Saturday, July 16, 2011

"हरेला"

       हरेला कुमाऊ  का  एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो सावन के महीने मे कर्क संक्रांति को मनाया जाता है| इस दिन से ठीक दस  दिन पहले सात अनाजों को मिला कर बांस की टोकरी, लकड़ी की  फट्टी  या गत्ते का डिब्बा जो भी मौके पर उपलब्ध हो उस मे रेत  बिछा के बोया  जाता है| रोज सुबह शाम ताजा  जल लाकर उसमे डाला जाता है | इस खेती को घर के अँधेरे कोने मे रख्खा जाता है ताकि इसका रंग पीला रहे| कर्क संक्रांति के दिन घर मे   सामर्थ के मुताबिक तरह तरह के पकवान बनाए जाते है| फिर सुबह को पुरोहित जी आ कर हरेले को प्रतिष्ठित करते हैं|फिर पुरोहित जी हरेले को पहले घर मे भगवान्  जी को चढाते  हैं और इष्ट देब के मन्दिर मे चढाते  हैं| जो भी पकवान बनाए होते  है सब का भगवान को भोग लगता है| पुरोहित जी के  भोग लगाने के बाद घर के बड़े बुजुर्ग बच्चों को एक साथ बैठा कर हरेला लगाते हैं | हरेले को दोनों हाथों मे पकड कर पैरों पर लगाते हुए सर की और लेजाकर सर मे रख देते हैं और मुह से बोलते हैं|
           लाख हर्यावा, लाख बग्वाई, लाख पंचिमी जी रए  जागि रए  बची रए |
( भाव तुम लाख हरेला, लाख बग्वाली, लाख पंचिमी तक जीते रहना)
          स्यावक जसी बुध्धि  हो, सिंह जस त्राण हो|
(भाव लोमड़ी की तरह तेज बुध्धि  हो और शेर की तरह बलवान हो )
          दुब जैस पनपिये, आसमान  बराबर उच्च है जाए, धरती बराबर चाकौव है जाए|
(भाव दुब की तरह फूटना , आसमान  बराबर ऊँचा होजाना, धरती के बराबर चौड़ा हो जाना|)  
         आपन गों पधान हए ,सिल पीसी भात खाए|
(भाव अपने गांव का प्रधान  बनना और इतने बूढ़े  हो जाना की खाना भी पीस कर खाना|)
         जान्ठी  टेकि झाड़ी जाये , जी रए  जागि  रए  बची रए  |
(भाव छड़ी ले कर जंगल पानी जाना, इतनी लम्बी उम्र तक जीते रहना जागते रहना.|)
        सब को हरेला  लगाने के बाद भगवान  को लगाया गया भोग सब बच्चों मे बाँट दिया जाता है| लड़के हरेले को अपने कान मे टांग लेते हैं  और लड़कियां हरेले को अपनी धपेली के साथ गूँथ लिया करती हैं|

        आज मुझे भी अपना बचपन याद आ गया है जब हमारी आमा (दादी) जिन्दा हुआ करती थीं | हम छोटे छोटे बच्चे थे जब खाने पीने की कोई चीज घर मे बनती थी तो पहले हम बच्चों को ही दी जाती थी| पर हरेले के दिन जब तक पुरोहित जी नहीं आते थे किसी को कुछ नही मिलता था|जब हम आमा से खाने को मांगते थे तो आमा कहती थीं '"इजा लुह्न्ज्यु कै ओन दे, हर्याव लगे बेर फिर दयूल| कहने का मतलब था कि पुरोहित जी जोकि लोहनी थे उनको आलेने दे हरेला लगाकर फिर  खाने  को दुगी | काश ! कि वो  बचपन फिर लौट आता?
आप सब को हरेले की शुभ कामना |
                                            

39 comments:

  1. vah bahut hi sundar
    may be aa jaukeya keya
    muje be vah yh sab pasand hai

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  2. अच्‍छा, यह तो हमारे छत्‍तीसगढ़ की हरेली और भोजली से मिलता-जुलता लग रहा है.

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  3. रोचक जानकारी
    आभार

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  4. बहुत जीवंत वर्णन किया है. सुंदर चित्र के साथ त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.

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  5. 'हरेले' के बारे में जानकर अच्छा लगा.
    आपको भी इस शुभावसर पर ढेर सी शुभकामनाएँ.

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  6. 'हरेले'पर्व की शुभकामनाएं.

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  7. हरेला त्यौहार के बारे में बताने के लिए सुक्रिया ...आपको भी बहुत -बहुत शुभकामनाएँ

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  8. आपको भी इस पर्व की शुभकामनायें।

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  9. राहुल जी की बात से सहमत इस त्योहार और रीति रिवाजो से परिचित कराने के लिये धन्यवाद

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  10. एक पारम्परिक पर्व की विस्तृत जानकारी से अवगत कराती पोस्ट.

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  11. हरेला पर्व की जानकारी पाकर अच्छा लगा। जिस तेज़ी से हमारे पर्व सिमटते जा रहे हैं, इन्हें रिकॉर्ड करना आवश्यक है। आभार!

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  12. बहुत जीवंत वर्णन किया है. त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.

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  13. सुंदर चित्र के साथ त्यौहार की जानकारी के लिए आभार.......!

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  14. बढ़िया जानकारी।
    आपको भी हरेला की शुभकामनाएं।

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  15. अच्छा लगता है इन आंचलिक परम्पराओं से परिचय!!

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  16. हमारे यहाँ यू पी में इसे भुजरियाँ कहा जाता है ...शुभकामनायें !

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  17. इन आंचलिक परम्पराओं की बढ़िया जानकारी। हरेला की शुभकामनाएं.

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  18. भौत-भौत बधाई और शुभकामना तुमुन कैं, स्वीकार करिया.
    आभार उपरोक्त रचना हेतु.

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  19. लोक जीवन की बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है। लोक संस्कृति और लोक साहित्य हमें एक दूसरे को समझने में बहुत सहयोग करते हैं।

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  20. हरेला के इस पावन त्योहार पर शुभकामनाएँ.. पहाड़ो में तो आज भी बहुत पारंपरिक तरीके से मनाते हैं..लेकिन शहरों में तो सिर्फ नाम ही सुन ले बहुत है...यादों को जगाने के लिये धन्यवाद...यहाँ पहली बार आई बहुत अच्छा लगा...

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  21. रोचक जानकारी के लिए आभार

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  22. हरेला त्यौहार के बारे में बहुत ही बढ़िया, महत्वपूर्ण और रोचक जानकारी मिली! सुन्दर विवरण!

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  23. बहुत सुन्दर जानकारी...हार्दिक शुभकामनायें!

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  24. हर तीज त्यौहार का अपना ही महत्त्व और मज़ा भी है ... कितना कुछ जानने को मिलता है ब्लॉग जगत में ... शुक्रिया इस जानकारी के लिए ...

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  25. बढ़िया जानकारी।

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  26. मैदानी इलाकों में भी इससे मिलती-जुलती जौं बोने की परंपरा है मगर ये नवरात्र में बोए जाते हैं। अच्छी सांस्कृतिक जानकारी साझा करने के लिए आपका शुक्रिया।

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  28. इस त्यौहार की जानकारी बहुत अच्छी लगी |अच्छी जानकारी के लिए आभार
    आशा

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  29. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।

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  30. sanskriti ke baaremee jaan kar achha lga

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  31. फिर भी हुई मुश्किल अगर,
    आँचल में माँ की सो लिया..
    is tyohaar ke baare me jaankar bahut khushi hui ,iski kaamna bahut pyari hai aur vidhi adbhut maine pahli baar iske baare me jana .sundar .

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  32. हरेला त्यौहार की विस्तृत और रोचक जानकारी के लिए शुक्रिया !

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  33. रोचल जानकारी...
    मनमोहक संस्मरण

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  34. बहुत बेहतरीन पोस्ट सहेजने लायक बधाई

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  35. अपनी भाषा पढ़कर सुनकर बहुत अच्छा लगता है. बचपन के हरेले याद आ गए. माँ को भी पढ़कर सुनाया.
    घुघूती बासूती

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