बैशाखी भारत के सभी राज्यों में अलग अलग नाम से मनाई जाती है| हमारे उत्तराखंड में बैशाखी "बिखोती" के नाम से जानी जाती है| उत्तराखंड में हर एक संक्रांति को कोई मेला या त्यौहार होता है| बैशाख के महीने की संक्रांति को बिश्वत संकरान्ति के नाम से जाना जाता है| इस दिन कुमाऊ में स्याल्दे बिखोती का मेला लगता है| वैसे तो बिखोती को संगमों पर नहाने का भी रिवाज है| लोग बागेश्वर, जागेश्वर आदि संगमों पर नहाने जाते हैं| इस दिन इन संगमों पर भी अच्छा खासा मेला लग जाता है| इस दिन तिलों से नहाने का भी रिवाज है| तिल पवित्र होते हैं और हवन यज्ञ में प्रयोग होते हैं| कहते हैं कि साल भर में जो विष हमारे शरीर में जमा हुआ होता है इस दिन तिलों से नहाने पर वह विष झड जाता है|
कुमाऊ में यह मेला द्वाराहाट में लगता है जो रानीखेत से २८ कि: मी: कि दुरी पर है| द्वाराहाट में पांडवों के ज़माने के कई मंदिर है, जो सभी पास पास हैं| इन मंदिर समूहों के बीच में एक पोखर (ताल ) भी है जहाँ यह मेला लगता है| इस मेले में भोट,नेपाल आदि जगहों से भी लोग आते हैं| यह मेला ब्यापारिक दृष्टि से भी काफी मशहूर है| लोगों को यहाँ पर अपनी जरुरत कि चीजों को खरीदने का मौका मिलता है|
इस मेले में लोगों को अपनी कला का प्रदर्शन दिखने का भी अच्छा मौका मिलता है| नए कलाकार यहाँ आकर अपनी रचनाओं को गा गा कर सुनाते हैं,इस से लोगों का भी मनोरंजन हो जाता है| इस मेले में कई मशहूर कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन कर के लोगों का मन मोह लेते हैं| इस सबंध में कुमाऊ के मशहूर गायक स्व: गोपाल बाबु गोश्वामी ने एक गीत गया है जिस के बोल इस तरह हैं|
अलघतै बिखोती मेरी दुर्गा हरे गे| सार कौतिका चनें मेरी कमरा पटे गे|
भाव:-इस बिखोती में मेरी दुर्गा खो गई है, सारे मेले में ढूढ़ते मेरी कमर थक गई है|
एक और गायक ने गाया है|
हिट साईं कौतिक जानूं द्वाराहटा | ओ भीना कसिका जानू द्वाराहटा |
भाव:-जीजा अपनी साली से मेले में चलने को कहता है पर साली अपनी मज़बूरी जताती है कैसे जाऊं मेले में|
द्वाराहाट वैसे तो रानीखेत तहसील का एक छोटा सा क़स्बा है| यहाँ पर डिग्री कालेज है, पोलिटेक्निक है और इंजीनियरिग कालेज भी है| यहाँ से मात्र ६ कि: मी: की दूरी पर माता दूनागिरी जी का प्रसिद्द मंदिर है| जो दूनागिरी पर्वत पर बिराजमान है| कहते हैं कि इस द्रोणागिरी पर्वत पर अभी भी संजीवनी बूटी मिलती है परन्तु उसे ढूढने के लिए कोई सुशेन वेद्य चाहिए|
बैसाखी की हार्दिक शुभकामनाये|
फोटो साभार : google.com
बहुत सुंदर लेख. द्वारहाटक कौतीक आपन शब्दोंक द्वारा ये दिल्ली में बैठ बेर देख ले. बहुत धन्यवाद. पहाड़क यस चित्रण करते रओ बहुत आनंद आल.
ReplyDeleteवैशाखी का बड़ा ही सुंदर मनोरम और सार्थक चित्रण आपने किया है बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteअच्छे लेखन के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग भी देखें दुनाली
गज़ब की जानकारी। वैसाखी की हार्दिक शुभकामनायें! धन्यवाद!
ReplyDeleteसार्थक जानकारी के लिए आपका आभार!
ReplyDeleteसाथ ही आपको वैशाखी व् राम नवमी की ढेरों शुभकामनाएँ !
सुंदर जानकारी ...वैशाखी और रामनवमी की शुभकामनायें आपको भी....
ReplyDeleteबिखौती की जानकारी प्राप्त हुयी उसके लिए भी तथा राम नवमी के लिए भी आप सब को हार्दिक मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteबिखौती की जानकारी के लिए आभार!रामनवमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteबढ़िया जनकारी!
ReplyDeleteबैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की शुभकामनाएँ!
रोचक जानकारी... रामनवमी की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteसार्थक जानकारी के लिए आपका आभार!
ReplyDeleteसाथ ही आपको वैशाखी व् राम नवमी की ढेरों शुभकामनाएँ !
सुंदर जानकारी ...
ReplyDeleteवैशाखी और रामनवमी की शुभकामनायें आपको भी...
बढ़िया जानकारी। रामनवमी की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteयहाँ से नेपाल कितनी दूर है...? नजदीक का बस अड्डा कौन सा है ?
सुंदर जानकारी ...
ReplyDeleteआपको भी वैशाखी और रामनवमी की शुभकामनायें...
सुन्दर जानकारी और आपको वैशाखी की शुभकामनायें।
ReplyDeleteवैशाखी के साथ-साथ राम नवमी की भी शुभकामनाएं।
ReplyDelete............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
मेरे लिए बिलकुल नयी जानकारी है ये , मोहक वर्णन । आभार आपका।
ReplyDeleteबैसाखी की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteप्रवाहपूर्ण ढंग से अति रोचक जानकारी प्रस्तुत की है आपने.यूँ लगा की मै खुद ही मेले का भ्रमण कर रहा हूँ और आपके साथ ही हँस बोल रहा हूँ.आपका मेरे ब्लॉग पर आने का बहुत बहुत आभार.वैसाखी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएं.
ReplyDeleteद्वाराहाट का यह मेला एक बार हमने भी देखा है. और " ओ भीना कासिका जानू द्वारहाटा" तो कुमाऊं में बच्चे बच्चे की जुबान पर हुआ करता था.कुछ बोल अब तक याद हैं.
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी सुन्दर पोस्ट.
ज्ञानवर्धक सुंदर आलेख के लिए आभार . बैसाखी (बिखोती )पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी.बैसाखी की शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरोचक जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteरोचक जानकारी है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteबैसाखी की हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteरोचक जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteऔर
बैशाखी और अम्बेदकर जयन्ती की शुभकामनाएँ!
स्याल्दे बिखोती पर आपका यह लेख बहुत कुछ कह गया. ....... आपको बिखोती की हार्दिक शुभकामनायें.
ReplyDeleteमुझे द्वारहाट जाने का सुअवसर मिला है। यादें ताजा़ हुईं।
ReplyDeletenai jankari
ReplyDeleteabhar
शाबाश! आपने बहुत अच्छा आलेख लिखा है. ऐसे ही लिखते रहिए. बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई. ये हैं कुछ मेरे ब्लॉग्स: http://www.cheytnaditya.blogspot.com/ और http://www.cheytna-sansaar.blogspot.com/ अनुसरण करने के लिए और अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए आपका भी यहाँ पर स्वागत है.
ReplyDeleteचेतनादित्य आलोक
जानकारी के लिए आभार।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
बिखोती पर रोचक जानकारी प्रस्तुत करने के निए आभार।
ReplyDeleteआंचलिक संस्कृति से परिचय कराने का आपका कार्य सराहनीय है।
जाट देवता की राम राम
ReplyDeleteपहाड के रीति-रिवाज निराले है।
बिखोती की बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें ...
ReplyDeleteनयी जानकारी देने का आभार
खूबसूरत संस्कृतिक अवसर की झांकी के लिए शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसार्थक जानकारी
ReplyDeleteअच्छी जानकारी रोचक अंदाज़ में दी है .....
ReplyDeleteबहुत -बहुत शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteवह आपने तो बहुत ही अच्छी जानकारी दी है बैसाखी की ...
ReplyDeletejanna achchha laga..sarthak post...shubhkamna
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