भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद भयं
माने दैन्य भयं बले रिपुभयं रुपे जराया भयं||
शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताभ्दयं
सर्व वस्तु भयावहं भुवि नृणा बैराग्य मेवाभयं||
भोग में रोग का भय है,ऊँचे कुल में पतन का भय है, धन में राजा का भय है मान में दीनता का भय है, बल में शत्रुका भय है तथा रूप में बृद्धावस्था का भय है, शास्त्र में वाद-विवाद का भय है, गुण में दुष्ट जनों का भय है तथा शरीरमें कालका भय है| इस प्रकार संसार में मनुष्य के लिए सभी वस्तुएं भयपूर्ण हैं, भय से रहित तो केवल बैराग्य हीहै|
सर्व वस्तु भयावहं भुवि नृणा बैराग्य मेवाभयं||
बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
ReplyDeleteभय से मुक्ति का मार्ग वैराग्य में निहित है. भय की इससे बढ़िया औषधि और क्या हो सकती है.
ReplyDeleteभय से रहित होना ही वैराग्य है।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट!
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पूरे 36 घंटे बाद नेट पर आया हूँ!
धीरे-धीरे सबके यहाँ पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ!
वैराग्य निर्भयता के लिए ही है। निर्भयता सूचक ही है। मोह की गुलामी से मुक्ति ही है सभी भय का मूल कारण क्रोध, मान,माया और लोभ है।
ReplyDeleteउत्तम विचार!
ReplyDeletevery nice post.
ReplyDeleteबहुत उत्तम प्रस्तुति....
ReplyDeleteबहुत ही उतम विचार को प्रस्तुत करती पोस्ट...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शिक्षाप्रद प्रस्तुति
ReplyDeleteअब इतने सुन्दर और प्रेरक दोहे कहाँ मिलते हैं.. बचपन में किताबों में पढ़ा करते थे.. अब तो बच्चे ठीक से उच्चारण भी नहीं कर पाते.. अत्यंत प्रेरक!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
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!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
मुझे क्षमा करे की मैं आपके ब्लॉग पे नहीं आ सका क्यों की मैं कुछ आपने कामों मैं इतना वयस्थ था की आपको मैं आपना वक्त नहीं दे पाया
ReplyDeleteआज फिर मैंने आपके लेख और आपके कलम की स्याही को देखा और पढ़ा अति उत्तम और अति सुन्दर जिसे बया करना मेरे शब्दों के सागर में शब्द ही नहीं है
पर लगता है आप भी मेरी तरह मेरे ब्लॉग पे नहीं आये जिस की मुझे अति निराशा हुई है
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
अति उत्तम श्लोक के माध्यम से सुन्दर सन्देश.वैसे भय बिन न प्रीत होय गोपाला भी सत्य है.
ReplyDeleteआप को बहुत बहुत धन्यवाद की आपने मेरे ब्लॉग पे आने के लिये अपना किमती समय निकला
ReplyDeleteऔर अपने विचारो से मुझे अवगत करवाया मैं आशा करता हु की आगे भी आपका योगदान मिलता रहेगा
बस आप से १ ही शिकायत है की मैं अपनी हर पोस्ट आप तक पहुचना चाहता हु पर अभी तक आप ने मेरे ब्लॉग का अनुसरण या मैं कहू की मेरे ब्लॉग के नियमित सदस्य नहीं है जो में आप से आशा करता हु की आप मेरी इस मन की समस्या का निवारण करेगे
आपका ब्लॉग साथी
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
वाह!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट!
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अगर आपको प्रेमचन्द की कहानिया पसंद हैं तो आपका मेरे ब्लॉग पर स्वागत है |
ReplyDeletehttp://premchand-sahitya.blogspot.com/
बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट..
ReplyDeleteबहुत समय से आपकी नई पोस्ट नहीं आई है.
ReplyDeleteइस बीच मैंने 'सीताजन्म आध्यात्मिक चिंतन-३' पर
अगली पोस्ट लिखी है.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
भय रहित होने के लिए वैराग्य का सहारा लेना होगा।
ReplyDeleteप्रेरक श्लोक।
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
ReplyDeleteदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मना ले ईद.
ईद मुबारक
बहुत सुंदर ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर प्रस्तुति । पर भय के भय से जीना तो नही छोड सकते । वो कहते हैं ना कि, " The worst of all fears is fear itself".
ReplyDeleteगृहस्थ जीवन में तपने के बाद ही वैराग्य का आनंद है।
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट.
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