बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
मारता है आवाज  तुझे  पेड़ बांज का|
झूला डाल दे तू लेके रस्सा पराल का|
लेके हुलारे तू पींघ चढ़ा जा|
दे जा  संदेशा  कोई पहाड़ प्रेम का|
 देर से है इंतजार तेरा जंगल के राज का|
 लेके गठ्ठा तू घास  का घर को आजा|
 याद करते हैं तुझे पहाड़  के नदी और नौला|
 आके बसंत मे चैत के काफल खाजा |
 अंगरेजी धुन छोड़ के तू  पहाड़ी  घुन मे आ|
 पौप गीत छोड़ के तू झोडा चांचरी गा|
 बेटी तू पहाड़ की पहाड़ लौट आ|
लेके ओढ़नी तू कोई गीत गा|
                                  के: आर: जोशी. (पाटली)
प्रवासियों को अपने गाँव लौट आने का एक मार्मिक आमंत्रण ......बहुत सुन्दर...
ReplyDeletehttp://sharmakailashc.blogspot.com/
I appreciate your lovely post.
ReplyDeletebahut sunder kavita.....shubhkamnayen
ReplyDeleteबड़ा मार्मिक गीत लगा.
ReplyDeleteआप सब का धन्यवाद|
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