Friday, December 3, 2010

दोषी कौन ?

बहुत खोया,                                   
मैं क्यों रोया?
मैंने माना-मेरा  दोष,
मुझ को जिनसे रोष था,
आज उनकी बेबसी पर,
और अपनी बेबसी पर,
मुझ को भान आया,
मेरा साया ही मेरा दोष,
मेरा अपना दोषी,    
मैं ही बेकस-खुद का था,
                            मैं खुद का दोषी|

14 comments:

  1. बहुत सच कहा है..अपनी बेबसी और असफलता के हम स्वयं ही दोषी हैं..सुन्दर प्रस्तुति..

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  2. Thanks for visiting my blog AchchiKhabar

    Kya aap khud ye kavitayen likhti hain...bahut achchi baat hai.

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  3. यह तो इंसान कि फितरत है .....शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

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  4. aisa lagta hai jaisey kahi kuch shesh rh gaya hai.....
    abhaar.........

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  5. sankhsipt kintu prabhavshali kavita.. bahut badhiya.. wonderful

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  6. मैं ख़ुद का दोषी, सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।

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  7. दोषी हम नहीं हमारा अज्ञान दोषी है, अविद्या दोषी है, हम तो अभी खुद से परिचित ही नहीं हैं, मिलो तो जानो !

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  8. बहुत सुन्दर रचना ...

    मैं ही बेकस-खुद का था,
    मैं खुद का दोषी|

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. You are all right...

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  11. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
    जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा ना कोय.
    मिलते-जुलते भावों पर बनी आपकी रचना. उत्तम शब्द संरचना.
    मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
    www.najariya.blogspot.com नजरिया.

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  12. वाह क्या लिखा है आपने मैं खुद का दोषी...... बहुत ही अच्छी लगी ये पंक्ति तो.

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  13. मेरे ब्लॉग "एक्टिवे लाइफ" पर आने के लिए दिल से धन्यवाद ...

    कविता बहुत सुन्दर है !

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