लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए जागि रए बची रए |
( भाव तुम लाख हरेला, लाख बग्वाली, लाख पंचिमी तक जीते रहना)
स्यावक जसी बुध्धि हो, सिंह जस त्राण हो|
(भाव लोमड़ी की तरह तेज बुध्धि हो और शेर की तरह बलवान हो )
दुब जैस पनपिये, आसमान बराबर उच्च है जाए, धरती बराबर चाकौव है जाए|
(भाव दुब की तरह फूटना , आसमान बराबर ऊँचा होजाना, धरती के बराबर चौड़ा हो जाना|)
आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए|
(भाव अपने गांव का प्रधान बनना और इतने बूढ़े हो जाना की खाना भी पीस कर खाना|)
जान्ठी टेकि झाड़ी जाये , जी रए जागि रए बची रए |
(भाव छड़ी ले कर जंगल पानी जाना, इतनी लम्बी उम्र तक जीते रहना जागते रहना.|)
सब को हरेला लगाने के बाद भगवान को लगाया गया भोग सब बच्चों मे बाँट दिया जाता है| लड़के हरेले को अपने कान मे टांग लेते हैं और लड़कियां हरेले को अपनी धपेली के साथ गूँथ लिया करती हैं|
आज मुझे भी अपना बचपन याद आ गया है जब हमारी आमा (दादी) जिन्दा हुआ करती थीं | हम छोटे छोटे बच्चे थे जब खाने पीने की कोई चीज घर मे बनती थी तो पहले हम बच्चों को ही दी जाती थी| पर हरेले के दिन जब तक पुरोहित जी नहीं आते थे किसी को कुछ नही मिलता था|जब हम आमा से खाने को मांगते थे तो आमा कहती थीं '"इजा लुह्न्ज्यु कै ओन दे, हर्याव लगे बेर फिर दयूल| कहने का मतलब था कि पुरोहित जी जोकि लोहनी थे उनको आलेने दे हरेला लगाकर फिर खाने को दुगी | काश ! कि वो बचपन फिर लौट आता?
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
vah bahut hi sundar
ReplyDeletemay be aa jaukeya keya
muje be vah yh sab pasand hai
अच्छा, यह तो हमारे छत्तीसगढ़ की हरेली और भोजली से मिलता-जुलता लग रहा है.
ReplyDeleteरोचक जानकारी
ReplyDeleteआभार
बहुत जीवंत वर्णन किया है. सुंदर चित्र के साथ त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.
ReplyDelete'हरेले' के बारे में जानकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteआपको भी इस शुभावसर पर ढेर सी शुभकामनाएँ.
'हरेले'पर्व की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteहरेला त्यौहार के बारे में बताने के लिए सुक्रिया ...आपको भी बहुत -बहुत शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआपको भी इस पर्व की शुभकामनायें।
ReplyDeleteराहुल जी की बात से सहमत इस त्योहार और रीति रिवाजो से परिचित कराने के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteएक पारम्परिक पर्व की विस्तृत जानकारी से अवगत कराती पोस्ट.
ReplyDeleteहरेला पर्व की जानकारी पाकर अच्छा लगा। जिस तेज़ी से हमारे पर्व सिमटते जा रहे हैं, इन्हें रिकॉर्ड करना आवश्यक है। आभार!
ReplyDeleteबहुत जीवंत वर्णन किया है. त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.
ReplyDeleteजानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteसुंदर चित्र के साथ त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.......!
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteआपको भी हरेला की शुभकामनाएं।
अच्छा लगता है इन आंचलिक परम्पराओं से परिचय!!
ReplyDeleteहमारे यहाँ यू पी में इसे भुजरियाँ कहा जाता है ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteइन आंचलिक परम्पराओं की बढ़िया जानकारी। हरेला की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण,
ReplyDeleteसाभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
भौत-भौत बधाई और शुभकामना तुमुन कैं, स्वीकार करिया.
ReplyDeleteआभार उपरोक्त रचना हेतु.
लोक जीवन की बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है। लोक संस्कृति और लोक साहित्य हमें एक दूसरे को समझने में बहुत सहयोग करते हैं।
ReplyDeleteहरेला के इस पावन त्योहार पर शुभकामनाएँ.. पहाड़ो में तो आज भी बहुत पारंपरिक तरीके से मनाते हैं..लेकिन शहरों में तो सिर्फ नाम ही सुन ले बहुत है...यादों को जगाने के लिये धन्यवाद...यहाँ पहली बार आई बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteरोचक जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteहरेला त्यौहार के बारे में बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी मिली! सुन्दर विवरण!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर जानकारी...हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteहर तीज त्यौहार का अपना ही महत्त्व और मज़ा भी है ... कितना कुछ जानने को मिलता है ब्लॉग जगत में ... शुक्रिया इस जानकारी के लिए ...
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी।
ReplyDeleteमैदानी इलाकों में भी इससे मिलती-जुलती जौं बोने की परंपरा है मगर ये नवरात्र में बोए जाते हैं। अच्छी सांस्कृतिक जानकारी साझा करने के लिए आपका शुक्रिया।
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ReplyDeleteइस त्यौहार की जानकारी बहुत अच्छी लगी |अच्छी जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteआशा
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeletesanskriti ke baaremee jaan kar achha lga
ReplyDeleteफिर भी हुई मुश्किल अगर,
ReplyDeleteआँचल में माँ की सो लिया..
is tyohaar ke baare me jaankar bahut khushi hui ,iski kaamna bahut pyari hai aur vidhi adbhut maine pahli baar iske baare me jana .sundar .
Nice to know about this festival.
ReplyDeleteरोचक!
ReplyDeleteहरेला त्यौहार की विस्तृत और रोचक जानकारी के लिए शुक्रिया !
ReplyDeleteरोचल जानकारी...
ReplyDeleteमनमोहक संस्मरण
बहुत बेहतरीन पोस्ट सहेजने लायक बधाई
ReplyDeleteअपनी भाषा पढ़कर सुनकर बहुत अच्छा लगता है. बचपन के हरेले याद आ गए. माँ को भी पढ़कर सुनाया.
ReplyDeleteघुघूती बासूती