Wednesday, May 12, 2010

पाटली ( मेरा गांव)

भारत वर्ष मे एक राज्य है उत्तराखंड जो उत्तर प्रदेश से अलग हुआ राज्य है. इस राज्य मे एक जिला है बागेश्वर जो अल्मोरा जिले से अलग हुआ है. बागेश्वर जिले मे एक खंड है बैजनाथ. बैजनाथ खंड मे एक गांव है पाटली. पाटली एक बहुत सुन्दर गॉंव है. यह गॉंव कौसानी गरूर पैदल मार्ग मे बसा हुआ है यह गॉंव तीन भागों मे बटा हुआ है पार की धार, बीच की धार और कोटुली धार गॉंव के सभी लोग मिलजुल कर रहते है ,यह गॉंव समुन्दर ताल से ५००० फुट की ऊंचाई पर बसा हुवा है. यहाँ की मुख्या फसल धान  और गेहूं हैं, जों मडुवा सहायक फसलें हैं. दालों मे भट (काला सोयाबीन) मांस, गहत ,मसूर आदि होतीं हैं , तेल के लिए सरसों, तिल आदि होती हैं। यहाँ के लोग खेती का काम  मिलजुल कर करते हैं .यहाँ की खेती जैविक ढंग से की जाती है पहाढ़ी ककढ़ी खाने मे काफी सवाद होती है जो खीरे की तरह ही होती है पर उस से काफी बढ़ी होती है यहाँ पर फलों मे नासपाती, आरू खुमानी, आलूबुखारा , अखरोट होते हैं । एक फल ऐसा भी होता है जो सिर्फ पहाढ़ मे ही मिलता है, इसे काफल कहते हैं यह फल बहार नहीं जा सकता है क्यूँ की एक दिन से ज्यादा नहीं रहता। खाने मे खट्टा मीठा सवादिस्ट होता है इस गॉंव के नीचे एक नदी बहती है जिसे घटगाढ़ कहते हैं इस नदी को घटगाढ़ इस लिए कहते हैं क्यूँ की यहाँ नदी के किनारे पहले से पानी से चलने वाली पनचक्की हुआ करती थीं पर अब उनकी जगह बिजली वाली चक्की ने लेली है , इस गांव के ऊपर एक सरकारी जंगल है जिसे मोहर्पाली का जंगल कहते हैं ,यह जंगल चीढ़ के पढ़ों से भरा हुआ है ऐसा लगता है मानो इस गांव के शिर पर मकुट बिराजमान हो , इस गांव के लोग परमात्मा मे आस्था रखने वाले हैं यहाँ गांव के नजदीक एक शिवालय है जहाँ लोगों की मनोकामना पूरी होती है कहते हैं की एक बार एक आदमी यहाँ से घंटियाँ चुरा के जा रहा था तो वह अन्धा हो गया जब उसने घंटियाँ नीचे रखीं तो उसे फिर से दिखाई देने लग गया ,फिर दुबारा उसने घंटियाँ उठाई और चलने लग गया तो फिर अन्धा हो गया जब दो तीन बार ऐसा हो गया तो वह आदमी घंटियाँ वहीँ छोढ़ कर भाग गया, यहाँ से ठोढ़ी दू री पर कोट की माई    का मंदिर है कोट किले को कहते हैं यह मब्दिर भी एक किले के ऊपर स्थित है ,यह मंदिर भारमरी देवी का है यहाँ पर देवी की पीठ की पूजा होती है .हमरे गांव के नजदीक बैजनाथ में काफी पुराने मंदिर हैं जो पुरातत्व बिभाग ने अपने कब्जे मे ले रख्खे हैं | इस तरह कुदरत के रंगों मे रंगा है मेरा गांव | परमात्मा करे मेरा गांव दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की  करे ,यही मनोकामना करते हुए कलम को बिराम देता हूँ |                     के: आर: जोशी (पाटली)

4 comments:

  1. dear mast hain per sure tune he likha hain

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  2. Rochak aur gyanvardhak lekh---hindi blogjagat men apka svagat hai.

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  3. पाटली गाँव के बारे में पड़ कर दिल प्रसन्न हुआ ,बहुत सुन्दर है आपका गाँव .
    आने वाली गर्मियों हम सब उत्तरा खंड जाने की सोच रहे है .
    ईश्वर ने चाहा तो आपके गाँव के भी दर्शन होंगे ,
    जो कुछ आपने अपने लेख में लिखा
    उन सब से रूबरू होने का मौका मिले
    तो में अपने आप को भाग्यवान समझुंगा..
    आपका तहे दिल से स्वागत करता हूँ ..
    आप खूब लिखेँ और बेहतर लिखेँ.. मक्

    http://www.youtube.com/mastkalandr

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  4. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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