किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था | ब्राह्मण गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था| परमात्मा में आस्था रखने वाला था | वह रोज सवेरे उठ कर गंगा में नहाने जाया करता था| नहा धो कर पूजा पाठ किया करता था| रोज की तरह वह एक दिन गंगा में नहाने गया नहा कर जब वापस आ रहा था तो उसने देखा रास्ते में एक लिफाफा पड़ा हुआ है| उसने लिफाफा उठा लिया| लिफाफे को खोल कर देखा तो वह ब्राह्मण हक्का बक्का रह गया लिफाफे मे काफी सारे नोट थे| रास्ते में नोटों को गिनना ठीक न समझ कर उसने लिफाफा बंद कर दिया और घर की तरफ चल दिया| घर जाकर उसने पूजा पाठ करके लिफाफे को खोला | नोट गिनने पर पता चला कि लिफाफे मे पूरे बीस हजार रूपये थे| पहले तो ब्रह्मण ने सोचा कि भगवान ने उस की सुन ली है| उसे माला माल कर दिया है |
ब्राह्मण की ख़ुशी जादा देर रुक नहीं सकी| अगले ही पल उसके दिमाग में आया कि हो सकता है यह पैसे मेरे जैसे किसी गरीब के गिरे हों| सायद किसी ने अपनी बेटी की शादी के लिए जोड़ कर रख्खे हों| उसकी आत्मा ने आवाज दी कि वह इन पैसों को ग्राम प्रधान को दे आये| वह उठा और ग्राम प्रधान के घर की तरफ को चल दिया| अभी वह ग्राम प्रधान के आँगन मे ही गया था उसे लगा कोई गरीब आदमी पहले से ही ग्राम प्रधान के घर आया हुआ है | वह भी उन के पास पहुँच गया| गरीब आदमी रो-रोकर प्रधान को बता रहा था की कैसे कैसे यत्नों से उसने पैसे जोड़े थे पर कहीं रास्ते में गिर गए थे| सारी कहानी सुन ने पर गरीब ब्रह्मण ने जेब से पैसे निकले और उस गरीब आदमी को देते हुए कहा कि मुझे ये पैसे रास्ते में मिले हैं| आप की कहानी सुन ने के बाद अब यकीन हो गया है कि ये पैसे आप के ही है| पैसे देखते ही गरीब के चेहरे पर रौनक आ गई | गरीब ब्राह्मण ने कहा पैसे गिन लीजिये| गरीब आदमी ने ब्राह्मण का धन्यवाद करते हुए कहाकि पैसे तो पूरे ही हैं इसमे से में आप को कुछ इनाम देना चाहता हूँ | गरीब ब्रह्मण ने कुछ भी लेने से इंकार कर दिया| ब्राह्मण अपने घर को वापस आ गया उस को इस बात की ख़ुशी थी कि उसकी आत्मा की आवाज की जीत हुई है |
सुंदर कथा ...
ReplyDeleteआभार..
मैंने जब नौकरी ज्वाइन की थी तो ट्रेनिंग में बहुत सारी बातें सिखाई गयीं.. लेकिन अंतिम दिन हमारे शिक्षक महोदय ने कहा कि इस सारी ट्रेनिंग के ऊपर एक सिद्धांत याद रखो कि हमेशा कोई भी निर्णय लेने के पहले अपनी आत्मा की आवाज़ ज़रूर सुनो!!
ReplyDeleteआज आपकी इस कहानी ने वह सबक याद दिला दिया!
सुन्दर कथा परन्तु यह वाक्यांश "गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था|" कुछ अटपटा सा है. इससे कुछ ऐसा आभास होता है कि गरीब साधारनतया बेईमान होते हैं.
ReplyDeleteप्रेरक पोस्ट. स्वार्थ से परे होकर ब्राहमण द्वारा पूरे रुपये लौटाया जाना एक अच्छी सीख देता है. आभार.
ReplyDeleteआत्मा हमेशा ही हमारा सही मार्गदर्शन करती है ,उसकी आवाज हमसभी को सुननी ही चाहिए ...प्रेरक कथा
ReplyDeleteआत्मा की ये आवाज कल चर्चा मंच तक भी पहुचेगी ,
ReplyDeleteसादर
आत्मा की आवाज सच ही बोलती है...
ReplyDeleteआपकी कहानी अच्छी लगी। सार्थक कहानी के लिए आपका आभार।
ReplyDeleteआत्मा की आवाज ही हमारे सुख के भार तले दबा किसी का दुख पहचान सकती है।
ReplyDelete"गरीब होते हुए भी सच्चा और इमानदार था|" वाक्यांश यह याद दिलाता है कि खुद जरूरतमन्द होते हुये भी दूसरे जरूरतमन्द लोगों का ख्याल रखने वाला था। जबकि धनवान और अमीर लोग भरे पूरे होते हुये भी गरीबों को और कुचलने वाले होते हैं।
ReplyDeleteप्रेरक...
ReplyDeleteसादर.
आत्मा की आवाज हमेशा सही होती है...बहुत प्रेरक कथा..
ReplyDeleteबढ़िया कथा
ReplyDeleteGyan Darpan
..
सुन्दर...
ReplyDeleteसंतोष धन से बड़ा कोई धन नहीं...
शुक्रिया.
.सार्थक ख़ुशी देती कथा .
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteआत्मा की आवाज पर ही चलना चाहिए, यही तो जीवन का बोध कराती है.
ReplyDeleteईमानदारी का सुख सबसे बड़ा और नींद सबसे मीठी होती है ...जिसके पास यह दोनों हों, उससे धनी कोई नहीं !!!!!
ReplyDeletebahut hi sundar pravishti lagi ....vastaav me eemandari jindgi ki safalata ki kunji hai ..sadar abhar.
ReplyDeleteइमानदारी ही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सराहनीय प्रस्तुति के लिए बधाई .
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
प्रेरणादायक, सुन्दर कहानी.
ReplyDeleteपैसे को असली अधिकारी तक पहुँचा कर उसने पुण्य किया. प्रेरणादायक.
ReplyDeletebahut sundar kahani.preranaprad.
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