पादौ तौ सफलौ पुंसां यू विष्णु गृह्गामिनौ| तौ करौ सफलौ ज्ञेयौ विष्णुपुजापरौ तू यौ||
ते नेत्रे सफले पुंसां पश्यतो ये जनार्दनम| सा जिह्वा प्रोच्यते सभ्दिर्हरीनामपरा तू या ||
सत्यं सत्यं पुन: सत्यामुदधृत्य भुजमुच्यते| तत्वं गुरुसमं नास्ति न देव: केशवात पर:||
सत्यं वच्मि हितं वच्मि सारं वच्मि पुन:पुन:| असारेSस्मिस्तु संसारे सत्यं हरिसमर्चनम||
संसारपाशं सुदृढ़ महामोहप्रदायकम| हरिभक्ति कुठारेण छित्वाSत्यंतसुखी भव||
तनमन: संयुतं विष्णौ सा वाणी तत्परायना| ते श्रोत्रे तत्कथासारपूरिते लोक विन्दिते ||
मनुष्य के उन्हीं पैरों को सफल मानना चाहिए, जो भगवान् विष्णु के मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं| उन्ही हाथों को सफल मानना चाहिए, जो भगवन विष्णु की पूजा में तत्पर रहें| पुरुषों के उन्हीं नेत्रों को पूर्णतया सफल जानना चाहिए, जो भगवान जनार्दन का दर्शन करते हैं| साधु पुरुषों ने उसी जिह्वा को सफल बताया है, जो निरंतर हरी नाम के जप और कीर्तन में लगी रहे| भुजा उठाकर बार-बार सच्ची बात कही जाती है कि गुरु के सामान कोई तत्व नहीं है और विष्णु के सामान कोई देवता नहीं है| में सत्य कहता हूँ, हितकी बात करता हूँ और बार-बार सम्पूर्ण शास्त्रों का ज्ञान बताता हूँ कि इस असार संसार में केवल श्रीहरी की आराधना ही सत्य है| यह संसार बंधन अत्यंत दृढ है और महान मोह में डालने वाला है| भगवद्भक्तिरूपी कुठार से इसे काट कर अत्यंत सुखी हो जाओ| वही मन सार्थक है, जो भगवान विष्णु के चिंतन में लगा रहता है,वही वाणी सार्थक है, जो भगवान के गुण-गान में निरत है तथा वेही दोनों कान समस्त जगत के लिए वंदनीय हैं, जो भगवत्कथा की सुधा-धारा से परीपूर्ण रहते हैं| ऐसे व्यक्ति के अंत:करण में भगवन ही निवास करते हैं|