इस बेकारी ने इस लोक तो क्या, स्वर्ग लोक तक दिखा दिया|
मज़बूरी से आवेदन पत्र पर, हमने भी अपना नाम लिख दिया||
सुना है स्वर्ग में पोस्टों का, एक खुला बम्पर आया|
एक - एक करके लाइन से, हमारा भी नंबर आया||
घूमती कुर्सी में बैठे यमराज, एक - एक करके बुला रहे हैं|
नुक्स गलतियाँ कई बता कर, बेरोजगारों को रुला रहे हैं||
बोले- तुम्हारे पोस्टल आर्डर में, डेट ठीक से नहीं चढ़ी हुई है|
वैसे भी इस पोस्ट के लिए, तुम्हारी उम्र बढ़ी हुई हैं||
बोले कितने ही काल अकाल से, यहाँ भी अब भीड़ बढ़ चुकी है|
यहाँ भी बेकारी, भुखमरी की, गहरी साज गढ़ चुकी है||
जाओ एक बार कर्म के मन्दिर में,फिर से माथा टेक के आओ|
वहां लगा है सुन्दर मेला, उसका ताँता देख के आओ||
देखा लौट के इस जहाँ में, बेकारी का मेला लगा हुआ है|
इस भीड़ में उपद्रव का, जगह जगह पर झमेला लगा हुआ है||
कहीं सपेरा मरे सांप के ऊपर, अपनी बीन बजा रहा है|
बन्दर वाला लाठी के बल पर,भूखे बन्दर को नचा रहा है||
दशा दृश्य मेले की देख, कहीं हम रो न जाएँ|
डर है इस मेले में आज, कहीं हम खो न जाएँ||
यमराज दरबार और इस लोक पर बेरोजगारी का व्यंगात्मक व सटीक चित्रण. एक अच्छी कविता के लिए आभार.
ReplyDeleteयही मेला है साहब....कभी मदारी जानवर को नचाता है तो कभी बन्दर मदारी को....
ReplyDeleteसोचने वाली बात है....
नमस्कार.
विचारणीय ....व्यंगात्मक पंक्तियाँ....
ReplyDeleteसटीक!
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग।
ReplyDeleteदेखा लौट के इस जहाँ में, बेकारी का मेला लगा हुआ है|
ReplyDeleteइस भीड़ में उपद्रव का, जगह जगह पर झमेला लगा हुआ है||
सुन्दर व्यंग।
क्या करे साहब इसी मेले मे जीना है
ReplyDeleteबहुत अच्छा व्यंग किया है
शुभकामनाये
सटीक व्यंग्य....
ReplyDeleteप्रियवर
ReplyDeleteनमस्कार !
अच्छी व्यंग्य रचना है…
यहाँ भी बेकारी, भुखमरी की, गहरी साज गढ़ चुकी है
स्वर्ग में भी यही सब … !
बढ़िया है
बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
:) kya baat hai...
ReplyDeleteबेकारी पर व्यंग्य करती सुंदर कविता .
ReplyDeleteअकेली बेकारी हो तो भी चले यहाँ भाई-भतिजाबाद कोढ़ में खाज जैसी स्थिति पैदा करती है . नौकरी पैसे वालों को और सिफारिश वालों को मिलती है .
----sahityasurbhi.blogspot.com
व्यंग्य करती सुंदर कविता .
ReplyDeleteबेरोजगारी पर अच्छी कविता है। वस्तुतः आज स्थिति ही ऐसी ही है।
ReplyDeleteआप "वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर" पर पधारे, एवं बधाई दी एतदर्थ धन्यवाद!
आप भी इस कार्य में अपना अमूल्य योगदान दें। तथा हमें सूचित करें। आपक एक कदम हमारे लिये संजीवनी साबित होगा।
बहुत अच्छा व्यंग किया है ........बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई
ReplyDeleteवाह, बढ़िया व्यंग्य है।
ReplyDeleteआज के समाज को दर्शाती एक उम्दा पोस्ट....
ReplyDeleteक्या बात है आपकी
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete"हट जाओ वेलेण्टाइन डेे आ रहा है!".
सुन्दर हास्य कविता.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteMela Madai Mere Raipur Main Shuru Ho Rahen Hain
ReplyDeleteलाठी के बाल..लाठी के बल
ReplyDeleteआपनी बीन..अपनी बीन
कहीं सपेरा मरे सांप के ऊपर, अपनी बीन बजा रहा है|
..सुंदर पंक्ति।
utam-***
ReplyDeletewah bhai wah!
ReplyDeleteAti Sunder
ReplyDeleteगजब का प्रस्तुतीकरण !
ReplyDeleteबधाई ।
दुनिया के मेले की जिन्दा तस्वीर.
ReplyDeleteबेकारी पर व्यंग्य करती सुंदर कविता क्या
ReplyDeleteखूब लिखा है आपने
ढेर सारी शुभकामनाये!!
बहुत संवेदनशील हैं आप .......शुभकामनायें !
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