Sunday, July 18, 2010

"कमाकर खा"

            किसी शहर मे एक सेठ रहता था| सेठ का नाम दुर्गा दास था| घर मे सेठ दुर्गा दास और उसकी घर वाली रहते थे| सेठ दुर्गा दास की  जुबान से कुछ लफ्ज ठीक से नहीं निकलते थे|जैसे वह "क" को "ट" बोलते थे| एक बार दुर्गा दास की घर वाली किसी  काम से घर से बाहर गई हुई  थी| घर मे दुर्गा दास अकेला ही था| एक भिखारी भीख मांगते हुए उनके दरवाजे पर आ खड़ा हुआ| भिखारी ने आवाज देकर कहा "बाबु जी कुछ खाने को दे दो "| भिखारी के कई बार आवाज देने पर सेठ जी बाहर आये और भिखारी से बोले "टमाटर खा"| भिखारी  ने कहा कि मुझे तो बहुत भूख लगी है टमाटर से पेट  की भूख कैसे शांत होगी| बाबु जी कोई बचा खुचा खाना ही देदो| सेठ जी ने फिर भिखारी  से कहा टमाटर खा टमाटर|यह कह कर सेठ जी अन्दर को चले गए| भिखरी ने कहा ठीक  है टमाटर ही देदो कुछ तो पेट की भूख शांत होगी| वह दरवाजे पर इन्तेजार करने लगा| कुछ  समय के बाद सेठ दुर्गा दास की घरवाली वापिस घर आई तो देखा कि कोई भिखारी दरवाजे पर खड़ा है उसने भिखारी से पूछा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो| भिखारी ने कहा कि सेठ जी टमाटर लेने गए हैं उसी के इन्तेजार मे यहाँ खड़ा हूँ| क्यों कि वे कह कर गए हैं कि टमाटर खा|सेठ दुर्गा दास की घरवाली समझ गई थी| वह अन्दर गई और कुछ बचा खुचा  खाना लाकर भिखारी को देते हुए  कहा कि सेठ जी टमाटर खा नहीं कह रहे थे उन्हों ने तो तुम्हे यह कहा था कि कमाकर खा| सेठानी भी भिखारी को कमाकर खाने का उपदेश  दे कर अन्दर चली गई| रोटी पाकर भिखारी  भी आगे को बढ़ गया|
                                                के: आर: जोशी.  (पाटली)

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