Monday, May 28, 2012

संगत का असर

             किसी शहर में एक सेठ रहता था। सेठ  का एक बेटा था। सेठ  के बेटे की दोस्ती कुछ ऐसे लड़कों से थी जिनकी आदत ख़राब थी। बुरी संगत में रहते थे। सेठ को ये सब अच्छा नहीं लगता था। सेठ ने अपने बेटे को समझाने की बहुत कोशिस की पर कामयाब नहीं हुआ। जब भी सेठ उसको समझाने की कोशिस करता बेटा कह देता कि में उनकी गलत आदतों को नहीं अपनाता। इस बात से दुखी हो कर सेठ ने अपने बेटे को सबक सिखाना चाहा। एक दिन सेठ बाज़ार से कुछ सेव खरीद कर लाया और उनके साथ एक सेव गला हुआ भी ले आया। घर आकर सेठ ने अपने लड़के को सेव देते हुए कहा इनको अलमारी में रख दो कल को खाएंगे। जब बेटा सेव रखने लगा तो एक सेव सडा हुआ देख कर सेठ से बोला यह  सेव तो सडा हुआ है। सेठ ने कहा कोई बात नहीं कल देख लेंगे। दुसरे दिन सेठ ने अपने बेटे से सेव निकले को कहा। सेठ के बेटे ने जब सेव निकले तो आधे से जादा सेव सड़े हुए थे। सेठ के लड़के ने कहा इस एक सेव ने तो बाकि सेवों को भी सडा दिया है। तब सेठ ने कहा यह सब संगत का असर है। बेटा इसी तरह गलत संगत में पड़ के सही आदमी भी गलत काम करने लगता है। गलत संगत को छोड़ दे। बेटे की समझ में बात आ गई और उसने वादा किया कि अब वह गलत संगत में नहीं जाएगा। हमेसा आच्छी संगत में ही रहेगा। इस लिए आदमी को कभी भी बुरी संगत में नहीं पड़ना चाहिए।

9 comments:

  1. वास्तव में यह मिथ्याभिमान ही होता है कि बुरी संगत का मुझ पर कोई असर नहीं होगा।
    एक सार्थक बोध कथा!!

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  2. सार्थक कथा! शुभकामनायें!

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  3. सार्थक कथा! शुभकामनायें!

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  4. सार्थक सीख देती सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. सच है, संग का असर गहरा पड़ता है।

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  6. बहुत सुंदर सीख ...इस रचना के लिए आभार

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  7. बहुत अच्छी कहानी है. यदि सभी बच्चों को यूँ उदाहरण दे कर समझाएँ तो बच्चे समझ भी जाएँगे.
    घुघूतीबासूती

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