Tuesday, October 12, 2010

'इश्के हकीकी'

                                               'नूह' साहब ने फरमाया  है:-


इश्के  हकीकीके लिए इश्के मजाज़ी है ज़रूर,            
वे  वसीला  कहीं बन्देको  खुदा  मिलता है|
'नूह'  काबे मे नज़र आया न बुत भी कोई,
लोग  कहते थे कि काबेमें खुदा मिलता है|
हर तलबगारको मेहनत का सिला मिलता है,
बुत है क्या चीज  कि ढूंढेसे  खुदा  मिलता है|
यह नूर का जलवा है,हर बार नहीं होता ;
हर बार हसीनों का दीदार नहीं होता|

8 comments:

  1. हर तलबगारको मेहनत का सिला मिलता है,
    बुत है क्या चीज कि ढूंढेसे खुदा मिलता है|
    Baat sach hai or aapka kehna sahi hai
    sunder post

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  2. "हर तलबगारको मेहनत का सिला मिलता है,
    बुत है क्या चीज कि ढूंढेसे खुदा मिलता है|"

    सुंदर प्रस्तुति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  3. बहुत सुन्दर| धन्यवाद

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा..
    ....
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  5. इतनी सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना से परिचय करने के लिए धन्यवाद...आभार..

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