मिश्री के संग पान कर मिटे दाह- संताप ||
२.फटे विमाइ या मुंह फटे , त्वचा खुरदुरी होय |
नीबू-मिश्रित आंवला सेवन से सुख होय ||
३. सौंफ इलाइची गर्मीमें, लौंग सर्दी में खाय |
त्रिफला सदाबहार है, रोग सदैव हार जाय ||
४.वात-पित्त जब जब बढे, पहुंचे अति कष्ट |
सौंठ, आंवला, दाख संग खावे पीड़ा नष्ट ||
५.छल प्रपंचसे दूर हो, जन मंगल की चाह |
आत्मनिरोगी जन वही गहे सत्यकी राह ||
साभार कल्याण
बहुत ही बढिया लगे ये निरोगी दोहे । आखरी वाला तो मुकुटमणि ।
ReplyDeleteछल प्रपंचसे दूर हो, जन मंगल की चाह |
ReplyDeleteआत्मनिरोगी जन वही गहे सत्यकी राह ||
sunder dohey,be healthy.....
bahut badiya
ReplyDeleteआपने आयुर्वेदिक नुस्खे सरल भाषा में प्रस्तुत करते हुए जीवन की अमूल्य बात भी कह दी.
ReplyDeleteधन्यवाद
निरोगी दोहे का छल प्रपंच - - - - - गहे सत्य की राह सबसे अच्छा लगा जो जीवन की वास्तविक उपलब्धी है | आप हमारे ब्लॉग पर आये आप का बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteतन ही नहीं,मन को भी नीरोगी रखने के उपाय। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteऔषधीय दोहे अच्छे लगे ।
ReplyDeleteउपयोगी दोहे ।
ReplyDeleteतीसरे दोहे के अंतिम पंक्ति में 11 की
जगह 13 मात्रायें हैं देख लीजियेगा।
वाह! अनोखा है ये निरोगी दोहे.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, अनंत बधाई। भाव महत्वपूर्ण है, अनुकरणीय भी।
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