अनंत ब्रह्मांडों में अनंत वस्तुएं हैं, पर उन में से तिनके-जितनी वस्तु हमारी नहीं है, फिर शारीर हमारा कैसे हुआ? यह सिद्धांत है कि जो वस्तु मिलती है और बिछुड़ जाती है, वह अपनी नहीं होती| शारीर मिलता है और बिछुड़ जाता है, इसलिए वह अपना नहीं है| अपनी वस्तु वही हो सकती है, जो सदा हमारे साथ रहे और हम सदा उसके साथ रहे| यदि शारीर अपना होता तो यह सदा हमारे साथ रहता और हम सदा इसके साथ रहते| परन्तु शारीर एक क्षण भी हमारे साथ नहीं रहता और हम इसके साथ नहीं रहते|
एक वस्तु अपनी होती है और एक वस्तु अपनी मानी हुई होती है| भगवान अपने हैं: क्यूंकि हम उन्हीं के अंश हैं| वे हमसे कभी बिछुड़ते ही नहीं| परन्तु शारीर अपना नहीं है,प्रत्युत अपना मान हुआ है| जैसे नाटकमें कोई रजा बनता है, कोई रानी बनती है, कोई सिपाही बनते हैं तो वे सब नाटक करने के लिए माने हुए होते हैं,असली नहीं होते| ऐसे ही शारीर संसार के व्यवहार के लिए अपना मान हुआ है| यह वास्तव में अपना नहीं है, उस परमात्माको तो भुला दिया और जो अपना नहीं है, उस शारीर को अपना मान लिया-यह हमारी बहुत बड़ी भूल है| शारीर चाहे स्थूल हो, चाहे सूक्षम हो,चाहे कारण हो वह सर्वथा प्रकृतिका है| उसको अपना मानकर ही हम संसार में बंधे हैं|
परमात्माका अंश होने के नाते हम परमात्मासे अभिन्न हैं| प्रकृतिका अंश होने के नाते शरीर प्रकृतिसे अभिन्न है| जो अपने से अभिन्न है, उसको अपनेसे अलग मानना और जो अपनेसे भिन्न है उसको अपना, सम्पूर्ण दोषों का मूल है| जो अपना नहीं है, उसको अपना मानने के कारण ही जो वास्तव में अपना है, वह अपना नहीं दीखता|
यह हम सब का अनुभव है कि शरीर पर हमारा कोई अधिकार नहीं चलता| हम अपनी इच्छाओं के अनुसार शरीर को बदल नहीं सकते, बूढ़े से जवान नहीं बना सकते, रोगी से निरोगी नहीं बना सकते, कमजोर से बलवान नहीं बना सकते, काले से गोरा नहीं बना सकते, कुरूप से सुन्दर नहीं बना सकते, मृत्यु से बचाकर अमर नहीं बना सकते| हमारे ना चाहते हुए भी, लाख प्रयत्न करनेपर भी शरीर बीमार हो जाता है, कमजोर हो जाता है और मर भी जाता है| जिस पर अपना वश न चले,उसको अपना मानलेना मूर्खता ही है| (कल्याण)
हम मात्र साक्षी हैं, प्रकृति सब कार्य करती है।
ReplyDeleteयह सच है की शरीर पर हमारा अधिकार नहीं है बावजूद इसके इसे अपना मान लेना शायद हमारी नियति है, क्योंकि श्रीष्ठी का सुचारू रूप में संचालन हो सके इसके लिए आवश्यक हो जाता है की हमें इसे अपना समझते हुए इसका ख्याल रखना होता है वरना प्रकृति के नियमों की अवहलेना होगी ,
ReplyDeleteआभार उपरोक्त पोस्ट हेतु....................................
पूरे अधिकार में न भी हो, किसी और शरीर के मुकाबले तो अधिक अधिकार ही है। वैसे अधिकार में अधिक छिपा बैठा लग रहा है।
ReplyDeleteजैसा कि ऊपर कहा गया है साक्षी वाला सिद्धांत सबसे बेहतर है.
ReplyDeleteसब प्रकृति का काम है
ReplyDeleteअच्छा लेख
शीर्षक में "शारीर" = शरीर कर ले
ReplyDeleteSthul aur suksham ko dekhana hi sakshibhav hai.badhiya post.aabharSthul aur suksham ko dekhana hi sakshibhav hai.badhiya post.aabhar
ReplyDeleteजिस पर अपना वश न चले, उसको अपना मान लेना मूर्खता ही है|
ReplyDeleteयह सही कथन है। क्योंकि हमें अक्सर अपने तन की गुलामी करनी पड़ती है। जो समय और श्रम हमें हमारी निज-आत्मा को दिया जाना होता है हम इस नश्वर शरीर पर व्यर्थ कर देते है। कारण होता है स्थूल शरीर पर अतिशय ममत्व!
परमात्माका अंश होने के नाते हम परमात्मासे अभिन्न हैं| ....really...
ReplyDeleteसब प्रकृति का काम है
ReplyDeleteअच्छा लेख
कल्याण से लेख पढवाने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeleteकल्याण की यह कथा सहसा बचपन की स्मृतियों में ले गयी..कितने ही संसकरण अभी हाल में घर पर हमने बाइंड करवाए..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा है..यह शरीर क्या कुछ भी हमारा नहीं है,मगर कितने इसको समझते हैं..सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा!
हम अपनी इच्छाओं के अनुसार शरीर को बदल नहीं सकते, बूढ़े से जवान नहीं बना सकते, रोगी से निरोगी नहीं बना सकते, कमजोर से बलवान नहीं बना सकते, काले से गोरा नहीं बना सकते, कुरूप से सुन्दर नहीं बना सकते, मृत्यु से बचाकर अमर नहीं बना सकते| हमारे ना चाहते हुए भी, लाख प्रयत्न करनेपर भी शरीर बीमार हो जाता है, कमजोर हो जाता है और मर भी जाता है| जिस पर अपना वश न चले,उसको अपना मानलेना मूर्खता ही है|
ReplyDelete--
यही सच्चाई है इस नश्वर देह की!
ज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट. आभार !
ReplyDeleteएक गढ़वाली कवि हैं चिन्मय शायर. उनकी एक क्षणिका कुछ ऐसे ही भाव लिए हुए है, शायद आपको पसंद आएगी;
दुनिया मेरि हून्दी त मी म रैंदी
मी दुनिया कू होंदु त दुनिया म ही रैंदु.
लगता हे आज कही से प्र्वचन सुन कर आये हे, लेकिन बहुत सुंदर बात कही आप ने अपने इस लेख मे, काश हम सब इस बात को समझ जाये तो सब सुखी हो जाये
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट.... प्रकृति अपने नियम ज़रूर निभाती है...
ReplyDeleteसही कहा आपने. सबकुछ निर्देशक के ही नियंत्रण में है.
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeleteसब प्रकृति का काम है
ReplyDeleteअच्छा लेख
हार्दिक शुभकामनायें !!
bilkul sahi baat hai...hm to aatma hain bas,
ReplyDeleteज्ञानवर्धक और सार्थक पोस्ट.
ReplyDeleteजिस पर अपना बस न चले उसे अपना मान लेना मूर्खता ही तो है ......पर जिस इश्वर ने हमे जीवन दिया जिनसे हम अभिन्न है उन्होंने ही हमे ये शरीर दिया जीवन को जीने के लिए,इसको correlate करने के लिए एक example है -पेट्रोल और कार.जिस तरह से पेट्रोल(आत्मा) के बिना कार (शरीर) नहीं चल सकती उसी तरह कार (शरीर) के बिना पेट्रोल(आत्मा) भी किसी काम की नहीं.लेकिन आप के लेख से ये सीखने को जरूर मिल रहा है की सब कुछ नश्वर है........हमे मोह नहीं करना चाहिए किसी का भी.आभार!!
ReplyDeleteअगर कुछ गलत लिखा हो तो माफ़ी चाहूंगी!!
पराकृति के साथ चलना ही उत्तम मार्ग है ...
ReplyDelete@जिस पर अपना वश न चले, उसको अपना मानलेना मूर्खता ही है।
ReplyDeleteएकदम सही है। अनुकरणीय बात रखी आपने।
भावु उत्प्रेरक लेख |बधाई
ReplyDeleteआशा
शरीर परमात्मा का दिया हुआ अनमोल उपहार है और परमात्मा तक पहुचने का सुन्दर साधन है.शरीर को स्वस्थ रखना और इसका सदुपयोग करना हमारा कर्तव्य है.शरीर में आसक्ति करना,इसका दुरपयोग करना
ReplyDeleteअज्ञानवश है.जो शरीर को ही साध्य मान लेते हैं उन्हें अंततः दुःख
उठाना पड़ता है.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
आध्यात्म से ओतप्रोत बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeleteअध्यात्म से सम्बद्ध ज्ञानवर्धक पोस्ट.
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