Thursday, June 9, 2011

कोसलराज

          पुराने समय की बात है  काशी और कोसल दो पडोसी राज्य थे | काशी नरेश को कोसल के राजा की चारों तरफ फैली हुई कीर्ति सहन नहीं होसकी| काशी नरेश ने कोसल राज्य पर आक्रमण कर दिया| इस लड़ाई मे काशी  नरेश की जीत हुई| कोसल के राजा की हार हो गई| हार जाने के बाद कोसल राजा जान बचाने जंगल मे चले गए| कोसल राज्य की जनता अपने राजा के बिछुड़ ने पर काफी नाराज थी | काशी  के राजा को अपना राजा मानने को तैयार नहीं थी | उन को कोई सहयोग भी देने को तैयार नहीं थे | प्रजा के इस असहयोग के कारन काशी  नरेश काफी नाराज थे| उन्हों ने कोसल राज को ख़तम करने की घोषणा कर दी और कोसल राज  को ढूढने वाले को सौ स्वर्ण मुद्राएँ देने का ऐलान कर दिया|
            काशी  नरेश  की इस घोषणा  का कोई असर नहीं हुआ| धन के लालच में कोई  भी अपने धार्मिक नेता को शत्रु के हवाले करने को तैयार नहीं था | उधर कोसल राज बन मे इधर उधर भटकते फिर रहे थे | बाल बड़ेबड़े हो चुके थे बालों में जटा  बन चुकी थी | शरीर काफी दुबला पतला हो चुका था| वे एक बनवासी  की तरह दिखने लगे थे| एक  दिन कोसलराज बन मे घूम रहे थे | कोई आदमी उन के पास आया और बोला कि यह जंगल कितना बड़ा है? कोसल को जाने वाला मार्ग किधर है और कोसल कितनी दूर है? यह सुन कर कोसल नरेस चौंक गए | उन्हों ने राही  से पूछा कि वह कोसल क्यों जाना चाहता है?
          पथिक ने उत्तर दिया कि मे एक ब्यापारी हूँ | ब्यापार करके जो कुछ कमाया था उसको लेकर अपने घर जा रहा था | सामान से लदी नाव नदी मे डूब चुकी है| मे कंगाल हो गया हूँ | मांगने की नौबत आ चुकी है अब घर घर जाकर कहाँ भिक्षा मांगता फिरुगा| सुना है कि कोसल के राजा बहुत दयालु और उदार हैं| इसलिए सहायता के लिए उन के पास जा रहा हूँ|
           कोसलराज ने पथिक से कहा आप दूर से आये हो और रास्ता बहुत जटिल है चलो मे आप को वहां तक पहुंचा  आता हूँ | दोनों वहां से चल  दिए| कोसल  राज  ब्यापारी को कोसल लेजाने के बजाय काशिराज की सभा मे ले गए| वहां उन को अब पहचानने वाला कोई नहीं था | वहां पहुँचने पर काशिराज ने उनसे पूछा आप कैसे पधारे हैं? कोसलराज ने जवाब दिया कि मे कोसल का राजा हूँ| मुझे पकड़ने के लिए तुमने पुरस्कार घोषित किया है| यह पथिक मुझे पकड़कर यहाँ लाया है इस लिए इनाम की सौ स्वर्ण मुद्राएँ इस पथिक को  दे  दीजिये | सभा मे सन्नाटा छा गया | कोसल राज की सब बातें सुनकर काशिराज  सिहासन से उठे और बोले महाराज!आप जैसे धर्मात्मा, परोपकारी को पराजित करने की अपेक्षा आप के चरणों पर आश्रित होने का गौरव कहीं अधिक है| मुझे अपना अनुचर स्वीकार करने की कृपा कीजिये | इस प्रकार  ब्यापारी को मुह माँगा धन मिल गया और कोसल और काशी  आपस मे मित्र राज्य बन गए|                              

33 comments:

  1. प्रेरक एवं अनुकरणीय कहानी है.आज भी इस भावना की महती आवश्यकता है.

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  2. सुंदर ....प्रेरणादायी कथा

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  3. प्रेरणादायक नीति कथा. वास्तव में यही तो हमारी भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है. हमारे पूर्वजों ने किसी भी संकटग्रस्त व्यक्ति अथवा समाज की रक्षा के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की . कोसल नरेश का यह अनोखा उदाहरण हमारे सामने है. सराहनीय प्रस्तुति के लिए बधाई और आभार. कोसल राज से हम छत्तीसगढ़ वालों का भी एक ऐतिहासिक और भावनात्मक संबंध है. छत्तीसगढ़ को पौराणिक इतिहास में कोसल अथवा दक्षिण कोसल के नाम से भी जाना जाता है. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की माता दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत की बेटी थीं ,इसलिए उनका नाम कौसिल्या रखा गया .इस नाते भगवान श्री राम हम छत्तीसगढ़वासियों के भांजे हुए .आज भी छत्तीसगढ़ में मामा के द्वारा अपने भांजे के चरणस्पर्श की प्रथा है ,जो भगवान श्रीराम के प्रति यहाँ के लोगों की गहन आदर भावना का परिचायक है.

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  4. ऐसी प्रेरक कथा साझा करने के लिए आपका आभार. सुंदर कथा.

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  5. निस्वार्थ भाव का यह अनोखा उदाहरण है, आभार!

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  6. हमारे इर्द-गिर्द आज भी ऐसा कुछ घटता रहता है, लेकिन चर्चा कम हो पाती है.

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  7. बहुत सुन्दर और प्रेरक कथा! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  8. बहुत सुन्दर और प्रेरणा देने वाली कहानी ...

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  9. आप बहुत ही पुण्य का कार्य कर रहे हैं साधुवाद ऐसे ही धर्म की ध्वजा फ़हराते रहें ।

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  10. प्रेरणादायक रचना।

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  11. प्रेरक रचना।

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  12. बहुत बढ़िया...

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  13. बहुत सुन्दर ...

    अच्छाई प्रभाव छोड़ती ही है.

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  14. प्रेरक कथा ...प्रेरणादायक ...

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  15. भाई साहब बहुत ही मार्मिक जन -निष्ठ सन्दर्भ और बोध कथा है जो अन्दर तक छूती है .कहाँ गए ऐसे लोग .रामदेव और अन्नाजी आस का दीपक जलाए हैं .

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  16. अपकी कहानिया प्रेरनात्मक होती हैं जिन से पौराणिक कथाओं का आभास होता है। शुभकामनायें। वैसे ऐसी कहानिया मै याद इस लिये रखती हूँ कि मेरे नाती नातिन कहानियों के बहुत शौकीन हैं । जब वो आते हैं तो आपका ब्लाग जरूर खोल लेती हूँ। शुभकामनायें।

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  17. एक प्रेरक कथा.

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  18. सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति

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  19. हमारे सच्चे प्रेरणा स्रोत यही लोग हैं जिन्होंने बैर को प्रेम से जीतना सिखाया |
    आभार

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  20. आपकी बधाइयाँ प्राप्त हुईं.धन्यवाद.पौराणिक कथा पर आधारित सुंदर प्रेरक पोस्ट.भगवान श्री राम का ननिहाल कौशल वर्तमान में छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है.यहाँ के निवासियों में आज भी भोलापन और त्याग की भावना देखने को मिलती है.

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  21. प्रेरक कथा की अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  22. मेरे ब्‍लाग पर आपके आगमन का धन्‍यवाद ।
    आपको नाचीज का कहा कुछ अच्‍छा लगा, उसके लिए हार्दिक आभार

    आपका ब्‍लाग भी अच्‍छा लगा । बधाई

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  23. सुन्दर प्रेरक कथा

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  24. सुंदर प्रेरक पोस्ट.....

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  25. पौराणिक कथाओं के माध्यम से अच्छे सन्देश आ रहे हैं.

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  26. हम तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आये....... बहुत प्रभावशाली ब्लॉग है आपका. यह प्रस्तुति बहुत सुन्दर और प्रेरणा देने वाली है.

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