अंगुली पकड़ कर चलनेवाला मैं,
उस दिन बिना सहारे के चला था|
पहली बार गिरा फिर रोया,
रोता रहा बेजार|
मुझे सहारा चाहिए था खड़ा होने के लिए,
उन सहारों को पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चलने के लिए|
मगर कोई नहीं आया,
मैं चीखा था चिल्लाया था|
मैंने हाथ भी फैलाए थे,
मगर कोई नहीं आया|
तब मैंने ढूंढा था,
शायद खुद में ही खुद के लिए सहारा|
तब मैं नादान था इन बातों से अंजान था,
पर अब कभी जब भी मैं गिरता हूँ,
रोता नहीं, पर सोचता जरुर हूँ,
यदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
तो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|
कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteयदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
ReplyDeleteतो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|
और फिर हममें एक लत पड़ जाती है , तो हम जिन्दगी में किसी के सहारे के बिना आगे नहीं बढ़ पाते ...बहुत प्रेरणादायी...
प्रेरणादायी पंक्तियाँ..... खुद को संभलना आ जाये इससे बेहतर क्या हो सकता है.....
ReplyDeleteकब सहारा हटाना है, सहारा देने वाला ही निर्धारित करता है।
ReplyDeleteखुदका सहारा खुदको ही बनना पड़ता है ... बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteप्रेरणादायी पंक्तियाँ
ReplyDeleteप्रेरणादायी पंक्तियाँ..... इसे ही तो कहते हैं अपने पैरों पर खड़ा होना और जिंदगी में इससे सुखद एहसास कोई नहीं.. बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआत्मविश्वास अपनी ही दहलीज पर खड़ा होता है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअनावश्यक सहारा एक इंसान कों parasite बना देता है । बहुत ही प्रेरनादायी रचना ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनायें !
bahut khoob....
ReplyDeleteप्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय रचना बहुत ज्ञानवर्धक है.
ReplyDeleteअपने पैरों पर खड़ी प्रेरक कविता.
ReplyDeleteयदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
ReplyDeleteतो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|
sach aur anubhav se bhari baate ,marta kya nahi karta jeene ke liye ,bahut bahut achchhi rachna .
प्रेरणास्पद एक सुन्दर रचना.... आभार. सच ही आपकी यह रचना स्वामी विवेकानंद जी के इन शब्दों के कितने करीब है.- "..... Be free; hope for nothing from any one. I am sure if you look back upon your lives, you will find that you were always vainly trying to get help from others, which never came. All the help that has come was from within yourselves . ........."
ReplyDeleteमनोबल को ऊँचा उठाती पंक्तियाँ आभार
ReplyDeleteएक बार सहारे की आदत हो जाये तो फ़िर हमेशा सहारा तलाशने पर ध्यान रहता है।
ReplyDeleteसुंदर विचार हैं।
दिल की गहराइयों से निकली सुंदर अभिव्यक्ति. धन्यवाद.
ReplyDeleteतब मैंने ढूंढा था,
ReplyDeleteशायद खुद में ही खुद के लिए सहारा
अपना सहारा खुद हो जाना ही श्रेयस्कर है।
बहुत अच्छी कविता।
बहुत सुंदर!
ReplyDeleteWhat an inspiring poem,really praise worthy.Keep writng my dear friend.
ReplyDeleteThsnks a lot for yr kind comment on my blog.
Thanks again.
dr.bhoopendra
मैं चीखा था चिल्लाया था|
ReplyDeleteमैंने हाथ भी फैलाए थे,
मगर कोई नहीं आया|
तब मैंने ढूंढा था,
शायद खुद में ही खुद के लिए सहारा.........khubsurat abhivyakti
रचना में प्रेरणा से पूर्ण भाव
ReplyDeleteरोमांचित करते हैं ...
अभिवादन .
Khud ka sahaara mil jaaye to kya baat hai ... jeene ki kala aa jaati hai ...
ReplyDeleteबहुत प्रेरक रचना.
ReplyDeleteआभार
prabhavshali kavita
ReplyDeleteप्रेरणास्पद एवं अनुकरणीय रचना!
ReplyDeleteसोना तो तप के ही कुन्दन बनता है।
ReplyDeleteएक दूसरा पहलू यह है कि हम किसी भी क्षण बेसहारा नहीं हैं।
ReplyDeleteभावभीनी रचना जो मन को छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई
ReplyDeleteमैं चीखा था चिल्लाया था|
ReplyDeleteमैंने हाथ भी फैलाए थे,
मगर कोई नहीं आया|
तब मैंने ढूंढा था,
शायद खुद में ही खुद के लिए सहारा..
सशक्त सहारा तो वही होता है जो खुद को खुद ही दिया जाये। प्रेरक पाँक्तियाँ। शुभकामनायें।
अपने आप में एक आत्मविश्वास जगाती खुबसूरत रचना |
ReplyDeleteप्रेरणास्पद रचना बहुत ज्ञानवर्धक है.
ReplyDeleteपर अब कभी जब भी मैं गिरता हूँ,
ReplyDeleteरोता नहीं, पर सोचता जरुर हूँ,
यदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
तो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|
bahur khoob bhai
'यदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
ReplyDeleteतो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|'
- सुन्दर |
बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
ReplyDelete---------
काले साए, आत्माएं, टोने-टोटके, काला जादू।
आत्मनिर्भरता का यही मूल मंत्र है। अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचार युक्त कविता है |
ReplyDeleteउम्दा लफ़्ज़ों की दास्तान, बा-खूब लफ़्ज़ों का सहारा, प्रसंशनिये!! आभार!!
ReplyDeletenamaskaar,
ReplyDeletenaye blog lekhakon ka bhi haunsala badhayen,ek nazae mere blog par bhi dalen.
krati-fourthpillar.blogspot.com
गिर कर मैंने संभलना सीखा, फ़िसलकर मैंने चलना सीखा !
ReplyDeleteयों हि मैने जमाने से ही ज़माने से लड़ना सीखा !
अच्छा सन्देश दे रही उम्दा पोस्ट !
ReplyDeleteवाकई.....
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपको !
बहुत ही सुन्दर विचार युक्त रचना है|
ReplyDeleteamazing poem , pahli baar aapke blog par aaya hoon aur sach me bahut khushi hui mujhe aapko padhkar ..
ReplyDeletemeri badhayi sweekar kare.
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
यदि उस दिन किसी ने सहारा दिया होता,
ReplyDeleteतो मैं जिन्दगी भर सहारों के बल पर ही चल रहा होता|
सुन्दर और प्रेरणा देती हुयी रचना अपने पैर पर खड़ा होना स्वावलंबन बहुत ही जरुरी होता है -
बधाई हो
शुक्लभ्रमर५