वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगा: शुष्कं सर: सारसा:,
पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुप दग्धं बनान्त्न मृगा:|
निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गनिका भ्रष्टश्रियं मंत्रिन:,
सर्व: कार्यवशाज्जनोsभिरमते कस्यास्ति को बल्लभ:||
पक्षी फल ना रहने पर वृक्ष को छोड़ देते हैं, सारस जल सूख जाने के बाद सरोबर का परित्याग
कर देते है, भौंरे बासी फूलों को छोड़ देते हैं, मृग दग्ध (जला हुआ) बन को छोड़ देते हैं| धन के ना रहने पर
वेश्या पुरुष को छोड़ देती है तथा मंत्रिगण श्रीहीन राजा को छोड़ देते हैं, सब लोग अपने अपने स्वार्थवश ही प्रेम
करते हैं, वास्तव में कौन किसका प्रिय है?
कर देते है, भौंरे बासी फूलों को छोड़ देते हैं, मृग दग्ध (जला हुआ) बन को छोड़ देते हैं| धन के ना रहने पर
वेश्या पुरुष को छोड़ देती है तथा मंत्रिगण श्रीहीन राजा को छोड़ देते हैं, सब लोग अपने अपने स्वार्थवश ही प्रेम
करते हैं, वास्तव में कौन किसका प्रिय है?
अति सुन्दर! अपेक्षा पर आधारित सम्बन्ध की यही गति होती है।
ReplyDeleteअच्छा श्लोक |
ReplyDeleteआशा
जीवन का शाश्वत सत्य.
ReplyDeleteसच कहा है आपने।
ReplyDeleteसत्य कहा आपने....
ReplyDeleteसुन्दर नीति वचन.
ReplyDeleteप्रेरणास्पद सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
सत्य वचन....
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जीवन का शाश्वत सच...
ReplyDeleteअंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. नीति वचनों में ही जीवन का सार है.
ReplyDeleteसंदेश देती सार्थक प्रस्तुति....
ReplyDeleteयहाँ प्रश्न न तो स्वार्थ का है न प्रेम का... इसके उत्तर एमन एक मुहावरा उद्धृत करना चाहूँगा..
ReplyDeleteघोड़ा अगर घास से दोस्ती कर ले तो खाएगा क्या!!
सत्य कहा आपने....
ReplyDeleteहर कोई अंततः अकेला है!
ReplyDeleteअनुपम
ReplyDeleteएकदम सही है ......
ReplyDeleteप्रेरणास्पद सुन्दर नीति वचन... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत उपयोगी पोस्ट!
ReplyDeleteati sunder.aabhar.
ReplyDeleteबहुत ही उत्तम विचार ......... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteपुरवईया : आपन देश के बयार
बिल्कुल सच आपने बहुत खुबसुरती से सच को परिभाषित कर दिया |
ReplyDeleteबोध-वचन ! अर्थस्य पुरुषो दासः !
ReplyDeleteशनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.
ReplyDeleteबात तो सही कही आपने.
ReplyDeleteसत्य यही है |
ReplyDeleteआशा
बहुत सही सर!
ReplyDeleteसादर
परम सत्य ...आभार ।
ReplyDeleteस्वयं और प्रभू से प्रेम ही सच्छा प्रेम है ...
ReplyDeleteसही सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति ..विचारणीय
ReplyDeletesandesh deti post....
ReplyDeleteतुलसी ने भी यही कहा है-
ReplyDeleteस्वारथ लाग करहिं सब प्रीती।
शाश्वत...
ReplyDeleteस्वार्थ से वशीभूत होकर किये जाने वाले प्रेम ऐसे ही छूट जाते हैं। मगर यह भी सत्य है कि वृक्ष विहगों का कभी त्याग नहीं करता। ज्यों आते हैं आश्रय देता है। वैसे ही सभी प्रेमी अपने बेवफा मित्रों को अपनाते हैं। पुरूष भी धन आने पर वेश्या के पास पुनः जाता है।
ReplyDeleteकहने का मतलब यह कि इसी श्लोक में यह भी है कि निःस्वार्थ प्रेमी हमेशा प्रेम करते रहते हैं।
बिलकुल सच कहा है स्वार्थ के बारे में । धन्यवाद ।
ReplyDeleteवास्तव में कौन किसका प्रिय है?
ReplyDeleteइस श्लोक में बहुत संवेदनशील चिंतन है... अच्छी प्रस्तुति.
बे -शक सुख के सब साथी ,दुःख में न कोय ,......लेकिन अपने काग भगोड़े के गिर्द मंत्री गण क्या कर रहें हैं ?क्या काग भगोड़ा सिर्फ और सिर्फ रिमोट है ,दूर -नियंत्रण प्रणाली है ,मम्मी जी की ?मंद मति बालक की .
ReplyDeleteबहर सूरत बहुत ही नीति परक पोस्ट परोसी है आपने .शुक्रिया आपका इसके लिए ,ब्लोगिया दस्तक के लिए .
Tuesday, September 20, 2011
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
वाह! गहन विचार हैं इन ४ पंक्तियों में...
ReplyDeleteपूरी दुनिया स्वार्थ पर ही जी रही है..
सत्य कहा है...
आभार
तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...
सब स्वार्थ के रिश्ते हैं!
ReplyDeletestik bat.
ReplyDelete