फ़िराक़ गोरखपुरी जी की एक गजल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से ही पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
तो ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
हम-आहंगी में भी इक चाशनी है इख्तिलाफों की
मेरी बातें ब-उन्वाने-दिगर वो मान लेते हैं
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा नी जान लेते हैं
रफ़िके-जिन्दगी भी अब अनिसे-वक्ते-आखिर है
तेरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं
फ़िराक अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी हम पहचान लेते हैं
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िन्दगी हम दूर से ही पहचान लेते हैं
तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
तो ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं
हम-आहंगी में भी इक चाशनी है इख्तिलाफों की
मेरी बातें ब-उन्वाने-दिगर वो मान लेते हैं
जिसे सूरत बताते हैं पता देती है सीरत का
इबारत देख कर जिस तरह मा नी जान लेते हैं
रफ़िके-जिन्दगी भी अब अनिसे-वक्ते-आखिर है
तेरा ऐ मौत हम ये दूसरा एहसान लेते हैं
फ़िराक अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर
कभी हम जान लेते हैं कभी हम पहचान लेते हैं
बहुत खूब,सुंदर प्रस्तुति,फ़िराक़ गोरखपुरी जी की गजल साझा करने के लिए आभार,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अपनी पहचान
behatarin dil ko chhune wali
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल....साझा करने के लिए आभार....!!!
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