Wednesday, June 15, 2011

आलस्य से पतन होता है

                         एक ऊँट था| उसे पूर्व जन्म की सारी बातें ज्ञानत थी| ऊँट होते हुए भी वह कठिन तपस्या में निरत रहता था| उसकी कठिन तपस्या से ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हो गए और उस से वर मांगने को कहा| ऊँट ने कहा-भगवन! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे यह वर दीजिये की मेरी यह गर्दन बहुत लम्बी हो जय, जिस से मुझे भोजन के लिए इधर उधर भटकना न पड़े और में एक ही स्थानपर बैठा-बैठा सौ योजन दूरतक की वस्तुओं को भी पा लूँ|
                         ब्रह्मा जी ने कहा-"ऐसा ही होगा"| यह मुँह माँगा वर पाकर ऊँट बहुत प्रसन्न हो गया और बन में अपने स्थानपर जाकर आराम से बैठ गया| अब उसे भोजंकी खोज में कहीं जाने की जरुरत नहीं पड़ती थी| उसकी गर्दन सौ योजन लम्बी हो गई थी, वह बैठे-बैठे ही दूर दूर तक अपनी गर्दन घुमाकर भोजन प्राप्त कर लेता था| देववश मुर्ख ऊँट ने ऐसा वर माँगा जिस से अब वह आलस्यकी मूर्ति बन बैठा| कुछ भी करना उसे अच्छा न लगता और  न उसे ऐसी जरुरत ही महसूस होती थी| बैठ-बैठा वह महां आलसी बन गया था| उसका पुरुषार्थ लुप्त हो गया था|
                         ऐसे ही कुछ दिन बीते| एक दिन की बात है वह ऊँट भोजन की खोज में अपनी सौ योजन लम्बी गर्दन इधर-उधर घुमाकर दूर देशमें चार रहा था| उसी समय अकस्मात् जोर की हवा चलने लगी| तूफान सा आने लगा| थोड़ी ही देर में भयंकर वर्ष भी प्रारंभ हो गई| वह ऊँट अपनी गर्दन को एक गुफा के अन्दर डालकर चरने लगा| संयोग से उसी समय एक सियार और सियारन भूख और थकान से व्याकुल हो, साथ ही वर्ष से बचने के लिए उस गुफा के अन्दर प्रविष्ट हुए| वह मांसजीवी  सियार भूख से कष्ट पा रहा था| वहां उसे ऊँट की गर्दन दिखाई पड़ी, फिर क्या था! सियार सियारन दोनों साथ-साथ ऊँट की गर्दन को काट कर खाने लगे| 
                         इधर सौ योजन दूर बैठा उस ऊँट को जब अपनी गर्दन काटने का दर्द महसूस हुआ  तो वह अपनी गर्दन समेटने का प्रयास करने लगा, परन्तु इतनी लम्बी गर्दन समेटना संभव नहीं था| इधर सियार सपरिवार बड़ी मजे से गर्दन काट-काट कर खाए जा रहा था| गर्दन के काट जाने से ऊँट की मृत्यु हो गई| जब थोड़ी देर बाद वर्षा बंद हो गई तोवह सियार परिवार गुफा से बहार निकल कर चला गया|
                        इस प्रकार आलस्य के कारन ऊँट की मृत्यु हो गयी| अत: मनुष्य को आलस्य और प्रमाद का त्याग करके सदैव पुरुषार्थी बना रहना चाहिए| जो व्यक्ति जितेन्द्रिय और दक्ष है उसकी सदा विजय होती है और वह अपने प्रयत्न में सदा सफल होता है|                                  (कल्याण से)

34 comments:

  1. ध्यानाकर्षण हेतु -
    ......थोड़ी ही देर में भयंकर वर्षा भी प्रारंभ हो गई| वह ऊँठ अपनी गर्दन को एक गुफा के अन्दर डालकर चरने लगा | ......संशोधन की आवश्यकता महशुस की जा रही है,
    उपरोक्त प्रेरक कहानी हेतु आभार .....

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  2. मनुष्य को आलस्य और प्रमाद का त्याग करके सदैव पुरुषार्थी बना रहना चाहिए| जो व्यक्ति जितेन्द्रिय और दक्ष है उसकी सदा विजय होती है और वह अपने प्रयत्न में सदा सफल होता है|
    बहुत सच कहा है! बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति!

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  3. पुरुषार्थ और परिश्रम जीवन की आवश्यकता है. जीवन काम माँगता है. आलस्य का कोई स्थान नही.

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  4. सार्थक प्रस्तुति! आलस्य और प्रमाद तो तमोगुण हैं।

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  5. जब तक जीवित हैं और काम करने का दम है तब तक हमें आलसी नहीं बनके रहना चाहिए! बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सुन्दर और सटीक पोस्ट! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

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  6. आलस्य का अन्त विनाश होता है, सुन्दर प्रसंग।

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  7. सार्थक सन्देश देती बहुत प्रेरक रचना..

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  8. सुन्दर और सटीक

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  9. ऊँठ का तात्‍पर्य क्‍या ऊँट है.

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  10. आप हर वक्त एक नयी प्रेरणास्पद कहानी के साथ आते हैं. आभार. कभी स्कूल में सुभाषितानी के अंतर्गत ऐसी कहानियां पढ़ा करते थे और अब आपके सौजन्य से. पुनः आभार.

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  11. आलस्य और प्रमाद के दुष्परिणामों व्यक्त करता सार्थक दृष्टांत!!

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  12. बहुत सुंदर और अच्छी बात ......

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  13. आलस्य जीवन को व्यर्थ कर देता है ।

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  14. प्रेरणादायक कहानी आगे भी इंतजार रहेगा

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  15. मूर्ख ऊंट का येही होना था . अच्छी कहानी है. :)

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  16. बहुत अच्छा जीवन सूत्र। धन्यवाद।

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  17. प्रेरणात्‍मक प्रस्‍तुति ।

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  18. Bahut hi prerak....koshish karunga ki alasya tyagun...aapke is rachna vishesh se jo seekh mili hai use koshish karunga khud me utaarne ki...dhanyavaad

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  19. मेरा बिना पानी पिए आज का उपवास है आप भी जाने क्यों मैंने यह व्रत किया है.

    दिल्ली पुलिस का कोई खाकी वर्दी वाला मेरे मृतक शरीर को न छूने की कोशिश भी न करें. मैं नहीं मानता कि-तुम मेरे मृतक शरीर को छूने के भी लायक हो.आप भी उपरोक्त पत्र पढ़कर जाने की क्यों नहीं हैं पुलिस के अधिकारी मेरे मृतक शरीर को छूने के लायक?

    मैं आपसे पत्र के माध्यम से वादा करता हूँ की अगर न्याय प्रक्रिया मेरा साथ देती है तब कम से कम 551लाख रूपये का राजस्व का सरकार को फायदा करवा सकता हूँ. मुझे किसी प्रकार का कोई ईनाम भी नहीं चाहिए.ऐसा ही एक पत्र दिल्ली के उच्च न्यायालय में लिखकर भेजा है. ज्यादा पढ़ने के लिए किल्क करके पढ़ें. मैं खाली हाथ आया और खाली हाथ लौट जाऊँगा.

    मैंने अपनी पत्नी व उसके परिजनों के साथ ही दिल्ली पुलिस और न्याय व्यवस्था के अत्याचारों के विरोध में 20 मई 2011 से अन्न का त्याग किया हुआ है और 20 जून 2011 से केवल जल पीकर 28 जुलाई तक जैन धर्म की तपस्या करूँगा.जिसके कारण मोबाईल और लैंडलाइन फोन भी बंद रहेंगे. 23 जून से मौन व्रत भी शुरू होगा. आप दुआ करें कि-मेरी तपस्या पूरी हो

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  20. आलस्य और प्रमाद ,लोभ ,मोह ,ईर्ष्या व्यक्ति और व्यक्तित्व को कहा जातें हैं .और इन्सबसे ऊपर एहंकार .बोध परक कथा .आभार .

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  21. आलस्य ने व्यक्ति ही नहीं,साम्राज्यों का भी विनाश किया है। दिखता तो शरीर है निष्क्रिय, किंतु वास्तव में यह मस्तिष्क की निष्क्रियता-नकारात्मकता का संकेतक है।

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  22. धरती पर केवल एक ही प्राणी है जो आलसी है, वो है-आदमी।
    उपदेशात्मक कथा पसंद आाई।

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  23. सुंदर कथा .. शिक्षा प्रद ...

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  24. आलस्य की परिणति को बताती एक अच्छी बोध कथा |

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  25. बहुत शिक्षाप्रद कहानी..

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  26. एक अच्छी बोध कथा -आभार !

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  27. शिक्षामित्र जी से सहमत--'-दिखता तो शरीर है निष्क्रिय, किंतु वास्तव में यह मस्तिष्क की निष्क्रियता-नकारात्मकता का संकेतक है। '
    --बहुत अच्छी बोध कथा.
    धन्यवाद.

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  28. सुन्दर बोध-कथा - अच्छी प्रस्तुति.

    हों सके तो ऊँठ को ऊँट क्र लें.

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  29. पढो समझो और करो से ली गई कहानी इनसे बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त होती है।
    अब अगर आपने यह कहानी लिखी होती तो ""सियारन"" शब्द पर मै कुछ निवेदन करता

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  30. बहुत सुन्दर

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