Friday, November 7, 2014

बदकिस्मत कौन


                   एक बार यात्रियों से भरी एक बस कहीं जा रही थी। अचानक मौसम बदला धुलभरी आंधी के बाद बारिश की बूंदे गिरने लगी बारिश तेज होकर तूफान मे बदल चुकी थी घनघोर अंधेरा छा गया भयंकर बिजली चमकने लगी बिजली कडककर बस की तरफ आती और वापस चली जाती ऐसा कई बार हुआ सब की सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। ड्राईवर ने आखिरकार बस को एक बडे से पेड से करीब पचास कदम की दूरी पर रोक दी और यात्रियों से कहा कि इस बस मे कोई ऐसा यात्री बैठा है जिसकी मौत आज निश्चित है उसके साथ साथ कहीं हमे भी अपनी जिन्दगी से हाथ न धोना पडे इसलिए सभी यात्री एक एक कर जाओ और उस पेड के हाथ लगाकर आओ जो भी बदकिस्मत होगा उस पर बिजली गिर जाएगी और बाकी सब बच जाएंगे। सबसे पहले जिसकी बारी थी उसको दो तीन यात्रियों ने जबरदस्ती धक्का देकर बस से नीचे उतारा वह धीरे धीरे पेड तक गया डरते डरते पेड के हाथ लगाया और भाग कर आकर बस मे बैठ गया।
                     ऐसे ही एक एक कर सब जाते और भागकर आकर बस मे बैठ चैन की सांस लेते। अंत मे केवल एक आदमी बच गया उसने सोचा तेरी मौत तो आज निश्चित है सब उसे किसी अपराधी की तरह देख रहे थे जो आज उन्हे अपने साथ ले मरता उसे भी जबरदस्ती बस से नीचे उतारा गया वह भारी मन से पेड के पास पहुँचा और जैसे ही पेड के हाथ लगाया तेज आवाज से बिजली कडकी और बिजली बस पर गिर गयी बस धूं धूं कर जल उठी सब यात्री मारे गये सिर्फ उस एक को छोडकर से सब बदकिस्मत मान रहे थे वो नही जानते थे कि उसकी वजह से ही सबकी जान बची हुई थी।
                   "दोस्तो हम सब अपनी सफलता का श्रेय खुद लेना चाहते है जबकि क्या पता हमारे साथ रहने वाले की वजह से हमे यह हासिल हो पाया हो।"

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-11-2014) को "आम की खेती बबूल से" (चर्चा मंच-1791) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-11-2014) को "आम की खेती बबूल से" (चर्चा मंच-1791) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. कब क्या हो जाय भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नहीं जानता ...
    बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

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  4. सुंदर और प्रेरक...आभार...

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  5. सच कहा है... मेरे एक बॉस थे जो कहा करते थे की फेक्टरी में किसकी किस्मत से सब को रोज़ी मिलती है पता नहीं ... इसलिए वो सही वर्कर्स को सेलरी समय पर देता था ...
    प्रेरक रचना है ...

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