Friday, August 13, 2010

आप की कहानी, मेरी जुबानी

आप खुबसूरत हैं,
कोई मानता नहीं, अलग बात है|
आप के पास दिमांग है,
चलता नहीं, अलग बात है|
आप निहायत सरीफ है,
लगते नहीं, अलग बात है|
आप के पास मोबाईल है,
उठाते नहीं , अलग बात है|
आप की इज्जत काफी है,
कोई करता नहीं, अलग बात है|
                                    हम याद करते रहते हैं,
                                    आप भुला देते हैं,अलग बात है|
                                   आप की बेइज्जती हो रही है,
                                   आप हँस रहे हैं, अलग बात है|
                                    के: आर: जोशी. (पाटली)

11 comments:

  1. दिमांग नहीं दिमाग होता है जी

    तीसरे पद को ऎसा लिखें-
    आप निहायत शरीफ़ लगते हैं
    हैं नहीं, ये अलग बात है।

    जय हो जोशी जी की
    होगी नहीं, यह अलग बात है।
    हा हा।

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  2. किलर झपटा जी गलती ठीक करने के लिए धन्यवाद्|

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  3. आपका ब्लाग सुंदर रंगों से सजा है और आप लगातार विविध विषयों पर लिख रहे हैं। इस सिलसिले को बनाये रखना जरूरी है।

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  4. kahe ka gila shikva kis se
    kahe ki ldai jhgda hai
    tum mauj kro hm mauj kren
    ye hee jine ka nuksha hai

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  5. बहुत उम्दा लिखा है
    कोई माने या न माने
    अल्ग बात है !!!!

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  6. बढ़िया, अच्छी कविता साथ ही छोटी कहानियां भी....

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  7. amozon kaa add laga rakha hai kuch fayda huaa ki nahi
    आप के लिए ये फायदे मंद हो सकता है
    एक जाइये जरुर मेरे ब्लॉग पोस्ट
    http://paisa9.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
    और आप के लिए उपयोगी जरुर होगा
    या फिर http://paisa9.blogspot.com/2010/08/blog-post.html

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  8. वाह वाह !

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