कर्म सिद्धांत के अनुसार प्राणी के जीवन में कोई भी अचिन्त्य घटना घट सकती है| ब्रह्मस्वरूप विप्रवर कृष्णद्वैपायन कहीं जा रहे थे| अनायास उनकी दृष्टि एक कीट पर पड़ी, जो गाड़ी की लीक पर द्रुत गति से भाग रहा था| सम्पूर्ण प्राणियों की भाषा का ज्ञान रखने वाले व्यासजीने उस कीट को रोक कर पूछा--तुम इतने उतावले और भयभीत हो कर कहाँ भागे जा रहे हो? तुम्हें किसका भय है? घबराए हुए उस कीट ने आर्त स्वर में कहा-"महामते! वह जो बैलगाड़ी आ रही है, उसकी भयंकर गडगडाहट मैं स्पष्ट सुन रहा हूँ! देखिये न,बैलों पर चाबुक की मार पड़ने से भारी बोझ के कारण वे हांफते हुए निकट ही आ रहे हैं| में तो गाड़ी पर बैठे मनुष्योंके भी नाना प्रकार के वार्तालाप सुन रहा हूँ| अपने प्राणों पर आनेवाले दारुण भय ने मेरे ह्रदय में खेद उतपन्न कर दिया है| प्राणिमात्रके लिए मृत्युसे बढ़कर और कोई दुखदाई अवसर नहीं होता, यह अक्षुण सत्य है| कहीं ऐसा न हो कि में सुखके स्थान पर दुःख में पड़ जाऊँ|
कीट के इन बचनों को सुनकर महामुनि व्यासजीने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा-"क्या कहा तुमने? सुख! तुम्हें सुख कहाँ है? इस तिर्यक अधम कीटयोनिमें शब्द-स्पर्श-रस-गंध-जैसे भोगोंसे वन्चित तुम्हारा तो मर जाना ही श्रेयस्कर है|
मर्मभरी वाणी में कीटने कहा-"ऐसा न कहिए प्रभो! मुझे इसी योनी में सुख मिल रहा है| में जीवित रहना चाहता हूँ| इस शारीर में उपलब्ध भोगों से ही मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ| में पूर्व जन्म में एक धनी शूद्र था| ब्राहमणों के प्रतिमेरे मन में आदर का भाव न था, मैं कंजूस, क्रूर और ब्याजखोर था| सब से तीखे बचन बोलना, लोगों को ठगना, झूठ बोलकर धोखा देना, दूसरे के धन को हड़प लेना मेरा स्वभाव बन गया था|मैं अतिथियों को बिना भोजन करे अकेले ही भोजन कर लेता था| दूसरे की समृद्धि देख कर ईर्ष्यावश जलता रहता था, दुसरे के अच्छे कामों में बाधा डालता था,इस प्रकार में बड़े ही निर्दई और धूर्त था पर मैं ने उस जन्म में केवल अपनी बूढी माताकी सेवाकी तथा एक दिन अनायास घर आए अतिथि का सत्कार किया था| उसी पुण्य के प्रभाव से मुझे पूर्व जन्म की समृति अभीतक बनी है| तपोधन! क्या मुझे किसी शुभ कर्म द्वारा सद्गति प्राप्त हो सकती है?
क्षुद्रजीव! संतों के दर्शनसे ही पुण्य की प्राप्ति हो जाती है; क्योंकिवे तीर्थ रूप होते हैं; तीर्थ सेवन का फल तो यथाकाल होता है| किन्तु संतोंके दर्शनसे तत्काल ही फल मिलता है| अत: मेरे दर्शन मात्रसे तुम्हारा उद्धार हो गया समझो|
अगर तुम्हें अपने किए पर पश्चाताप हो रहा है तो निसंदेह तुम्हें इस योनी से मुक्ति मिल जाएगी, तुम शीघ्र ही मानवयोनी में उत्पन्न होओगे|
व्यासजी के इन बचनों को आग्यास्वरूप शिरोधार्य कर वह बीच मार्ग में ही पड़ा रहा| छकड़े के विशाल पहिये के नीचे दब कर उसने प्राण त्याग दिए! जीवन में मृतु ही एकमात्र गूढ़ एवं प्रतक्ष सत्य है|
तत्पश्चात वह कीट क्रमश: शाही, गोधा, सूअर, मृग, पक्षी, चंडाल आदि योनियों को भोगता हुआ राजपरिवार में राजकुमार के रूप में उत्पन्न हुआ| इस योनी में पुन: व्यास जी की उस से भैट हुई| पूर्व जन्म की स्मृतिके फलस्वरूप वह ऋषिके चरणोंमें गिरकर बोला- भगवन!आप की अनुकम्पा से मैं तुच्छ कीट से राजकुमार हो गया हूँ| अब मेरे लिए सभी प्रकार के सुख-साधन उपलब्ध हैं| अब मुझे वह स्थान मिलगया है, जिसकी कहीं तुलना नहीं है|
ऊँठ और खच्चरों से जुती हुई गाड़ियाँ मुझे ढोती हैं| मैं भाई-बंधुओं और अपने मित्रों के साथ मांस-भक्षण करता हूँ| महाप्रज्ञ! आपको नमस्कार है| मुझे आज्ञा दीजिए, आप की क्या सेवा करूँ|
राजकुमार से इस प्रकार के बचन सुनकर दीर्घ नि:स्वास लेते हुए व्यासजी ने कहा- राजन! अभी तक कीटयोनी के घृणित व्यवहार तुम्हारी वासना से चिपके हैं| तुम्हारे पूर्व जन्मों के पाप-संचय अभी सर्वथा नष्ट नहीं हुए हैं| तुमने मांस भक्षण की निंदनीय प्रवृति अभी छोड़ी नहीं है|
इन प्रेरणादाइ बचनों को सुनकर राजकुमार बन में जाकर उग्र तपस्या में लीन हो गया, जिसके प्रभाव से वह अगले जन्म में ब्रह्मवेताओं के श्रेष्ट कुल में उत्पन्न हो कर ब्रह्मपद पाने में समर्थ हुआ|
कीट ने स्वधर्म का पालन कियाथा, उसी के फल स्वरुप उसने सनातन ब्रह्मपद प्राप्त कर लिया| उत्तम कर्म करने वाला उत्तम योनी में और नीच कर्म करने वाला पापयोनि में जन्म लेता है| मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे फल भोगना पड़ता है| इसलिए उत्तम धर्म का ही सर्वदा आचरण करना चाहिए|
( कल्याण में से )
मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे फल भोगना पड़ता है| इसलिए उत्तम धर्म का ही सर्वदा आचरण करना चाहिए|बिलकुल सही है लेकिन इस सचाई को जानने के बाद भी तो मनुष्य अंतिम समय तक पापो से घिरा रहता है ! शायद आये दिन न्यूज़ पेपर आप भी देखते होंगे मे आपकी इस रचना के लिए आपको बधाई देता हु और भागवान से प्रार्थना करता हु के वो मानव जाती को सदबुधी दे !
ReplyDeleteकभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारे आपका सवागत है !
ReplyDeleteसत्कर्म के लिए प्रेरित करती पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteसंत कृपा से सब संभव है।
ReplyDeleteउत्तम कर्म व जन्म मरण का चक्कर,
ReplyDeleteप्रेरक वचन!
ReplyDeleteहम सभी को सत्कर्म के लिए सदैव प्रेरित करता रहेगा आपका ये पोस्ट
ReplyDeleteआभार!
सुन्दर, शिक्षाप्रद कथा !
ReplyDeleteआभार !
बहुत शिक्षाप्रद और प्रेरक पोस्ट..
ReplyDeleteप्रेरित करती पोस्ट
ReplyDeleteउपयोगी यात्रा संस्मरण!
ReplyDeleteआपका भाषा पर अधिकार अति उत्तम है.वर्तमान युग में ऐसे ही नैतिक विचार जरुरी हैं.अनैतिक होते संसार को नैतिकता से ही सम्हाला जा सकता है.
ReplyDeleteसुन्दर और प्रेरक पोस्ट.. विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
ReplyDeleteसार्थक चिंतन ... अच्छी कथा है ...
ReplyDeleteपुनर्जन्म या फिर योनी-दर-योनी जैसी धारणाओं में कोई विस्वास करे या न करे लेकिन इतना अवश्य है की उपरोक्त जैसी प्रेरक कहानियां आज भी प्रासंगिक है बल्कि आज ऐसी शिक्षाप्रद कहानियों की और भी अधिक आवश्यकता महशुस की जा रही है ,
ReplyDeleteबहरहाल उपरोक्त प्रेरक पोस्ट हेतु आभार व्यक्त करता हूँ .....
बहुत शिक्षाप्रद और प्रेरक पोस्ट,आभार
ReplyDeleteबहुत समय बाद कल्याण से कुछ पढ़ा ...आभार आपका !
ReplyDeleteसार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteबारामासा पर आपसे टिपण्णी अपेक्षित है.
वाह! जी वाह! बहुत सुन्दर ढंग से कर्म सिद्धांत को समझा
ReplyDeleteदिया आपने. बहुत बहुत आभार.
कर्म के महत्त्व की विवेचना करती अच्छी पोस्ट के लिए आभार और बधाई |आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ |अच्छा लगा |
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने के लिए |
आशा
Very inspiring post !
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट है,आभार!!
ReplyDeleteबोध कथा के लिए आपका आभार .कहाँ गईं ये बोध परक नीति परक कथाएं ?
ReplyDeleteकल्याण पत्रिका के प्रेरक विचार को ब्लॉग के माध्यम से पहुचाने के लिए धन्यवाद .
ReplyDeletebadhiya sandesh deti hui rachna
ReplyDeleteशिक्षा प्रद पोस्ट
ReplyDeleteआभार
कर्म सिद्धांत पर भारतीय दर्शन के बारे में अच्छी पोस्ट !
ReplyDeleteप्रेरक कथा।
ReplyDeleteएक अच्छी कथा । कर्म को प्रधानता और स्वधर्म पालन से सम्बंधित
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुंदर प्रेरक कथा प्रस्तुत की है।
ReplyDeleteमनुष्य को सत्कर्म करते रहना चाहिए, फल की लालसा नहीं करनी चाहिए।
सुन्दर,शिक्षाप्रद और सन्मार्ग की और उन्मुख करने वाली कथा ...
ReplyDeleteएक प्रेरित करती कहानी, बहुत सुंदर
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