एक सज्जन बड़े ही दानी थे, उन का हाथ सदा ही ऊँचा रहता था; परन्तु वे किसी की ओर नज़र उठाकर देखते नहीं थे| एक दिन किसी ने उनसे कहा--"आप इतना देते हैं पर आखें नीची क्यों रखते हैं? चेहरा न देखने से आप किसी को पहचान नहीं पाते, इसलिए कुछ लोग आप से दुबारा भी ले जाते हैं"| इसपर उन्हों ने कहा-- भाई! में देने वाला कौन हूँ?
देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन|
लोग भरम हम पर धरें याते नीचे नैन||
देने वाला तो कोई दूसरा (भगवान) ही है| में तो निमित्त मात्र हूँ| लोग मुझे दाता कहते हैं| इसलिए शर्म के मारे मैं आखें ऊँची नहीं कर सकता|
दान के साथ विनम्रता,अहंकारहीनता ही 'सोने पर सुहागा' है.
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक विचार प्रस्तुत किये हैं आपने.
आभार.
यह कायदे की बात है,लेकिन आजकल के दाता तो खुद को खुदा समझते हैं.
ReplyDeleteतू दानी दान भंडारा .....मैं तो निमित मात्र हूँ ....!
ReplyDeleteAaj ke daani samjhe tb n. aabharAaj ke daani samjhe tb n. aabhar
ReplyDeleteAchchhi kahani , sundar sandesh
ReplyDeleteप्रेरक कथा जो विनम्रता का सरल अध्याय पढ़ा जाती है.
ReplyDeletebagvan ko koe nahe dekha hai, aap to madyam hai aap keyu aake nahe utha sakathi hai,
ReplyDeleteआप का बलाँग मूझे पढ कर आच्चछा लगा , मैं बी एक बलाँग खोली हू
ReplyDeleteलिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
मै नइ हु आप सब का सपोट chheya
joint my follower
यदि आपकी पोस्ट हमारे देश के अनेको ट्रस्टों और सभी लोगों तक पहुंचे तो शायद देश के करोडो जरूरतमंद का कुछ भला हो जाये.
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक विचार प्रस्तुत किये हैं आपने
ReplyDeleteअस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
लोग इस जगत में यह समझ कर सिर उठाए घुमते हैं कि उन्होंने बड़े दान किए हैं और वे महादानी है... अनुकरणीय प्रकरण!!
ReplyDeleteउदारचरितानाम्
ReplyDeleteकाश लोग समझ पाते इसे !
ReplyDeleteअहाहा ... बहुत ही प्रेरक बात।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट काफी कुछ कह जाती है. कुछ दुनिया से हटकर. पूर्णतः प्रेरक. आभार.
ReplyDeleteBahut Sunder Baat...
ReplyDeleteकवि रहीम के बारे में भी ऐसा ही कहा जाता है।
ReplyDeleteयह दोहा भी रहीम का कहा हुआ माना जाता है।
कुछ शब्दों में दान की महिमा को बताया है.बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक बात
ReplyDeleteआभार.
महेन्द्र वर्मा जी का कहना सही है, कवि रहीम जो खानखाना के पद पर कार्यरत थे, यह दोहा उनका कहा बताया जाता है। प्रश्न्य भी एक दोहे के रूप में ही है ’ज्यूं ज्यूं कर ऊंचा उठे, त्यूं त्यूं नीचे नैन’ कुछ ऐसा।
ReplyDeleteबात एकदम सही है, हम खुद को पता नहीं क्या समझकर भ्रम में ही जीवन गुजार देते हैं जबकि होते हम निमित्त मात्र ही हैं। सुंदर पोस्ट लगी।
विनम्रता सहित श्रेष्ठ मानवीय गुणों को धारण करने का पाठ पढ़ाती...........प्रेरक लघु कथा
ReplyDeleteबड़ी पुरानी याद दिला दी ...शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक
ReplyDeleteप्रेरक लघु कथा, शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteइस सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बधाई.
ReplyDeleteविन्रमता बहुत बड़ा गुण है. विन्रमता से आदमी महान बनता है.
बिना किसी प्रयोजन के दिया गया दान आदमी को पूज्य बनाता है.
दान में फल प्राप्ति की भावना नहीं होनी चाहिए.
भुत साएर्थक चिंतन है ... सूक्ष्म चिंतन ...
ReplyDeletebahut badi baat kahi hai aapne
ReplyDeletevinamrata bahut bada gun hota hai .mujhe lagta hai ki ye uchh manv mulya hai
rachana
इसीलिये गुप्त-दान को महादान माना जाता है.सुंदर दृष्टांत द्वारा प्रेरक संदेश देती रचना.
ReplyDeleteवाह,क्या बढ़िया और प्रेरक कहानी.
ReplyDeleteबहुत बढि़या। कहा भी है- नर की अरु नल नीर की, गति एकै कर जोइ। जेतौ नीचे होइ चलै, तेतो ऊँचे होइ।
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई लाजवाब और प्रेरक कथा! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया जोधपुर और हैम्स ओसिया इन्स्टिट्यूट जोधपुर की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआपको गुरु पूर्णिमा की ढेर सारी शुभकामनायें..
achha laga prernaprad kahani padhna
ReplyDeleteshubhkamnayen