया है। अफ्रीका के निवासी घंटे को ही बजाकर जहरीले सर्पके काटे हुए मनुष्य को ठीक करनेकी प्रक्रियाको पता नहीं कब से आज तक करते चले आ रहे हैं। ऐसा पता चला है कि मास्को सैनिटोरियम में घंट-ध्वनि से तपेदिक रोग को ठीक करने का प्रयोग सफलता पूर्वक चल रहा है।
एकबार बर्मिघम में एक मुक़दमा चलरह था। तपेदिक के एक रोगी ने गिरजाघर में बजने वाले घंटे के सबंध में अदालत में यह किया था कि इसकी ध्वनि के कारण मेरा स्वास्थ्य निरंतर गिरता जा रहा है तथा इस से मुझे काफी शारीरिक क्षति हो रही है। इस बात पर अदालत ने तीन प्रमुख वैज्ञानिकों को घंटा-ध्वनिकी जाँच के लिए नियुक्त किया। यह परीक्षण सात महीनों तक चला और अंत में वैज्ञानिकों ने यह घोषित किया कि घंटे की ध्वनिसे तपेदिक रोग ठीक होता है न कि इस से नुकसान। साथ ही तपेदिक के अलावा इस से कई शारीरिक कष्ट भी दूर होते हैं तथा मानसिक उत्कर्ष होता है।
Monday, May 28, 2012
संगत का असर
किसी शहर में एक सेठ रहता था। सेठ का
एक बेटा था। सेठ के बेटे की दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से थी जिनकी आदत ख़राब
थी। बुरी संगत में रहते थे। सेठ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। सेठ ने अपने
बेटे को समझाने की बहुत कोशिस की पर कामयाब नहीं हुआ। जब भी सेठ उसको
समझाने की कोशिस करता बेटा कह देता कि में उनकी गलत आदतों को नहीं अपनाता।
इस बात से दुखी हो कर सेठ ने अपने बेटे को सबक सिखाना चाहा। एक दिन सेठ
बाज़ार से कुछ सेव खरीद कर लाया और उनके साथ एक सेव गला हुआ भी ले आया। घर
आकर सेठ ने अपने लड़के को सेव देते हुए कहा इनको अलमारी में रख दो कल को
खाएंगे। जब बेटा सेव रखने लगा तो एक सेव सडा हुआ देख कर सेठ से बोला यह
सेव तो सडा हुआ है। सेठ ने कहा कोई बात नहीं कल देख लेंगे। दुसरे दिन सेठ
ने अपने बेटे से सेव निकले को कहा। सेठ के बेटे ने जब सेव निकले तो आधे से
जादा सेव सड़े हुए थे। सेठ के लड़के ने कहा इस एक सेव ने तो बाकि सेवों को भी
सडा दिया है। तब सेठ ने कहा यह सब संगत का असर है। बेटा इसी तरह गलत संगत
में पड़ के सही आदमी भी गलत काम करने लगता है। गलत संगत को छोड़ दे। बेटे की
समझ में बात आ गई और उसने वादा किया कि अब वह गलत संगत में नहीं जाएगा।
हमेसा आच्छी संगत में ही रहेगा। इस लिए आदमी को कभी भी बुरी संगत में नहीं
पड़ना चाहिए।
Saturday, May 12, 2012
अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए
किसी
जंगल में एक भील रहता था| वह बहुत साहसी,वीर और श्रेष्ट धनुर्धर था| वह
नित्य प्रति बन्य जीव जन्तुओं का शिकार करता था और उस से अपनी आजीविका चलता
था तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था| एक दिन वह बन में शिकार करने गया
हुआ था तो उसे काले रंग का एक विशालकाय जंगली सूअर दिखाई दिया| उसे देख
कर भील ने धनुष को कान तक खिंच कर एक तीक्ष्ण बाण से उस पर प्रहार किया|
बाण की चोट से घायल सूअर ने क्रुद्ध हो कर साक्षात् यमराज के सामान उस भील
पर बड़े वेग से आक्रमण किया और उसे संभलने का अवसर दिए बिना ही अपने दांतों
से उसका पेट फाड़ दिया| भील का वहीँ काम तमाम हो गया और वह मर कर भूमि पर
गिर पड़ा| सूअर भी बाण के चोट से घायल हो गया था, बाण ने उसके मर्म स्थल को
वेध दिया था अतः उस की भी वहीँ मृतु हो गयी| इस प्रकार शिकार और शिकारी
दोनों भूमि पर धराशाइ हो गए|
उसी समय एक लोमड़ी वहां आगई जो भूख प्यास से ब्याकुल थी| सूअर और भील
दोनों को मृत पड़ा देख कर वह प्रसन्न मन से सोचने लगी कि मेरा भाग्य अनुकूल
है, परमात्मा की कृपा से मुझे यह भोजन मिला है| अतः मुझे इसका धीरे-धीरे
उपभोग करना चाहिए, जिस से यह बहुत समय तक मेरे काम आसके|
ऐसा सोच कर वह पहले धनुष में लगी ताँत की बनी डोरी को ही खाने लगी| उस
मुर्खने भील और सूअर के मांस के स्थान पर ताँत की डोरी को ही खाना शुरू कर
दिया| थोड़ी ही देर में ताँत की रस्सी कट कर टूट गई, जिस से धनुष का अग्र
भाग वेग पूर्वक उसके मुख के आन्तरिक भाग में टकराया और उसके मस्तक को फोड़
कर बहार निकल गया| इस प्रकार लोभ के बशीभूत हुयी लोमड़ी की भयानक एवं
पीड़ा दायक मृत्यु हुई| इसी लिए कहते हैं कि अधिक तृष्णा नहीं करनी चाहिए|
Tuesday, April 3, 2012
भोली गाय
बहुत समय पहले की बात है| किसी जंगल में एक गाय रहती थी| जो जंगल में घास
चर कर अपना पेट भरती थी| इसी जंगल में एक शेर भी रहता था जो जंगली जानवरों
का शिकार किया करता था| समय आने पर गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया| बछड़े को
जंगली जानवरों से बचाने के लिए गाय ने एक सुरक्षित जगह ढूढ़ली|
गाय सुबह
अपने बछड़े को दूध पिला कर इस सुरक्षित जगह पर बैठा जाती, आप जंगल में घास
चरने चली जाया करती थी| बछड़ा सारा दिन वहीँ बैठा रहता और खेलता रहता था|
शाम को गाय आकर उसे दूध पिलाती और बहुत सारा प्यार देती थी| बड़े मजे से
गाय और बछड़े के दिन बीत रहे थे| एक दिन जब गाय शाम को जंगल से घास चर के
वापस आरही थी तो उसे एक पेड़ के नीचे शेर बैठा हुआ दिखाई दिया| गाय कुछ
सोचती इस से पहले शेर ने गाय को देख लिया और अपने पास बुला लिया| गाय डरती
हुई शेर के पास गई तो शेर ने कहा "मैं भूखा हूँ तुम्हें खाना चाहता हूँ"|
गाय ने गिडगिडाते हुए कहा "मुझे कोई इतराज नहीं है आप मुझे खा सकते हैं
लिकिन मेरी एक बिनती है कि मेरा बछड़ा सुबह से भूखा है पहले में उसे दूध
पिला आऊं फिर आप मुझे मार कर खा लेना"| शेर ने कहा "तुम भाग जाओगी दुबारा
यहाँ नहीं आओगी इस लिए अभी खता हूँ"| गाय ने कहा "मैं वादा करती हूँ कि
बछड़े को दूध पिला कर मैं जरुर वापस आ जाउंगी"| शेर ने कहा " ठीक है जाओ और
जल्दी ही वापस आ जाओ"| गाय अपने बछड़े के पास गई उसको दूध पिलाया और बहुत
सारा प्यार किया|गाय की आँखें भर आई| गाय आंसू पोछते हुए शेर के पास लौट
आई| शेर से कहा "अब आप मुझे खा सकते हैं"|
गाय के इस भोले पन को देख कर शेर
को दया आगई| शेर ने गाय से कहा मैंने तुम्हें जीवन दान दिया जाओ जाकर अपने
बछड़े को दूध पिलाओ और बहुत सारा प्यार दो| गाय ख़ुशी ख़ुशी अपने बछड़े के
पास आगई और दोनों आराम से रहने लगे|
Thursday, March 22, 2012
नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
विक्रम संवत का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, जो इस वर्ष २३ मार्च को है| भारत में कालगणना इसी दिन से प्रारंभ हुई| ऋतु मास तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी यही से शुरू होती है| विक्रमी संवत के मासों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय अस्त से सम्बन्ध रखते हैं| वे सूर्य चन्द्र की गति पर आश्रित हैं| विक्रमी संवत पूर्णत: वैज्ञानिक सत्य पर स्थित हैं| विक्रम संवत सूर्य सिद्धांत पर चलता है|
अर्थशास्त्र में काल गणना की इकाई "पल" है, एक पलक झपकने में जितना समय लगता है उसे पल कहते हैं|
नवसंवत्सर बसंत ऋतु में आता है| बसंत में सभी प्राणियों को मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है| काल गणना का सम्पूर्ण उपक्रम निसर्ग अथवा प्रकृति से तादात्म्य रख कर किया जाता है| चित्रा नक्षत्र से आरम्भ होने पर इस मास का नाम चैत्र रखा गया| विशाखा नक्षत्र से बैशाख,जेष्ठा नक्षत्र से जेठ ,पुर्वाषाढा से आषाढ़ , श्रवन नक्षत्र से श्रवन , पूर्वभादरा से भादव, अश्वनी नक्षत्र से असोज (आश्विन), कृतिका से कार्तिक, मृगशिरा से मार्गशीर्ष; पुष्य से पौष, मघा से माघ और पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र से फाल्गुन नामों का नामकरण हुआ|
सूर्य का उदय होना और अस्त होना दिन रात का पैमाना बन गया| चन्द्रमा का घटने बढ़ने का आशय चन्द्रमा का पृथवी से दूरी घटने बढ़ने से है| इसके आधार पर ही शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष और महीने का अस्तित्व आया| दिन रात में २४ होरा होते हैं| प्रत्येक होरा का स्वामी सूर्य,शुक्र,बुध ,चन्द्र शनि, गुरु और मंगल को माना गया है| सूर्योदय के समय जिस गृह की होरा होती है उसदिन वही वार होता है| चन्द्र की होरा में चन्द्रवार (सोमवार) मंगल की होरा में मंगलवार, बुध की होरा में बुधवार, गुरु की होरा में गुरुवार, शुक्र की होरा में शुक्रवार, शनि की होरा में शनिवार और सूर्य की होरा में रविवार होता है| इस प्रकार सातों दिवसों की गणना की गई है|
हमारे उत्तराखंड में नवसंवत्सर के मौके पर लोग अपने घरों की लिपाई पोताई करके घर की साफ सफाई करते हैं| ऐपन(अलप्ना) निकालते है| हमारे यहाँ नवसंवत्सर का नाम पुरोहित से ही सुनने का रिवाज है| पुरोहित के मुंह से ही नवसंवत्सर का नाम सुनना शगुन माना जाता है|
सभी ब्लॉग प्रेमियों को नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
Friday, March 9, 2012
राजकुमार और परी
पहले समय मे एक प्रदेश मे एक राजा राज्य करते थे उन का नाम था जयेंदर उन का राज्य काफी दूर दूर तक फैला हुआ था .राजा दयालु थे और अपनी परजा से काफी प्यार करते थे. परजा भी राजा को बहुत चाहती थी | राजा का एक बेटा था, जो काफी चतुर और होनहार युवराज था, वह राजा के साथ राजकाज मे भी पूरा सहयोग देता था ,कोई भी समस्या उन के सामने टिक नहीं सकती थी युवराज को शिकार करने का बहुत शौक था | एक दिन युवराज के मन मे आया कि जंगल मे जाकर शिकार ही क्यों न खेला जाए ? राजकुमार ने अपने दिल की बात राजा को बताई तो राजा ने भी ख़ुशी से आज्ञा दे दी,और उस ने राजकुमार को हिदायत भी की कि जहाँ भी कहीं रात गुजारोगे वहां के हाल चाल किसी के द्वारा मेरे पास जरुर भेजना ताकि मै तुम्हारी तरफ से बेफिक्र हो के अपना काम चलाता रहूँ| राजकुमार ने हांमी भर दी और अपने सेवादारों को साथ लेकर शिकार करने जंगल की तरफ चल दिए | उस के साथ काफी आदमियों का काफिला था| उन के पास खाने के अलावा काफी मात्रा मे हथियार थे ताकि जरुरत के समय इस्तेमाल हो सकें | काफिला अपना पड़ाव जंगल मे कहीं भी डाल लेता था | शिकार खेलते हुए राजकुमार धनुर विद्या मे पूर्ण रूप से निपूर्ण हो गया |काफिला शिकार खेलते हुए और मनोरंजन करते हुए आगे बढ़ते गया |
एक दिन राजकुमार शिकार करते करते जंगल मे कहीं दूर निकल गया और रास्ता भटक गया | काफिला राजकुमार से दूर हो गया | सेवक राजकुमार को ढूढ़ते रहे और राजकुमार सेवकों को | किसी का कोई पता नहीं चला| राजकुमार ने हिम्मत नहीं हारी वह काफिले को यहाँ वहां देखता रहा | चलते चलते उसे प्यास लग गयी नजदीक मे उसे कहीं पानी नहीं मिला| इतने बड़े जंगल मे वह अकेला पड़ गया| एक जगह कुछ रुका और अपने इष्ट देवता को याद कर के फिर आगे बढ़ गया| जंगल की सायें सायें की आवाजें उस के कानों मे गूंजने लगी और रात घिरने लगी आकाश मे तारे टिमटिमाने लगे| घोडा भी आगे चलने मे हिचकिचाने लगा| इतने बड़े जंगल मे घोडा ही राजकुमार का सहारा था| थोड़ी दूर और चलने के बाद वे खुले स्थान पर आ गए |रात आधी बीत चुकी थी और घोडा और राजकुमार दोनों प्यासे थे, थोड़ी दूर जाने के बाद उन्हें एक तालाब दिखाई पड़ा | राजकुमार और घोडा दोनों थक चुके थे और पैर लड़खड़ा रहे थे | अचानक राजकुमार के कानों मे मधुर स्वर सुनाई दिए | सामने देखा तो तालाब के किनारे पर एक सुन्दर लड़की सफ़ेद कपडे पहने हुए मछलियों से बातें कर रही थी | मछलियाँ भी पानी मे उछल उछल कर बातें कर रहीं थी| राजकुमार यह सब देख कर हैरान हुआ और आश्चर्य मे पड़ गया | सोचने लगा की कितनी निकटता है इन मछलियों और लड़की मे | वह हिम्मत करके आगे बढा| घोड़े की पदचाप सुन कर लड़की का ध्यान राजकुमार की तरफ गया| पास पहुँच कर राजकुमार ने लड़की से परिचय पूछा| लड़की बोली आप खड़े क्यों हैं ? नीचे उतर कर बैठ जाइए | राजकुमार उतरके लड़की के नजदीक बैठ गया | राजकुमार ने कहा मे अभी मुसीबत का मारा हूँ आप अपने बारे मे परिचय दीजिए | लड़की बोली मै भी इन मछलियों की तरह ही एक मछली थी| परियों की रानी हर पूर्णिमा की रात को इस तालाब मे नहाने को आती थीं और सारी रात नाचती और गाना गाती थीं | हम मछलियों को भी उन का नाचना गाना अछ्छा लगता हम भी उन के साथ नाचने लगते | एक बार परियों की रानी ने मुझे नाचते हुए देख लिया और मेरा नाच देख कर बहुत प्रसन्न हुई | और मेरी तारीफ की | उन्होंने मुझे परी लोक चलने को कहा | राजकुमार लड़की की बातों को ध्यान से सुन रहा था| फिर लड़की बोलीं मै परी लोक मे जाने को राजी हो गयी| परी रानी ने सर झुका कर अपने देवता से मुझे परी बनाने की परार्थना की| उनके देवता ने उनकी परार्थना स्वीकार कर ली| और मुझे परी बना दिया| उसी दिन से मे उन सब के साथ परी लोक मे ही रहती हूँ | जब कभी जी करता है तो मै अपनी इन सहेलियों को मिलने यहाँ आ जाया करती हूँ| उस के बाद राज कुमार ने अपने बारे मे बताया और अपनी समस्या सामने रखी और बताया की वह सुबह से भूखा प्यासा ही घूम रहा है| परी ने अपनी जादुई ताकत से राजकुमार के लिए खाना हाजिर किया | राजकुमार ने खाना खाया और पानी पिया | अपनी भूख प्यास मिटाकर घोड़े के खाने का इंतजाम किया| लड़की और राजकुमार बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे| सुबह होने से पहले ही लड़की ने परी लोक पहुंचना था| अब परी जाने को तैयार हुई तो राजकुमार ने भी साथ चलने की इछ्छा जाहिर की| परी ने कहा की ऐसे करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है इस बात के लिए क्षमा चाहती हूँ| आप मेरी इन सहेलियों से मिलने आ सकते हैं आप के यहाँ आने पर ये आप का स्वागत करेंगी | अगर आप मुझे मिलना चाहें तो इसी तरह आधी रात को यहाँ आ जाना मे आप को जरुर मिलूंगी| अब मुझे देरी हो रही है आप भी अपने राज्य मे चले जाओ| परी ने राजकुमार को बताया की उसका काफिला उत्तर की ओर उसको ढूंढता हुआ आ रहा है | न चाहते हुए भी परी, परीलोक की तरफ उड़ चली और राजकुमार घोड़े पर बैठ कर परी के बताए हुए रास्ते की तरफ अपने काफिले की खोज मे चल पड़ा | कुछ दूरी पर ही उसे अपने काफिले के लोग मिलगये | काफिले के साथ राजकुमार अपने राज्य मे लौट आया | राजकुमार को इस बात का दुःख था की वह परी के साथ नहीं जा सका पर उस को इस बात की ख़ुशी थी की उसकी दोस्ती एक परी के साथ होगयी है जो मुसीबत के समय उसके काम आई | राजकुमार का जब भी दिल करता वह परी को मिलने आधी रात मे तालाब के किनारे आ जाता दोनों घंटों बैठ कर बातें करते इस तरह उन का समय हसी ख़ुशी से कट ता रहा|और दोनों को अपनी दोस्ती पर नाज था|
एक दिन राजकुमार शिकार करते करते जंगल मे कहीं दूर निकल गया और रास्ता भटक गया | काफिला राजकुमार से दूर हो गया | सेवक राजकुमार को ढूढ़ते रहे और राजकुमार सेवकों को | किसी का कोई पता नहीं चला| राजकुमार ने हिम्मत नहीं हारी वह काफिले को यहाँ वहां देखता रहा | चलते चलते उसे प्यास लग गयी नजदीक मे उसे कहीं पानी नहीं मिला| इतने बड़े जंगल मे वह अकेला पड़ गया| एक जगह कुछ रुका और अपने इष्ट देवता को याद कर के फिर आगे बढ़ गया| जंगल की सायें सायें की आवाजें उस के कानों मे गूंजने लगी और रात घिरने लगी आकाश मे तारे टिमटिमाने लगे| घोडा भी आगे चलने मे हिचकिचाने लगा| इतने बड़े जंगल मे घोडा ही राजकुमार का सहारा था| थोड़ी दूर और चलने के बाद वे खुले स्थान पर आ गए |रात आधी बीत चुकी थी और घोडा और राजकुमार दोनों प्यासे थे, थोड़ी दूर जाने के बाद उन्हें एक तालाब दिखाई पड़ा | राजकुमार और घोडा दोनों थक चुके थे और पैर लड़खड़ा रहे थे | अचानक राजकुमार के कानों मे मधुर स्वर सुनाई दिए | सामने देखा तो तालाब के किनारे पर एक सुन्दर लड़की सफ़ेद कपडे पहने हुए मछलियों से बातें कर रही थी | मछलियाँ भी पानी मे उछल उछल कर बातें कर रहीं थी| राजकुमार यह सब देख कर हैरान हुआ और आश्चर्य मे पड़ गया | सोचने लगा की कितनी निकटता है इन मछलियों और लड़की मे | वह हिम्मत करके आगे बढा| घोड़े की पदचाप सुन कर लड़की का ध्यान राजकुमार की तरफ गया| पास पहुँच कर राजकुमार ने लड़की से परिचय पूछा| लड़की बोली आप खड़े क्यों हैं ? नीचे उतर कर बैठ जाइए | राजकुमार उतरके लड़की के नजदीक बैठ गया | राजकुमार ने कहा मे अभी मुसीबत का मारा हूँ आप अपने बारे मे परिचय दीजिए | लड़की बोली मै भी इन मछलियों की तरह ही एक मछली थी| परियों की रानी हर पूर्णिमा की रात को इस तालाब मे नहाने को आती थीं और सारी रात नाचती और गाना गाती थीं | हम मछलियों को भी उन का नाचना गाना अछ्छा लगता हम भी उन के साथ नाचने लगते | एक बार परियों की रानी ने मुझे नाचते हुए देख लिया और मेरा नाच देख कर बहुत प्रसन्न हुई | और मेरी तारीफ की | उन्होंने मुझे परी लोक चलने को कहा | राजकुमार लड़की की बातों को ध्यान से सुन रहा था| फिर लड़की बोलीं मै परी लोक मे जाने को राजी हो गयी| परी रानी ने सर झुका कर अपने देवता से मुझे परी बनाने की परार्थना की| उनके देवता ने उनकी परार्थना स्वीकार कर ली| और मुझे परी बना दिया| उसी दिन से मे उन सब के साथ परी लोक मे ही रहती हूँ | जब कभी जी करता है तो मै अपनी इन सहेलियों को मिलने यहाँ आ जाया करती हूँ| उस के बाद राज कुमार ने अपने बारे मे बताया और अपनी समस्या सामने रखी और बताया की वह सुबह से भूखा प्यासा ही घूम रहा है| परी ने अपनी जादुई ताकत से राजकुमार के लिए खाना हाजिर किया | राजकुमार ने खाना खाया और पानी पिया | अपनी भूख प्यास मिटाकर घोड़े के खाने का इंतजाम किया| लड़की और राजकुमार बैठ कर देर रात तक बातें करते रहे| सुबह होने से पहले ही लड़की ने परी लोक पहुंचना था| अब परी जाने को तैयार हुई तो राजकुमार ने भी साथ चलने की इछ्छा जाहिर की| परी ने कहा की ऐसे करना मेरे लिए मुमकिन नहीं है इस बात के लिए क्षमा चाहती हूँ| आप मेरी इन सहेलियों से मिलने आ सकते हैं आप के यहाँ आने पर ये आप का स्वागत करेंगी | अगर आप मुझे मिलना चाहें तो इसी तरह आधी रात को यहाँ आ जाना मे आप को जरुर मिलूंगी| अब मुझे देरी हो रही है आप भी अपने राज्य मे चले जाओ| परी ने राजकुमार को बताया की उसका काफिला उत्तर की ओर उसको ढूंढता हुआ आ रहा है | न चाहते हुए भी परी, परीलोक की तरफ उड़ चली और राजकुमार घोड़े पर बैठ कर परी के बताए हुए रास्ते की तरफ अपने काफिले की खोज मे चल पड़ा | कुछ दूरी पर ही उसे अपने काफिले के लोग मिलगये | काफिले के साथ राजकुमार अपने राज्य मे लौट आया | राजकुमार को इस बात का दुःख था की वह परी के साथ नहीं जा सका पर उस को इस बात की ख़ुशी थी की उसकी दोस्ती एक परी के साथ होगयी है जो मुसीबत के समय उसके काम आई | राजकुमार का जब भी दिल करता वह परी को मिलने आधी रात मे तालाब के किनारे आ जाता दोनों घंटों बैठ कर बातें करते इस तरह उन का समय हसी ख़ुशी से कट ता रहा|और दोनों को अपनी दोस्ती पर नाज था|
Sunday, March 4, 2012
कुमाउनी होली
हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में।
टेसू के रंग में रंगे कपोल हैं,
चार दिशा दिशा फाग के बोल हैं,
उड़त अबीर गुलाल,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
हाथ लिए कंचन पिचकारी,
गावत खेलत सब नर नारी,
भीग रहे होल्यार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
भाग कि मार पड़ी उसके सर,
कौन अभाग है शिव शिव हर हर,
कैसा है लाचार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
गिरिका भी खेलें बची का भी खेलें,
बचुली सरुली और परुली भी खेलें,
कौन करे इंकार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में ।
देबा तेरे द्वारे में।
टेसू के रंग में रंगे कपोल हैं,
चार दिशा दिशा फाग के बोल हैं,
उड़त अबीर गुलाल,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
हाथ लिए कंचन पिचकारी,
गावत खेलत सब नर नारी,
भीग रहे होल्यार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
भाग कि मार पड़ी उसके सर,
कौन अभाग है शिव शिव हर हर,
कैसा है लाचार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल ...
गिरिका भी खेलें बची का भी खेलें,
बचुली सरुली और परुली भी खेलें,
कौन करे इंकार,
देबा तेरे द्वारे में।
हरि खेल रहे हैं होली,
देबा तेरे द्वारे में ।
Tuesday, February 28, 2012
"पुर पुतइ पुरै पुर"
यह एक कुमाऊ की पुरानी लोक कथा है| किसी गांव मे एक गरीब परिवार रहता था | परिवार क्या था एक माँ थी एक बेटी थी| बेटी का नाम पुतइ था| दोनों माँ बेटी जंगल से फल फूल तोड़ कर उन्हें बेच कर अपना गुजारा चलाती थीं| एक दिन माँ जंगल मे फल फूल तोड़ने गई |बेटी को घर की रखवाली के लिए घर मे छोड़ गई| घर मे पहले दिन के कुछ फल पड़े हुए थे| माँ जंगल को जाते समय कह गई थी कि इन फलों का ध्यान रखना| इन फलों को कोई खा ना जाए| बेटी ने ऐसा ही किया| चिड़िया तोते आदि उड़ाती रही| शाम को जब माँ घर आई तो देखा कि फल पहले से कम हैं क्यूंकि फल सूख चुके थे| सूखने के बाद वह कम हो गए| माँ ने गुस्से में आकर बेटी के सर में डंडा दे मारा और बेटी की मौत हो गई| रात को खूब बारिश होगइ उस से उसके फल भीग गए भीगने के बाद फल फिर से उतने ही हो गए |यह देख कर माँ को बहुत पछतावा हुआ कि फल तो पूरे ही हैं|मैंने बगैर सोचे समझे ही अपनी बेकसूर बेटी को मार डाला|और वह कहने लगी "पुर पुतइ पुरै पुर " अर्थात वह अपनी बेटी से कहती है कि बेटी फल तो पूरे के पूरे हैं| मैंने ही तुझे गलत समझ कर मार डाला है|वह इस गम को सहन नहीं कर सकी और पुर पुतइ पुरै पुर कहते हुए उसके भी प्राण निकल गए| कहते हैं अगले जन्म मे उसने घुघूती (फाख्ता) के रूप मे जन्म लिया और वह आज भी इधर उधर पेड़ों मे बैठ कर "पुर पुतइ पुरै पुर" पुकारती फिरती है| इसलिए बगैर सोचे समझे कोई काम नहीं करना चाहिए|
Monday, February 20, 2012
"आत्मा की आवाज"
किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था | ब्राह्मण गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था| परमात्मा में आस्था रखने वाला था | वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में नहाने जाया करता था| नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था| रोज की तरह वह एक दिन गंगा में नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में एक लिफाफा पड़ा हुआ है| उसने लिफाफा उठा लिया| लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे| रास्ते में नोटों को गिनना ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल दिया| घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला | नोट गिनने पर पता चला कि लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे| पहले तो ब्रह्मण ने सोचा कि भगवान ने उस की सुन ली है| उसे माला माल कर दिया है |
ब्राह्मण की ख़ुशी जादा देर रुक नहीं सकी| अगले ही पल उसके दिमाग में आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों| सायद किसी ने अपनी बेटी की शादी के लिए जोड़ कर रख्खे हों| उसकी आत्मा ने आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये| वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल दिया| अभी वह ग्राम प्रधान के आँगन मे ही गया था उसे लगा कोई गरीब आदमी पहले से ही ग्राम प्रधान के घर आया हुआ है | वह भी उन के पास पहुँच गया| गरीब आदमी रो-रोकर प्रधान को बता रहा था की कैसे कैसे यत्नों से उसने पैसे जोड़े थे पर कहीं रास्ते में गिर गए थे| सारी कहानी सुन ने पर गरीब ब्रह्मण ने जेब से पैसे निकले और उस गरीब आदमी को देते हुए कहा कि मुझे ये पैसे रास्ते में मिले हैं| आप की कहानी सुन ने के बाद अब यकीन हो गया है कि ये पैसे आप के ही है| पैसे देखते ही गरीब के चेहरे पर रौनक आ गई | गरीब ब्राह्मण ने कहा पैसे गिन लीजिये| गरीब आदमी ने ब्राह्मण का धन्यवाद करते हुए कहाकि पैसे तो पूरे ही हैं इसमे से में आप को कुछ इनाम देना चाहता हूँ | गरीब ब्रह्मण ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया| ब्राह्मण अपने घर को वापस आ गया उस को इस बात की ख़ुशी थी कि उसकी आत्मा की आवाज की जीत हुई है |
Monday, February 6, 2012
कार्य सिद्धि की नीति
नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तप:|
नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं सुखम||
उत्थातव्यं जाग्रतव्यं योक्तव्यं भूति कर्मसु |
भविष्यतीत्येव मन: कृत्वा सततमव्यथै:||
नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं सुखम||
उत्थातव्यं जाग्रतव्यं योक्तव्यं भूति कर्मसु |
भविष्यतीत्येव मन: कृत्वा सततमव्यथै:||
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है, सत्य के समान कोई तप नहीं है, राग के समान कोई दुःख नहीं है, और त्याग के समान कोई सुख नहीं है| "मेरा कार्य अवश्य ही सिद्ध होगा" ऐसा दृढ निश्चय कर के मनुष्य को आलस्य छोड़ कर उठना चाहिए तथा प्रसन्नता और आशा के साथ कल्याणकारी उन्नति के साथ कार्यों में जुट जाना चाहिए|
Thursday, January 26, 2012
मुर्खता की कोई औषधि नहीं है
शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक छत्रेन सुर्यातपो
नागेन्द्रो निशितान्कुशेन संदो दण्डेन गोगर्दभौ।
व्याधिर्भेषजसंग्रहैश्र्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विष
सर्वस्यौषधमस्ती शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम।।
जैसे आग को पानी से शांत किया जा सकता है, सूर्य की गर्मी को छाते से रोका जा सकता है, तीक्ष्ण अंकुश से मदमत्त हाथी को बस में किया जा सकता है, डंडे से बैल और गधे को रास्ते पर लाया जा सकता है; दवाइयों के प्रयोग से रोगों को ख़तम किया जा सकता है, मन्त्रों के प्रयोग से विष को उतरा जा सकता है, सभी के उपचार का विधान शास्त्रों में वर्णित है परन्तु मुर्ख की मुर्खाताके उपचार के लिए कोई औषधि नहीं है।
Friday, January 20, 2012
सद-गृहिणी युक्त जगह ही गृह है
वेदों में उसी स्त्री को नारी कहा है जो पतिवल्लभा तथा पति का अनुगमन करने वाली है। ऐसी नारी ही सद-गृहिणी कहलाती है और ऐसी गृहिणी से संपन्न घर ही गृह कहलाता है। लकड़ी पत्थर आदि से निर्मित स्थान गृह नहीं कहलाता, वह तो गृह होते हुए भी शून्य के समान है। कदाचित गृह नारिपदभाक न हो तो वह गृह गृह नहीं, अपितु कलह-स्थान है। यदि सद-गृहिणी साथ में हो तो वृक्ष के मूल में स्थित हुए पति को वह स्थान भी मंदिर के सामान समझना चाहिए, क्यों की सती स्त्री जहाँ रहती है वहां सभी सुख समृद्धियाँ, सम्पतियाँ स्वयमेव चली आती है। सतीं स्त्री देवीरुपा है, लक्ष्मीरूपा है। ऐसी स्त्री से रहित प्रासाद भी अरण्य के समान ही है। वेद में आया है कि यज्ञादि में इन्द्र देवता का आवाहन किया गया और हवि-ग्रहण के अनंतर गृह के लिए प्रयाणकाल के समय महर्षि विश्वामित्र इन्द्र को गृह और गृहणी की महिमा बताते हैं। कल्याणी स्त्री से युक्त स्थान चाहे वह जंगल ही क्यों न हो, उत्तम गृह ही है; क्यों की ऐसी स्त्री से संपन्न स्थान समस्त कल्याण-मंगल के जनक होते हैं।
Thursday, January 12, 2012
उत्तरायनी (घुघुतिया त्यौहार)
कुमाऊ में मनाए जाने वाले घुघुतिया त्यौहार की अलग ही पहिचान है| त्यौहार का मुख्य आकर्षण कौवा है| बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलते हैं| और कहते हैं "काले कावा काले घुघुति मावा खाले"| बात उनदिनों की है जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे| राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी| उसका कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था| उसका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा| एक बार राजा कल्याण चंद सपत्नी बाघनाथ के मन्दिर में गए और अपनी औलाद के लिए प्रार्थना की| बघनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिअका नाम निर्भय चंद पड़ा| निर्भय को उसकी माँ प्यार से घुघुति के नाम से बुलाया करती थी| घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिस में घुगरु लगे हुए थे| इस माला को पहन कर घुघुति बहुत खुश रहता था| जब वह किसी बात पर जिद्द करता तो उसकी माँ उस से कहती कि जिद्द ना कर नहीं तो में माला कौवे को दे दूंगी| उसको डराने के लिए कहती कि "काले कौवा काले घुघुति माला खाले"| यह सुन कर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर घुघुति जिद्द छोड़ देता| जब माँ के बुलाने पर कौवे आजाते तो वह उनको कोई चीज खाने को दे देती| धीरे धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई|
उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा| ताकि उसी को राजगद्दी मिले| मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा| एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया| जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा| उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा| इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मडराने लगे| एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया| सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया| मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए| घुघुति जंगल में अकेला रह गया| वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए|
जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा| जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी| माला सभी ने पहचान ली| इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा| सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जनता है| राजाऔर उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए| कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे|
कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया| राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है| उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया| घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए| माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता| राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया| घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे| घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया| यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया| तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मानते हैं| मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे घुघूत नाम दिया गया है| इसकी माला बना कर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डाल कर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-
"काले कौवा काले घुघुति माला खाले" ||
उधर मंत्री जो राज पाट की उमीद लगाए बैठा था घुघुति को मारने की सोचने लगा| ताकि उसी को राजगद्दी मिले| मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर षड्यंत्र रचा| एक दिन जब घुघुति खेल रहा था वह उसे चुप-चाप उठा कर ले गया| जब वह घुघुति को जंगल की ओर ले के जा रहा था तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर जोर से काँव काँव करने लगा| उस की आवाज सुनकर घुघुति जोर जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतार कर दिखाने लगा| इतने में सभी कौवे इकठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मडराने लगे| एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले गया| सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपने चौंच और पंजों से हमला बोल दिया| मंत्री और उसके साथी घबरा कर वहां से भाग खड़े हुए| घुघुति जंगल में अकेला रह गया| वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया सभी कौवे भी उसी पेड़ में बैठ गए|
जो कौवा हार लेकर गया था वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर जोर से बोलने लगा| जब लोगों की नज़रे उस पर पड़ी तो उसने घुघुति की माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी| माला सभी ने पहचान ली| इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरे डाल में उड़ने लगा| सब ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जनता है| राजाऔर उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए| कौवा आगे आगे घुड़सवार पीछे पीछे|
कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया| राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है| उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया| घर लौटने पर जैसे घुघुति की माँ के प्राण लौट आए| माँ ने घुघुति की माला दिखा कर कहा कि आज यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता| राजाने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया| घुघुति के मिल जाने पर माँ ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे| घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया| यह बात धीरे धीरे सारे कुमाऊ में फैल गई और इसने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया| तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मानते हैं| मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे घुघूत नाम दिया गया है| इसकी माला बना कर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डाल कर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-
"काले कौवा काले घुघुति माला खाले" ||
"लै कावा भात में कै दे सुनक थात"||
"लै कावा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़"||
"लै कावा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़"||
"लै कावा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़"||
"लै कावा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे"||
"लै कावा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे"||
इसके लिए हमारे यहाँ एक कहावत भी मशहूर है कि श्रादों में ब्रह्मण और उत्तरायनी को कौवे मुश्किल से मिलते हैं|
Tuesday, January 3, 2012
बचपन
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
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