विक्रम संवत का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है, जो इस वर्ष २३ मार्च को है| भारत में कालगणना इसी दिन से प्रारंभ हुई| ऋतु मास तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी यही से शुरू होती है| विक्रमी संवत के मासों के नाम आकाशीय नक्षत्रों के उदय अस्त से सम्बन्ध रखते हैं| वे सूर्य चन्द्र की गति पर आश्रित हैं| विक्रमी संवत पूर्णत: वैज्ञानिक सत्य पर स्थित हैं| विक्रम संवत सूर्य सिद्धांत पर चलता है|
अर्थशास्त्र में काल गणना की इकाई "पल" है, एक पलक झपकने में जितना समय लगता है उसे पल कहते हैं|
नवसंवत्सर बसंत ऋतु में आता है| बसंत में सभी प्राणियों को मधुरस प्रकृति से प्राप्त होता है| काल गणना का सम्पूर्ण उपक्रम निसर्ग अथवा प्रकृति से तादात्म्य रख कर किया जाता है| चित्रा नक्षत्र से आरम्भ होने पर इस मास का नाम चैत्र रखा गया| विशाखा नक्षत्र से बैशाख,जेष्ठा नक्षत्र से जेठ ,पुर्वाषाढा से आषाढ़ , श्रवन नक्षत्र से श्रवन , पूर्वभादरा से भादव, अश्वनी नक्षत्र से असोज (आश्विन), कृतिका से कार्तिक, मृगशिरा से मार्गशीर्ष; पुष्य से पौष, मघा से माघ और पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र से फाल्गुन नामों का नामकरण हुआ|
सूर्य का उदय होना और अस्त होना दिन रात का पैमाना बन गया| चन्द्रमा का घटने बढ़ने का आशय चन्द्रमा का पृथवी से दूरी घटने बढ़ने से है| इसके आधार पर ही शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष और महीने का अस्तित्व आया| दिन रात में २४ होरा होते हैं| प्रत्येक होरा का स्वामी सूर्य,शुक्र,बुध ,चन्द्र शनि, गुरु और मंगल को माना गया है| सूर्योदय के समय जिस गृह की होरा होती है उसदिन वही वार होता है| चन्द्र की होरा में चन्द्रवार (सोमवार) मंगल की होरा में मंगलवार, बुध की होरा में बुधवार, गुरु की होरा में गुरुवार, शुक्र की होरा में शुक्रवार, शनि की होरा में शनिवार और सूर्य की होरा में रविवार होता है| इस प्रकार सातों दिवसों की गणना की गई है|
हमारे उत्तराखंड में नवसंवत्सर के मौके पर लोग अपने घरों की लिपाई पोताई करके घर की साफ सफाई करते हैं| ऐपन(अलप्ना) निकालते है| हमारे यहाँ नवसंवत्सर का नाम पुरोहित से ही सुनने का रिवाज है| पुरोहित के मुंह से ही नवसंवत्सर का नाम सुनना शगुन माना जाता है|
सभी ब्लॉग प्रेमियों को नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteनवसंवत्सर की शुभकामनायें ।।
Aapko bhi NAVRATRI AUR NAVVARSH ki hardik badhai.
ReplyDeleteनवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteउपरोक्त सार्थक एवं जानकारी से पूर्ण पोस्ट हेतु आभार............
विक्रमी नवसंवत्सर २०६९ के शुभागमन पर बधाई एवं शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteनववर्ष आपसभी के लिए मंगलमय और कल्याणकारी हो।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई
ReplyDeleteइस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए बहुत बहुत आभार. नवसंवत्सर की आपको भी अनेकानेक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteएक शंका का समाधान आपसे चाहता हूँ. कि सूर्य मास के अनुसार चैत्र मास सक्रांति से शुरू हो गया है जो कि 14 या 15 तारीख को थी. और हम बचपन से यह मानते आ रहे हैं कि बिक्रमी संवत का प्रथम मास चैत्र है अर्थात चैत्र के प्रारंभ से वर्ष का प्रारम्भ है. फिर ये नवसंवत्सर शुक्ल पक्ष में शुरू होता है क्या ? कृपया लिखें.
विस्तार से जानकारी तो विषय के पंडित ही बता सकते हैं। उनसे क्षमायाचना के साथ मेरा अवलोकन प्रस्तुत है: अधिकांश भारतीय पंचांग सूर्य और चन्द्र्मा वर्षों का अद्भुत समन्वय हैं। कुछ परम्परायें नव-सम्वत्सर को संक्रांति के समय से ही आरम्भ मानते हैं जबकि कुछ में उसके तुरंत बाद की प्रतिपदा से। अब संक्रांति सूर्य पर आधारित है जबकि प्रतिपदा चन्द्रमा (अमावस्या या पूर्णिमा) पर। इसी प्रकार कुछ परम्पराओं में तिथि अंतरिक्षीय घटना के समय ही मान ली जाती है जबकि कुछ में केवल उस दिन, जिसके भोर में (उदीयमान) वह घटना हुई हो। इन्हीं कारणों से अक्सर तिथियों का अंतर देखा जाता है।
Deleteजानकारी के लिए बहुत बहुत आभार...नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteआप सब को भी संवत 2069 मंगलमय एवं शुभ हो।
ReplyDeleteनव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें...सुन्दर जानकारी
ReplyDeleteआपको भी ढेरों शुभकामनायें।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई और शुभकामनायें ...
ReplyDeleteसभी को नव संवत्सर पर हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteआपको भी नव संवत्सर की शुभकामनाएँ...विलम्ब हेतु क्षमा.
ReplyDeleteशुभ नवरात्र.
सादर
अनु
नव संवत्सर पर हार्दिक शुभकामनायें!
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