हमारे कुमायूं में एक प्रसिद्द कहावत है "उत्ती घुन उत्ती च्योनी" जिसका मतलब है वहीँ पर घुटने वहीँ पर ठोड्डी मतलब सिकुड़ कर बहुत कम जगह में गुजारा करना| इस बात पर मुझे बचपन की एक घटना याद आगई| एक दिन की बात है हम बच्चे अपने स्कूल के नजदीक खेल रहे थे, शाम का समय था| एक बृद्ध औरत कहीं से आकर हमारे स्कूल के सामने आकर बैठ गई| वह कुछ उदास सी लग रही थी| हम सभी बच्चे खेलना छोड़ कर उस बृद्ध औरत के पास चले गए| मेरी ताईजी भी घास लेकर वहीं से घर को जा रही थी| बृद्धा को देख कर वह भी वहीँ आगई| पूछने पर बृद्धा ने रुआं सी आवाज में बताया कि वह अपने गांव से अपनी बेटी के गांव जा रही है, बेटी का गांव अभी काफी दूर है पर दिन ढलने लग गया है, मेरी यहाँ पर कोई जान पहिचान भी नहीं है, अब में क्या करुँगी रात कहाँ काटूंगी| इसपर मेरी ताईजी ने कहा अगर आप "उत्ती घुन उत्ती च्योनी कर्नू कौन्छा तो हमार घर हीटो"| मतलब कि अगर आप वहीँ पर ठोड्डी वहीँ पर घुटने करने को तयार हैं तो हमारे घर चलो| बृद्धा हमारे साथ चलने को तयार हो गई| बृद्धा के पास एक छोटी सी पोटली थी जिसको हमने उठाना चाहा पर बृद्धा ने किसी को उठाने नहीं दिया खुद उठा कर हमारे साथ चल कर हमारे घर आगई| चाय पी कर रोटी खाकर जब सोने लगे तो बृद्धा ने बताया कि उसकी पोटली में एक मुर्गी भी है, जो सुबह से भूखी है उसे भी दाना डालना है| बृद्धा ने पोटली खोली और मुर्गी बाहर निकली| हमने कुछ दाने लाकर मुर्गी को डाल दिए, मुर्गी फटा फट दाने चुगने लगी कुछ देर हम उसे दाना चुगते हुए देखते रहे फिर मुर्गी को एक टोकरी से ढक दिया ताकि बिल्ली कोई नुकसान ना पहुंचा सके| सुबह को उठ कर मुह हाथ धो कर चाय पी कर बृद्धा हमें आशीर्वाद देते हुए अपनी बेटी के गांव को चली गई|
रोचक कहावत है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
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ReplyDeleteबचपन के प्रसंग कहावतों/मुहावरों के साथ एकाकार हो जाते हैं. बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteलोकोक्त्तियो के माध्यम से शिक्षाप्रद संदेश है।
ReplyDeleteप्रेरक ..अच्छी लगी पोस्ट. शुभकामनाएं.
ReplyDelete"उत्ती घुन उत्ती च्योनी"अर्थात सिमित संसाधनों से ही संतुष्ट होना, या फिर जो है उसी में संतुष्ट होना,,,,
ReplyDeleteआभार....
शिक्षाप्रद संदेश...आभार....
ReplyDeleteप्रेरक संस्मरण । जगह दिल में हो तो काम चल जाता है ।
ReplyDeleteएक साधारण सी घटना, किन्तु इसके पीछे छिपी भावना और सन्देश असाधारण है. हमेशा की तरह प्रेरक प्रसंग!!
ReplyDelete"उत्ती घुन उत्ती च्योनी" पर आपकी प्रेरणास्पद रचना पढ़ी अच्छी लगी. लोकोक्ति के माध्यम से आप बहुत कुछ कह गए. वास्तव में कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता है हमारी पहाड़ की लोकोक्तियों में. आभार!!
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपको !
na jaane kitni lokoktiya hai.pahodon ki jo bina sangrah ke dam tod rahi hai..khaskar durdaraj ke kshetron me.bahut sundar prayagdarmita.....
ReplyDeletemeri post me aaye....abhar...
बहुत ही प्रेरक प्रसंग!
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