Wednesday, September 14, 2011

कौन किसका प्रिय है?




वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगा: शुष्कं सर: सारसा:,

पुष्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुप दग्धं बनान्त्न मृगा:|

निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गनिका भ्रष्टश्रियं मंत्रिन:,

सर्व: कार्यवशाज्जनोsभिरमते कस्यास्ति को बल्लभ:||


पक्षी फल ना रहने पर वृक्ष को छोड़ देते हैं, सारस जल सूख जाने के बाद सरोबर का परित्याग

कर देते है, भौंरे बासी फूलों को छोड़ देते हैं, मृग दग्ध (जला हुआ) बन को छोड़ देते हैं| धन के ना रहने पर

वेश्या पुरुष को छोड़ देती है तथा मंत्रिगण श्रीहीन राजा को छोड़ देते हैं, सब लोग अपने अपने स्वार्थवश ही प्रेम

करते हैं, वास्तव में कौन किसका प्रिय है?

38 comments:

  1. अति सुन्दर! अपेक्षा पर आधारित सम्बन्ध की यही गति होती है।

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  2. अच्छा श्लोक |
    आशा

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  3. जीवन का शाश्वत सत्य.

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  4. सुन्दर नीति वचन.
    प्रेरणास्पद सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  5. सत्य वचन....
    हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  6. जीवन का शाश्वत सच...

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  7. अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. नीति वचनों में ही जीवन का सार है.

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  8. संदेश देती सार्थक प्रस्तुति....

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  9. यहाँ प्रश्न न तो स्वार्थ का है न प्रेम का... इसके उत्तर एमन एक मुहावरा उद्धृत करना चाहूँगा..
    घोड़ा अगर घास से दोस्ती कर ले तो खाएगा क्या!!

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  10. सत्य कहा आपने....

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  11. हर कोई अंततः अकेला है!

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  12. एकदम सही है ......

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  13. प्रेरणास्पद सुन्दर नीति वचन... सुन्दर प्रस्तुति

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  14. बहुत ही उत्तम विचार ......... सुंदर प्रस्तुति.
    पुरवईया : आपन देश के बयार

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  15. बिल्कुल सच आपने बहुत खुबसुरती से सच को परिभाषित कर दिया |

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  16. बोध-वचन ! अर्थस्य पुरुषो दासः !

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  17. शनिवार १७-९-११ को आपकी पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है |कृपया पधार कर अपने सुविचार ज़रूर दें ...!!आभार.

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  18. बात तो सही कही आपने.

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  19. सत्य यही है |
    आशा

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  20. परम सत्‍य ...आभार ।

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  21. स्वयं और प्रभू से प्रेम ही सच्छा प्रेम है ...

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  22. सही सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति ..विचारणीय

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  23. तुलसी ने भी यही कहा है-
    स्वारथ लाग करहिं सब प्रीती।

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  24. स्वार्थ से वशीभूत होकर किये जाने वाले प्रेम ऐसे ही छूट जाते हैं। मगर यह भी सत्य है कि वृक्ष विहगों का कभी त्याग नहीं करता। ज्यों आते हैं आश्रय देता है। वैसे ही सभी प्रेमी अपने बेवफा मित्रों को अपनाते हैं। पुरूष भी धन आने पर वेश्या के पास पुनः जाता है।
    कहने का मतलब यह कि इसी श्लोक में यह भी है कि निःस्वार्थ प्रेमी हमेशा प्रेम करते रहते हैं।

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  25. बिलकुल सच कहा है स्वार्थ के बारे में । धन्यवाद ।

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  26. वास्तव में कौन किसका प्रिय है?

    इस श्लोक में बहुत संवेदनशील चिंतन है... अच्छी प्रस्तुति.

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  27. बे -शक सुख के सब साथी ,दुःख में न कोय ,......लेकिन अपने काग भगोड़े के गिर्द मंत्री गण क्या कर रहें हैं ?क्या काग भगोड़ा सिर्फ और सिर्फ रिमोट है ,दूर -नियंत्रण प्रणाली है ,मम्मी जी की ?मंद मति बालक की .
    बहर सूरत बहुत ही नीति परक पोस्ट परोसी है आपने .शुक्रिया आपका इसके लिए ,ब्लोगिया दस्तक के लिए .
    Tuesday, September 20, 2011
    महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  28. वाह! गहन विचार हैं इन ४ पंक्तियों में...
    पूरी दुनिया स्वार्थ पर ही जी रही है..
    सत्य कहा है...

    आभार
    तेरे-मेरे बीच पर आपके विचारों का इंतज़ार है...

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  29. सब स्वार्थ के रिश्ते हैं!

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