छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
जी लेने दो खुशियों में चार पल इन्हें
वरना दुनियां में फस कर गम जैसे हो जाएँगे
नाच लेने दो इन्हें आज अपने कदमों पर
वरना हाथों में नाचने वाली रम जैसे हो जाएँगे
छोड़ दो आजाद इन्हें आज जीने को
वरना जीवन के झमेलों में तंग जैसे हो जाएँगे
चलो फिर से खेलें इन नन्हीं कलियों के साथ
वरना फिर ये पल एक भ्रम से हो जाएँगे
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
वरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..आभार
ReplyDeleteबचपन बचाओ ...बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसटीक,तार्किक एवं जाग्रत करने वाली रचना
ReplyDeleteछू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
ReplyDeleteवरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
सुन्दर..
kalamdaan.blogspot.com
सुन्दर अभिव्यक्ति नौनिहालों को समर्पित रीझती हुई बचपन पर .
ReplyDeleteपढ़ते हैं, पर मानवता से,
ReplyDeleteकितना दूर बिछड़ते हैं।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,सार्थक रचना...
ReplyDeleteWELCOME to new post--जिन्दगीं--
सुंदर अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteजाग्रत करने वाली रचना.
छू लेने दो इन नन्हे हाथों को आसमान
ReplyDeleteवरना चार किताबें पढके हम जैसे हो जाएँगे
ye masoomiyat....ye bachpana bana rahe....
inshallah...!
आपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " तुम्हे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए " पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजीवन का अनमोल समय- बचपन !
ReplyDeleteबहुत अच्छी बातें वर्णित हैं आपकी रचना में।
बहुत सच कहा है...बचपन की मासूमियत बरकरार रहने दें और उसे पूरी तरह जीने दें.
ReplyDeleteBehad sundar bhaav aur abhivyakti... Ati sundar ..aaj ka bachpan chhin raha haikitabon k haath aapne usey rokne kee koshish kee hai..bahut sundar..
ReplyDeleteसुंदर कविता।
ReplyDeleteमाँ के आंचल में छुप जाना
घुटनो के बल चलते-चलते।
बचपन था एक खेल सुहाना
कहीं खो गया चलते-चलते।।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.......
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआशा
मेरे नए पोस्ट "मुझे लेखनी ने थामा इसलिए मैं लेखनी को थाम सकी" (मन्नू भंडारी) पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति...
ReplyDeletesundar prastuti
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.
ReplyDeleteबचपन को अभिव्यक्त करती मासूम सी.
आभार.