Tuesday, March 22, 2011

भिटौली

             भिटौली का मतलब है मिलना या भेंट करना| पुराने ज़माने में उत्तराँचल के दूर दराज के गांवों में जाने का कोई साधन नहीं था| लोग दूर दूर तक पैदल ही जाया करते थे| एक दिन में १५-२० मील  का सफ़र तय कर लेते थे| रास्ते भी जंगलों के बीच में से हो कर जाते थे| जंगलों में अनेक प्रकार के जानवर भी हुआ करते थे| उस ज़माने में बच्चों की शादी छोटी उम्र में ही कर देते थे| नई ब्याही लड़की अकेले अपने मायके या ससुराल नहीं जा सकती थी| कोई न कोई पहुँचाने वाला चाहिए था| इस तरह कभी तो ससुराल वाले लड़की को मायके भेजते नहीं थे और कभी कोईपहुंचाने वाला नहीं मिलता था| हमारे पहाड़ में चैत के महीने को काला महिना मानते हैं और नई ब्याही लड़की पहले चैत के महीने में ससुराल में नहीं रहती है| उसको मायके में आना होता है| इस तरह ससुराल जाते समय भाई अपनी बहिन को या पिता अपनी बेटी को कुछ न कुछ उपहार दे कर ससुराल को बिदा करते थे| पहले चैत के बाद लड़की को जब कोई पहुँचाने वाला मिलता तो ही वह मायके आ सकती थी| कई बार तो लड़की सालों तक भी अपने मायके नहीं जा पाती थी| उसको अपने मायके की नराई तो बहुत लगती थी पर ससुराल में रहने को बाध्य  थी| पुराने बुजुर्गों ने इस बिडम्बना को दूर करने के लिए एक प्रथा चलाई| जिस का नाम भिटौली रक्खा गया| इस प्रथा में भाई हर चैत के महीने में बहिन के ससुराल जाकर उसको कोई उपहार भेंट  कर के आता है| जिस में गहने कपडे और एक गुड की भेली होती है| गुड की भेली को तोड़  कर गांव में बाँट दिया जाता है, जिस से पता चलता है की फलाने की बहु की भिटौली आई है| एक बार एक भाई भिटौली लेकर अपनी बहिन के पास गया| बहिन उस समय सोई हुई थी तो भाई ने उसे जगाने के बजाय उसके जागने का इंतजार करना ठीक समझा,और वह वहीँ बैठा उसके जागने का इंतजार करने लगा | भाई के जाने का समय हो गया पर बहिन नहीं जागी| भाई उसकी भिटौली उसके सिरहाने रख कर एक चरेऊ ( गले में डालने वाली माला ) उसके गले में लटका गया और खुद गांव को वापस आ गया| बहिन की जब नींद खुली तो देखा कि उसके गले में चरेऊ लटक रहा है, भिटौली सिरहाने रक्खी है पर भाई का कोई पता नहीं है| वह भाई को आवाज देती बाहर आई | भाई को कहीं भी न देख कर उसके मन में एक टीस उठी और बोली "भै भूखो मैं सीती" मतलब भाई भूखा चला गया और में सोई रह गई| बहिन इस पीड़ा को सहन नहीं कर सकी और दुनिया से चली  गई| अगले जन्म में वह घुघुति (फाख्ता) बन कर आई जिस के गले में एक काले रंग का निशान होता है और बोलने लगी " भै भूखो मैं सीती, भै भूखो मै सीती " जो आज भी पेड़ों पर बैठी बोलती सुनाई देती है| और आज भी  इस परम्परा को निभाते हुए एक भाई अपनी बहिन को चैत के महीने में भिटौली देने जरुर जाता है| परन्तु आजकल अधिकतर भाई अपनी नौकरी के सिलसिले में दूर रहते हैं और अब व्यस्तता अधिक हो गयी है सो बहिनों को मनीओडर या कोरिअर भेजकर भाई अपने फ़र्ज़ की इतिश्री कर देते हैं |  हमारी उन भाइयों से अर्ज है कि वे साल में एक बार चैत के महीने में बहिन के घर खुद जाकर उसे भिटौली दें , जिस से इस परम्परा को जीवित रक्खा जा सके| धन्यवाद|                                         के. आर. जोशी.( पाटली)
  

46 comments:

  1. बहुत ही अर्थपूर्ण

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  2. बहुत सुन्दर कहानी है

    यदि आप सही स्पेस तथा पैराग्राफ का प्रयोग करेंगे तो पढ़ने में आसानी होगी

    अब कोई ब्लोगर नहीं लगायेगा गलत टैग !!!

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  3. achhi jankari di aapne bhitoli se sambandhit....
    abhaar.

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  4. रोज़गार अपनों से बेगाना कर देता है. यह सच है. उत्तरांचल की परंपराओं से परिचय कराने के लिए धन्यवाद.

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  5. अच्छी रचना ..अच्छी जानकारी दी आपने हमें तो पता ही नही था ....धन्यवाद
    शुभकामनाओ सहित
    मंजुला

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  6. बताईये नौकरी क्या न कराये। पहले ख्ती के बाद समय रहता था कहीं और जाने के लिये।

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  7. नए कलेवर के साथ आपका ब्लॉग देखा तो अच्छा लगा. .... भिटौली पर लोकसंस्कृति का परिचायक आपका यह आलेख मन को भा गया. .... इतनी गुज़ारिश जरूर करूंगा कि "उत्तरांचल" की जगह "उत्तराखंड" शब्द का इस्तेमाल करें .... आभार. ....... अनेकानेक शुभकामनाओं सहित

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  8. sunder rachana....isi tarah purane reeti rivazon ke bare me aur unke mahtav ke bare me janane ko milata hai....

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  9. जानकारी का आभार...बढ़िया.

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  10. बहुत ही सुन्दर पोस्ट

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  11. बहुत ही सुन्दर जानकारी दी आपने आभार..

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  12. अच्छी रचना ..अच्छी जानकारी दी आपने

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  13. आपके हर लेख में कुछ नई और बहुत अच्छी जानकारी मिलती है।

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  14. सुन्दर जानकारी आभार..

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  15. जनकारी भरा सुन्दर आलेख!
    जय उत्तराखण्ड!

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  16. बहुत सुन्दर जानकारी हमारे देश के परम्पराओं के बारे में ...

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  17. लोककथा में रिश्तों का मर्म और रीती रिवाजों का अहसास खूब समेटा है ..आपके ब्लॉग से पहाड़ों के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिलता है वैसे हमारे यहाँ भी है ये चलन लेकिन हमारे यहाँ होली से पहले ले जाते है शक्कर चावल देने की रीती है

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  18. dant katha man bhaee .
    hamaree loksanskruti kee jhalak dikhlaane ke liye dhanyvaad .

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  19. आपकी एक साथ तीन-चार पढ डालीं ।भिटौली, फूलधेयी जैसे आलेख उत्तरांचल की लोक-संस्कृति के खूबसूरत गीत हैं ।आप अंचल की अनौखी परम्पराओं से परिचित करा रहे हैं यह बडी बात है । थोडे बहुत फेर बदल के साथ इस तरह की परम्पराएं हर क्षेत्र में होतीं हैं । बस जरूरत है उनसे आत्मीयता के साथ जुडने व उनके वैभव को पहचानने की । आपके ब्लाग पर आकर काफी अच्छा लगा ।

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  20. बहुत ही सुन्दर जानकारी दी आपने आभार..

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  21. जानकारीपरक बेहतरीन आलेख । ज्ञानवर्धन के लिए आभार ।

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  22. जाट देवता की राम राम,
    अपने यहाँ भिटोली को कोथली के नाम से जाना जाता है ।

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  23. आपकी पोस्ट के समय में कुछ गडबड है, ठीक करे ।

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  24. लोक कथाओं तथा कहानियों का मुख्या उद्देश्य होता है उसके माध्यम से समाज को शिक्षा देना. आप उसमे सफल रहे है बधाई हो आपको

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  25. अक्सर सोचता हूँ कि ये लोककथायें इतनी मार्मिक क्यों होती हैं।

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  26. वाह जोशी जी ! तय करना मुश्किल है की आपके विचार ज्यादा सुंदर हैं या शब्द.? बने रहो दाज्यू प्रदीप नील www.neelsahib.blogspot.com

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  27. well written.......thanks for visiting my blog

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  28. घुघूती का त्यौहार हमने भी अपने मित्रों के साथ मनाया है बहुत मजा आता था.आपने विस्तृत जानकारी दी उसका शुक्रिया.
    बहुत अच्छी लगी पोस्ट.

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  29. परम्पराओं के बारे में रोचक और सुंदर जानकारी के लिए बधाई और शुभकामनाएं |

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  30. उत्तराखंड की एक लोक परम्परा के बारे में जानने को मिला, इस हेतु आपको धन्यवाद।
    हमारे देश के ग्रामीण अंचलों में इस तरह की न जाने कितनी परम्पराएं हैं जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं।

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  31. कुछ पाने के लिए कितना कुछ खोना पड़ता है। कुछ पाने की तलाश में हम हम अपनी संस्कृति खोते जा रहे हैं। कहानी के जरिए नई जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  32. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  33. भाई बहन के आत्मिक सम्बन्ध की बहुत ही सुन्दर और ह्रदयश्पर्सी कथा ने मन मोह लिया |

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  34. कितनी कितनी कथाएँ प्रचलित हैं अलग अलग समाज में ... और हर कथा कुछ न कुछ प्रभाव रखती है समाज बनाने में ...

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  35. bahut bahut hi achhi lagi utranchal ki ye pratha .bhai -bahen ke pavitra prem ko darshati ye lok -katha bahut hi marm -sparshi lagi.aap isi tarah se hame vahan ki parampara ,sabhyta v sans kriti ke baare me jaankari dete rahiye. bahut hi achhi lagti hai aapki har post.
    bahut bahut badhai
    poonam

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  36. lok jivn ke mohk ttvon ka sundr chitrn bhut 2 bdhai
    aap mere blog pr aaye bhur 2 hardik aabhar swikar kren
    dr.vedvyathit@gmail.com

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  37. कितनी मार्मिक, तर्कपूर्ण, सच्ची और दृश्यपूर्ण रचना है|

    नयी जानकारी के लिए आभार...

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  38. प्योली के फूल दिखने के लिए आभार.भिटौली के बारे में बढ़िया जानकारी.
    घुघूती बासूती

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  39. बहुत ही ज्ञान वर्धक लगी , जब मैं आपकी पोस्ट पढ़ रहा था, तो हमारे घर के बाहर वो बोल रही थी |..............

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