नास्ति विद्यासमं चक्षुर्नास्ति सत्यसमं तप:|
नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं सुखम||
उत्थातव्यं जाग्रतव्यं योक्तव्यं भूति कर्मसु |
भविष्यतीत्येव मन: कृत्वा सततमव्यथै:||
नास्ति रागसमं दुखं नास्ति त्यागसमं सुखम||
उत्थातव्यं जाग्रतव्यं योक्तव्यं भूति कर्मसु |
भविष्यतीत्येव मन: कृत्वा सततमव्यथै:||
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है, सत्य के समान कोई तप नहीं है, राग के समान कोई दुःख नहीं है, और त्याग के समान कोई सुख नहीं है| "मेरा कार्य अवश्य ही सिद्ध होगा" ऐसा दृढ निश्चय कर के मनुष्य को आलस्य छोड़ कर उठना चाहिए तथा प्रसन्नता और आशा के साथ कल्याणकारी उन्नति के साथ कार्यों में जुट जाना चाहिए|
सुन्दर विचार
ReplyDeleteश्रेष्ठ मानक..यही अपनाये जायें..
ReplyDeleteसुविचार!!
ReplyDeleteसुविचार है ... अब जाग मुसाफिर भोर भाई ...
ReplyDeleteसुविचार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
बहुत सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर.
इस सूक्ति के समान कोई उक्ति नहीं।
ReplyDeleteसही है मगर आजकल तो सच्चाई और ईमानदारी श्राप बनती जा रही है.पता नहीं कब ठीक होगा सब ?
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति !...
ReplyDeleteक्या बात है । इस ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आपका आभार । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसुंदर संदेश. आभार आपका.
ReplyDeleteप्रेरक सुभाषित।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
कार्यसिद्धि की नीति - बेहतरीन पोस्ट हेतु आभार.
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