यह एक दन्त कथा है | उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके में पुराने ज़माने में आने जाने का कोई साधन नहीं था| लोगों को कहीं भी जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ता था| रास्ते भी उबड़ खाबड़ थे| उस समय एक नई व्याहता लड़की अपने ससुराल में आई| उसका मायका उसके ससुराल से काफी दूर पड़ता था| अकेले और बारबार आना जाना मुश्किल था| नई व्याहता लड़की को ससुराल आए काफी समय हो गया था| उसे अपने मायके की बहुत याद आने लग गई| उसे सब की नराई लग गयी थी|
एक दिन उसने अपनी सास से कहा कि मुझे मायके की बहुत याद आ रही है, मैं मैत जौं हो (मे मायके चली जाऊं )| सास ने कहा कि दिन खड़े सारा काम निपटा दो तो चली जाना| उसने अपने जेठ से अनुरोध किया कि वह उसको मायके पहुंचा दे| जेठ ने कहा भोव(कल )चलने को कहा| बेचारी ने सारा काम पूरे लगन से निपटाने की कोशिश की पर दिन खड़े काम ख़तम नहीं हो सका| कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा| बहू पूछती जौं हो (मे मायके चली जाऊं) तो सास फिर से कई काम गिना देती | जेठ को कहती तो वह भोव (कल) चलने को कह देता| आखिर में उसने सूरज देव से प्रार्थना की कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना,खड़े रहना मुझे दिन खड़े मायके जाना है| सूरज ने उसकी प्रार्थना सुन ली ओर अपनी चाल धीरे कर ली| उस दिन लड़की ने अपना काम दिन खड़े ही निपटा लिया| और मायके जाने के लिए तैयार हो गई| जेठ को भी साथ जाना ही पड़ा| लड़की सारे रास्ते में सूरज को कहती गई कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना|
सूरज ने भी उसका पूरा साथ दिया जैसे ही वह अपने मायके के आँगन में पहुंची, ख़ुशी के मारे वह सूरज को चला जा कहना भूल गई| यह देख कर सूरज को गुस्सा आ गया| सूरज ने अपनी गर्मी से दोनों को भस्म कर दिया| अगले जन्म में उन दोनों ने पंछी के रूप में जन्म लिया| एक को कोयल का रूप मिला जो "जौं हो" "जौं हो" कहने लगी | दूसरे को कठफोड़े का रूप मिला जो "भोव" "भोव" करने लगा| आज भी जब पहाड़ की वादियों में कोयल जब "जौं हो" "जौं हो" बोलती है तो किसी दूसरे पेड़ से "भोव" "भोव" की आवाज आती है| यह मार्मिक आवाज आज भी मन को विचलित कर देती है|
एक दिन उसने अपनी सास से कहा कि मुझे मायके की बहुत याद आ रही है, मैं मैत जौं हो (मे मायके चली जाऊं )| सास ने कहा कि दिन खड़े सारा काम निपटा दो तो चली जाना| उसने अपने जेठ से अनुरोध किया कि वह उसको मायके पहुंचा दे| जेठ ने कहा भोव(कल )चलने को कहा| बेचारी ने सारा काम पूरे लगन से निपटाने की कोशिश की पर दिन खड़े काम ख़तम नहीं हो सका| कई दिन तक ऐसे ही चलता रहा| बहू पूछती जौं हो (मे मायके चली जाऊं) तो सास फिर से कई काम गिना देती | जेठ को कहती तो वह भोव (कल) चलने को कह देता| आखिर में उसने सूरज देव से प्रार्थना की कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना,खड़े रहना मुझे दिन खड़े मायके जाना है| सूरज ने उसकी प्रार्थना सुन ली ओर अपनी चाल धीरे कर ली| उस दिन लड़की ने अपना काम दिन खड़े ही निपटा लिया| और मायके जाने के लिए तैयार हो गई| जेठ को भी साथ जाना ही पड़ा| लड़की सारे रास्ते में सूरज को कहती गई कि सूरज भैया धीरे धीरे चलना|
सूरज ने भी उसका पूरा साथ दिया जैसे ही वह अपने मायके के आँगन में पहुंची, ख़ुशी के मारे वह सूरज को चला जा कहना भूल गई| यह देख कर सूरज को गुस्सा आ गया| सूरज ने अपनी गर्मी से दोनों को भस्म कर दिया| अगले जन्म में उन दोनों ने पंछी के रूप में जन्म लिया| एक को कोयल का रूप मिला जो "जौं हो" "जौं हो" कहने लगी | दूसरे को कठफोड़े का रूप मिला जो "भोव" "भोव" करने लगा| आज भी जब पहाड़ की वादियों में कोयल जब "जौं हो" "जौं हो" बोलती है तो किसी दूसरे पेड़ से "भोव" "भोव" की आवाज आती है| यह मार्मिक आवाज आज भी मन को विचलित कर देती है|
के: आर: जोशी. (पाटली)
aapka bahut bahut shukriya jo aap mere blog par padhare .... bahut hi khoobsurat dant katha ... aisi kai kathaein hain kuch ka naamo nishaan mit gaya aur thori si reh gayin hain ... kuch aaj kal ki logical reasoning ke neeche dab gayin hain ... shukriya ye post dalne ka ... aage bhi daalte rahiye ...
ReplyDeleteअरे वाह ...बहुत ही बढ़िया है ये दन्त कथा तो....मुझे तो पता ही नहीं था कि कोयल व कठफोड़े के इस पिछले जन्म के रिशते के बारे में।
ReplyDeleteमार्मिक कहानी
ReplyDeleteIs katha ka nishkarsh yahi hai jhooth na bola jaye aur kiye upkar ka shukriya zarur ada kiya jaye.Prateekatmak shiksha ke liye dhanyawad.
ReplyDeletebahoot hi sunder evam achchhi kahani
ReplyDeleteवाह, यह कहानी तो बढ़िया है। पहले नहीं सुनी।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ahccha aisa hai kya...pahli baar suni ye kahani to ...bahut ahcha laga padha kar...dhanywaad
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